रुद्र ने गौरी को नीचे गिरा दिया था| गौरी की कमर मे चोट लगने की वजह से वो थोडा आगे बढते ही गिरने वाली थी पर तभी किसी ने उसे संभाल लिया|
वो विवेक जी थे|
उनके साथ शालिनी जी और रेवती भी थी| रिया ही उनको वहा लेकर आयी थी|
तब तक वहा महाराज- महारानी, विजय-पूजा, राजगुरू सब लोग आ गए|
गौरी ने जैसे ही उन लोगो को देखा गौरी उनसे लिपट गई| उनके पैर छुए| गौरी को उनसे मिलकर बहुत खुशी हो रही थी| रुद्र भी बहुत खुश था| वो भी उनसे मिला|
रुद्र : माँ-पापा! आप लोग यहा अचानक? आपने बताया भी नही!
शालिनी जी : हमे जैसे ही गौरी के बारे मे पता चला हम अपने आप को रोक नही पाये बेटा!
विवेक जी : हम गौरी से एक पल भी दूर नही रहना चाहते थे बेटा इसलिए हम बिना सोचे समझे यहा चले आये|
विवेक जी ने गौरी को अपने सीने से लगा लिया|
गौरी से मिलकर विवेक जी और शालिनी जी बहुत भावुक हो गए थे| गौरी की भी आँख नम थी|
विवेक जी शालिनी जी राजगुरू से भी मिल रुद्र ने उन्हें उनके बारे में सब बता दिया|
गौरी को उनसे घुलता मिलता देखकर महाराज और महारानी बस स्तब्ध खडे थे|
विजय और पूजा भी आकर उनसे मिले|उनके पैर छुए|
विजय : अंकल-आंटी! इनसे मिलीये!
ये है महाराज प्रताप सिंह और ये महारानी यामिनी! ये हमारे माता पिता है!
माँ! पिताजी! ये रुद्र के माता पिता है! हमारी युवराज्ञी का इन्ही लोगो ने बहुत अच्छे से खयाल रखा है|
विवेक जी और शालिनी जी उन दोनो से भी मिले| उनको एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुशी हुई|
महाराज : आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई| आपका हम किस तरह शुक्रिया करे हमे तो ये भी समझ नही आ रहा है|अब आप हमारे विशेष अतिथी है| नीलाद्रि के राज्याभिषेक तक आप हमारा आतिथ्य ग्रहण करेंगे| हमे आपके आतिथ्य का मौका मिला ये तो हमारी खुशकिस्मती है| आपने हमारी नीलाद्रि का इतना खयाल रखा| आपका बहुत बहुत शुक्रिया|
विवेक जी : ये आप क्या कह रहे हैं? गौरी हमारी बेटी से भी बढकर है! इसमे शुक्रिया कैसा?
महारानी : महाराज सच कह रहे है पर हमारी बेटी का नाम गौरी नही नीलाद्रि है! अब वो हमारे राज्य की युवराज्ञी नीलाद्रि है! तो आप सब भी उन्हे युवराज्ञी नीलाद्रि ही कहे!
महारानी हाथ जोडकर बोली|
ये सुनकर विवेक जी और शालिनी जी के साथ ही सभी को थोडा बूरा लगा|
ये बात गौरी से सहन नही हुई|
गौरी : मै एक बात आपको साफ साफ बता देना चाहती हू! ये मेरे ममा-पापा है और मै पहले भी इनकी गौरी थी, अब भी हू और हमेशा रहूंगी! समझी आप? अगर नीलमगढ की महारानी की जगह अगर कोई और होता और मेरे पापा से इस तरह बात करता तो अब तक उसको दंड दे चुकी होती मैं!
महारानी : आप ये क्या कह रही है युवराज्ञी? हमारा ऐसा कोई मतलब नही था!
गौरी : आपका क्या मतलब था ये मै अच्छी तरह से जानती हूँ इसलिए आप मुझे समझाने की कोशिश ना ही करे|
भैया! आप सबकी व्यवस्था अतिथी कक्ष मे करवा दिजीये और सबका खास तौर से ध्यान रखिये!
ममा-पापा! आप लोग आराम करीये| मुझे एक बहुत जरूरी काम है| मै वो खत्म करके जल्दी से आपके पास आ जाउंगी|
अच्छा तो मै चलती हूँ!
इतना कहकर गौरी वहा से चली गई|
पर महारानी को बहुत ही बूरा लगा था| वो रोते रोते वहा से चली गई|
महाराज : मै आप सब से माफी चाहता हू| राजकुमार आपकी व्यवस्था करवा देंगे| आपसे बाद में मिलता हू|
इतना कहकर महाराज भी चले गए|
सब को जो हुआ उसका बहुत बुरा लगा था|
विजय उन सब को अतिथी कक्ष में ले गया|
रुद्र और विजय ने शालिनी जी और विवेक जी को वहा क्या चल रहा था वो सब बता दिया|
रुद्र ने उनको उसके पिछले जन्म की भी बात बतायी|
रुद्र को लगा की ये बात सुनकर उनका शॉक लगेगा पर रुद्र को ही झटका लगा जब उन्होंने बताया कि उनको इस बारे मे पहले से सब पता था|
उन्होने भी रुद्र और विजय को सब बता दिया|
पर अब रुद्र के सामने सबसे बडी चुनौती थी गौरी की ना को हा मे बदलना! उसने सोच लिया था की वो गौरी को सारी सच्चाई बता देगा| शायद वो सुनकर गौरी का इरादा बदल जाये|
रात को....
गौरी अपने कमरे मे लौटी और दरवाजा बंद कर लिया|
जैसे ही वो मुडी अचानक सामने से रुद्र आ गया पर इससे पहले कि गौरी चिल्लाये रुद्र ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया|
रुद्र : श्श्श्श! सिपाही सुन लेंगे! चिल्लाना मत प्लीज!
गौरी की आँखें बडी बडी हो गई थी|
रुद्र : मै तुम्हारे मुह से हाथ हटा रहा हूँ ओके! प्लीज चिल्लाना मत!
गौरी ने आँखो से ही हा कह दिया|
रुद्र ने अपना हाथ हटाया|
वैसे ही गौरी ने राहत की साँस ली|
गौरी : आप यहा पर क्या कर रहे हो और आप अंदर कैसे आये?
रुद्र : अंदर कैसे आये मतलब? नीलमगढ का विशेष अतिथी हूँ और इस विशेष अतिथी को युवराज्ञी से मिलना था| उनसे कुछ जरूरी बात करनी थी|
गौरी : किस बारे मे?
रुद्र : हमारे बारे में!
गौरी : रुद्र प्लीज! मै इस वक्त इस बारे मे बिलकुल बात नही करना चाहती| मै बहुत थक गई हू इसलिए प्लीज आप यहा से चले जाइये|
इतना कहकर गौरी वहा से जाने लगी पर रुद्र ने उसका हाथ पकड लिया |
रुद्र : कब तक इस तरह मुझसे भागती रहोगी गौरी? आखिर कब तक? मुझे तुम्हे कुछ बहुत जरूरी बात बतानी है तुम्हे!
गौरी : आपको मै कैसे समझाऊ रुद्र कि अब हमारे बीच कुछ भी नहीं है! अब हम साथ नही है! भगवान के लिए भूल जाइये मुझे और चले जाइये यहा से! कुछ ही दिन मे मेरी शादी हो जायेगी| मै किसी और की हो जाउंगी! मै अब आपकी नही रही रुद्र!
गौरी रुद्र का हाथ झटककर वहा से कमरे की खिड़की की तरफ चली गई|
रुद्र को गौरी की बात बहुत बूरी लगी| उसकी आँखों में पानी आ गया पर दूसरे ही पल उसने खुदको संभाला और गौरी के पास आया|
उसने गौरी का हाथ कसकर पकडा|
" चलो मेरे साथ! "
गौरी : रुद्र ये आप क्या कर रहे हैं? हाथ छोडिये मेरा! मैने कहा मेरा हाथ छोडिये रुद्र!
पर रुद्र अब कहा मानने वाला था| उसने कमरे का दरवाजा खोला और गौरी को बाहर ले आया|
सारे सिपाही उन्हे देख रहे थे| इससे पहले की वो रुद्र को कुछ कहते या करते गौरी ने इशारे से उन सबको रोक दिया|
रुद्र गौरी को खींचते हुए वीर के कमरे मे ले आया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया|
गौरी : रुद्र! रुद्र ये आप मुझे इस बंद कमरे मे क्यो लेकर आ गए और आप...आप ये दरवाजा क्यो बंद कर रहे हैं?
रुद्र! रुद्र!
रुद्र गौरी की बात अनसुनी कर रहा था|
आखिर कार गौरी दरवाजे की तरफ जाने लगी पर रुद्र ने गौरी को पकडा और कमरे के अंदर धकेला|
रुद्र : कहा जा रही हो तुम? क्या कहा तुमने कि मै तुम्हे भूल जाउ?
किसी और की होने वाली हो तुम? मेरी नही हो?
कबसे तुम्हे समझा रहा हू! आज मै तुम्हें बताता हू कि तुम किसकी हो!
मै यही पर हू और अब मै देखता हू कि तुमपर मेरे अलावा कोई और नजर भी कैसे डालता है!
अब बस तुम्हें दिखाना है कि तुम किसकी हो क्योंकि आज मै तुम्हें अपना बनाकर ही छोडूंगा!
रुद्र बहुत गुस्सेमें कह रहा था|
रुद्र का गुस्सा देखकर गौरी डर ग
गौरी : रुद्र! रुद्र देखिये! मुझे जाने दिजीये प्लीज! प्लीज!
पर रुद्र आगे बढ़ रहा था| उसी के साथ गौरी के कदम पीछे खिसक रहे थे|
रुद्र आगे आकर गौरी का हाथ पकड ही रहा था की गौरी वहा से भाग निकली| इस वजह से गौरी का दुपट्टा निकलकर रुद्र के हाथ मे आ गय
इस वजह से गौरी डर गई और वहा से भागने लग
पर रुद्र भी उसके पीछे भागा|
" रुक जाओ गौरी! मै कहता हूँ रुक जाओ!" रुद्र गौरी के पीछे भागते भागते आया पर तब तक गौरी कमरे मे कही गायब हो गई| रुद्र उसको ढूंढने लगा पर गौरी छिप गई थी|वो आज रुद्र से बहुत डर गई थी|
" गौरी! बाहर आ जाओ! कब तक छुपोगी मुझसे?"
रुद्र गौरी को ढुंढते हुए दूसरी ओर चला गया|
जैसे ही गौरी को थोडा सेफ फील हुआ वो दौडकर दरवाजे की तरफ भागी| वो दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगी पर इससे पहले कि वो दरवाजा खोल पाती रुद्र वहा आ गया| उसने गौरी को कसकर पकडा और कमरे के अंदर खींचकर ले आया|
अंदर लाकर उसने गौरी को जमीन पर धकेल दिया| वो जमीन पर गिर गई|
" जब तक मै नही चाहूंगा तुम कही नही जाओगी गौरी!" रुद्र बोला|
वो रुद्र से डर गई थी| रुद्र जैसे जैसे उसकी तरफ बढ रहा था गौरी रोते हुए पीछे पीछे खिसक रही थी|
" रुद्र! देखिये! मै आपके आगे हाथ जोडती हू| मुझे जाने दिजीये प्लीज!" गौरी रुद्र के आगे हाथ जोडने लगी|
अचानक से जैसे रुद्र गौरी के करीब आया गौरी की तो धडकन ही रुक गई| उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर ली पर जब रुद्र ने कुछ ना किया तो गौरी ने अपनी आँखें खोली| रुद्र अब भी उसके बेहद करीब था पर उसकी आँखों मे नमी थी|
गौरी उसे बस देखती ही रह
रुद्र ने उसे बस इशारे से पीछे मुड़कर देखने के लिए कहा|
गौरी ने पीछे मुडकर देखा|
उसके पीछे वीर की बनायी भैरवी की तस्वीरे थी|
उन्हे देखते ही गौरी बहुत ज्यादा चौंक गई|
रुद्र गौरी के सामने से उठकर खड़ा हुआ| गौरी भी उठकर उन तस्वीरो के सामने गयी|
वो उन सब तस्वीरो को बडे ही गौर से देख रही थी|
" ये.... ये... ये तो मै हू! मेरी इतनी सारी तस्वीरे! यहा?
पर... पर मैने तो कभी ऐसे कपडे पहने ही नहीं! तौ मेरी इतनी सारी तस्वीरे!"
गौरी को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था|
रुद्र : ये तुम्हारी तस्वीरे नही है गौरी! तुम शायद नही जानती पर ये युवराज्ञी भैरवी की तस्वीरे है जो सेनापति वीरभद्र ने खुद अपने हाथों से बनाई थी!
ये सुनकर गौरी बहुत ज्यादा चौंक गई|
गौरी : क्या? पर ये कैसे हो सकता है? हूबहू एक जैसा चेहरा!
रुद्र : ऐसा हुआ है गौरी! मै कबसे तुम्हे यही बताने की कोशिश कर रहा था गौरी! ये देखो गौरी!
इतना कहकर रुद्र ने वीर-भैरवी की तस्वीरे गौरी को दिखायी| वो देखकर भी गौरी को बहुत बडा झटका लगा|
" रुद्र! रुद्र ये आप.....हम दोनो..... ये सब..... !!" गौरी को तो समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या कहे|
रुद्र : ये सेनापति वीरभद्र है|
गौरी : क्या? सेनापति वीर! ये तो आप...
रुद्र : मै कबसे तुम्हे यही सब बताना चाह रहा था गौरी! पर तुम हो कि.....
ये सब ध्यान से देखो गौरी| तुम्हे सब याद आ जायेगा| ये तुम हो युवराज्ञी भैरवी और ये मै हूँ सेनापति वीरभद्र|
ये हम दोनो है गौर पिछले जनम मे हम एक नही हो पाये थे
शायद इसीलिए..... शायद इसीलिए भगवान ने हमे फिरसे वापिस भेज दिया है गौरी ताकि हम फिरसे एक-दूसरे से मिल सके| एक दूसरे के करीब आ सके और हमेशा एक दूसरे के बनकर रहे|
हमारा पुनर्जन्म हुआ है गौरी|
ये सब... ये सब ध्यान से देखो| ये मेरा कमरा हुआ करता था| हमने कितना समय साथ बिताया है यहा!
हम दोनो बस एक-दूसरे के लिए बने है गौरी|
समझने की कोशिश करो|
तुम्हे क्या हो गया है? क्यो मुझे खुदसे दूर करना चाहती हो? जो कोई प्रॉब्लम हैै तुम मुझे बताओ! हम साथ मिलकर हर मुश्किल का सामना कर सकते हैं गौरी!
याद करने की कोशिश करो गौरी! याद करने की कोशिश करो! ये सब ध्यान से देखो! तुम्हे सब याद आ जायेगा!
गौरी रुद्र की बाते बडे गौर से सुन रही थी|
गौरी : आप सच कह रहे है रुद्र! मुझे कुछ याद तो आ रहा है|
मुझे याद आ रहा है आपके कमरे मे हमेशा बंद रहने वाला दरवाजा जिसके पीछे मेरी कई सारी पेंटिंग्स थी|
रुद्र से सुनकर जरा चौक गया|
गौरी : क्या हुआ रुद्र? यही सोच रहे है ना आप कि मुझे कैसे पता चला!
मैने देखा था वो कमरा रुद्र! मै जानती हू कि आपने मेरी कई सारी पेंटिंग्स बनाई थी|
रुद्र : तो तुम क्या कहना चाहती हो गौरी कि ये सारी पेंटिंग्स मैने बनायी है?
गौरी : हा! मै बिल्कुल यही कहना चाहती हू! मैने सपने में भी नही सोचा था कि आप मुझे पाने के लिए इतना बडा झूठ बोल सकते हैं!
ये सुनकर रुद्र को बहुत गुस्सा आ गया|
रुद्र : तुम जानती भी हो गौरी तुम क्या कह रही हो?
गौरी : मै जो कुछ कह रही हू वो बहुत सोच समझकर कह रही हू! रुद्र मुझे आपसे ये उम्मीद नही थी!
इतना कहकर गौरी वहा से गुस्से मे जाने लगी|
गौरी की इस बात का रुद्र को इस बार बहुत बुरा लगा था|
रुद्र : रुक जाओ गौरी!
रुद्र की आवाज सुनकर गौरी वही पर रुक गई|
रुद्र उसके सामने आय
रुद्र : मै झूठ कह रहा हूँ! झूठ बोल रहा हूँ!
जरा अपने दिमाग पर जोर डालो और सोचो कि मै यहा 2 दिन पहले आया और 2 दिन मे मैने इतनी सारी तस्वीरे बना भी ली और इस कमरे मे सजा भी दी जो कई सालो से बंद पडा था?
और क्या कहा तुमने? ये सब मैने तुम्हे पाने के लिए कर रहा हूँ! अगर मेरा इरादा तुम्हे पाने का होता ना गौरी तो इस बंद कमरे मे कबका तुम्हे अपना बना चुका होता! समझी? पर मेरी माँ ने मुझे ये नही सिखाया है!
रुद्र ने उसके हाथ मे गौरी का जो दुपट्टा था वो गौरी के सिर पर से उसे ओढा दिया|
" मेरी माँ ने मुझे हर औरत कि इज्जत करना सिखाया है| भले वो कोई भी हो|
इसलिए तुम्हे मुझसे डरने की कोई जरूरत नही है| मै अपने प्यार को अपनी जिंदगी मे लाने की पूरी कोशिश करूंगा पर जबरदस्ती कभी नहीं! "
इतना कहकर रुद्र वहा से चला गया पर गौरी वही पर खडी होकर रुद्र को देखती रही|
गौरी ने रुद्र को वो सब कह तो दिया पर रुद्र की बाते सुनकर गौरी रात भर सो नही पायी थी|
अगले ही दिन राजदरबार मे गौरी के स्वयंवर की घोषणा की जाने वाली थ
राजदरबार सज चुका था| महाराज महारानी आसनस्थ हो चुके थ
सब राजदरबार मे मौजूद थे| बस गौरी का इंतजार किया जा रहा था|
तभी गौरी राजदरबार मे पधारी|
गौरी हमेशा की तरह आज भी बहुत ही सुंदर लग रही थी|
नीले रंग का लेहेंगा जो उसकी नीली आँखो से मेल खा रहा था| सिर पर ओढा हुआ दुपट्टा जो पकडकर पीछे कुछ दासीया चल रही थी|
लंबे खुले बाल! युवराज्ञी पद की गरिमा बढाते आभूषण!
गौरी सच मे असीम सौंदर्य की स्वामिनी थी|
उसके आते ही
" युवराज्ञी नीलाद्रि की जय! " हर ओर उसकी जयजयकार गूँज उठी|
ये सब देखकर रुद्र को भैरवी की याद आ गयी| उसके चेहरे पर स्मित आ गया|
गौरी जाकर आसनस्थ हुई|
महाराज उठ खडे हुए|
" आज हम सब यहा एक महत्त्वपूर्ण कारण से एकत्रित हुए हैं| आज हम एक महत्त्वपूर्ण घोषणा करने वाले है|
हमने राजगुरू की अनुमति से ये निश्चित किया है कि आनेवाली पूर्णिमा को युवराज्ञी नीलाद्रि का स्वयंवर आयोजित किया जायेगा और दूसरे ही पल उनका राज्याभिषेक किया जायेगा|
इसी लिए हमारे नजदीकी राज्यो मे युवराज्ञी के स्वयंवर का संदेश भिजवा दिया जाये! " महाराज ने घोषणा कर दी|
इसी के साथ महाराज और युवराज्ञी के जयजयकार से सभा गूँज उठी| सब लोग बहुत खुश नजर आ रहे थे पर गौरी खुश नही थी|
ये सुनते ही विवेक जी और शालिनी जी बहुत चौंक गए| उनके तो पैरो तले जमीन खिसक गई पर रुद्र को इस बात का अंदाजा था| वो बस गौरी को देखे जा रहा था पर गौरी उससे नजरे चुरा रही थी|
विजय और पूजा भी इससे खुश नही थे|
पर रेवती इस सब से बहुत खुश नजर आ रही थी|
जब राजदरबार स्थगित हुआ तब विवेक जी और शालिनी जी गौरी के पास आये| उनके पीछे पीछे सब आये|
विवेक जी : गौरी! ये सब क्या है? आपका स्वयंवर!आप ऐसा कैसे कर सकती है?
पर गौरी बस गर्दन नीचे झूका कर सुन रही थी|
शालिनी जी : आप ऐसा नही करेंगी गौरी! सुन रही है आप? आप ये सब नही होने देंगी|
शालिनी जी गौरी की बाहे पकडकर कह रही थ
ये सब महाराज महारानी भी देख रहे थे|
तभी महारानी आगे आयी और शालिनी जी का हाथ गौरी की बाह पर से झटक दिया|
" ये क्या कर रही है आप? चोट लग रही होगी इन्हे और ये किस तरह की जबरदस्ती है आपकी? इनके स्वयंवर से आपको क्या तकलीफ है? आपकी हिम्मत कैसे हुई इनको हाथ लगाने की? " महारानी यामिनी बोली|
यामिनी की बात सुनकर शालिनी जी को बहुत बुरा लगा| उनकी आँखों मे पानी आ गया|
ये सब देखकर गौरी का गुस्सा आपे से बाहर हो गया|
" आपकी कैसेे हिम्मत हुई मेरी ममा से ऐसे बात करने की?" गौरी शालिनी जी के आगे आकर खडी हो गई| उसकी आँखों से अंगारे बरसने लगे|
" मैने पूछा आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरी ममा से इस तरह बात करने की और उनको छूने की? बताइये! " गौरी ने गुस्सेमें पूछा|
" नीलाद्रि! ये आपसे किस तरह बात कर रही थी और आपको चोट लग जाती!" महारानी बोली|
" चोट? वाव!
देखिये हमारी महारानी को हमे चोट ना लग जाये इस बात की चिंता थी!
तो आपकी ये चिंता तब कहा मर गई थी जब आपने हमारे नन्हे नन्हे हाथो मे लोहे का ज़ंजीरे डालकर हमे कालकोठरी मे बंद कर दिया था?" गौरी की इस बात पर उन्होने गर्दन नीचे झूका ली|
"ये दोनो मेरे ममा पापा है! मेरे लिए भगवान से भी बढकर है ये दोनो! अगर ये मुझसे मेरी जान भी मांग ले ना तो मै हसते हसते दे दूंगी और आपको कोई हक नही है कि आप हमारे बीच आये! "
" हम आपकी माँ है नीलाद्रि! " यामिनी रोते हुए बोली|
" आप दोनो सिर्फ हमारे महाराज और महारानी है!
हमारे माता पिता बनने कि कोशिश ना ही करे तो बेहतर हैऔर हा आइंदा यो हरकत करने से पहले सौ बार सोचियेगा वरना मुझसे बूरा कोई नही होगा! " गौरी की बाते सुनकर महाराज-महारानी की आँख भर आयी|
तभी शालिनी जी आगे आयी और गौरी को संभाला|
शालिनी जी : गौरी! गौरी बेटा शांत हो जाइये! आप ये किस तरह से बात कर रही है अपनी माँ से!
जाइये गौरी! माफी माँगिये इनसे!
गौरी : पर ममा......ममा आपने देखा नही इन्होने आपके साथ कैसा बरताव किया और आप मुझे इन्ही से माफी माँगने के लिए कह रही है?
शालिनी जी : गौरी आपने सुना नही? माफी माँगिये अपने माता पिता से!
अब गौरी उनकी बात नही टाल सकती थी|
ना चाहते हुए भी गौरी ने उनसे माफी मांगी और शालिनी जी से भी माफी मांगी और वहा से गुस्से मे चली गई|
रुद्र उसके पीछे पीछे गया|
गौरी ने सब दासीयो को भी भेज दिया| वो गुस्से मे अपने कमरे की ओर जा रही थी पर तभी रुद्र उसके सामने आकर अचानक से खडा हो गया जिससे वो डर गई|
गौरी : आप पागल है क्या रुद्र? मै डर गई थी|
रुद्र : ओह माय गॉड! ये तुम क्या कह रही हो? ऐसा कैसे हो सकता है गौरी? तुम्हे भी डर लगता है?
मुझे तो लगा था कि तुम बस लोगो को डराना जानती हो पर तुम्हे तो डर भी लगता है!
इतना कहकर रुद्र बहुत जोर जोर से हसने लगा|
पर गौरी को इसपर गुस्सा आ गया|
गौरी : हो गया आपका? हटीये मेरे रास्ते से!
गौरी रुद्र को धक्का देकर आगे बढ़ गई|
रुद्र : गौरी! रुको तो! मेरी बात तो सुनो! अरे रुको तो गौरी!
पर गौरी को कुछ अजीब सा एहसास होने लगा|
उसने अपनी मुठ्टी बंद कर ली| उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा| पैर लडखडाने लगे| वो नीचे गिरने ही वाली थी कि सने अपनी आँखें कसकर बंद कर ली|
"गौरी! " रुद्र जोर से चिल्लाया|
पर गौरी नीचे नही गिरी थी| गौरी ने अपनी आँखें खोली तो किसीने उसे थाम लिया था|
रुद्र की आवाज़ सुनकर सब वहा दौडे चले आये|
सामने का नजारा देख सबके पैरों तले जमीन खिसक ग
अर्जुन गौरी को थामे हुए खडा था| गौरी भी उसे देखकर हैरान थी|
वो उठकर खड़ी हुई|
" अर्जुन आप! यहा? " गौरी बोली|
पर अर्जुन ने बिना सोचे समझे गौरी को गले से लगा लिया| गौरी को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था|
" तुम कैसी हो गौरी?
क्या तुम जानती हो मैने तुम्हें कितना याद किया!
कहा चली गई थी तुम?" अर्जुन की आँखे भर आयी थी|
गौरी ने उसे खुदसे दूर किया|
गौरी : मै बिल्कुल ठीक हू अर्जुन! पर आप.... आप यहा कैसे?
अर्जुन : गौरी! गौरी मैने तुम्हें कितना ढूँढा! तब जाकर कही तुम्हारा पता लगा पाया हूँ!
ओह गौरी! तुम नही जानती मै कितना खुश हू तुमसे मिलकर! आय लव्ह यू सो मच!
अर्जुन ने गौरी को फिरसे गले लगा लिया|
ये सब देखकर बाकी लोग दंग रह गए थे|
पर गौरी अब भी कुछ ठीक नही थी|
उसने अर्जुन को खुद से दूर किय
" अर्जुन मै पहले ही कह चुकी हू कि हमारे बीच कुछ नही हो सकता और अब मेरी शादी भी होने वाली है इसलिए बेहतर होगा की आप मेरा खयाल अपने दिल से निकाल दे!
हे भोलेनाथ! हे प्रभु! एक कम था जो दूसरा भी भेज दिया आपने!
भैया प्लीज आइये और संभालीये इन नमुनो को!" इतना कहकर गौरी वहा से दौडते हुए अपने कमरे मे चली गई|
विजय अर्जुन के पास आया और पूजा गौरी के पीछे उसके कमरे मे चली गई|
पर रुद्र बहुत ही ज्यादा टेन्शन मे था क्योंकि उसे इस बार याद आ चुका था की अर्जुन ही राजवीर है! उसने ये बात अपने माता पिता से भी कही पर उलटा उसे एक और झटका लगा जब उसे पता चला कि वो लोग ये बात भी जानते हैं|
इस ओर महाराज महारानी और राजगुरू तीनो ही अर्जुन को देखकर बहुत चिंता मे आ चुके थे|
महाराज : राजगुरू! हमे तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नही हो रहा है| जिस संकट को टालने के लिए हमने इतने वर्षों से क्या कुछ नहीं किया| फिर भी वो संकट आज हमारे दरवाजे पर आकर खडा हो गया|
राजगुरू : महाराज-महारानी! ये तो विधिलिखीत है जिसे केवल ईश्वर ही बदल सकते हैं| हम जैसे सामान्य मनुष्य नही|
महारानी : पर राजगुरू ये सब टालने के लिए ही तो हमने इतनी शीघ्रता से युवराज्ञी का स्वयंवर आयोजित किया था| अब ये सब कैसे होगा?
राजगुरू : हम अपने आयोजन मे तनिक भी बदलाव नही करेंगे| इस बार उन दोनो को स्वयं ही इस संकट का सामना करना होगा पर एक दूसरे से अलग होकर नही| उसे अपने जीवन से दूर करके!
महाराज : किंतु राजगुरू अब तक नीलाद्रि को कुछ भी याद नही आया है| ऐसे मे ये सब?
हम अपने राज्य को फिरसे बरबादी की कगार पर नही जाने दे सकते!
राजगुरू : महादेव ने चाहा तो ऐसा कुछ नही होगा महाराज! जिस तरह रुद्र को सब याद आ गया है उस तरह शायद युवराज्ञी को भी सब याद आ जायेगा|
आप स्वयंवर की तैयारीयाँ किजीये|
उसी जगह जहा पर इस कहानी का अंत हुआ था|
महारानी : पर.... पर उस जगह कैसे राजगुरू? उस जगह मिट्टी के अलावा और कुछ नही बचा है!
राजगुरू : आप चिंता मत करीए महारानी! शीघ्र ही उस पर्बत की रौनक फिर से लौटने वाली है!
हमे अपनी ओर से इस विवाह को सफल बनाने का पूर्ण प्रयास करना है और बाकि सब महादेव पर छोड दीजिए|
गौरी के पैर लडखडा रहे थ वो जैसे तैसे अपने कमरे मे पहुंची पर कमरे मे पहुंचते ही वो नीचे जमीन पर गिर पडी| वो अपना पेट पकडकर बहुत ज्यादा रो रही थी|
तभी पूजा वहा पहुंची| गौरी की ये हालत देखकर उसने सबसे पहले कमरे का दरवाजा बंद कर दिया|
वो भागकर गौरी के पास आयी|
पहले तो उसने गौरी को संभालने की कोशिश की पर अचानक गौरी के मुँह से खून निकलने लगा| ये देखकर पूजा डर गई| वो उठी और गौरी की दवाई लेकर आयी उसने गौरी को दवाई खिलायी पर दवाई खाने के बाद भी गौरी बेहोश हो गई थी|
तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया|
" गौरी दरवाजा खोलो! मै हू विजय!" दरवाजे पर विजय था|
पूजा ने जल्दी से उठकर दरवाजा खोला|
जब विजय ने अंदर आकर गौरी की हालत देखी तो वो हक्का बक्का रह गया|
उसने गौरी को उठाकर बेड पर सुला दिया|
विजय :क्या तुमने गौरी को दवाई दे दी पूजा?
पूजा : जी हा! मैने इन्हे अभी अभी दवाई दी है| अर्जुन का क्या हुआ? वो गए या या नही?
विजय : अभी के लिए तो मै उसका इंतजाम अतिथी कक्ष मे कर आया हू| मैने उसे समझाने की बहुत कोशिश की पर वो मानने को तैयार नही| मुझे नही लगता कि वो इतनी आसानी से यहा से जायेगा| बस अब मै बिल्कुल नही चाहता की रुद्र और गौरी के बीच मे कोई भी आये| मैने सोच लिया है कि किसी तरह रुद्र को स्वयंवर का हिस्सा बनाना है| इसके लिए पिताजी से बात करनी होगी|
पर तभी गौरी को होश आने लगा|
विजय : गौरी! गौरी बेटा! तुम ठीक तो हो ना?
गौरी ने बस पलके झपका कर हामी भर दी|
विजय : गौरी प्लीज! प्लीज अब मुझे अपनी कसम से आजाद कर दो!
विजय बोल ही रहा था की गौरी फिरसे सो गई|
विजय ने उसके सिर पर से हाथ फेरा| उस समय विजय की आँख नम हो गई थी| पूजा ने उसे धीरज दिया|
पूजा ने गौरी को चादर ओढायी और वो दोनो वहा से चले गए|
इधर रुद्र अर्जुन के कमरे मे उससे बात करने आया था|
रुद्र सीधे मुद्दे पर आया|
रुद्र : देखो अर्जुन! मै यहा तुमसे कोई झगड़ा करने नही आया हू! मै बस ये जानना चाहता हूँ की तुम यहा पर क्यों आये हो? मैने तुम्हें पहले भी समझाया था ना कि
तुम्हें गौरी से दूर रहना चाहिए|
अर्जुन : मैने पहले भी कहा था कि गौरी सिर्फ मेरी है और मै भी उसे पाकर ही रहूंगा| चाहे बीच मे कोई भी आ जाये|
रुद्र : पर वो तुमसे प्यार नही करती अर्जुन!
अर्जुन : मुझे उससे फर्क नही पडता! मै गौरी से बेहद प्यार करता हूँ और मै जानता हूँ मेरा अकेले का प्यार ही काफी है हमे पूरी जिंदगी साथ बिताने के लिए!
और क्या हुआ अगर वो मुझसे प्यार नही करती? मै दुनिया की सारी खुशियाँ उसके कदमो मे लाकर इस तरह रख दूंगा की वो अपने आप मुझसे प्यार करने लगेगी!
ये सुनकर रुद्र हसने लगा|
रुद्र : बहुत बडी गलतफहमी है तुम्हारी! जो तुम्हें लगता है की इस तरह गौरी तुमसे प्यार करने लगेगी!
मुझे लगा था कि मै तुम्हे समझा सकता हूँ पर तुम हो कि समझने के लिए तैयार ही नही हो|
सोते हुए इंसान को नींद से जगाया जा सकता है पर जो इंसान सोने का नाटक कर रहा हो उसे जगाना बहुत मुश्किल होता है| अब तुम्हारे इस सपने से तुम्हे खुद गौरी की जगायेगी और रुद्र वहा से जाने लगा|
अर्जुन : रुक जाओ रुद्र! मै नही जानता की गौरी को तुमने अपने जाल मै कैसे फसाया पर अब मै आ गया हू! बेहतर होगा कि तुम अब उससे दूर ही रहो और उसके स्वयंवर मे ये साबित हो जायेगा कि हम दोनो एक-दूसरे के लिए बने है और उसके बाद गौरी हमेशा हमेशा के लिए मेरी बन जायेगी!
ये सुनकर रुद्र को बहुत गुस्सा आ गया| उसने दौडकर जाकर अर्जुन का कॉलर पकड लिया|
रुद्र : मै तुमसे आखिरी बार कह रहा हू अर्जुन! चले जाओ यहा से! मै गौरी से प्यार करता हूँ और गौरी भी मुझसे प्यार करती है| अब हम दोनो के बीच मै तुम्हे फिरसे नही आने दूंगा|
अर्जुन : मै फिरसे तुम्हारे बीच नही आ रहा हू सेनापति वीर! पहले भी तुम ही मेरे और भैरवी के बीच आये थे और अब भी तुम ही हम दोनो के बीच आ रहे हो!
ये सुनकर रुद्र चौंक गया| उसने अर्जुन का कॉलर छोड दिया|
अर्जुन : क्या हुआ? चौंक गए?
मुझे सब याद है! आज नही! बहुत पहले से!
जब गौरी मुझसे मिली तक ना थी!
अपनी आँखें बिछाकर अपनी भैरवी का इंतजार किया है मैने और जब वो गौरी के रुप मे मुझे मिली तो मेरी खुशी का ठिकाना नही था| मै गौरी से अपने प्यार का इजहार करने ही वाला था की तुमने फिरसे उसे मुझसे दूर कर दिया|
उसको ढूंढते ढूंढते तुमसे मुलाकात हुई| तब मुझे पता चल गया कि इस जनम मे भी तुम्हारी मौत मेरे हाथो ही लिखी है ताकि गौरी मेरी हो सके और ना हुई तो पिछले जनम की तरह ही इस बार भी मै अपने ही हाथो से उसकी जान ले लुंगा| अगर वो मेरी नही हो सकती तो किसी की भी नही होगी|
ये सुनते ही रुद्र का गुस्सा फिर आपे से बाहर हो गया| क्योंकि इस बार भी राजवीर अर्जुन के रुप मे जान बुझकर उन दोनो को अलग करना चाहता था|
रुद्र अपने रौद्र रुप मे आ गया| वो गुस्सेमें अर्जुन पर टूट पडा| उसने अर्जुन को बहुत जोर जोर से पीटना शुरु कर दिया| अर्जुन भी रुद्र को मारने लगा|
उन दोनो के इस झगडे ने देखते ही देखते बडी लडाई का रुप ले लिया| लडते लडते वो दोनो कमरे के बाहर निकले और एक दूसरे को बहुत बूरी तरह पीटने लगे|
इधर विजय और पूजा गौरी के पास जाकर बैठे थे| अब गौरी को होश आ गया था|
"युवराज्ञी जी! युवराज्ञी जी! आपको पता है बाहर क्या हो रहा है? जल्दी बाहर चलीये!" गौरी की एक दासी हाँफती हुई उनके पास पहुंची|
ये सुनकर सबके चेहरो का रंग उड गया|
पूजा : अब कौनसी नयी मुसीबत आन पडी?
इधर उन दोनो के इर्दगिर्द बहुत भीड जमा हो गई| सारे महल के नौकर सैनिक सब!
महाराज, महारानी, राजगुरू, विवेक जी, शालिनी जी, रिया, रेवती सब वहा पहुंचे|
शालिनी जी : विवेक जी ये सब क्या हो रहा है? भगवान के लिए जाकर रोकिये इनको!
विवेक जी शालिनी जी की बात मानकर उनको रोकने गए पर ऐसा पहली बार हुआ था जब रुद्र ने अपने पिता की बात ना मानी हो| उनकी लडाई मे विवेक जी को धक्का लगा और वो गिरने वाले थे कि विजय ने आकर उन्हे संभाला|
गौरी तो सामने का नजारा देखकर चकित हो गई|
तभी रुद्र ने अर्जुन के मुंह पर एक जोरदार घुसा मारा| जिससे वो नीचे जाकर गिर गया|
पर वो फिर से उठ खडा हुआ और रुद्र के मुंह पर उसने भी ज़ोरदार घुसा मारा| रुद्र नीचे गिर पडा|
गौरी की तो मानो सांस ही रुक गई
" आगे से हमारे बीच आने की कोशिश भी मत करना समझे!" अर्जुन गुस्से मे बोला|
जब रुद्र उठ खडा हुआ उसके मुंह से खून निकल रहा था|
अपना खून देखकर रुद्र को बहुत गुस्सा आया|
उसने अर्जुन की गर्दन पकडी और उसके चेहरे पर पंच मारते हुए कहने लगा, " गौरी तुमसे प्यार नही करती| वो सिर्फ मुझसे प्यार करती है और इस बार अगर तुने हमारे बीच आने कि कोशिश की ना तो मै जान ले लुंगा तेरी! "
गौरी चिल्ला चिल्लाकर उनको रोकने कि कोशिश कर रही थी पर वो कहा मानने वाले थे!
अर्जुन ने उसके पीछे रखा वास उठाकर रुद्र के सिर पर मार दिया|
जिससे रुद्र के सिर से खून बहने लगा|
" रुद्र! " सब चिल्ला पडे|
पर रुद्र ने लहुलूहान होते हुए भी अर्जुन को मारना बंद नही किया|
विवेक जी : गौरी! गौरी बेटा कुछ करीये प्लीज! वरना ये दोनो एक-दूसरे की जान ले लेंगे!
" मै कहती हू रुक जाइये! "
गौरी खुद दोनो के बीच जाकर खडी हो गई| जिसकी वजह से दोनो रुक गए|
" मै आप दोनो से हाथ जोडकर बिनती करती हू भगवान के लिए रुक जाइये आप दोनो!
क्या करना क्या चाहते है आप? एक दूसरे को मार देना चाहते हैं?
तो मार दिजीये! मुझे कोई फर्क नही पडता!
पर यहा नही! नीलमगढ के बाहर जाकर! मै नही चाहती थी आप लोगो की वजह से नीलमगढ की गरिमा पर जरा भी आँच आये|
एक और बात कान खोलकर सून लिजीए|
मै किससे शादी करूंगी ये सिर्फ और सिर्फ मेरा फैसला होगा| आप लोगो का नही
और मै ये बहुत पहले ही तय कर चुकी हू कि मै आप दोनो मे से किसी से भी शादी नही करूंगी| मेरे स्वयंवर के दिन मै अपना वर खुद चुनूंगी| समझे आप दोनों?
और ऐसी बेहूदगी अगर फिर से हमारे महल मे देखी गई तो आपको कडी सजा दी जायेगी|
ये नीलमगढ की युवराज्ञी नीलाद्रि की चेतावनी है|"
इतना कहकर गौरी वहा से गुस्से मे चली गई|
इधर रुद्र को विवेक जी और शालिनी जी ने संभाला|
पर अर्जुन गुस्से मे वहा से चला गया|
गौरी अपने कमरे मे आकर बिलख बिलख कर रोयी क्योंकि अब वो ये नाटक करते करते थक चुकी थी| रुद्र की चोट देखकर उसके दिल पर भी चोट लगी थी|
उसने गुस्से मे सारा कमरा रोते रोते तहसनहस कर दिया|
उसी के दौरान गौरी के गले की रुद्राक्ष माला किसी चीज मे अटककर उससे दूर हो गई पर गौरी का उसपर ध्यान नही था|
वो रो रही थी तभी अचानक उसे एक आवाज सुनायी दी|
" युवराज्ञी! " गौरी ने जब आवाज की तरफ देखा तो वो बहुत ज्यादा डर गई|
उसके माथे पर से पसीना बहने लगा|
उसने डरकर अपनी माला की ओर देखा तो वो उसके गले मे नही थी|
" आह्ह्ह्ह!" गौरी बहुत जोर से चिल्लायी|
वो वहा से भागने लगी पर किसी चीज से टकरा कर नीचे गिर गई|
"तुम कौन हो? प्लीज मुझे छोड दो! मेरे पीछे क्यो पडे हो? छोड दो मुझे!"
तभी गौरी की नजर सामने गिरी माला पर पडी| उसने झट् से वो माला उठा ली और वहा से भाग खडी हुई| पर तभी वो किसी से टकराने की वजह से बहुत ही जोरसे चिल्लायी|
"युवराज्ञी! मै हू! मै हू! शांत हो जाइये! शांत हो जाइये!" गौरी के सामने राजगुरू खडे थे|
" गुरुजी! गुरुजी! वो..... वो..... वहा.....! " गौरी डर के मारे ठीक से कुछ बोल भी नही पा रही थी|
" युवराज्ञी आप... आप शांत हो जाइये! शांत हो जाइये! आप यहा आइये यहा बैठ जाइये!" गुरुजी उसे शांत कर बैठने के लिए कह रहे थे|
" पर गुरुजी... गुरुजी....वहा...! "
" मै जानता हूँ युवराज्ञी! एक क्षण के लिए मेरी बात सुन लिजीये! आप शांत हो जाइये और यहा बैठ जाइये! "
राजगुरू की बात मानकर गौरी बैठ गई और झट् से अपने हाथ मे पकडी हुई माला अपने गले मे डाल ली| राजगुरू ने गौरी को पानी पिलाया| उसे अब भी पसीना आ रहा था|
" युवराज्ञी जी.!
मै जानता हूँ कि आप किस बात से इतनी भयभीत है|
मै ये भी जानता हूँ कि आप अब इस राज्य की युवराज्ञी है और होने वाली महारानी भी! इस राज्य की सारी बागडोर आपके हाथ होगी! क्या तब भी आप किसी माला के सहारे जीवन व्यतीत करेंगी? " गुरुजी के कहने का तात्पर्य गौरी समझ रही थी|
" युवराज्ञी आपको अपने भय के परे जाना ही होगा| इस भय को अपने आप पर हावी मत होने दिजीये| इसे अपने मन से निकाल दिजीये| कोई तो है जो अब भी आपके स्पर्श से मुक्ति की प्रतीक्षा कर रहा है| एक बार... केवल एक बार उनकी बात सुन लिजीये|
आपको भयभीत होने की कोई आवश्यकता नही है| मै आपके साथ हू| यही पर!
वे सदैव आपसे कुछ कहने की कोशिश करते है| वे अब भी यही पर है| जिनको आपने कुछ पल पहले देखा था| उनकी बात एक बार सुन लिजीये!" राजगुरू गौरी को समझा रहे थे|
"क्या.... क्या आप भी उसे देख पा रहे हैं राजगुरू?क्या वो मुझसे कुछ कहना चाहता है?" गौरी ने उनसे पूछा|
"जी नही युवराज्ञी! किंतु उनकी उपस्थिति अनुभव की जा सकती है| उनको अपनी बात रखने का एक अवसर दे दिजीये| इतने वर्षो से उन्होने इसकी प्रतीक्षा की है पर आपके भय ने ये संभव नही होने दिया पर आज ये संभव है युवराज्ञी! एक बार प्रयत्न किजीये!" राजगुरू बोले|
गौरी कुछ पल उनकी बातो पर विचार करने लगी| दुसरे ही पल उसने मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया और अपने गले से वो माला उतारकर राजगुरू के हाथो मे रख दी|
गौरी ने ये सब बडी हिम्मत जुटाकर किया|
ये देखकर राजगुरू खुश हो गए और वो माला ले ली|
जैसे ही गौरी ने वो माला खुदसे दूर की वो माला पहनने से जो उसके आँखो को दिखना बंद हो गया था वो दिखने लगा|
एक विचित्र सी आकृति थी उसके समक्ष! किसी पिशाच्च से कम नही था!
गली हुई चमडी! खुन से सना हुआ वो पिशाच गौरी के सामने आकर फिरसे खडा हो गया| जो इतने वर्षो से उसे परेशान कर रहा था|
उसे देखते ही गौरी फिरसे डर गई|
"आह्ह्ह्ह!" गौरी जोर से चिल्लायी|
"युवराज्ञी! डरीये मत! मेरी बात तो सुनिये!" वो पिशाच कह रहा था|
राजगुरू भी गौरी को संभालने लगे|
"युवराज्ञी! आप डरीये मत! ये आपको कुछ नही करेंगे! आप बस शांत रहीये!" राजगुरू उसे कह रहे थे|
पर गौरी बहुत डरी हुई थी| उसे बहुत पसीना आ रहा था|
उसने खुदको जैसे तैसे संभाला|
" आ... आप कौन है और मेरे पिछे क्यो पडे है? क्या चाहते हैं आप?" गौरी पसीना पोछते हुए बोली|
" युवराज्ञी जी! मै महाराज चंद्रसेन का अमात्य यानी राजगुरू हु! " वो पिशाच बोला|
"क्या? "
ये सुनते ही गौरी हक्की बक्की हो गई|
" य्... य्... ये कह रहे है कि ये हमारे पूर्वज महाराज चंद्रसेन के राजगुरू है!" गौरी ने राजगुरू से कहा|
" मुझे ज्ञात है युवराज्ञी! ये मेरे पूर्वज है|
हमारे सारे वंश ने नीलमगढ की सदैव सेवा की है|" राजगुरू बोले|
ये सुनकर गौरी को एक और झटका लगा|
"पर... पर आप मुझे ही क्यो? " गौरी उस पिशाच्च के बोली|
" इस प्रश्न के उत्तर के लिए आपको मेरे साथ चलना होगा युवराज्ञी!" वो बोला|
" पर कहा? " गौरी बोली|
"आप आइये मेरे साथ!" इतना कहकर वो आगे चल दिया|
गौरी ने राजगुरू की तरफ देखा और वो दोनो उस पिशाच्च के साथ चल दिये|
वो पिशाच गौरी और राजगुरु को महल की इक ऐसी खुफिया सुरंग तक ले गया जिसके बारे मे कोई नही जानता था|
राजगुरु ने एक मशाल अपने साथ ले ली और उस अँधेरी सुरंग से उस पिशाच्च के पिछे पिछे चल दिये|
पर उस सुरंग से गुजरते हुए गौरी को एकसाथ कई लोगो के चींखने चिल्लाने और कराहने की आवाजे सुनाई पडने लगी| कुछ देर बाद उसको और कई सारे पिशाच उस सुरंग मे दिखायी देने लगे| वो बहुत ज्यादा डरी हुई थी पर सारे पिशाच उसके आगे सिर झुका रहे थे| उनमे कई सैनिक, स्त्रिया और छोटे छोटे बच्चे भी थे|
गौरी को ये सब देखकर बहुत ताज्जुब हो रहा था|
आखिर कुछ देर तक चलने के बाद वो लोग सुरंग से बाहर निकल आये पर सुरंग से बाहर आने के बाद भी गौरी कराहने की आवाजे सुन पा रही थी|
वो लोग एक बंजर जमीन पर आ पहुँचे थे|
" ये आप हमे कहा ले आये और वो अंदर सारे पिशाच मुझे देखकर सिर क्यो झुका रहे थे? ये सब क्या हो रहा है? क्या कोई मुझे बतायेगा? वरना मै पागल हो जाऊंगी!" गौरी चिल्ला पडी|
" वो सब लोग अपनी महारानी भैरवी के आगे सिर झुका रहे थे!" वो पिशाच बोला|
ये सुनकर गौरी चौंक गई| उसे रुद्र की बाते याद आने लगी|
" और रही बात इस जगह आने की तो ठीक से याद करीये! क्या आपको ये स्थान जरा भी याद नही?" वो आगे बोला|
गौरी ने आसपास देखा पर जहा तक नजर जाती सिर्फ बंजर जमीन ही थी|
" ये जगह? क्या है यहा पर ?
सिर्फ बंजर जमीन!इसमे क्या है याद आने जैसा? " गौरी बोली|
" युवराज्ञी जी आप अपने कदम आगे बढाइये| ध्यान से देखिये| आपको सब याद आ जायेगा|" राजगुरु बोले|
उनके कहे मुताबिक गौरी आगे बढ़
गौरी सारी जगह निहार रही थी|
जब उसने ध्यान से देखा तो इस ओर की जमीन का रंग भूरा और सामने वाली मिट्टी का रंग लाल था| जैसे ही गौरी ने भूरे रंग की मिट्टी से लाल रंग की मिट्टी मे कदम रखा|
अचानक जोर जोर से हवाये चलने लगी| वहा की जमीन हिलने लगी| उसकी वजह से गौरी पीछे की तरफ दूर जाकर गिर गई| राजगुरु और वो पिशाच दोनो के ही पैर लडखडाने लगे|
राजमहल की दीवारे तक काँप उठी|
क्या हुआ ये देखने के लिए सब लोग बाहर की ओर भागे| उस वक्त शालिनी जी रुद्र के सिर पर पट्टी कर रही थी| वो भी बाहर दौडे|
देखते ही देखते वो लाल रंग की मिट्टी उपर आने लगी और वो पर्बत जो सदियों पहले जमीन मे समा गया था वो फिर एक बार शान से खडा हो गया|
शिव-शक्ति की प्रतिमाएँ आज भी उतनी ही मोहक थी| कई वर्ष जमीन के नीचे दबे होने की वजह से सब खँडहर सा हो गया था|
सब हक्के बक्के रह गए|
सब लोग राजमहल के बाहर से उस पर्बत को देख पा रहे थे|
"नीलाद्रि कहा है? मैने पूछा नीलाद्रि कहा है?" महाराज जोर से चिल्लाये|
"युवराज्ञी को ढूँढीये! " महाराज ने सैनिकों को आदेश दिया|
"शायद मै जानता हूँ गौरी कहा है! " रुद्र ने विजय से कहा|
इधर गौरी सामने इतना बडा पर्बत खडा देखकर दंग रह गयी थी|
"वीर मै चाहती हू कि हम दोनो का विवाह इसी पर्बत पर संपन्न हो!" गौरी को ऐसा ही कुछ धुंधला धुंधला सा याद आ रहा थ
राजगुरु और उस पिशाच ने उन प्रतिमाओ को प्रणाम किया|
गौरी नीचे गिरी हुई थी| वो उठकर खड़ी हो गई|
"य्...य्... ये सब क्या है?" गौरी डर गई|
"आप पर्बत पर जाइये युवराज्ञी! यही मेरा उद्देश्य है!" इसके आगे का सफर आपको अकेले ही तय करना है|
आपका आगे का मार्गदर्शन राजगुरू करेंगे|
गौरी : पर आप वहां क्यों नहीं जा सकते?
इस पर उस पिशाच ने कहा, " मुझे वहां आने की अनुमति नहीं है मैं केवल यही तक आ सकता था| आपको आगे का सफर राजगुरु के साथ तय करना होगा! शायद आप भूल रही हैं कि मै एक पिशाच हू और वो शिव-शक्ति का धाम!"
गौरी को कुछ समझ नहीं आ रहा था पर फिर भी वह राजगुरु के साथ पर्वत पर चल पड़ी| राजगुरु और गौरी बड़ी मुश्किल से उस पर्वत पर चढ़ाई कर रहे थे| वह दोनों संभल संभल कर चल रहे थे| तभी अचानक गौरी का पैर फिसला और वह नीचे जाकर गिरने वाली थी| तभी किसी ने उसका हाथ थाम लिया| जब गौरी ने ध्यान से देखा तो वह रूद्र था| गौरी को रूद्र को देखकर अचंभा हुआ|
गौरी: आप ? आप यहां क्या कर रहे हैं? आपको कैसे पता कि हम लोग यहां पर है?
रुद्र : मैंने कहा था ना मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा।
पर तुम यहां क्या कर रही हो और राजगुरु आप भी साथ है?
राजगुरु : यह सब हम आपको बाद में समझा देंगे रूद्र किंतु अभी पर्वत पर पहुंचना ज्यादा आवश्यक है इसीलिए हमें प्रस्थान करना चाहिए।
राजगुरु की बात मानकर वह दोनों पर्वत पर चल दिए। रूद्र गौरी को पर्वत पर चढ़ने के लिए मदद भी कर रहा था।
जैसे ही वह लोग पर्वत पर पहुंचे रूद्र सुन्न खड़ा रहा।
उसे भैरवी और उसके विवाह का दिन आज भी याद था। उसकी आंखों के सामने से सदियों पहले का वह रक्तरंजित दिन कुछ ही पल में गुजर गया।
गौरी: रूद्र! रुद्र! क्या हुआ? कहां खो गए?
रुद्र: कुछ नहीं। बस जो तुम्हें याद नहीं है वही याद कर रहा था।
यह सब देखो गौरी! यह सब गौर से देखो!
तुम्हें सब याद आ जाएगा।
इस जगह! इसी जगह हमारी शादी का मंडप लगा हुआ था।
हम इस रास्ते से पर्वत पर आए थे तुम्हारी ही जिद थी कि हमारा विवाह इस पर्वत पर हो।
मैं घोड़े पर था और तुम डोली में बैठी हुई थी। उसके बाद हम दोनों साथ साथ आए।
किंतु महाराज चंद्रसेन बहुत समय होने के पश्चात भी नहीं पहुंचे थे और इसी वजह से तुम कितनी चिंतित भी थी। किंतु फिर भी राजगुरु अमात्य ने हमारे विवाह की विधियां शुरू करवा दी। हमारे विवाह की विधियां चल ही रही थी कि तभी उस राजवीर ने हम पर हमला कर दिया। हमारे कई सैनिक मारे गए। अमात्य स्वयं भी उस से लड़ रहे थे। पर उस धूर्त ने चालाकी से अमात्य को भी मौत के घाट उतार दिया था।
हम लोगों को बचाते बचाते उन्होंने स्वयं भी अपने प्राण गवा दिए थे।
याद करो गौरी! याद करो!
यह शिव शक्ति की प्रतिमाएं याद करो। कितना लगा था तुम्हें इस पर्वत से! तभी तो तुम्हारी ज़िद थी कि हमारी शादी यही हो।
पर उस दिन हमारी शादी नहीं हो पाई । सिर्फ और सिर्फ राजवीर की वजह से।
राजगुरु: यह जो कह रहे हैं सब सत्य है । आप याद करने की कोशिश कीजिए।
गौरी उनकी बातें बस सुन रही थी। वह बस अपने आसपास की जगह पूरी तरह से निहार रही थी। पर फिर भी दिमाग पर इतना जोर डालने के बावजूद उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था।
गौरी: आप क्या कह रहे हो मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है। मुझे लगता है कि मैं पागल हो जाऊंगी।
मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा है। मुझे बस राजमहल जाना है। मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही। मुझे लगता है हमें नीचे चलना चाहिए।
राजगुरु : रुद्र हमें नीचे चलना चाहिए। वैसे भी सूरज ढलने वाला है हमें चलना चाहिए।
रुद्र: ठीक है गौरी चलते हैं यहां से!
इतना कहकर वह लोग वहां से चल दिए परंतु गौरी अब भी उसी जगह को मुड़ मुड़ कर देख रही थी। उस जगह आकर उसका मन बेचैन हो गया था।
जब तक वह लोग नीचे पहुंचे तब तक थोड़ा अंधेरा हो गया था। वो पिशाच अभी तक वहां पर उनका इंतजार कर रहा था। उनको देखते ही वह बड़ा खुश हो गया। सब लोग उसके पास पहुंचे पर रूद्र को कुछ पता ही नहीं था।
रुद्र: हम यहां पर क्यों रुके हैं? हमें चलना चाहिए वरना बहुत देर हो जाएगी। महल में गौरी के ना होने से महाराज चिंता में होंगे।
राजगुरु : हमें यहां पर रुकना होगा रूद्र! कोई हमारा यहां पर इंतजार कर रहा है।
रुद्र: यहां पर? पर यहां पर तो कोई भी नहीं है राजगुरु?
गौरी: वह ठीक हमारे सामने खड़े हैं रूद्र। पर आप उन्हे नही देख पायेंगे! उन्हे सिर्फ मै ही देख सकती हूँ!
रूद्र: क्या? पर हमारे सामने तो कोई भी नहीं है।
तभी रुद्र के दिमाग की बत्ती जली|
रुद्र : एक मिनट! कहीं तुमने अपनी माला! गौरी तुमने अपनी माला क्यों उतारी? तुम्हारी माला कहां पर है?
गौरी के गले में वह माला ना देख कर रूद्र बहुत परेशान हो गया। वह बहुत ज्यादा पैनिक हो गया था!
गौरी : रूद्र प्लीज काम डाउन! शांत हो जाइए!
मैने खुद अपनी माला राजगुरू के हवाले की है|
मैंने सोच लिया है अब मैं इस माला के सहारे अपनी जिंदगी नहीं जिऊंगी।
मै इस पिशाच्च से बात करना चाहती हू.| मै इसकी बात सुनना चाहती हू|
ये वही है रुद्र जो हर बार माला गिरते ही मुझे दिखायी देते है
रुद्र गौरी की बात से सहमत था|बल्कि वो तो खुश था कि गौरी अपने डर को जीतने की कोशिश कर रही हैं!
गौरी : आपने कहा की मै आपकी बात सुनू! मैने सुनी! आपके साथ महल से बाहर आयी! आपने कहा मै परबत पर जाऊ मै गई! पर इस सब से क्या?
वो पिशाच उसकी बाते सुनकर थोडा हडबडा गया|
पिशाच : ये आप क्या कह रही है? आपको सब याद गया ना?
गौरी : आप किस बारे मे बात कर रहे हैं?
जो देखो मुझसे बस इसी बारे मे पूछ रहा है पर मै आप सब को साफ साफ बता देना चाहती हू| मुझे कुछ भी याद नही आ रहा है| समझे आप लोग?
गौरी थोडा गुस्से मे ही बोली|
पिशाच : पर.. पर ये कैसे हो सकता है?
मेरा आपसे मिलने का उद्देश्य ही यही था!
आप.... आप.... हमारी महारानी भैरवी है किंतु आपको कुछ याद क्यो नही आ रहा है?
मुझे इतने वर्षो से मुक्ति नही मिल पायी महारानी!
इस तरह पिशाच योनी मे भटक रहा हूँ सदियों से! ये दशा हो गई है मेरी मुक्ति की तलाश में! किंतु इस सब का कोई उपयोग नही हो पाया| मै असफल रहा महारानी| मैं असफल रहा।
इतना कहकर वह पिशाच जमीन पर घुटनों के बल बैठ गया और फूट-फूट कर रोने लगा।
रुद्र और राजगुरु को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि वह लोग ना ही उस पिशाच को देख पा रहे थे और ना ही उसे सुन पा रहे थे। इसीलिए वह लोग गौरी की तरफ उत्सुकता से देख रहे थे। गौरी ने उनके चेहरे के भाव पढ़ लिए|
गौरी: वो.... वो.... वह बहुत ज्यादा रो रहे हैं। राजगुरु मैं क्या करूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।
इतना कहकर गौरी उस पिशाच के नजदीक गई। उसे डर तो लग रहा था उससे, पर फिर भी वह हिम्मत जुटा कर उसके करीब गई। उस पिशाच को रोते देखकर उसका मन पसीज गया था। वह पिशाच जमीन पर बैठकर फूट-फूट कर रो रहा था। गौरी ने उसके पास जाकर उसके कंधे पर सहानुभूति से हाथ रखा और ऐसा करते ही एक और चमत्कार हुआ।
अचानक वहां पर एक बहुत तेज रोशनी चमकी जिससे सबकी आंखें चकाचौंध हो गई। सब ने अपनी आंखें बंद कर ली और जैसे ही सब ने अपनी आंखें खोली, सामने जो था वह देखकर सब चौक गए।
गौरी के सामने खड़ा पिशाच अब पिशाच नहीं रहा था। उसका रूप पूरी तरह से बदल गया था। अमात्य अपने वास्तविक रूप में लौट आए थे।
सफेद वस्त्र धारण किए, बड़ी-बड़ी जटा और चेहरे पर से झलकता तेज उनके दिव्या ज्ञानी होने की अनुभूति करवा रहा था।
उनके इर्द-गिर्द बहुत सी सफेद रोशनी बिखर गई थी।
रूद्र राजगुरु और गौरी तीनों ही बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित हो गए थे। जैसे ही रूद्र ने अमात्य को देखा उसका तो सिर ही चकरा गया।
रूद्र : अमात्य! आप!
राजगुरु! यह तो अमात्य है।
रुद्र आगे आकर अमात्य के सामने खड़ा हो गया।
रूद्र: अमात्य! यह सब क्या है अमात्य?
अमात्य: सेनापति वीर!
आपके और महारानी भैरवी के विवाह के दिन मेरी हत्या के बाद मेरी अतृप्त आत्मा एक पिशाच बन गई। कदाचित मेरा उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया इसी कारण!
किंतु मैं अपना उद्देश्य पूर्ण कर पाऊं इसी आशा मे मैं पिशाच योनि में भटक रहा था। आप दोनों को ढूंढते ढूंढते न जाने कितनी सदियां बीत गई किंतु आप दोनों मुझे नहीं मिले। मैंने पूरी तरह से उम्मीद खो दी थी। परंतु एक समय ऐसा आया जब आप दोनों ने फिर से इस धरती पर जन्म लिया अपने अधूरे कार्यो को पूर्ण करने के लिए और किसी के कर्मों का न्याय करने के लिए। मैंने कई बार महारानी भैरवी से संपर्क करने की कोशिश की किंतु मेरे उस पिशाच रूप को देखकर महारानी भयभीत हो जाती थी।
कदाचित आप के स्पर्श से ही मेरे मोक्ष की प्राप्ति लिखी हुई थी इसीलिए आपके मुझे स्पर्श करते ही मैं पिशाच योनि से बाहर आ गया। मेरा उद्देश्य पूर्ण हुआ। अब मैं मुक्त हूं। और सबके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद महारानी। भोलेनाथ की कृपा से अब आप दोनों कभी अलग ना हो। ओम नमः शिवाय!
इतना कहकर अमात्य ने अपनी आंखें बंद कर ली। उसी के साथ एक दिव्य तेज रोशनी में वह गायब हो गए।
सब लोग यह देखते रहे।
इधर राजमहल में महाराज बहुत ज्यादा चिंतित थे क्योंकि गौरी कहीं भी नहीं मिल रही थी। अर्जुन भी गौरी को हर जगह ढूंढ चुका था।
महाराज : क्या? क्या कहा आपने ? नीलाद्री कहीं नहीं मिली? तो वह चली कहां गई? क्या आप लोगों ने अच्छी तरह से ढूंढा उन्हें?
महाराज सैनिकों पर गुस्सा कर रहे थे।
सैनिक: महाराज हमने महल का हर कोना ढूंढ लिया राज्य में भी हर जगह अपने गुप्तचर अपने सैनिक भेजें किंतु युवराज्ञी नीलाद्री हमें कहीं नहीं मिली।
महाराज : यह आप क्या कह रहे हैं? तो फिर नीलाद्री चली कहां गई?
" मैं यहां पर हूं महाराज!" गौरी की आवाज सुनकर महाराज ने पीछे मुड़कर देखा। पीछे गौरी खड़ी थी! उसे देखते ही महाराज के जान में जान आई।
महाराज जल्दी से गौरी के पास आए और उसे गले लगा लिया।
महाराज: नीलाद्री! कहां चली गए थे आप बेटा? आप जानती हैं हम आपको कब से ढूंढ रहे हैं! अब आपको देखा तो हमारी जान में जान आई । वैसे आप चली कहां गई थी ?
गौरी : वो..... वो मैं राजगुरु के साथ गई थी। राज्य के किसी महत्वपूर्ण काम से!
महाराज : किंतु बेटा आपको हमें बता कर जाना चाहिए था। हम कितना चिंतित हो गए थे। हमने सारे राजभर में सैनिक भिजवा दिए आपको ढूंढने के लिए।
गौरी: मैं माफी चाहती हूं महाराज आगे से ऐसा नहीं होगा। मैं अपने कक्ष में जा रही हूं| बहुत ज्यादा थक गई हूं| आराम करना चाहती हूं।
गौरी हाथ जोड़कर बोली और वहां से चली गई।
महाराज ने गोरी का चेहरा देखकर ही पहचान लिया कि कोई ना कोई बात तो जरूर है।
जब से गौरी उस पर्वत से लौटी थी किसी से भी बात नहीं कर रही थी अपने ही कमरे में खुद को बंद करके घंटो तक बैठी रहती थी।
अर्जुन और रुद्र दोनों ही गौरी से मिलने की कोशिश कर रहे थे पर गौरी किसी से भी मिल नहीं रही थी। वह अपने कमरे में बस दिन रात यही सोच रही थी कि अगर रूद्र को सब याद आ गया है और यह सब सच है तो उसे कुछ क्यों याद नहीं आ रहा? उसे इस पुनर्जन्म की बात पर विश्वास करने का मन कर रहा था पर उसे कुछ याद ही नहीं आ रहा था।
गौरी ने मन में कुछ ठाना और जाकर महाराज और महारानी से मिली।
गौरी को देखकर महाराजा और महारानी बहुत ज्यादा खुश हो गए।
गौरी : मुझे आप लोगों से बहुत जरूरी बात करनी है। क्या हम बात कर सकते हैं??
महाराज: क्यों नहीं बेटा! आइए ना। हमारे पास बैठिए।
महारानी आगे आकर गौरी को अपने साथ ले आई और उसे अपने साथ बिठा लिया।
महारानी : नीलाद्री बेटा आपको पता है इतने दिनों से आप किसी से ठीक से बात नहीं कर रही थी इसीलिए हम बहुत ज्यादा परेशान थे पर आज आप खुद चलकर हमारे पास आई बात करने तो हमें थोड़ा सुकून मिला।
महाराज: बेटा नीलाद्री! क्या बात है? किस बारे में बात करना चाहती है आप? आप बेझिझक हमें बताइए।
गौरी ने कुछ सोचा और अपनी बात कहना शुरू किया।
" महाराज! मैं चाहती हूं की मेरा राज अभिषेक मेरे विवाह के बाद हो और मेरी गैर हाजिरी में हमारे राज्य का सारा कारोबार विजय भैया संभाले! अगर कभी भी मैं ना रहूं तो राज्य की सारी बागडोर विजय भैया के हाथों में हो। "
गौरी की बात सुनकर महाराजा और महारानी को थोड़ा आश्चर्य तो हुआ।
महाराज: ये आप क्या कह रही है नीलाद्री ? हमारे यहां सदियों से यही प्रथा है कि विवाह से पूर्व ही राज्याभिषेक किया जाता है । किंतु आप ऐसा क्यों चाहती है?
गौरी : महाराज मैंने आज तक आप से कुछ नहीं मांगा। मुझे लगा था कि आप कम से कम यह सोचकर मेरी बात मान लेंगे की पहली बार मैं आपसे कुछ मांग रही हूं। पर आप मेरी एक इच्छा तक पूरी नहीं कर पाए।
इतना कहकर गौरी वहा से जाने लगी।
गौरी कि इस बात का महाराज और महारानी को बहुत बुरा लगा। इसीलिए उन्होंने गौरी को आवाज देकर रोका।
महाराज : रुक जाइए नीलाद्री! आप जैसा चाहती है वैसा ही होगा। आपका राज्याभिषेक आपके विवाह के बाद ही होगा| आपकी खुशी के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं| ये तो बहुत छोटीसी बात है|
ये सुनते ही गौरी बहुत खुश हो गई|
गौरी : आपका बहुत बहुत शुक्रिया महाराज-महारानी!
गौरी उनसे हाथ जोड़कर बोली और वहा से चली गई|
महारानी : महाराज! क्या नीलाद्रि हमे कभी माफ नही करेंगी? क्या ये हमे कभी माता पिता कहकर नही पुकारेगी?
महारानी रोते रोते महाराज से पूछ रही थी|
महाराज ने उन्हे संभाला पर उनके सवालो के जवाब महाराज के पास भी नही थे| शायद कही ना कही ये सवाल उनके दिमाग मे भी थे|
पूजा विजय के पास दौडते हुए आयी|
विजय : पूजा! पूजा क्या हुआ? तुम हाँफ क्यों रही हो?
पूजा : विजय जी आपको पता है गौरी ने क्या किया?
पूजा की हालत देखकर विजय को पता चल गया कि कुछ तो हुआ है|
पूजा ने विजय को सारी बात बता दी|
"गौरी! गौरी! गौरी!" विजय चिल्लाता हुआ गौरी के कमरे मे पहुंचा|
" आइये भैया! बैठीये!
ये शरबत खास आपके लिए बनवाया है मैने!
आइये!" गौरी की बाते सुनकर विजय चौंक गया|
"क्या हुआ? चौंक गए?
मुझे पता था कि आप यहा जरूर आयेंगे! बैठीये! " गौरी ने विजय का हाथ पकडकर उसे बिठाया और उसे शरबत का ग्लास दिया|
"तुम ये सब क्यों कर रही हो गौरी? प्लीज गौरी ये सब बंद कर दो! तुमने पिताजी से कहा कि तुम्हारा राज्याभिषेक शादी के बाद हो!" विजय बोला|
ये सुनकर गौरी जरा ठहर गई|
"आप जानते है भैया की मै ये सब क्यो कर रही हूं! फिर भी आप मुझसे ये सब क्यो पूछ रहे हो भैया?" गौरी बोली|
विजय : क्योंकि मै चाहता हू कि तुम अपना फैसला बदल दो गौरी| भगवान के लिए! भगवान के लिए मुझे आजाद कर दो गौरी!
विजय गौरी का हाथ पकड़कर कहने लगा| उसकी आँखें नम थी|
गौरी : भैया प्लीज!
प्लीज आप मुझे कमजोर मत बनाइये! ऐसा करके आप मुझे कमजोर बना रहे हैं|
गौरी की भी आँखो मे पानी आ गया|
विजय : गौरी बेटा! तुम मेरी मानो!
तुम्हे ये सब करने की कोई जरूरत नही है|
मुझे.... मुझे रुद्र पर पूरा भरोसा हैं| रुद्र तुम्हें कुछ नही होने देगा गौरी| वो तुमसे बहुत प्यार करता है!
गौरी : इसी लिए तो भैया! मै जानती हूँ कि वो मुझसे बहुत प्यार करते है और मुझे पाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं| यही वजह है कि मै उनसे दूर भाग रही हूँ|
क्या आपको पता नही की स्वयंवर मे हिस्सा लेने की उनको क्या कीमत चुकानी पडेगी?
उस राक्षस से कैसे सामना कर पायेंगे वो? आप जानते हैं ना कि आज तक जो भी उस से लड़ा है वह जिंदा नहीं बचा। तो फिर आप ऐसा क्यों चाहते हैं कि मैं जानबूझकर रुद्र की जान खतरे में डालू?
ये बात सुनते ही विजय शांत हो गया|
गौरी : अगर उनको कुछ हो गया ना भैया तो मै जीते जी मर जाऊंगी और रुद्र से दूर होकर मै जीना नही चाहूंगी| उनसे दूर होकर जीना भी क्या जीना होगा मेरे लिए?
इसी लिए मैने अपनी बिमारी के बारे मे सबसे छिपाकर रखा है और आपको अपनी कसम से बांधे रखा है|
बताइये भैया! क्या आप मुझे रुद्र के बिना पल पल मरता देख पायेंगे?
विजय : ऐसा मत कहो गुडिया! तुम्हें कुछ नही होगा| मै तुम्हें कुछ नही होने दूंगा| रुद्र इस स्वयंवर मे हिस्सा भी लेगा और जीतेगा भीऔर रही कसम कि बात तो मेरे लिए तुम्हारी जिंदगी से बढकर कोई भी कसम नही है| इसीलिए मै इसी वक्त सब को सच्चाई बताने जा रहा हूँ| उसके बाद सबसे पहले तुम्हारा इलाज होगा और बाद मे रुद्र के साथ तुम्हारी शादी!
ये कहकर विजय बाहर की ओर जाने लगा|
गौरी : भैया! रुक जाइये भैया! मै कहती हू रुक जाइये!
गौरी उसे रोक रही थी पर वो नही रुक रहा था|
गौरी : मै कहती हू रुक जाइये भैया वरना मै यहा से कूदकर अभी अपनी जान दे दूंगी| फिर आपको मेरी मौत के लिए एक महीना इंतजार नही करना पडेगा|
जैसे ही विजय ने मुडकर देखा गौरी कमरे की खिड़की पर चढ गयी थी|
ये देखते ही विजय डर गया|
वो दौडकर उसके करीब आया|
गौरी : रुक जाइये भैया! आगे मत बढीये वरना मै यहा से कुद जाउंगी|
विजय वही पर रुक गया|
विजय: रुक जाओ गौरी! ये तुम क्या कर रही हो? नीचे उतरो!
गौरी : आप तो सब को सच बताने जा रहे थे ना? तो जाइये! बस इतना याद रखियेगा कि जैसे ही किसी को कुछ भी पता चला तो मै अपनी जान दे दूंगी! मै यहा से अभी इसी वक्त कूद जाउंगी!
गौरी की आँखो मे खून उतर आया था|
विजय : गौरी रुक जाओ! ऐसा मत करो! तुम जैसा कहोगी मै वैसा ही करूंगा पर प्लीज नीचे उतर जाओ!
विजय डर गया था|
गौरी: मै कैसे मान लू कि मेरे रुक जाने से आप किसी को कुछ नही बतायेंगे?
विजय : गौरी! गौरी तुम नीचे उतरो| मै वादा करता हू मै किसी को कुछ नही बताउंगा|
गौरी : आप मेरी कसम तोड सकते हैं तो ये वादा क्या है आपके लिए! आप वो तो बडी ही आसानी से तोड सकते है| इससे अच्छा तो यही है कि मै अभी यहा से कूदकर अपनी जान दे दू|
गौरी अपना पैर आगे बढ़ाने लगी|
विजय : नही! नही! नही! गौरी रुक जाओ!
मै अपने होने वाले बच्चे की कसम खाकर कहता हूँ मै किसी को कुछ नही बताउंगा|
ये सुनते ही गौरी अचानक से शांत हो गई|
गौरी : क्या? क्या कहा आपने अभी?
विजय: हाँ! मै सच कह रहा हूँ गौरी!
पूजा माँ बनने वाली है| मै पिता और तुम बुआ बनने वाली हो गौरी!
प्लीज मेरी बात मानो नीचे उतर जाओ|
मै अपने होने वाले बच्चे की कसम खा रहा हूँ! प्लीज! प्लीज गौरी!
ये खुशखबरी सुनकर गौरी शांत हो गई और वो नीचे उतर गयी|
उसके नीचे उतरते ही विजय ने दौडकर गौरी को अपने सीने से लगा लिया|
विजय : गौरी! ये तुम क्या करने जा रही थी बेटा? तुम ऐसा कैसे कर सकती हो? अगर तुम्हे कुछ हो गया तो मै जीते जी मर जाउंगा गौरी!
विजय रोते हुए गौरी से कह रहा था|
गौरी : आपने मुझे ये बात पहले क्यो नही बतायी भैया कि मै बुआ बनने वाली हू?
आप रोइये मत! मै सारे महल मे घोषणा करवा देती हू|
सारे राज्य मे मिठाइया बाटी जायेंगी| मै बहुत खुश हू भैया! बहुत खुश! सबसे पहले मै भाभी को बधाई देकर आती हूँ!
गौरी अपने आँसू पोछते हुए बोलीट वो बहुत ज़्यादा खुश होकर पूजा के पास दौड़कर चली गई|
पर विजय उसकी इस हरकत से बहुत ज्यादा दुखी हो गया था|
सारे महल मे इस बात से बडे ही उत्साह का वातावरण बन गया|
पूरे राज्य में मिठाइयाँ बांटी गई।
जब ये बात रुद्र को पता चली तो वो विजय और पूजा को मुबारक बात देने उनके कमरे मे आया|
जब वो वहा पहुंचा तब वहा अर्जुन पहले से मौजूद था|
उसे देखते ही रुद्र का चेहरा उतर गया|
अर्जुन : अरे रुद्र तुम? अच्छा हुआ तुम यही मिल गए! वैसे भी मै तुमसे ही मिलने आने वाला था| तुमसे कुछ बात करनी थी|
रुद्र : पर मुझे तुमसे कोई बात नही करनी|
इतना कहकर रुद्र वहा से वापिस जाने लगा|
अर्जुन : अरे अर्जुन रुको तो! इतनी भी जल्दी क्या है?
मै चाहता हू कि तुम जाओ पर अपना बोरिया बिस्तर समेट
कर! सीधे मुंबई!
क्योंकि दो दिन बाद गौरी के स्वयंवर मे जब मै गौरी से शादी करूंगा तो शायद वो सदमा तुम नही पाओगे! इसीलिए तुम्हारी भलाई के लिए कह रहा हूँ चले जाओ यहा से!
अर्जुन रुद्र के कंधे पर हाथ रखकर बोला|
रुद्र : गौरी किससे शादी करती है ये तो वक्त ही बतायेगा! पर तुम्हारा अंत मेरे हाथो ही लिखा है और ये पहले ही तय हो चुका है|
रुद्र ने उसका हाथ झटक दिया और वहा से गुस्से मे चला गया|
अर्जुन भी बहुत गुस्सेमें था| मन ही मन कोई और घिनौनी हरकत करने के बारे मे सोच रहा था|