गौरी : सिद्धार्थ? आप?
गौरी बहुत ज्यादा चौंक गई थी|
वो सिद्धार्थ था|
गौरी इतना ज्यादा चौंक गई थी कि चक्कर आकर गिर गई| पर सिद्धार्थ ने उसे पकड लिया|
सिद्धार्थ : गौरी! उठो गौरी! क्या हो गया तुम्हे? गौरी! सीमा आंटी!
गौरी को इस हाल मे देखकर सिद्धार्थ ने डरकर सीमा जी को आवाज लगाई|
कुछ देर बाद
गौरी बेड पर सो रही थी|
सिद्धार्थ गौरी का हाथ पकड़कर उसके पास बैठा था| गौरी के लिए चिंता उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी|
सीमा जी भी गौरी के पास ही बैठी थी| उनका पूरा ध्यान सिद्धार्थ पर था|
सीमा जी : सिद्धार्थ बेटा! आप चिंता मत करीए| वो अब ठीक है| शायद बहुत ज्यादा थकान की वजह से वो बेहोश हो गई है| वो ठीक है| उसे सोने दिजीए| आप भी सो जाइए बेटा|
सिद्धार्थ : ठीक है माँ! आप भी सो जाइए|
सिद्धार्थ उठकर चला गया|
पर सीमा जी गौरी के पास ही सो गई|
रुद्र अपने कमरे की गैलरी मे खडा था| बारिश के बाद जो गुलाबी हवा चल रही थी उसका मजा ले रहा था|
गौरी के साथ बिताये लम्हे याद कर मन ही मन खुश हो रहा था|
"अब मै ज्यादा देर नही करूंगा तुम्हे मेरे दिल की बात बताने मे! तुम्हे बहुत जल्द मै अपना बना लूंगा गौरी! मै जानता हूँ कही ना कही तुम भी मुझे पसंद करती हो!
जब मेरी सोच हकीकत मे बदल जायेगी, तब मै सबसे पहले माँ और पापा को हमारे बारे मे बताउंगा! वो बहुत ही ज्यादा खुश हो जायेंगे| बस अब एक ही दुआ है मेरी की अब हम जो मिले है तो हम कभी जुदा ना हो! कभी भी नही!"
उधर गुरुजी मंदीर मे ध्यानावस्था मे से अचानक बाहर आ गए| उन्होंने आँखें खोली और उठकर सीधा शिवजी की मूर्ति के पास गए|
"ओम नम: शिवाय! ओम नम: शिवाय!
हे प्रभु! हे मेरे भोलेनाथ! मुझे क्षमा कर दिजीए मेरे प्रभु| मै जान ना सका की इस कहानी मे आप ये पात्र क्यो लाये हैं!
वे दोनो आप ही के अंश है! साक्षात महादेव और जगज्जननी माँ पार्वती के! तो वे विलग कैसे हो सकते हैं? मै आपकी लीला समझ गया प्रभु!
उन दोनों के मन मे प्रेम की ज्योति प्रज्वलित हो चुकी है| अब केवल प्रतिक्षा है तो इस पात्र के कारण उन दोनो को एक दूसरे का महत्व समझाने की! आप अंतर्यामी है प्रभु! ओम नम: शिवाय! ओम नम: शिवाय!"
वो शिवजी के चरणों मे लिन हो गए|
अगले दिन सुबह
किसी ने गौरी के कमरे के खिड़की के परदे खोले| उसी के साथ सूरज की किरणें गौरी के चेहरे पर पडी| उसी से गौरी की निंद खुल गई|
गौरी ने जब आखे खोलकर देखा तो सिद्धार्थ था जो खिड़की के परदे खोल रहा था| वो सिद्धार्थ को देखते ही उठकर बैठ ग |
उसने हसते हुए गौरी की तरफ देखा और उसके पास जाकर बैठ गया|
गौरी : सिद्धार्थ! आप? आप......
सिद्धार्थ ने धीरे से अपना हाथ उसके होठो पर रखा और उसे चूप कर दिया|
सिद्धार्थ : श्श्श.......... हाँ... मै...... इसमे इतनी ज्यादा चौंकने वाली क्या बात है| मैने सोचा था की मै तुम्हें सरप्राइज दूंगा| पर तुमने तो बेहोश होकर कल मुझे ही सरप्राइज कर दिया| ठीक से मिली भी नहीं मुझसे और बेहोश हो गई|
पर चलो कोई बात नही अभी मिल लेते हैं ठीक से!"
इतना कहकर उसने अपने दोनों हाथ गौरी के गर्दन पर रखे और उसके गुलाबी होंठो के पास अपने होठ ले जाने लगा| पर तभी गौरी ने हसकर उसे अपने से दूर कर दिया|
गौरी के धक्का देने से वो बेड पर ही गिर गया|
वो बेड से उतरी और उसपर हसने लगी|
सिद्धार्थ : कम ऑन गौरी! तुम हमेशा ऐसे ही करती हो मेरे साथ! कोई अपने होने वाले पती से ऐसे बिहेव करता है?
गौरी : ओह सो सैड मि सिद्धार्थ अवस्थी! सही कहा आपने! होने वाले पती है आप, हुए नही अभी तक! जब हो जायेंगे तब देखेंगे!
इतना कहकर वो हसते हुए बाहर भाग गयी|
"कब तक ऐसे परेशान करोगी मुझे! एक दिन तुम्हें अपना बनाकर ले जाऊंगा और तब देखेंगे की तुम कैसे भागती हो! अब मै आ गया हू ना तो अब जल्द ही तुम्हारी उंगली मे मेरे नाम की अंगूठी होगी गौरी!"
सिद्धार्थ अपने आप से ही बात कर हसने लगा|
इधर सिंघानिया मँशन मे सब साथ बैठकर ब्रेकफास्ट कर रहे थे|
आज रुद्र सुबह से ही बहुत खुश लग रहा था| सब उससे पूछ भी रहे थे पर वो टाल रहा था| शालिनी जी और विवेक जी तो इशारो इशारो मे रुद्र की स्माइल की बाते कर रहे थे|
रुद्र तो बस जल्दी से ऑफिस जाकर गौरी से कल रात के बारे मे बात करना चाहता था|
तभी डोअरबेल बजी| राघू चाचा ने दरवाजा खोला|
राघू चाचा : मालकिन! देखिये तो कौन आया है! गौरी बिटिया आयी है|
अपने मीठे स्वभाव के कारण गौरी तो घर के नौकरों की भी बहुत पसंदीदा थी| उसे देखते ही राघू चाचा बहुत खुश हो गए|
गौरी ने आते ही राघू चाचा के हालचाल पूछे|
राघू चाचा की आवाज सुनकर सबके चेहरे खिल उठे| रुद्र का चेहरा तो देखने लायक हो गया था| सब उठकर बाहर हॉल मे आये| गौरी शालिनी जी को देखते ही उनके गले मिली| वो विवेक जी के भी गले मिली|
विवेक : क्या हुआ गौरी? आज तो आप बहुत खुश लग रही हैं?
शालिनी : आपने तो मेरे दिल की बात कह दी विवेक जी! मै भी अभी यही पूछने वाली थी गौरी से!
गौरी! कुछ खास है क्या आज?
विवेक जी और शालिनी जी के पीछे पीछे रुद्र भी वहा आया| उसने विवेक और शालिनी जी की बात सुनी और अचानक उसके चेहरे पर खुशी छा गई| उसे लगा की शायद गौरी को कल रात उसके दिल की बात पता चल गई है|
गौरी : हम्म्म्म्म..... आप सही है अंकल आंटी! उसी के लिए तो मै आयी हू|
पर रुद्र कहा है? रुद्र के लिए एक सरप्राइज है| मै रुद्र को किसी से मिलाना चाहती हू|
विवेक : देअर ही इज्! रुद्र आप वहा क्या कर रहे हो? यहा आइये! देखिए तो! गौरी आपके लिए कोई सरप्राइज लायी हैं!
रुद्र जरा हिचकिचाते हुए आगे आया|
गौरी दौडकर आगे आयी|
" रुद्र आप वहा पीछे क्या कर रहे हो? आगे आइये ना!
मेरे पास ना आपके लिए एक सरप्राइज है!"
उसकी खुशी उसके चेहरेसे ही झलक रही थी|
वो खुश होकर रुद्र से लिपट गई|
"रुद्र! आज मै बहुत खुश हूँ| बहुत ज्यादा! और ये खुशी मै सबसे पहले आपके साथ बाटना चाहती हू!"
रुद्र ये सुनने के बाद और भी ज्यादा खुश हो गया| उसे लगा जैसे गौरी अपने प्यार का इजहार करने वाली है|
"सिद्धार्थ!!!!!"
गौरी ने आवाज लगाई|
वैसे ही सिद्धार्थ घर के अंदर आकर खडा हो गया|
सिद्धार्थ अवस्थी..... वो एक खुबसुरत नौजवान था| उसका पुणे मे खुद का बिझनेस था| देखने से ही बहुत अमीर लगता था|
विवेक जी, शालिनी जी और घर के सारे नौकर सिद्धार्थ को देखकर बहुत ज्यादा खुश लग रहे थे|
रुद्र को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था|
गौरी भागकर सिद्धार्थ के पास गई और उसके हाथों मे अपने हाथ डालकर कहने लगी|
" इनसे मिलिए रुद्र! ये है सिद्धार्थ अवस्थी! मेरे मँगेतर! ये सुनते ही रुद्र के तो पैरो तले जमीन खिसक गई|
पर गौरी और सिद्धार्थ बहुत ज्यादा खुश थे| उन्हें खुश देखकर सब बहुत खुश थे| पर रुद्र की तो जैसे दुनिया ही उजड गई|
सिद्धार्थ और गौरी ने आगे आकर विवेक और शालिनी जी के पैर छुए| उन दोनों ने भी उन्हें प्यार से गले लगाया|
सिद्धार्थ ने आगे आकर रुद्र से हाथ मिलाने के लिए हाथ बढाया|
सिद्धार्थ : हाय आय एम सिद्धार्थ! मैने बहुत सुना है तुम्हारे बारे में! गौरी जब से मिली है तबसे बस तुम्हारी ही बाते किए जा रही है!
रुद्र को तो कुछ समझ ही नहीं आया| उसने बस अपने आँसू रोक कर जैसे तैसे सिद्धार्थ से हाथ मिलाया^ उसके चेहरे पर जितनी भी हल्की हसी थी, कोई भी बता सकता था कि वो नकली है|
शायद इस बात का अंदाजा शालिनी जी को हो गया था| उन्हें तो पहले से शक था कि रुद्र गौरी से प्यार करता है और अब रुद्र के चेहरे से उन्हें फिर से वैसा लगने लगा|
गौरी को भी रुद्र की बरताव थोडा अजीब लग रहा था|
सिद्धार्थ : बहुत खुशी हुई तुमसे मिलकर!
रुद्र ने बस गर्दन हिला दी|
सिद्धार्थ : अंकल, आंटी! मेरे पास आपके लिए एक गुड न्यूज है|
शालिनी जी तो रुद्र को ही देख रही थ
विवेक जी ने ही पूछा, "गुड न्यूज? कैसी गुड न्यूज?"
सिद्धार्थ : मैने डिसाइड किया है की हम अगले महीने सगाई करेंगे!
ये सुनते ही रूद्र को शरीर से बची कुची जान भी निकल गई |
सिद्धार्थ : सीमा माँ आज ही जाकर पंडित जी से मुहूर्त निकालकर लायी है| उन्होंने अगले महीने की 25 तारीख बहुत ही शुभ है ऐसा बताया है और ये खुशखबरी सबसे पहले माँ ने आपको देने के लिए कहा है|
सिद्धार्थ ने गौरी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा|
ये सुनकर सबके चेहरे पर खुशी छा गई|
गौरी ने चौंककर उसकी तरफ देखाट ये बात गौरी को भी नही पता थी| उसके लिए भी ये सरप्राइज था|
ये सुनकर वो बहुत खुश तो हुई लेकिन उसका पूरा ध्यान बस रुद्र पर ही था|
विवेक और शालिनी जी दोनो ने उनको ढेर सारी बधाईयाँ दीट
पर रुद्र को तो ये सुनकर ऐसा लगा मानो जैसे उसके जिस्म से किसी ने जान निकाल ली हो|
वो तो बस सुन्न रह गया| उसके आँसू आँखो में ही रुक गए|
थोडी देर पहले तक जिस लडकी को वो अपनी दुनिया मे लाने के सपने सजा रहा था, उसे कोई और अपनी दुनिया बनाने चला था|
सिद्धार्थ : अच्छा अंकल मै अब चलता हू| आप सब भी ऑफिस के लिए लेट हो रहे होंगे|
गौरी! मै तुम्हें ऑफिस ड्रॉप कर देता हूँ| इसी बहाने हम कुछ और वक्त साथ बिता लेंगे|
गौरी ने बस हँसकर गर्दन हिला दी|
पर वो रुद्र को ऐसे देखकर दिल से खुश नहीं थी|
सिद्धार्थ : गौरी! चले?
गौरी : जी!
अच्छा रुद्र, अंकल! आपसे ऑफिस में मुलाकात होगी!
बाय आंटी|
सिद्धार्थ गौरी को लेकर जाने लगा| पर गौरी मुडकर रुद्र की ओर ही देख रही थी| उसे कुछ अजीब एहसास हो रहा था| तब सिद्धार्थ ने उसका हाथ पकडा और हाथ पकडकर बाहर ले गया|
जैसे जैसे गौरी बाहर की तरफ अपने कदम बढा रही थी, रुद्र को लग रहा था मानो उसकी जिंदगी उससे दूर जा रही हो|
जैसे ही गौरी उसके आँखों से ओझल हुई, रुद्र की आँख से आँसू की बूँद जमीन पर गिरी|
विवेक जी और शालिनी जी को कुछ समझ मे आये इससे पहले वो भागकर अपने कमरे मे चला गया|
रुद्र के इस तरह अपने रूम की तरफ भागने से विवेक जी और शालिनी जी भी उसके पीछे भागे|
विवेक : रुद्र! रुद्र!
शालिनी : रुद्र! क्या हुआ बेटा रुद्र?
राघू चाचा और घर के सारे नौकर बस बाहर रुक कर चिंता करने लगे|
रुद्र अपने कमरे मे जाकर जोर से चिल्लाने लगा, जोर जोर से रोने लगा, सारा सामान फेकने लगा|
अचानक उसकी नजर आईने पर पडी| आइने मे खुद का रोता हुआ चेहरा उसे दिखाई दे रहा था| अचानक उसे बहुत गुस्सा आया और उसने आइने पर जोर से पंच किया|
आइना टूट गया और साथ ही उसके हाथ से खून निकलने लगा|
ये सब विवेक और शालिनी जी ने देखाट
वो उसे रोकने के लिए आगे बढे पर रुद्र था की रुकने का नाम नही ले रहा था| वो कमरे का सारा सामान फेकने लगा|
विवेक और शालिनी जी ने उसे पकडा|
उसे रोता देख वो दोनो भी रोने लगे|
विवेक : रुक जाइये रुद्र! रुक जाइये! ये क्या कर रहे हैं आप? ये क्या हो गया है आपको?
शालिनी : रुक जाइये रुद्र बेटा! मेरी ओर देखिए! अपनी माँ की तरफ देखिए!
शालिनी जी ने उसे जैसे तैसे शांत किया|
वो रोते हुए नीचे बैठ गया|
रुद्र : ये सब क्या हो गया माँ? ये सब क्या हो गया?
जिसको कल तक मै अपनी जिंदगी बनाने के सपने देख रहा था, वो किसी और की कैसे हो सकती है माँ? कैसे? मैने बहुत देर कर दी माँ! बहुत देर कर दी!
ये कहकर वो खुद को ही मारने लगा|
शालिनी जी ने रोते रोते उसके हाथ पकडे|
विवेक जी : रुद्र आप क्या कह रहे हो बेटा? शालिनी जी ये सब हो क्या रहा है? मुझे बताइये प्लीज!
शालिनी : रुद्र बेटा! क्या मै जो सोच रही हू.... वो.....
रुद्र : हाँ माँ हाँ! मै प्यार करता हू गौरी से!
ये सुनते ही उन दोनों के होश उड गए|
रुद्र : बहुत ज्यादा प्यार करता हू मैं उससे! मै उसके बिना जी नही सकता माँ! माँ प्लीज आप कुछ करीए ना! पापा! आपकी तो हर बात मानती है ना गौरी! उसे आप समझाइये ना! प्लीज पापा प्लीज! मुझे मेरी गौरी दे दीजिए!
आज तक मैने आपसे कुछ नहीं मांगा| पर आज मांगता हू| प्लीज मुझे मेरी गौरी ला दिजीए| मै उसके बिना जीने की सोच भी नही सकता पापा|
विवेक और शालिनी जी अपने इकलौते बेटे की ये हालत देखकर तो मानो जैसे अंदर से मर गए हो|
वो दोनो भी रो रहे थे|
शालिनी : रुद्र! बेटा मैने पूछा था की कही वो लडकी गौरी तो नही! तब आपने मुझसे झूठ क्यो बोला?
रुद्र उनके किसी भी सवाल का जवाब देने की हालत मे नहीं था!
अचानक वो उठा|
रुद्र : मुझे गौरी के पास जाना है! पापा! मै उसे बुलाकर लाता हू| वो आपकी हर बात मानती है| ये बात भी मान जायेगी|
और वो जाने लगा पर उन दोनो ने उसे पकड लिया|
विवेक : मै आपको कैसे समझाऊ मेरे बच्चे? जो आप कह रहे हो वो नही हो सकता! कितना बदनसीब बाप हू मै! मेरे बेटे ने पहली बार मुझसे कुछ माँगा और मै उसे वो भी नही दे सकता|
विवेक जी ने रोते रोते कहा|
रुद्र : आह्ह्ह! क्यो नही हो सकता पापा? क्यो नही हो सकता? सब हो सकता है! मै अभी जाता हूँ और उसे लेकर आता हूँ| छोडिये मुझे! छोडिये!
विवेक जी रुद्र के सामने आए| उसकी दोनो बाहे पकडी और कहने लगे,"होश मे आओ रुद्र! होश मे आओ! वो किसी और की है! सिद्धार्थ के साथ मंगनी होने वाली है उसकी! वो कभी तुम्हारी थी ही नही रुद्र! उसका रिश्ता पहले ही सिद्धार्थ के साथ तय हो चुका था! मंगनी भी हो गई होती पर सिद्धार्थ पुणे चला गया थाइसलिए पोस्टपोन हो गई| वो जा चुकी है रुद्र! जा चुकी है!"
वो जरा आवाज चढाकर ही बोले|
ये सुनते ही रुद्र होश मे आया| उसकी आँखों से आँसू बहने लगे|
वो बहुत जोर से चिल्लाया|
"आआआआआहहहह.....
गौssssरीssss!!!!!!!!! "
उधर गौरी सिद्धार्थ के साथ ऑफिस जा रही थी| उसे लगा जैसे रुद्र ने उसे आवाज दिया हो| वो एकदम हडबडा गई|
सिद्धार्थ : क्या हुआ गौरी? क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?
गौरी : कुछ नहीं! मै ठीक हू!
सिद्धार्थ ने उसकी बात मान भी ली|
पर गौरी को बहुत अजीब लग रहा था|
उसने अपना फोन निकाला और रुद्र को कई फोन किए पर उसने रिसिव्ह नही किए|
इस वजह से गौरी और भी परेशान हो गई|
ऐसा पहली बार हो रहा था की सिद्धार्थ के साथ होते हुए भी गौरी का ध्यान कही और था|