विकास तेजी से कल्याणी की तरफ बढ रहा था|
कल्याणी ने बहुत कोशिश की वहा से उठने की पर वो नही कर पायी और देखते ही देखते विकास उसके पास पहुंच गया| वो बहुत ही डर गई थी|
उसने कल्याणी के बाल पकडे और उसीसे खींचकर उसे खडा किया| उसके पैर मे इतना दर्द हुआ की वो दर्द से बिलख उठी|
"भगा दिया अपने आशिक को? तुझे तो मै बाद में देखता हूँ! ले जाओ इसे और किसी को कोई शक नही होना चाहिए!" उसने कल्याणी को दूसरे आदमी की तरफ धकेल दिया|
उसने कल्याणी के हाथ कसकर पकड लिये|
"मै पहले उससे निपटता हू| उसका मिलना बहुत जरूरी है|तुम लोग चलो मेरे साथ!" ये कहकर वो कुछ लोगों को अपने साथ लेकर अविनाश के पीछे निकला और तीन लोग वही कल्याणी को पकडकर ले जाने लगे|
कल्याणी उनसे छूटने का पूरा प्रयास कर रही थी पर वो सफल नही हो पा रही थी| वो जोर जोर से मदद के लिए चिल्लाने लगी| इसलिए उसमे से एक आदमी ने उसके मुंह पर हाथ रखा| पर उसने उसे बहुत बुरी तरह काट लिया.... और उसके हाथ से लाठी लेकर बाकी दोनो को सर पर जोर से मार दी|
वो तीनो दर्द से बिलख उठे| दो तो सर मे चोट लगने की वजह से जमीन पर ही गिर गए| इसी का फायदा उठाकर बडी हिम्मत से कल्याणी वहा से भागने लगी पर वो ज्यादा तेज नही चल पा रही थी| उसके पैर मे गोली लगी थी|
उस जख्म से लगातार खून बह रहा था|इतने दर्द के साथ वो जैसे तैसे भाग रही थी|
पर थोडी ही देर मे वो तीनो खुद को संभाल कर उसके पीछे निकले| वो उसका पीछा करने लगे| (इसी वक्त गाव के आदमी ने उसे देखा था|)
पैर मे चोट लगने की वजह से उन लोगों को कल्याणी को पकडने में कुछ ज्यादा देर नही लगी| उन्होंने उसे पकडा और अपने साथ ले गए|
उधर अविनाश भागते भागते एक बडे से पेड के पास आ पहुँचा|
(ये वही पेड था जहापर रुद्र और गौरी पर उस पिशाच्च ने हमला किया था|) अचानक उसकी नजर पेड के पीछे वाले बडे से पत्थर पर पडी| वो देखते ही उसने अपने आँसू पोछे और बहुत ताकत से उसने वो पत्थर जगह से हिला दिया| उसके पीछे थोडी जगह थी| उसमे सारे गहने और वो त्रिशूल उसने छिपा दिया, वो पत्थर वापिस रख दिया और वो पेड की आगे के तरफ आ गया|
वो वहा पहुंचकर बहुत रोया क्योंकि वो अपनी जान से ज्यादा प्यारी कल्याणी को पीछे छोड़कर आ गया था| वो कल्याणी के साथ बिताया हर पल याद करके रो रहा था| उसे लग रहा था कि शायद अब तक विकास ने उसे मार दिया होगा|
पर उसने सोच लिया की वो चाहे कुछ भी हो जाये पर विकास को नही छोडेगा| वो सब के सामने उसका असली चेहरा लेकर आयेगा| उसने अपने आँसू पोछे और उठ खडा हुआ|
तब तक विकास वहा पहुंच गया| जैसे ही अविनाश ने उसे देखा वो भागने लगा पर विकास ने उसे वही पर पकड लिया|
उसके आदमियो ने उसे पकड रखा था|
"बहुत दौडाया तुने! चल अब जल्दी गहनो की बैग दे मुझे! गहनो का बैग कहा है? कहा रखा तुने? तेरे पास ही था ना? बता??" विकास उसके बाल पकडकर पुछने लगा|
पर अविनाश कुछ नही बोल रहा था|
विकास ने उसे बहुत मारा भी! पर अविनाश ने अपने मुंह से एक शब्द तक नहीं निकाला|
"तु चाहे कुछ भी कर ले पर वो गहने अब तुझे नही मिलेंगे! जिन गहनो के लिए मेरी कल्याणी ने अपनी जान की बाजी लगा दी, वो गहने मै तेरे हाथ मे कभी नही पडने दुंगा| अब तक तो वो गहने तेरी पहुंच से बहुत दूर जा चुके होंगे|" अविनाश उससे कहने लगा|
"दूर जा चुके होंगे मतलब ? मतलब क्या है तेरा? किसको दिये तुने वो गहने? बता! बता मुझे! तु ऐसे नही मानेगा!" विकास के किसी सवाल का जवाब नहीं दिया अविनाश ने|
इसलिए गुस्से मे विकास और उसके आदमियो ने उसे बहुत मारा|
गहनो का राज़ जानने के लिए विकास ने अविनाश को बहुत दर्द दिया| उसके हाथ पैर तोड दिये, आँख फोड़ दी पर अविनाश तस से मस नही हुआ| वो बेचारा सारा दर्द सह गया| उसकी चींखे सुनने वाला कोई नही था वहा!
विकास ने उसे बहुत दर्द दिया पर उसने गहनो का राज़ नही बताया| आखिरकार विकास को यकीन हो गया की अविनाश अपनी जान दे देगा पर गहनो का राज नही बतायेगा और उसे जिंदा छोडना मतलब गाँव वालो को वो सब सच बता देता इसलिए विकास ने एक फैसला किया| उसने अपने आदमीयो को रस्सी लाने के लिए कहा|
अविनाश बेचारा बेहाल हो चुका था| उसका पूरा बदन दर्द मे डूब गया था| पर वो कल्याणी को दिया वचन कैसे तोड सकता था!
विकास के आदमी रस्सी लेकर आए|
विकास ने उस रस्सी का फंदा बनाकर अविनाश के गले मे डाल दिया|
उसने रस्सी उसी पेड के एक बडी सी डाली से फेंकी और सब लोगो ने खींचकर अविनाश को उस डाली से लटका दिया| वो बेचारा बहुत छटपटाया पर कुछ कर नहीं पाया|बस आखरी साँसे गिनते गिनते उसकी आँखों के सामने
कल्याणी ही आ रही थी|
उसकी वो मासूम हसी! उसका बेवजह डांटना, बेवजह रुठना, उसे मनाना! प्यार से गले लगाना! उसके साथ हमेशा उसकी अर्धांगिनी बनकर रहने का सपना सजाना!
ये सब अविनाश का आँखो से सामने से गुजर गया|
इसी के साथ उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गई|
पर मरते मरते कल्याणी की यादें उसके चेहरे पर हल्की सी हसी छोड गई|
अविनाश के मरते ही उन लोगों ने उसे नीचे उतारा|
विकास ने उसके पास जाकर वो सच मे मर गया है या नही इसकी पुश्ती की| उसने अविनाश के पार्थिव शरीर के जोर से एक लात मारी|
"कमीना! मर गया! अगर गहनो का राज़ बताकर जाता तो क्या चला जाता इसका?
तुम लोग इक काम करो! किसी को कुछ पता चलने से पहले इसकी लाश को यही दफना दो| जब तक पूजा का समय खत्म नही होता तब तक तो तुम ये सब कर ही लोगे|तब तक कोई मंदिर से घर नही लौटेगा और हाँ! इसका मोबाइल वगैरा निकाल लेना| हो सकता है किसी दोस्त को दिये हो गहने| उससे पता चल सकेगा|
मै उस कल्याणी को देखता हूँ| उसे भी इसी के पास पहुंचाना पडेगा| वरना वो हमारे लिए इससे भी बडा खतरा साबित हो सकती है|
इसको ठिकाने लगा के तुम लोग भी अपनी जगह पर चले आना|"
विकास अपने आदमीयो को सब समझा कर चला गया|
उसके कहे अनुसार उन लोगो ने पेड के पीछे ही बहुत बडा गड्डा किया और उसमे अविनाश की लाश को दफना दिया|दफनाने से पहले उन्होने उसकी जेब से मोबाइल, वॉलेट सब निकाल लिया| वो गड्डा ठीक उन गहनो वाले पत्थर के सामने था| अपना काम खत्म करके वो लोग भी विकास के पास चले गए|
अब उस जगह सिर्फ वो पेड ही था जो अविनाश की हर एक चींख और हर दर्द का गवाह था| सिर्फ वो पेड ही था जो उसके साथ हुए अन्याय का एकमात्र गवाह था| पर वो भी चुपचाप खडा था| बस अविनाश की कब्र पर उसने फूल बरसा दिये| शायद वो भी अविनाश का दर्द देखकर सहम गया था|
किसी ने कल्याणी के उपर पानी डाला| पानी डालते ही उसे होश आया और उसके पैर का दर्द फिरसे उसकी जान लेने लगा| पर कल्याणी कुछ नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसके मुँह पर टेप लगा था और हाथ पैर बाँधकर रखे गए थे| उसने सामने देखा तो वो विकास था और हर तरफ उसके कई आदमी थे|
उसे एक अंधेरी जगह मे बाँधकर रखा गया था....
"अरेरेरेरे! बेचारी! अगर हमारे खिलाफ ना जाती और चुपचाप अपने उस मजनू के साथ चली जाती तो ना ही इतना बुरा हाल होता और ना ही इतना दर्द सहना पडता तुम्हें!"
कल्याणी रो भी रही थी और बोलने की कोशिश कर रही थी पर बोल नही पा रही थी| इसलिए विकास ने उसके पास जाकर उसके मुँह पर लगा टेप हटाया और उसके हाथ पैर खोलने लगा|
"बोलो! क्या बोलना चाहती हो तुम? क्योंकि शायद इसके बाद कुछ बोलने के लिए तुम इस दुनियां मे ही ना रहो!" विकास ने उसके हाथ पैर खोल दिये पर विकास की बात सुनकर कल्याणी डर गई थी|
" अ्..... अ्.... अविनाश कहा है? क्या किया तुमने उसके साथ?" कल्याणी ने काँपते हुए पूछा|
"वो बेचारा? बहुत पूछा उससे! अगर गहनो का पता बता देता तो बच जाता! पर नही! नही बताया!" विकास हसते हुए बताने लगा|
"बच जाता मतलब?" कल्याणी की आँखो मे आँसू थे|
"मार दिया उसे! अफसोस! बेचारा अब इस दुनियां में नही रहा!" विकास की ये बात सुनते ही कल्याणी सुन्न हो गई|पर अगले ही पल उसने विकास की कॉलर पकड ली|
"तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? कैसे कर सकते हो ऐसा? कहदो की ये झूठ है! तुम मुझसे झूठ बोल रहे हो?" कल्याणी रोये जा रही थी|
" ये झूठ नही है! मार दिया मैने उसे!" विकास ने गुस्से मे उसके हाथ अपने कॉलर से हटाये|
ये सुनकर कल्याणी को बहुत गुस्सा आया और उसने विकास को जोरदार थप्पड़ जड दिया| इससे विकास भी गुस्से में आ गया और उसने भी कल्याणी को बहुत जोरदार थप्पड़ मारा| कल्याणी नीचे गिर पडी| उसका सिर घुमने लगा| पहले ही खून से लथपथ तो वो थी ही! अब मुंह से भी खून निकलने लगा|
विकास ने गुस्से मे ही अपनी गन निकाली और उसे शूट करने जा रहा था पर उसने जो देखा उसे देखकर उसका इरादा बदल गया|
कल्याणी ने साडी पहनी थी| नीचे गिरने की वजह से उसकी साडी थोडी उपर हो गई और पल्ला हटने की वजह से कल्याणी की कमर का थोडा हिस्सा दिखने लगा|
ये सब देखकर विकास का इरादा बदल गया|
बेचारी कल्याणी वो तो दर्द से बेहाल थी! वो जैसे तैसे उठकर बैठी|
"तुम देखना! माँ दुर्गा का शाप लगेगा तुम्हे! मातारानी खुद आकर तुम्हे तुम्हारे दुष्कर्मों की सजा देंगी!" कल्याणी रोते हुए कहने लगी|
"अभी दुष्कर्म किये ही कहा है? अभी तो और भी दुष्कर्म बाकी है!" विकास कल्याणी का मुंह दबाते हुए कहने लगा और धीरे धीरे उसके पास आते हुए उसे किस करने की कोशिश करने लगा| पर कल्याणी ने उसे दूर धकेल दिया और चिल्लाने लगी|
अब विकास को बहुत गुस्सा आ गया| वो उठा और कल्याणी पर थप्पड़ों की बारिश कर दी| कल्याणी बिचारी बेहाल हो गई|
फिर सबके सामने उसने कल्याणी के साथ दुष्कर्म किया|
वो सबसे मदद की गुहार करती रही पर उसके आदमी बस उनको देखकर हसते रहे| कल्याणी चींखती चिल्लाती रही पर कोई उसकी मदद के लिए आगे नही आया|
कुछ देर बाद जब विकास का मन भर गया तो उसने बाकीयों को भी भेज दिया| बारी बारी सबने बेचारी के साथ.....
कुछ देर बाद जब विकास को मंदीर से फोन आया की वहा पर गहने और उसकी प्रतिक्षा हो रही है तो उसने वो सब रोककर सब को बाहर बुलाया|
तब तक तो कल्याणी मरने की कगार तक पहुंच गई थी| वो बस पडी रही|
विकास ने कुछ लोगो को कल्याणी की निगरानी के लिए रखकर बाकीयों के साथ मिलकर ये स्वांग रचा की कल्याणी अपने दोस्तों के साथ गहने चोरी करके भाग गयी है और गाँव वालो को वही सब बताया|
जब सारे गाव वाले मंदिर बंद करके अपने अपने घर चले गए| तब आधी रात को विकास कल्याणी के पास पहुंचा|उसने देखा तो कल्याणी की साँसे चल रही थी| उसने उसे उठाया और मंदिर के पीछे ले गया| मंदिर के पीछे गड्ढे मे उन्होने उसे दफना दिया| जब वो लोग उसके उपर मिट्टी डाल रहे थे तब भी कल्याणी की साँसे चल रही थी| वो मरना नही चाहती थी| अपने पिताजी के साथ रहकर उनके सपने पूरे करना चाहती थी| अविनाश के साथ अपना घर बसाना चाहती थी| पर उन दरिंदो ने उसके सारे सपनो पर मिट्टी डाल दी|
इस तरह कल्याणी और अविनाश का बहुत ही बुरा अंत हुआ| मरने से पहले एक दूसरे का चेहरा तक नहीं देख पाये वो!
(वर्तमान समय)
सब लोग गौरी की कहानी मे खो गए थे| सबकी आँखो मे आँसू थे| सबको गौरी की सुनाई कहानी सच लगी पर विकास बहुत डरा हुआ लग रहा था|
रुद्र की भी आँख नम थी|
पंडितजी तो फूँटफूँटकर रो रहे थे| वो रोते रोते नीचे बैठने वाले थे पर गौरी ने उन्हें संभाला| वो भी रो रही थी|
"मेरी बच्ची! उसके साथ....पर ये सब तुम्हें कैसे पता बेटी?" सबके चेहरे पर जिज्ञासा थी| मानो पंडितजी ने सबके दिल की बात कह दी होट
"मेरी कहानी मुझे नही तो किसे पता होगी पिताजी?" गौरी ने पंडितजी की आँखो मे आँखें डालकर कहा|
ये सुनते ही सब चौक गए|
"ये तुम क्या कह रही हो बेटी?"
"मै सच कह रही हू पिताजी! मै ही आपकी कल्याणी हू!" कहकर गौरी पंडितजी के गले लगकर रोने लगीट
पंडितजी को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था पर वो भी बहुत रोने लगे|
रुद्र को समझ नही आ रहा था कि गौरी ऐसा क्यो कर रही है पर उसने खुदको संभाला और गौरी को पंडितजी से अलग किया|
उसकी बाहे पकडते हुए कहा, "ये तुम क्या कह रही हो गौरी? क्या अजीब बाते कर रही हो?"
"मै गौरी नही कल्याणी हू! गौरी ने अपनी मर्जी से मुझे अपना शरीर दिया है!"
गौरी ने उसके हाथ अपने हाथ से हटाते हुए कहा|
ये सुनते ही सबको ये समझते देर नही लगी की कल्याणी की आत्मा गौरी के शरीर में प्रवेश कर गई है| रुद्र को ये सुनकर बहुत बड़ा झटका लगा की गौरी ने खुद उसे अपनी मर्जी से बुलाया है|
"कल्याणी! मेरी बच्ची!" पंडितजी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे गले लगा लिया|
"मुझे माफ कर दो बेटा! मैने तुम्हें बहुत गलत समझा| अब तक तुम्हें कोसता रहा| मुझे माफ कर दो बेटा| मै पापी हू! मै पापी हू!" पंडितजी रोने लगे|
"ऐसा मत कहिये पिताजी! आप कभी गलत नहीं हो सकते और ना ही आपके संस्कार! आप खुदको मत कोसिये| ये सब तो हालात के खेल है जो इस अधर्मी ने बनाये है|" कल्याणी (जो गौरी के शरीर मे है|) विकास की तरफ देखकर बहुत ही गुस्से से कहने लगी|
सब लोग उसकी तरफ गुस्से से देखने लगे| खुद को फंसता देखकर विकास हडबडा गया|
"ये....ये क्या कर रहे हो आप लोग? ये सब किसकी बाते सुन रहे हो? ये कुछ भी कहेगी और मान लोगे? ऐसे कैसे क्.. कल्याणी की आत्मा इसके शरीर मे आ सकती है? क्या प्रमाण है?" विकास डरते हुए कह रहा था|
विकास की ये बात सुनकर कल्याणी को बहुत गुस्सा आ गया| वो गुस्से से गुर्राने लगी| उसकी आँखे एकदम लाल हो गई| उसने गुस्सेमें अपने हाथ की मुट्ठी इतनी कसकर बनाई की उसी के नाखूनो से चोट लगने की वजह से उसके हाथ से खून की बूंदे जमीन पर गिरने लगी| उसपर रुद्र की नजर पडी|
तभी अचानक वहा हवा की गती बढ गई|
कल्याणी गुस्से मे गुर्राते हुए विकास के तरफ बढने लगी और विकास डर के मारे पीछे पीछे जाने लगा| थोडी देर पहले सुंदर और मासूम लगने वाली गौरी अब बहुत ही खूंखार लगने लगी थी|
रुद्र अचानक विकास और कल्याणी के बीच आकर खडा हो गया| इसकी वजह से कल्याणी अचानक थोडी शांत हो गई|
"गौरी!!!!!!!" रुद्र ने उसकी बाहे पकडी और बहुत ही जोर से चिल्लाया|
उसकी आवाज सुनकर गौरी जाग गई| उसकी लाल आँखे अचानक नॉर्मल हो गई| वो शांत हो गई| उसे समझ नही आ रहा था वहा हो क्या रहा है! वो आसपास देखने लगी|
"रुद्र!" अपना नाम सुनते ही रुद्र ने गौरी को कसकर गले लगा लिया|
"गौरी! तुम ठीक तो हो ना? ये लो! ये माला पहन लो! जल्दी करो!" रुद्र गौरी को वो माला पहनाने लगा पर गौरी ने उसका हाथ पकड लिया और पीछे देखा| उसे विकास नजर आया|
"नही रुद्र! अभी इसे पहनने का सही समय नही आया है| प्लीज मुझे मत रोकिये| उसके साथ बहुत बुरा हुआ है रुद्र! उसने कल रात ही मुझे सब बता दिया था| उसकी कोई गलती नहीं थी रुद्र!
आप ने ही तो कहा था ना रुद्र की शायद शिवजी ने कुछ सोच समझकर ही मुझे ये शक्तियां दी होंगी किसी बडे मक़सद के लिए! शायद यही वो मक़सद है रुद्र! कल्याणी और अविनाश को न्याय दिलाना! आप मुझे मत रोकिये रुद्र! आप मेरी ताकत बनिये, मेरी कमजोरी नही!
मेरी चिंता मत करीए! मुझे कुछ नहीं होगा! वो मुझे कुछ नहीं होने देगी|"
गौरी की बात सुनकर रुद्र को सब समझ आ गया और वो उसके रास्ते से हट गया|
रुद्र के उसके सामने से हटते ही गौरी पर कल्याणी फिर से हावी हो गई| उसकी आँखों में अंगारे नजर आने लगे|
"प्रमाण? प्रमाण चाहिये ना तुझे? मै दूंगी तुझे प्रमाण! तुझे क्या मै सबको प्रमाण दूंगी! तुझे मारने से पहले तेरा घिनौना चेहरा सबके सामने लाउँगी मैं! चलिये सब मेरे साथ!" कल्याणी के पीछे सब जाने लगे पर विकास वही पर खडा था|
"चलो सबके साथ! आज पता चल ही जाये की तुम कितने बडे कमीने हो और हा गलती से भी भागने की सोचना भी मत!" रुद्र ने उसका हाथ पकडा और खींचकर ले जाने लगा| वो भी कल्याणी (गौरी )के पीछे चल पडा|
कल्याणी सब को मंदिर के पीछे उसी जगह पर ले गई जहा पर विकास ने उसे दफ़नाया था|
"यहा पर खोदो!" कल्याणी ने उस जगह पर उँगली दिखाते हुए कहा|
"जाइये! कुछ लेकर आइये यहा खुदाई करने के लिए!" रुद्र ने कुछ लोगों से कहा|
थोडी ही देर मे वो लोग कुछ खुदाई का सामान लेकर आये और खोदना शुरु किया|
गाँव के कुछ लोगो ने विकास को पकड रखा था ताकि वो भाग ना जाये| सब को उसपर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था|
रुद्र भी खोदने मे मदद कर रहा था|
कुछ देर खोदने के बाद ही सब को बहुत ही बुरी बदबू आने लगी| थोडा और खोदने के बाद रुद्र को किसी का पूरी तरह से गला हुआ हाथ दिखाई पडा| वो देखकर सब चौंक गए|
" रुक जाइये! कोई भी किसी औजार का इस्तेमाल मत करीये! ये मिट्टी हाथ से हटाइये!" रुद्र ने बाकीयों को समझाया|
थोडी मिट्टा हटाने के बाद साडी जैसी कोई चीज दिखने लगी|
"ये तो वही साडी है जो उस दिन मेरी बेटी ने पहनी थी|" वो देखते ही पंडितजी जोर से बोले|
मिट्टी हटाने के बाद अब किसी लडकी का पूरी तरह गला हुआ शरीर साफ नजर आ रहा था|
वो देखते ही पंडितजी बहुत ज्यादा रोने लगे| सब लोगो को आँखो में भी आँसू आ गए|
"कल्याणी! मेरी बेटी! ये सब क्या हो गया तुम्हारे साथ? और मै.... मै कितना पापी हू की तुम्हें गलत समझ रहा था!" पंडितजी रो रोकर कह रहे थे|
"ये तो पापी है! इसे तो सब के सामने जिंदा जला देना चाहिए! ये लो रस्सी! लटका दो इसे इसी मंदिर मे!"
एक आदमी भागकर रस्सी लेकर आया और विकास को मारने की बात करने लगा| सब लोग बहुत गुस्सा कर रहे थे| गाँव वाले मानो जैसे विकास की जान के प्यासे हो गए हो|
पर कल्याणी का गुस्सा इस सब से परे था| वो आज विकास के हर घिनौने राज से परदा उठाना चाहती थी|
उसने उस आदमी के हाथ से रस्सी ली और विकास के पास गई|
"और प्रमाण चाहिये तुझे? मै देती हूँ! आज तेरे हर गुनाह का प्रमाण मै तुझे दूंगी और सजा स्वयं मा दुर्गा!
चल मेरे साथ!" कल्याणी ने वो रस्सी उसके गले मे डाल दी और उसे खींचकर ले जाने लगी|
सब लोग उसके पीछे चल दिये| कल्याणी मंदिर के बाहर उसे खींचकर लायी| वो उसी पेड के पास आकर रुक गई जहा विकास ने अविनाश को मारा था|
कल्याणी ने विकास को छोड दिया पर गाव के लोगों ने उसे पकड रखा ताकि वो भाग ना जाये|
कल्याणी ने दो पल बस उस पेड की तरफ देखा और अचानक नीचे बैठकर बहुत जोर जोर से चिल्ला चिल्लाकर रोने लगी|
उसकी आवाज़ इतनी तेज थी कि सबने अपने कान बंद कर लिये|
पर रुद्र अलग ही चिंता मे था| वो जानता था की ये वही पेड है जहा पर कल रात को उस पिशाच ने उन दोनों पर हमला किया था|
थोडी देर बाद कल्याणी शांत हो गई|
वो उठी और बोली, "यहा पर खोदो!" उसने पेड के पीछे इशारा करते हुए कहा|
उसके कहे अनुसार दो लोग वहीपर खुदाई करने गए| खुदाई करने पर वहा उन्हे अविनाश का भी गला हुआ शरीर मिला|
उसे देखकर सब को कल्याणी की बातो पर पक्का यकीन हो गया|
कल्याणी तो उस कंकाल को देखकर सुन्न हो गई थी| उसके हाथ पैर तोड दिये गए थे| बहुत तकलीफ मे मौत हुई थी अविनाश की!
"उस कंकाल को बाहर निकालो! विधिवत उसका अंतिम संस्कार किया जायेगा!" पंडितजी के साथ के एक पुजारी ने बोला|
पर जैसे ही वो लोग वहा कंकाल निकालने लगे अचानक बहुत जोरो की हवा चलने लगी| साफ नीला आसमान काला हो गया| काले बादलो ने सूरज को पूरी तरह ढक दिया| बिजली कडकने लगी| पूरा वातावरण ठंडा हो गया| अजीब सी बदबू हर तरफ फैल गई|
सब लोग डरने लगे| कल्याणी भी चौंक गई थी|
वो दो लोग जो खुदाई करने गए थे, वो तो पसीने से तरबतर हो गए थे| अचानक उनकी नजर उपर पेड की डाली पर पडी| वहा पर बैठकर वही पिशाच उनको देख रहा था| उसे देखकर वो दोनो चींख पडे|
आज वो पिशाच सबको दिखाई दे रहा था|
उसे देखकर सब डर गए| कुछ औरते तो बेहोश हो गई|
रुद्र बस हक्का बक्का उसे देख रहा था|
वो पिशाच उपर से एक आदमी पर कूद पडा|
उस पिशाच ने अपनी नुकीली जीभ एक आदमी के छाती मे गाड दी और उसके गर्दन मे अपने दात गाडकर खून पीने लगा| तब तक दुसरा आदमी वहा से भाग निकला|
सब लोग डरे हुए थे पर रुद्र अपने ही खयाल मे था|
" मंदिर मे कल्याणी की लाश! उसकी आत्मा वहा..... यहा अविनाश को दफ़नाया गया था| तो कही......... "रुद्र अपने आप से बात कर रहा था|
उसे कुछ समझ मे आ गया|
वो दौडकर कल्याणी के पास पहुंचा|
"मेरी बात सुनो कल्याणी! रोको इसे! तुम ही हो जो इसे रोक सकती हो!" रुद्र उससे कहने लगा|
तब तक उस पिशाच ने उस आदमी का खून पिकर उसे मार दिया और अपना रुख एक छोटे बच्चे की तरफ मोडा|
"मै? मै कैसे?"
"मेरी बात सुनो! तुम जानती हो ये कौन है| गौरी को आजाद करो और जाओ! रोको उसे! प्लीज इससे पहले की कुछ और बुरा हो! मै तुम्हारे आगे हाथ जोडता हू|" रुद्र हाथ जोडकर कहने लगा|
कल्याणी ने दो पल सोचा और अचानक उसे कुछ समझ आ गया और वो मान गई|
तभी रुद्र ने जल्दी से वो माला गौरी को पहना दी| जैसे ही गौरी ने वो माला पहनी, कल्याणी उसके शरीर से अलग हो गई और गौरी रुद्र की बाहो मे अपना होश संभालते हुए आ गिरी|
अब परिक्षा कल्याणी की थी| वो भागते हुए उस पिशाच्च के सामने जाकर खडी हो गई और उस छोटे बच्चे को बचा लिया|
उधर गौरी ने भी अपना होश संभाला|
कल्याणी को देखते ही वो पिशाच रुक गया| कल्याणी के आँखोंमे आँसू थे| वो पिशाच्च कुछ देर ठहर कर उसी को देखे जा रहा था| उसे देखकर वो अचानक शांत हो गया|
"ये क्या हाल बना लिया तुमने अपना?" वो रो रही थी|
कल्याणी ने बिना डरे अपना हाथ धीरे से उसके चेहरे पर फेरा|
कल्याणी के वैसा करते ही चमत्कार हुआ|
वो बदसूरत घिनौना पिशाच एक सुंदर नौजवान मे बदल गया| वो नौजवान कोई और नही अविनाश था|
दोनो एक-दूसरे को आमने सामने पाकर गले मिलके रोने लगे|
"मेरा मज़ाक सच कर दिखाया तुमने तो! मै ना रहू तो क्या तुम सच मे भूत बन जाओगे?" कल्याणी ने कहा|
"हाँ सही कहा था तुमने!" अविनाश हस पडा|
सब उनके इस मिलन को देखकर रो रहे थे|
वो दोनो गाँव वालो की तरफ मुडे|
"हमने कोई बुरा काम नहीं किया| फिर भी हमपर लांछन लग शायद यही वजह थी कि हमे मुक्ती नही मिल पा रही थी|" कल्याणी कहने लगी|
"अब आप लोगो की अमानत आपके पास है ये जानकर मै भी निश्चिंत हू!" अविनाश ने कहा|
"आपकी परवरिश गलत नहीं है पिताजी! अगर ऐसा होता तो आज मै यहा ना होती! दुख बस इस बात का है कि मै आपके साथ रहकर आपकी सेवा करना चाहती थी और वो मै नही कर पायी|
गौरी! (वो गौरी के पास गई|) आप मेरे पिताजी की खयाल रखियेगा| रखेंगी ना आप?" गौरी ने हा मे गर्दन हिला दी| वो भी बहुत इमोशनल हो गई थी|
"आपका बहुत बहुत शुक्रिया! अगर आप ना होती तो शायद आज भी सब लोग हमे कोस रहे होते! आपकी बदौलत आज हम लोग मिल पाये और हम मुक्त हो रहे हैं!" कल्याणी कह रही थी|
"हमारा मक़सद विकास से बदला लेना नही बल्कि हमारे चरित्र पर जो लांछन लगा था उसे मिटाना था| अब वो पूरा हो गया है| इसके किए की सजा इसे जरूर मिलेगी और वो स्वयं देवी माँ देंगी! हम कौन होते हैं इसे सजा देने वाले! अब हमे जाना होगा!" अविनाश ने गौरी से कहा|
"अगर फिर से जनम मिला ना पिताजी तो मै आप ही की बेटी होकर जनम लूंगी|" कल्याणी और पंडितजी दोनो रो रहे थे|
सब की आँख नम थी|
कल्याणी ने अविनाश का हाथ पकडा और सबसे विदा ली| कुछ ही देर मे वो दोनो सफेद रौशनी के अंदर गायब हो गए| उनको मुक्ति मिल गई|
सब दुखी थे और विकास था जो अपनी अगली चाल के लिए तैयार था| उसने कुछ देर पहले जिसे फोन किया था उसका उसे बेसबरी से इंतजार था| शायद वो ही उसे इन सब लोगो से बचा सकता था|