प्रजागण भैरवी को लेकर अपने गाँव पहुंचे| भैरवी को देखते ही सारे गाँव वाले बाहर निकल आये|
भैरवी घोडे से नीचे उतरी|
अपनी युवराज्ञी को देखकर सारे गाव वाले बहुत खुश हो गए|
"आइये युवराज्ञी! देखिये ना! हमारा क्या हाल हो गया है!" एक बुढी औरत आगे आकर बोली|
गाँव के सारे लोग बहुत ही अशक्त लग रहे हैं| सबकी तबियत कुछ खराब सी थी|
"देखिये! देखिये ना युवराज्ञी! मेरे बेटे की क्या दशा हो गई है!" एक औरत भैरवी का हाथ पकड़कर उसे अपनी झोपडी की ओर लेकर आयी|
बाहर ही एक खटिया पर उस औरत का बेटा पडा हुआ था| वो होश मे नही था| उसका बदन नीला पड रहा था|
"हे भोलेनाथ! ये सब?"
"देखिये ना युवराज्ञी! मेरा बेटा जीवन मृत्यु से लड रहा है| इस संसार मे मेरे बेटे के अलावा मेरा कोई और नही है| मेरा बेटा ही मेरा घर चलाता है| इसी की यही स्थिती है तो मै बुढिया क्या क्या करूंगी| ये मेरे जीने की एकलौती वजह है| अगर इसे कुछ हो गया तो मै किसके सहारे जिउंगी युवराज्ञी?" उस औरत ने युवराज्ञी की बात काटते हुए कहा|
वो फुट फुटकर रो रही थी|
भैरवी ये सब देखकर दंग रह गयी थी|
"सैनिक!" भैरवी के बुलाते ही एक सैनिक आगे आया|
"इसी वक्त आप महल की ओर कूच करीये| जाइये राजवैद को अपने सारे सहकारीयों के साथ इसी समय यहा उपस्थित होने के लिए कहिये| उनसे कहना की ये युवराज्ञी का आदेश है!" भैरवी ने आदेश दिया|
उसी वक्त दो सैनिक महल की ओर निकल गए|
"हे प्रभु! मेरा बच्चा! मेरा बच्चा!
नही!!!" दूसरी ओर से बहुत जोर से कोई औरत चिल्लायी|
सब लोग भागकर उस झोपडी की ओर पहुंचे| भैरवी भी वहा आयी| वहा एक आदमी और एक औरत थे| वो औरत अपनी लगभग 4-5 साल के बेटे को गोद मे लेकर रो रही थी|
"मेरे लाल! उठो ना! उठो! तुम मुझे इस तरह छोड़कर नहीं जा सकते| ये क्या हो गया मेरे बच्चे को!" उसका आक्रोश देखकर सब लोग भावुक हो गए|
एक आदमी ने वहा पहले से खडे किसी आदमी से पूछा कि वहा क्या हुआ|
उसने बताया कि उसके बेटे ने घर मे पानी ना होने की वजह से नदी का विषाक्त पानी पी लिया|
ये सब सुनकर भैरवी को बहुत दुख हुआ|
भैरवी को देखते ही वो औरत अपने बेटे को वही छोड़कर भागते हुए उसके पास आयी|
"युवराज्ञी! युवराज्ञी! कहा रह गयी थी आप? हम सब लोग, मै, मेरा बेटा कबसे आपकी राह देख रहे थे! इतनी देर कैसे कर दी आपने?
आपने... आपने हमे वचन दिया था ना कि आप हमारी रक्षा करेंगी? तो देखिये ना! देखिये ना मेरे बेटे को क्या हो गया! इसकी रक्षा क्यो नही कि आपने? बोलिये ना युवराज्ञी! आप चूप क्यो है?" वो औरत रोते रोते युवराज्ञी को अपने बेटे की लाश के पास लेकर आयी|
भैरवी के पास उसके किसी भी सवाल को कोई जवाब नही था|
वो उस बच्चे के मृतदेह के पास बैठकर रोने लगी|
उसे बहुत दुख हो रहा था~
उसने रोते रोते ही उस बच्चे के माथे पर हाथ फेरा.ट|
"मुझे माफ कर दो! मुझे आने मे देर हो गई!" वो रोते रोते ही उससे अलग हो गई|
जैसे ही वो मुडी अचानक वो बच्चा साँस लेने लगा|
उसकी आवाज से सब लोग उसकी ओर देखने लगे| भैरवी भी चौंककर उसकी तरफ मुडी|
उस बच्चे की माँ उसके पास भागकर पहुंची| भैरवी भी भागकर उसके पास आयी| वो अब जोर जोर से साँसे भर रहा था|
"क्या गाँव मे कोई वैद है? कोई वैद के बुलाओ!" भैरवी जोर से चिल्लायी|
भैरवी की बात सुनकर कुछ लोग वैद को बुलाने भागे|
कुछ देर मे वैद भी आ गए| उन्होने उस बच्चे का परिक्षण किया और बताया कि अब वो ठीक है|
सब को बहुत आश्चर्य हुआ कि एक मरा हुआ बच्चा सिर्फ युवराज्ञी के छूने मात्र से जिवीत कैसे हो सकता है!
पर भैरवी अब केवल एक ही विषय मे विचार कर रही थी| उसने तुरंत कुछ गाँव वालो को लेकर नदीपात्र कि ओर प्रस्थान किया|
कुछ ही समय मे वे सब लोग नदी के पास पहुंच गए|
" यही नदी जो कभी हम सबके निर्वाह का साधन थी| वही आज हम सबके जीवन की शत्रु बन गई है| " गाँव वाले रोते हुए युवराज्ञी को बताने लगे|
भैरवी को बहुत बुरा लगा|
वो थोडा आगे आकर नदी को गौर से देखने लगी|
"क्या हुआ युवराज्ञी? क्या देख रही है आप ? " पद्मा ने आगे आकर पूछा|
भैरवी ने इशारा कर तुरंत कुछ सैनिको को अपने पास बुलाया|
काफी देर तक वो उन सैनिको को कुछ समझा रही थी| गाँव वालो और बाकी लोगो को कुछ समझ नही आ रहा था|
देखते ही देखते कुछ सैनिक नदी के पानी मे कुद गए|
ये देखकर गाँव वाले भैरवी के पास आये|
"ये सब क्या कर रहे है युवराज्ञी? ये पानी विषाक्त है! अगर ये पानी इनके शरीर मे चला गया तो ये बच नही पायेंगे| " एक आदमी डरकर बोला|
"आप चिंता मत किजीए! ये प्रशिक्षित सैनिक है| इन्हें कुछ नहीं होगा| " भैरवी शांत होकर बोली|
वो सैनिक पानी में कुछ ढूंढ रहे थे|
कुछ देर राह देखने के बाद वो सैनिक तट पर आ गए|
"ये देखिये युवराज्ञी! हमे ये मिला है नदीपात्र की गहरायी मे!" एक सैनिक ने भैरवी के हाथ मे कुछ दिया|
वो कुछ पौधे जैसा था|
"ये..... ये तो विषाक्त पौधो की जडे है|" भैरवी चौंककर बोली| उसकी बात सुनकर सबकी आँखे बडी हो गई|
"ये एक ही नही युवराज्ञी! ऐसी कई है नदी की सतह मे!" वो सैनिक बोला|
"तो ये है विषैले जल का कारण! नदी का पानी शायद इन्ही की वजह से विषाक्त हो गया है|" भैरवी बोली|
"सैनिको! जल्द से जल्द महल से विशेष सैनिक टुकडी बुलाइये और नदी का तल साफ करवाइये| नदी की सतह मे एक भी विषाक्त पौधे की जड दिखनी नही चाहिये| जल्दी किजीए और शायद हम जान गए है कि ये षडयंत्र है किसका!
हमे जंगल की ओर ले चलिये जहापर वो कुआ है!" भैरवी ने गाव वालो से कहा| पर उसके चेहरे पर अलग ही भाव थे|
एक ओर जंगल मे
राजवीर को होश आया| उसने जब आँखे खोली तो अपने आप को एक पेड से बंधा हुआ पाया| उसके साथ उसके दो दोस्त अंगद और विक्रांत भी थे| वो दोनो भी बेहोश थे| उन तीनो को एकसाथ ही बाँधकर रखा गया था|
उसने आसपास देखा तो पास ही मे एक बहुत बडा झरना था और सामने देखा तो कुछ डाकू वही पहरा दे रहे थे|
" अंगद! अंगद! विक्रांत! उठो! उठो!" राजवीर धीरे से उन दोनो को धक्का देते हुए आवाज देकर उठाने लगा|
वो दोनो भी धीरे धीरे होश मे आ गए|
"राजवीर! ये सब?" अंगद जोर से बोल ही रहा था कि राजवीर ने उसे चूप करा दिया|
अंगद एक साहूकार का बेटा था| वो बहुत ही चुलबुला लडका था| बहुत ज्यादा खाने वाला और हमेशा बेवकूफीया करने वाला!
"बेवकूफ! चूप! धीरे बात करो! अगर इन जल्लादो ने सून लिया ना तो काट डालेंगे हम सब को! जरा देखो उस तरफ!" राजवीर उसपर भडकते हुए बोला|
"अंगद और विक्रांत ने सामने देखा तो एक डाकू अपनी तलवार को धार दे रहा था| उसे देखते ही वो डर गए|
"युवराज! लेकिन हम लोग यहा आये कैसे? हम लोग तो महल की ओर जा रहे थे ना!" विक्रांत बोला| वो भी एक साहूकार का ही बेटा था पर वो बहुत ही सीधा साधा और समझदार लडका था|
उसकी बात सुनकर राजवीर ने जरा अपने दिमाग पर जोर डाला| तब उसे याद आया कि जब वो महल की ओर बढ़ रहे थे| तब अचानक जंगल के बीच घना कोहरा छा गया| उन लोगो को सामने कुछ भा नजर नही आ रहा था| वो कोहरा बहुत ही अजीब था| उसकी सुगंध भी बहुत अजीब थी| उस सुगंध से वो तीनो बेहोश होकर घोडे से नीचे गिर पडे थे|
"तुम लोगो को याद है जब हम उस कोहरे मे से गए थे? उस कोहरे की सुगंध बहुत ही ज्यादा अजीब थी| शायद उसी की वजह से हम बेहोश हो गए थे|" राजवीर बोला|
ये सुनते ही उन सबको भी सब याद आ गया|
"हे ईश्वर! अब तो हम इन लुटैरो के चंगुल मे बहुत बूरे फंस गए| अब हम यहा से कैसे निकलेंगे युवराज?" अंगद डर के मारे बोला|
"इन तीनो के पास केवल इतने ही आभूषण मिले है सरदार!" एक लुटैरा अपने सरदार के पास आकर बोला|
वो तलवार को धार देने वाला लुटैरा उनका सरदार था|
"देखू तो!
ये तो बहुत ही मूल्यवान आभूषण है!" सरदार वो गहने देखकर खुश हो गया|
"ये तो हमारे आभूषण है युवराज!" अंगद बहुत बुरा चेहरा बनाकर बोला|
"अरे मेरे बाप! चूप हो जा! इन्होने देख लिया ना तो मुसीबत हो जायेगी| क्यो हम लोगो को भी अपने साथ बकरे की मौत मारना चाहता है?" विक्रांत चिढकर बोला| अंगद चूप हो गया|
"लेकिन अब इन तीनो का क्या करना है सरदार?" उस लुटेरे ने पूछा|
"मार दो इनको! अब ये हमारे किसी काम के नही!" सरदार ने आदेश दिया|
ये सुनते ही उन तीनो की तो आँखे खुली की खुली रह गयी|
"ले!
हो गयी तेरे मन की! अब हमारा क्या होगा युवराज?" विक्रांत ने अंगद को छोड राजवीर से पूछा|
तभी वो लुटेरा तलवार लेकर उन तीनो की ओर बढने लगा|
"देखिये! आपको हमे मारकर क्या मिलेगा? छोड दीजिए हमे! आपने सारे आभूषण तो ले लिये ना! तो अब हमे छोड दीजिए!" अंगद डरके मारे कहने लगा|
पर वो लुटेरा तो पहले अंगद को ही मारने जा रहा था|
ये देख राजवीर को अब बहुत गुस्सा आ रहा था|
वो वहा से छूटने की कोशिश करने लगा^
"खबरदार अगर हमारे मित्रों की तरफ आँख उठाकर भी देखा तो! अगर इनके उपर आँच भी आयी ना तो तुम्हारी खैर नही! तुम जानते नही हम कौन है!" राजवीर गुस्सेमें बोला|
पर उसकी बात सुनकर सब हसने लगे| सारे लुटैरे वहा पर जमा हो गए|
"सुना आपने सरदार ये क्या कह रहा है? ये हमे धमकी दे रहा है! मौत इसके सिर पर खडी है फिर भी ये हमे धमकी दे रहा है! क्यो ना पहले मै तुम्हे ही मार दू?" वो हसते हुए अपने सरदार के ओर देखकर पूछने लगा|
सरदार ने भी हसते हुए हा कह दिया|
अब राजवीर का गुस्सा सातवे आसमान पर था|
"अगर हिम्मत है तो पहले हाथ खोल हमारे! फिर देखते हैं कि कौन किसे मारता है!" राजवीर गुस्से में बोला|
"तू कुछ ज्यादा ही बोल रहा है! तू ऐसे नही मानेगा| पहले तेरा ही काम तमाम करना पडेगा|" ये कहकर उसने गुस्से मे अपनी तलवार उठायी और राजवीर के गर्दन पर वार कर दिया|
अंगद और विक्रांत ने तो डर के मारे अपनी आँखें बंद कर ली|
हर तरफ सन्नाटा छा गया|
अंगद और विक्रांत ने डरते डरते अपनी आँखें खोली| उनकी आँखो से पानी छलक पडा|
जब उन्होने राजवीर की ओर देखा तो वो लोग दंग रह गए|
सब लोगो की आँखे खुली की खुली रह गयी थी|
राजवीर बिल्कुल सही सलामत था| वो अब भी उस लुटेरे की ओर ही देख रहा था| वो भी सुन्न था|
पर वो लुटेरा! उसके दोनो हाथ कट चुके थे!
ऱाजवीर पर वार करने से पहले ही किसी ने उसके दोनो हाथ काट दिये| उसकी तलवार नीचे गिर चुकी थी|
वो दर्द से चींखता नीचे गिर गया|
सब लोगो ने दूसरी ओर देखा, तो दूसरी ओर कोई नकाबपोश था जिसने उसके हाथ काँट दिये थे|
वो युवराज्ञी भैरवी थी|
"आक्रमण!" उसने आदेश दिया उसके आदेश पर सब सैनिको ने लुटेरो पर हमला कर दिया|
सामने खडा दूसरा आदमी भैरवी पर आक्रमण करने आया|
उसने भैरवी पर वार किया पर उसको मारते ही भैरवी ने एक ही वार मे डोरी काट कर उन तीनो को मुक्त कर दिया|
"जाइये यहा से!" वो राजवीर की आँखो मे आँखें डालकर लगभग चिल्लाकर ही बोली|
राजवीर कुछ देर के लिए उसकी गहरी नीली आँखो मे खो गया|
तभी कोई उसपर वार करने आया| भैरवी ने उसे रोका और जोर से चिल्लायी|
"हमने कहा जाइये यहा से! किसी सुरक्षित जगह पर जाइये!"
तब उसकी बात सुनकर अंगद और विक्रांत राजवीर को वहा से दूर ले जाने लगे|
भैरवी और उसके सैनिक उन लुटैरो से लड रहे थे| वो एक के बाद एक को मौत के घाट उतार रहे थे|
अचानक राजवीर रुक गया|
"क्या हुआ युवराज? आप रुक क्यो गए? जल्दी चलिए यहा से!" अंगद बोला|
"उसने मेरी जान बचायी है| मुझे उसकी सहायता करनी होगी|" इतना कहकर वो वापस मुडा और किसी शत्रु को मारकर उसके हाथ से तलवार ले ली| अब वो भी उनकी मदद करने लगा|
"विक्रांत ये युवराज क्या करने जा रहे हैं? रोको इन्हें!" अंगद बोला|
"जो कर रहे हैं, सही कर रहे हैं! उन्होने हमारी जान बचायी है!" इतना कहकर वो भी जंग में कुद पडा|
"ये दोनो पागल हो गए हैं! पर अब अगर मै नही गया तो मै बहुत बडा पागल कहलाउंगा!
चल अंगद बेटा! चढ जा सूली!" अंगद अपने आप से कहने लगा और वो भी उनका साथ देने निकल पडा|
भैरवी उन लुटैरो के सरदार तक पहुंच गयी और उससे लडने लगी|
"हम जानते है! नदी तल मे वो विषाक्त पौधे तुम लोगो ने ही डाले है ताकि गाँव के लोगो को पीने के पानी के लिए जंगल तक आना पडे और तुम लोग उनको लूट सको!" भैरवी बोली|
"पर ये सिद्ध कैसे होगा? अगर मै तुम्हे भी मार दूँ तो किसी को क्या पता चलेगा?
फिर नयी जगह नया पैतरा!" वो हँसकर बोला|
"अब भी समय है! आत्मसमर्पण कर दो! हम तुम्हारी जान बख्श देंगे| अन्यथा राजदरबार मे सबके समक्ष तुम्हे फांसी पर चढा दिया जायेगा|" भैरवी गुस्से मे बोली|
"त्.... त्.... तुम हो कौन....? " उसने हडबडाकर पूछा|
"जिस राज्य की प्रजा के तुम दुख पहुंचा रहे हो ना! उस राज्य की युवराज्ञी और होने वाली महारानी है हम!" ये सुनते ही वो जरा डर गया|
पर वो भैरवी से लडता रहा| भैरवी ने आखिर कर उसे हरा दिया|
वो अपने घुटनो पर बैठ गया| उसके कई साथी मारे गए और कई कैद कर लिये गए|
"इन सबको कैद कर लो!" भैरवी ने आदेश दिया|
राजवीर अब भी उसी की ओर देख रहा था पर नकाब की वजह से उसे उसका चेहरा नजर नही आ रहा था|
पर उसकी आँखें! उसकी आँखों मे कुछ अजीब सा था जो राजवीर को बार बार उसकी ओर खींच रहा था|
भैरवी ने सबको आदेश दिया| अचानक उसकी नजर राजवीर और उसके दोस्तों पर पडी|
उसने उनके आभूषण उठाये और उनके पास गई|
"आप सब ठीक तो है ना?" भैरवी ने पूछा|
राजवीर तो बस उसे ही देखे जा रहा था| वो उसमे खो सा गया था|
"जी! हम ठीक है!" विक्रांत ने राजवीर को चूप खडा देख जवाब दिया|
"ये लिजीए! आपके आभूषण! " भैरवी ने वो अंगद के हाथ मे दिये|
"और हा! आपका बहुत बहुत धन्यवाद! इन लुटेरो को पकडने में आपने हमारी सहायता की उसके लिये!" भैरवी बोली|
"शुक्रिया तो हमे आपका करना चाहिए! आपका बहुत बहुत धन्यवाद! आपने हमारे प्राणों की रक्षा तो की ही अपितु हमारे आभूषण भी हमे लौटा दिये| " अंगद बोला|
पर राजवीर अब भी चूप खडा था| वो बस भैरवी को देखे जा रहा था|
"अच्छा आज्ञा दिजीये|" भैरवी ने विदा ली और वो चली गई|
राजवीर अब भी उसे ही देख रहा था|
"राजवीर! राजवीर! क्या हुआ युवराज?" विक्रांत राजवीर को आवाज दे रहा था पर उसका ध्यान कही और ही था| आखिर कार उसने उसे हाथ लगाकर पूछा|
"क्या हुआ राजवीर?"
"कुछ नही!
वो कौन है? पता नही क्यो उसकी आँखें!उसकी आँखें...." राजवीर बोल रहा था|
" उसकी आँखें क्या राजवीर? " विक्रांत ने पूछा|
" मुझे उसे देखना है| वो आखिर है कौन? मै उसका चेहरा देखना चाहता हूँ| तुम लोग यही रुको|" राजवीर इतना कहकर भैरवी के पीछे गया|
उधर भैरवी ने पद्मा को आदेश दिया की वो गाँव का ओर जाये| वो कुछ समय बाद वही लौट आयेगी और वो खुद झरने की ओर चली गई|
राजवीर भी उसके पीछे पीछे गया|
भैरवी उस झरने के पास जा रही थी| राजवीर भी उसके पीछे ही था|
भैरवी उस झरने के नीचे पानी के तट पर आकर रुक गई|
राजवीर एक पेड के पास खडा होकर उसे देख रहा था|
भैरवी ने पानी में देखा तो उसे अपना प्रतिबिंब नजर आया|
उसने अपना नकाब हटाया और पगडी हटाकर अपने लंबे बाल पीछे की ओर झटके|
इसी के साथ राजवीर को भैरवी का चेहरा नजर आया|
राजवीर उसके सुंदर मुखडे को देखता ही रह गयाट
भैरवी ने गिरते झरने का पानी अपनी हथेली मे लिया और अपने चेहरे पर डाला|
उस झरने के गिरते पानी मे उसे अपना प्रतिबिंब नजर आ रहा था| जब उसने उस ओर हाथ बढाया उसे वहा वीर नजर आने लगा|
" वीर! देखिए हमने कर दिखाया! हमने अपनी प्रजा की मदद की| अगर आप इसी प्रकार हमारे साथ है ना! तो हम कुछ भी कर सकते हैं!" भैरवी हसते हुए बोली|
पर अगले ही पल उसे समझ आ गया की वो उसका भ्रम है|
"मुझे लगता है कि आपके प्रेम मे मै पागल होने लगी हू|"
उसने हसते हुए अपने ही सिर पर हाथ मार लिया|
राजवीर ये सब दूर खडे हो कर देख रहा था|
भैरवी को देखकर उसकी आँखों मे अलग ही चमक आ गई और चेहरे पर मुस्कुराहट!
"युवराज! युवराज आप यहा क्या कर रहे हैं? चलिये ना!हमे विलंब हो रहा है| महाराज आप पर गुस्सा होंगे|" अंगद बोला|
वो दोनो राजवीर के पीछे पीछे वहा आ गये|
"आप यहा क्या कर रहे हैं युवराज?" विक्रांत ने पूछा|
"वो देखो! मैने....... " राजवीर झरने की ओर दिखाने लगा|
पर वहा कोई भी नही था|
"क्या देखे युवराज?" अंगद ने पूछा|
भैरवी को वहा ना पाकर राजवीर बहुत ज्यादा चौंक गया|
वो उस पेड के पीछे से बाहर आया और इधर उधर भागने लगा|
अंगद और विक्रांत भी उसके पीछे पीछे आये|
"राजवीर! क्या हुआ? क्या ढूँढ रहे हो?" विक्रांत पूछ रहा था|
"वो.... वो अभी यही तो थी| कहा चली गई?" राजवीर उसे ढूँढ रहा था|
"वो कौन?"
"वही! जिसने हमारे प्राणों की रक्षा की| वो अभी तो यही थी| कहा चली गई?" राजवीर बता रहा था|
"अच्छा! वो!
शायद वो चली गई होंगी राजवीर और हमे लगता है कि अब हम लोगों को भी चलना चाहिए| काफी देर हो चुकी है| वरना महाराज बेवजह आप पर गुस्सा होंग आप तो उनका स्वभाव जानते ही है ना?" विक्रांत राजवीर को समझाते हुए बोला|
विक्रांत ने राजवीर का हाथ पकडा और उसे ले जाने लगा| पर राजवीर की नजरे अब भी बस भैरवी को ही ढूँढ रही थी|
इस ओर महल मे वीर ने स्वागत की सारी तैयारीयाँ बखूबी पूरी कर ली थी|
जैसे ही महाराज को संदेश मिला की महाराज त्रृतूराज महल मे पधारने वाले है, महाराज चंद्रसेन बहुत ज्यादा खुश हुए|
वे स्वयं उनका स्वागत करने महल के प्रवेशद्वार पर पहुंचे| उनके साथ वीरभद्र और राजगुरू अमात्य भी थे|
तभी महाराज त्रृतूराज अपनी महारानी रागिनी के साथ पधारे| सब ओर उनके नाम की जयजयकार गूँजने लगी|
महाराज त्रृतूराज अपने घोडे से नीचे उतरे| महारानी भी अपनी पालकी से नीचे उतरी|
उनपर पुष्पवर्षा होने लगी|
महाराज त्रृतूराज अपना ये भव्य स्वागत सत्कार देखकर गद्गद हो गए|
आते ही महाराज चंद्रसेन ने उनको गले लगा लिया| काफी लंबे अरसे बाद दोनो दोस्त मिल रहे थे|
सब लोग खुश थे|
महाराज चंद्रसेन समेत सेनापति एवं अमात्य ने भी उनका मन:पूर्वक स्वागत किया|
वे दोनो इस भव्य आदर सत्कार से बहुत ही प्रसन्न थे|
"बहुत ही आनंद हो रहा है इतने लंबे समय बाद आपसे भेट करके! सच मे आज हम बहुत ही प्रसन्न है महाराज!" त्रृतूराज बोले!
"हम भी बहुत प्रसन्न है महाराज!
इनसे मिलीये! ये है हमारे सेनापति!
सेनापति वीरभद्र!" महाराज ने उन्हे वीर से मिलाया|
"अरे हा! बहुत सुना है इनके विषय मे! आपकी वीरता के विषय मे कौन नही जानता! हमे आप पर बहुत गर्व है!" महाराज त्रृतूराज खुश होकर बोले|
"वैसे महाराज! युवराज्ञी कही नजर नही आ रही? हम महारानी और युवराज राजवीर को खास उन्ही से मिलवाने लाये है!" त्रृतूराज बोले|
"महाराज! दरअसल वो राज्य के किसी काम से इस समय महल से बाहर गई है! जल्द ही लौट आयेंगी| वैसे युवराज राजवीर कही नजर नही आ रहे?" राजन ने पूछा|
"जी वो अपने मित्रों के साथ नीलमगढ के सौंदर्य का आस्वाद लेते हुए आ रहे हैं| पहुंचते ही होंगे!" महारानी रागिनी के कहा| तभी उनकी नजर दूर से आते राजवीर पर पडी|
"लिजीए! आ गए हमारे युवराज!" रागिनी ने कहा|
सब लोग राजवीर को देख बहुत खुश हो गए पर अमात्य के चेहरे पर चिंता साफ दिखाई दे रही थी|
राजवीर का व्यक्तित्व संग्रामगढ के महाराज बनने के लिए पूर्णतः अनुकूल था|
आते ही महाराज त्रृतूराज ने उसे सबसे मिलवाया| राजवीर ये भी आते ही महाराज के आशिष लिए|
विक्रांत और अंगद दोनो तो़ की आँखे तो ये भव्य स्वागत देखकर खुली की खुली रह गयी थी|
महाराज ने राजवीर को सेनापति वीरभद्र से भी मिलवाया|
"बहुत प्रसन्नता हुई आपसे मिलकर! बहुत सुना है आपके विषय मे सेनापति!" राजवीर ने कहा|
"हमे भी आपसे मिलकर बेहद प्रसन्नता हुई| अब चलिये और हमे आपके आतिथ्य का अवसर दिजीये|" सेनापति बोले|
महाराज चंद्रसेन ने सबको महल मे अपने अपने कक्ष दिखा दिये| तीन दिन बाद होने वाले समारोह तक उन्हे किसी भी वस्तू की कमी ना हो सेनापति ने ऐसा आयोजन किया था|
उधर युवराज्ञी गाँव मे थी| पर अब गाँव का नजारा कुछ और ही था|
गाँव मे कोई भी व्यक्ति उदास नही था| जो जो विषाक्त पानी पीने से बीमार था उनका इलाज चल रहा था| राजवैद अपने कई सहयोगीयो के साथ वहा पर अपनी सेवा दे रहे थे|
सारे गाँव वाले भैरवी के पास हाथ जोडकर बोले,"आपका बहुत बहुत आभार युवराज्ञी! आपने जो हमारे मरते गाँव मे फिरसे मानो जान फूँक दी! आपका बहुत बहुत आभार!" वो सब लोग घुटनो पर बैठकर भैरवी को धन्यवाद करने लगे|
"अरे ये सब आप लोग क्या कर रहे हैं? आप लोग उठीये!
ये जो कुछ मैने किया, ये सब मेरा कर्तव्य था|
ये गाँव हमारा है और आप लोग भी! तो हमने आप पर कोई अहसान नही किया है|
नदी का पानी अब विषाक्त नही है| सारे विषाक्त पौधे नदी की सतह से हटा दिये गए हैं| तो अब आपको पानी के लिए किसी और जगह जाने की कोई आवश्यकता नही|
अब बस आप सब लोग जल्दी से ठीक हो जाइये और तीन दिन बाद महल मे होने वाले भव्य समारोह में मै युवराज्ञी भैरवी आप सबको स्नेहपूर्ण आमंत्रित करती हू|" भैरवी बोली|
इसी के साथ हर ओर युवराज्ञी की जयजयकार होने लगी|
कुछ समय पश्चात जब स्थिती कुछ ठीक हो गई, भैरवी ने महल की ओर प्रस्थान किया|
रात हो गई थी और भैरवी अब तक नही लौटी थी| इसी कारण वीर बहुत चिंतित था|
तो दूसरी ओर राजवीर अपने कक्ष मे बैठकर उसी युवती (भैरवी) के विषय मे सोच रहा था जिसने उसके प्राण बचाये| उसकी आँखें, उसका वो सुंदर चेहरा बार बार उसके आँखों के सामने आ रहा था|
वो अपने खयालो मे इस कदर खोया था कि उसे समझ ही नही आया की कब विक्रांत और अंगद उसके पास आ गए|
"राजवीर! क्या हुआ? क्या सोच रहे हो?" विक्रांत ने उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा|
उसी के साथ राजवीर होश मे आया|
"कुछ नही विक्रांत! पता नही क्यो जब से उस युवती को देखा है उसका चेहरा मेरे आँखो से सामने से जा ही नही रहा?
वो बहुत सुंदर थी विक्रांत! बहुत ही सुंदर!
उसकी आँखे, उसके बाल, सब मानो पता नहीं क्यो पर मै चाहकर भी उसे भूल नही पा रहा हूँ| मै उससे फिर से मिलना चाहता हूँ|" राजवीर बता रहा था|
"भई मै तो यहा कबसे युवराज्ञी भैरवी को देखने की चाह मे महल में इधर से उधर घूम रहा हूँ!
सुना है कि असीम सौंदर्य की मूर्ति है वो! उनसे सुंदर इस संसार मे कोई नही! उनकी सुंदरता के बहुत चर्चे सुने है! कहा जाता है कि स्वयं माँ गौरी का अवतार है वो!
उनके ही अनुग्रह से युवराज्ञी का जन्म हुआ है| वो स्वयं जीवन है| उनके आसपास होते हुए जख्म भी अपने आप भर जाते है, बिमारीयाँ ठीक हो जाती है| मै तो केवल उन्ही को देखना चाहता हूँ!" अंगद सेब खाते खाते बोल रहा था|
"अंगद तुम भी ना!तुम चूप रहो!
राजवीर! क्या तुमने उससे बात की? क्या उसके विषय मे कुछ जानते हो?" विक्रांत ने पूछा|
"नही विक्रांत!"
"तो तुम उसे ढूँढोगे कैेसे राजवीर?"
"मै तो उसे जी भरकर देख भी नहीं पाया| पर जितनी भी झलक देखी है ना मैने उसकी, उससे मेरा मन विचलित है|.मै उससे मिलना चाहता हू| मै फिरसे उसे देखना चाहता हूँ और तूम देखना मै उसे ढूँढ कर ही रहूगा|
पर.... पर ये विचित्र सी अनुभूति! ये क्या है? मैने पहले कभी ऐसा अनुभव नही किया| ये मेरे साथ क्या हो रहा है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा|" राजवीर बता रहा था|
"युवराज! शायद आपको प्रेम हो गया है?" अंगद राजवीर को चिढाते हुए बोला|
"प्रेम? सदैव सुंदर सुंदर युवतीयो से घिरे रहने वाले हमारे युवराज को प्रेम? असंभव!" विक्रांत हसते हुए बोला|
"शायद इन्हे नंदिनी, अनुराधा, प्रतिज्ञा, कल्पिता, विशाखा, आदियों से भी प्रेम हुआ था ना? " विक्रांत हसते हुए पूछने लगा|
"विक्रांत! ये हसने की बात नहीं है| हमने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया| इनमे से किसी के भी साथ नही! इसीलिए तो हमे इतना अजीब लग रहा है|" राजवीर बहुत परेशान लग रहा था|
"फिर तो ये सच मे बहुत अजीब बात है| कही आप को सच मे प्रेम तो नहीं हो गया?" अंगद जोर जोर से हसने लगा|
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई|
दरवाजे पर महारानी रागिनी थी|
उन्हे देखते ही सब डर गए की कही उन्होने उनकी बाते ना सून ली हो|
" विक्रांत! अंगद! बहुत लंबा सफर तय किया है हमने आप लोग थक गए होंगे! जाइये और अपने कक्ष मे जाकर आराम करीये! कल सुबह मिलेंगे!" महारानी की बातो मे आदेश था|
वो सुनते ही वो दोनो अपने कक्ष मे चले गए|
महारानी ने सारी दासीयो को भी बाहर भेज दिया|
वो राजवीर के पास गई|
"राजवीर! हमने सुना आप लोग क्या बाते कर रहे थे| पर हम आपसे विस्तार मे इस विषय मे जानना चाहते हैं| आप बतायेंगे हमे बेटा? " महारानी ने बडे ही प्यार से पूछा|
राजवीर उनकी बातो से पिघल सा गया क्योंकि वो अपनी माँ से बहुत प्यार करता था|
उसने उन्हें सारा घटनाक्रम बताया| साथ ही अपने मन का हाल भी|
महारानी ने ये सब बडे ही शांति से सुना|
उन्होने राजवीर के कंधे पर हाथ रखा और कहने लगी|
"आप जरा भी चिंता मत करीए राजवीर! हम आपके साथ है हमेशा! आप सब भगवान पर छोड दीजिए| यदि उन्होने आपको उस युवती से एक बार मिलवाया है तो फिरसे मिलाने का योग भी वही बनायेंगे| आपको भगवान पर भरोसा है ना?"
राजवीर ने बस हा मे गर्दन हिला दी|
"आप जरा भी चिंता मत किजीए| हम उस युवती को खोज निकालेंगे| हम भी तो देखे हमारे पुत्र की पसंद!" ये कहकर वो हसने लगी| राजवीर के भी चेहरे पर हसी छा गई|
वो अपनी माँ के गले लग गया|
भैरवी को महल लौटने मे देर हो गई थ
सेनापति वीर तो युवराज्ञी का इंतजार करते करते बैठे बैठे सो गए थे
भैरवी महल लौटते ही सबसे पहले वीर के कमरे मे गई|
पर वो सो गया था|
फिर भैरवी ने उसे ना जगाना ही सही समझ उसने बस एक चादर वीर को ओढा दी और वो जा ही रही थी कि वीर ने पीछे से उसका हाथ पकड लिया और उसे खींचकर अपनी गोद मे बिठा लिया| भैरवी इससे बहुत हडबडा गई|
"कहा जा रही है आप? आप जानती है हम आपका कबसे इंतजार कर रहे थे!" वीर बोला|
"आप तो सो गए थे ना? तो अचानक जाग कैसे गए? " भैरवी ने कहा|
"आपके दिल की आहट सुनकर! जैसे आप जान जाती है! आप ठीक तो है ना? हमे आपकी बहुत चिंता हो रही थी|" वीर ने भैरवी को कसकर गले लगा लिया|
"हम बिल्कुल ठीक है वीर! आप चिंता मत किजीए! आपकी भैरवी बहुत बहादुर है|
आप जानते हैं??? हमने सारे गाँव वालो की सहायता की, सारे लुटैरो को धूल चटा दी और साथ ही तीन राहगीरो को भी बचाया| जब कल सुबह राजदरबार मे सुनवाई होगी, तब आपको हमपर बहुत ज्यादा गर्व होगा| " भैरवी हसते हुए बता रही थी|
"राजदरबार की कोई आवश्यकता नही भैरवी! हमे आप पर शुरू से ही बहुत ज्यादा गर्व है!" वीर ने भैरवी के चेहरे पर से अपना हाथ फेरते हुए कहा|
भैरवी उससे लिपट गई|
फिर रात मे काफी देर तक दोनो बाते करते रहे| बाते करते करते भैरवी को नींद आ गई| पर वीर अब भी उसके मासूम चेहरे की ओर ही देख रहा था| वो मन ही मन भैरवी को पाकर बहुत ज्यादा खुश था| उसने भैरवी को अपनी बाहो मे भर लिया और उसे भी कुछ देर बाद नींद आ गई|
दोनो के चेहरे पर मन हरने वाली तृप्ति नजर आ रही थी|
सुबह आरती की आवाज से राजवीर का आँखे खुली|
भैरवी बहुत मधुर आवाज मे आरती गा रही थी|
राजवीर के पैर अपने आप ही उस आवाज़ की ओर बढ़ते चले गए| वो जैसे ही अपने कमरे से बाहर आया, उसे विक्रांत और अंगद दिखे| वो उनके पास गयी|
" ये कैसी आवाज है? कौन आरती गा रहा है? " राजवीर ने पूछा|
"पता नहीं! "अंगद बोला|
" मैने सुना है कि युवराज्ञी भैरवी रोज प्रात: महल मे आरती करती है! शायद ये वही होंगी! आइये चलकर देखते हैं!" विक्रांत ने कहा|
वो तीनो बाहर मंदीर की ओर निकल पडे|
जैसे ही वो मंदिर के पास आये| उन्हें वहा महल के कई लोग नजर आये| तभी उनकी नजर सामने से आते महाराज त्रृतूराज और महारानी रागिनी के ओर गई|
"माँ! पिताश्री! " राजवीर ने दोनो के चरणस्पर्श किये|
"आप लोग यहा? " राजवीर ने पूछा|
" हमने आरती की आवाज सुनी तो यहा चले आये| आइये! " महारानी बोली|
वो सब लोग मंदिर के अंदर गए|
वहा पहले से सब लोग उपस्थित थे|
महाराज, अमात्य, वीर!
महाराज चंद्रसेन उनको देखकर खुश हो गए| वो सब लोग भी आरती मे सम्मेलित हो गए|
आरती के दौरान राजवीर भैरवी का चेहरा देखने की कोशिश कर रहा था पर वो देख नही पा रहा था|
आरती खत्म होने के बाद जैसे ही भैरवी सब को आरती देने के लिए मुडी, राजवीर के तो होश ही उड गए|
वैसे भी भैरवी आज बहुत ही सुंदर और मनमोहक लग रही थी|
लाल रंग का लेहेंगा आज उसका रूप कुछ ज्यादा ही निखार रहा था| उसके लम्बे काले खुले बाल उसकी कमर को छू रहे थे|
त्रृतूराज, रागिनी, विक्रांत और अंगद भी भैरवी की सुंदरता से मोहित हो गए थे|
राजवीर तो उसे देखता ही रह गया|
वो जिससे मिलने की आस मे था| बिना कुछ किये ही वो उसके सामने आकर खडी थी| उसकी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था|
भैरवी ने महाराज चंद्रसेन वीर और अमात्य को आरती देकर प्रसाद दियाट
वो महाराज त्रृतूराज और महारानी रागिनी के पास आय
"इनसे मिलीये महाराज-महारानी! ये है हमारी पुत्री!नीलमगढ की युवराज्ञी भैरवी और युवराज्ञी! ये है संग्रामगढ के महाराज ऋतुराज और उनकी महारानी रागिनी!" महाराज चंद्रसेन ने उन्हें मिलवाया|
भैरवी ने दोनो को प्रसाद दिया|
"आपसे मिलकर बहुत ज्यादा आनंद हुआ| क्षमा किजीये कल आपके स्वागत के लिए हम उपस्थित ना रह सके| हमे किसी आवश्यक काम से जाना पडा|" भैरवी ने उनसे कहा|
"कोई बात नही पुत्री! हमे भी आपसे मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई|" महाराज त्रृतूराज बोले|
"सच मे! हमने जैसा सुना था आप उससे भी कहीं अधिक सुंदर है और उससे भी बडी बात! इतने असीम सौंदर्य की धनी होते हुए भी आपकी नम्रता मे कोई कमी नहीं है! हमेशा खुश रहो बेटी!" रागिनी ने भैरवी के सिर पर से हाथ फेरते हुए कहा!
तभी अचानक भैरवी का ध्यान राजवीर और उसके दोस्तों पर गया|
"आप? आप लोग?"
" इनसे मिलीये! ये है हमारे पुत्र और संग्रामगढ के युवराज राजवीर....! " महाराज त्रृतूराज भैरवी की बात बीच मे ही काटते हुए बोले|
" ये! आपके पुत्र? "
" क्या हुआ भैरवी? क्या आप जानती है इन्हें?" सेनापति वीर बोले|
" कल हम आप ही लोगो से मिले थे ना?
पिताजी! इन्होने कल हमारी बहुत सहायता की थी उन लुटेरो को पकडने में!"
" तो वो नकाबपोश आप थी?" विक्रांत ने पूछा|
" जी! वो हम ही थे! हम ही अपने सैनिको के साथ वहा गए थे!" भैरवी बोली|
"आप सब ठीक तो है ना?
पिताजी! कल इन्होने हमारी सहायता की थी|"
"हमने? सहायता?
सहायता तो इन्होने की थी हमारी!
सहायता क्या? इन्होने तो हमारे प्राणों की रक्षा की!
क्यो युवराज?" अंगद बोला
सब लोग राजवीर की तरफ देखने लगे|
" जी! विक्रांत और अंगद सच कह रहे है| कल इन्होने हमारे प्राणों की रक्षा की थी| अगर ये ना होती तो कदाचित आज हम आप लोगों के समक्ष जिवीत ना होते|" राजवीर भैरवी की ओर देखते हुए बोला|
"ये आप क्या कह रहे हैं युवराज? आप विस्तार मे बताइये?" महाराज त्रृतूराज ने चिंतित होकर पूछा|
तब राजवीर ने सारा घटनाक्रम बताया|
ये सुनकर सब डर गए|
राजवीर के माता पिता उसके पास आये|
"आप ठीक तो है ना? आपको चोट तो नही आयी? अंगद! विक्रांत! बेटा आप लोग तो ठीक है ना?" रागिनी पूछने लगी|
"माँ! पिताश्री! मै ठीक हू| हम सब ठीक है| आप चिंता मत करीए|" राजवीर बोला|
"पर बेटा आपने ये सब हमे कल ही क्यों नही बता दिया? " महाराज पूछने लगे|
" पिताश्री! आप व्यर्थ ही चिंतित हो जाते इसी कारण मैने नही बताया और वैसे भी मै बिलकुल ठीक हू| युवराज्ञी की बदौलत!" राजवीर भैरवी की ओर देखते हुए बोला|
त्रृतूराज और रागिनी दोनो भैरवी के पास आये|
" हमे तो समझ ही नही आ रहा कि आपका धन्यवाद कैसे करे ! अगर राजवीर को कुछ हो जाता तो हम भी जी नही पाते| आपका बहुत बहुत धन्यवाद!" वो दोनो हाथ जोडकर कहने लगे पर भैरवी ने उनके हाथ पकड लिये|
" अरररे ये आप क्या कर रहे हैं! मै भी तो आप की बेटी जैसी ही हू ना और अपनी बेटी को कोई धन्यवाद नही कहता!" भैरवी ने हसते हुए रागिनी के आँसू पोछे|
"सदा खुश रहो बेटी!"
रागिनी ने प्यार से उसे गले लगा लिया|
राजवीर भैरवी को अपने आसपास पाकर बहुत खुश था|
कुछ देर बाद ही राजदरबार मे सुनवाई हुई| दरबार मे महाराज त्रृतूराज रागिनी और राजवीर भी था|
उन लुटेरो को भैरवी ने कडी सजा सुनाई|
आज राजदरबार मे केवल युवराज्ञी भैरवी की ही जयजयकार थी|
वीर और महाराज चंद्रसेन को आज सच मे भैरवी पर नाज हो रहा था|
राजवीर की तो खुशी का ठिकाना ही नही था| उसकी सुंदरी आज उसके सामने खडी थी| उसकी लोकप्रियता से वो भी बहुत खुश था|
"तुमने सत्य कहा था अंगद! युवराज्ञी भैरवी जैसा सुंदर और लोकप्रिय और कोई नही! ये स्वयं जीवन है! जिन्होंने हमे नया जन्म दिया है|" राजवीर बोल रहा था|
"जिस प्रकार आप युवराज्ञी भैरवी को देख रहे हैं, हमे तो यकीन हो चला है कि आपको उनसे प्रेम होने लगा है| " विक्रांत बोला|
"होने लगा नही! कदाचित हो गया है! " राजवीर भैरवी की ओर देखते हुए बोला|
राजवीर ने महारानी रागिनी के भी बता दिया की वो उससे प्रेम करने लगा है और ये वही युवती है जिसके विषय मे उसने उन्हे बताया था| वो भी ये बात सुनकर बहुत खुश हुई क्योंकि वो भी भैरवी को पसंद करती थी| उन्हे भैरवी बहुत अच्छी लगी| उन्होने राजवीर को विश्वास दिलाया की वो अवश्य ही उसकी पूरी मदद करेंगी और महाराज से बात करके भैरवी के पिता से बात करेंगी उनके विवाह के विषय मे! उन्होंने राजवीर को सुझाया कि वो भैरवी से मित्रता कर ले ताकि भैरवी को भी उसे जानने का मौका मिले और जब वो विवाह प्रस्ताव भेजे तो भैरवी हा कर दे|
भैरवी अपने कमरे मे बैठकर चित्र बना रही थी|
तभी राजवीर वहा आ गया|
" क्या हम अंदर आ सकते है युवराज्ञी? " वो बोला|
" अरे आप यहा? आइये ना? " भैरवी बोली|
" तो आपको चित्रकला मे भी रुची है? " राजवीर ने पूछा|
" बहुत ज्यादा! जब भी समय मिले मै चित्र बना लेती हूँ!" भैरवी ने जवाब दिया|
कुछ देर तक कोई कुछ नही बोल रहा था|
"आपका बहुत बहुत धन्यवाद युवराज्ञी! आपने हमारे प्राणों की रक्षा की! आप ना होती तो कदाचित! " राजवीर ने चुप्पी तोडते हुए कहा|
" हमे लगा था कि आप हमसे कोई महत्वपूर्ण बात करने आये हैं पर आपकी सुई तो सुबह से इसी बात पर अटकी हुई है| आपके पास बात करने के लिए कोई और विषय है या नही? अगर आप इतनी बार धन्यवाद करेंगे ना तो अगली बार मौका मिलने पर हम आपको बचायेंगे नही! आपको अपने ही हाथो से मार देंगे!" भैरवी ये कहकर जोर जोर से हसने लगी|
उसको हसता देखकर ऱाजवीर भी जोर जोर से हसने लगा|
" ठीक है! अगर आपको नही पसंद तो हम आगे से इस विषय पर बात नही करेंगे पर......." राजवीर बोलते बोलते रुक गया|
" पर क्या युवराज?" भैरवी ने पूछा|
"इसके बदले आपको हमारी मित्रता स्वीकार करनी होगी!" राजवीर बोला|
कुछ देर दोनो एक-दूसरे को देखते रहे|
"मंजूर है!" भैरवी ने हसते हुए कहा|
उन दोनो मे उसी दिन से दोस्ती हो गई|
इधर राजवीर भैरवी का दिल जीतने मे लग गया वही दूसरी ओर महल मे भव्य समारोह की तैयारीयाँ चल रही थी| जिसमे वीर भी व्यस्त था| वो उस कारण भैरवी को समय नही दे पा रहा था| भैरवी को वीर से कोई शिकायत नही थी|
पर इस सब के दौरान उसकी और राजवीर की दोस्ती गहरी होने लगी थी|
दो ही दिन मे वो दोनो बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे|
भैरवी तो राजवीर को केवल दोस्त समझ रही थी पर भैरवी के सहवास मे राजवीर का उसके प्रति प्यार बढता ही जा रहा था|