"आप जानते हैं राजवीर? आज हम महाराज से आपके और भैरवी के विषय मे बात करने वाले है! हम उनसे कहेंगे की वो महाराज चंद्रसेन से बात करे और यदि सब ठीक रहा तो जल्द ही भैरवी हमारे महल का गौरव बढायेंगी!" महारानी रागिनी राजवीर के वस्त्र सवारते हुए कह रही थी|
ये सुनते ही वो बहुत खुश हो गया| पिछले कुछ दिनो मे उसके और भैरवी के बीच बहुत ही गहरी मित्रता हो गई थी इसलिए उसे कही ना कही लग रहा था की भैरवी मना नही करेगी|
"सच मे माँ?"
"हा बेटा! हम सत्य कह रहे हैं! बस आप ठीक से तैयार होकर समारोह मे आइये| हम चाहते है कि भैरवी आपको देखती ही रह जाए|" महारानी ने उसके सिर पर से हाथ फेरते हुए कहा| फिर वो चली गई|
राजवीर भी खुशी खुशी तैयार होने लगा|
वो भव्य समारोह आज ही था| आसपास के सभी राज्यों से कई राजा महाराजा समारोह मे सम्मेलित होने वाले थे| इसलिए महल मे भव्य आयोजन किया गया था|
महल का सबसे बडा कक्ष सुसज्जित किया गया था|
महाराज चंद्रसेन और अमात्य दोनो ही आज खुश थे|
वो दोनो सभी अतिथीयो के स्वागत मे लगे हुए थे|
महाराज त्रृतूराज और महारानी रागिनी वहा पहलेसे ही उपस्थित थे|
वीर भी आज भैरवी की दी शाही पोशाक मे किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था| आज कई युवतीयाँ तो सही पर कई राजकुमारीयाँ भी वीर को देखकर घायल हो चुकी थी|
महाराज चंद्रसेन वीर को सबसे मिलवा रहे थे|
तभी राजवीर समारोह मे दाखिल हुआ| आज राजवीर जरीदार वस्त्रों मे बहुत ही सुंदर लग रहा था| आज उसका दमदार व्यक्तित्व देखकर वहा सभी मोहित हो गए थे| हर कोई उसमे संग्रामगढ के भावी महाराज को देख रहा था| राजवीर के वहा दाखिल होते ही वो सबके आकर्षण का केंद्र बन गया! खासकर राजकुमारीयों का!
राजवीर सीधा अपने माता पिता के पास गया| वहापर महाराज चंद्रसेन भी थे|
उसने सबको प्रणाम किया और धीरे से महारानी को उनसे दूर लेकर आया|
"माँ! क्या आपने पिताजी से बात की और उन्होने महाराज से बात की? बताइये ना माँ!" राजवीर पूछ रहा था|
"शांत! शांत राजवीर! पहले आप श्वास तो ले लिजीये| हमने अभी आपके पिताजी से बात नही की है पर आप जरा भी चिंता मत किजीए| हम योग्य समय देखकर उनको मना लेंगे|" महारानी ने राजवीर के माथे पर से हाथ फेरते हुए कहा|
उन्होने अपनी पलको से काजल लेकर राजवीर के कान के पीछे लगा लिया|
"ये आपने क्या किया माँ?"
"काला टीका लगाया है आपको ताकि आपको किसी की नजर ना लगे!" वो बोली|
" हे भोलेनाथ! बस अब सब जैसा मैने सोचा हैं| वैसा ही हो! " अमात्य मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे|
तभी अचानक सब लोग प्रवेशद्वार की ओर देखने लगे|
प्रवेशद्वार से युवराज्ञी भैरवी का आगमन हो रहा था|
जब भैरवी समारोह मे उपस्थित हुई, सबकी आँखे चकाचौंध हो गई|
भैरवी आज बहुत सुंदर लग रही थी|
सुनहरे रंग के चमचम करते कपडे! ऐसा लग रहा था मानो आकाश की सारी चाँदनी उसपर ही बरस गई हो!
सुवर्ण आभूषण उसके रूप मे चार चांद लगा रहे थे!
माथे पर दुपट्टा!
समारोह मे उपस्थित हर व्यक्ति केवल उसी को देख रहा था|
वीर की तो भैरवी को देखकर धडकने बेहद तेज हो गई थी|
वहा पर कई राज्यो को राजकुमार भी उपस्थित थे| वो तो भैरवी की सुंदरता देखकर दंग रह गए थे|
राजवीर की तो नजर ही नही हट रही थी उससे!
भैरवी के आते ही महाराज चंद्रसेन उसके पास गए|
भैरवी ने उनके हाथ मे अपना हाथ दिया| महाराज उसे मंच तक ले ग
मंच पर जाकर महाराज चंद्रसेन सबसे रूबरू होने लगे|
"सबसे पहले तो हम यानि नीलमगढ के महाराज! महाराज चंद्रसेन! आप सबको सादर प्रणाम करते हैं! " उन्होने सबको प्रमाण किया|
"हमारी बिनती का मान रख आप सबका इस समारोह मे उपस्थित होने के लिए बहुत बहुत आभार!
जैसे की आप सब जानते है कि ये समारोह एक खास कारण से आयोजित किया गया है| पर हम आपको बताना चाहते हैं कि इस समारोह की एक नही दो दो खास वजह है|
आप सब कंचनप्रदेश के विषय मे तो जानते ही है! तो यही कंचनप्रदेश नाम का संकट कुछ समय पहले हमारे राज्य पर मंडरा रहा था परंतु हमारे शूर सेनापति वीरभद्र ने केवल अपने कुछ खास चुनिंदा सैनिकों के साथ मिलकर उनको धूल चटा दी और उनका साया तक हमारे राज्य पर पडने नही दिया| ये समारोह उन्ही की वीरता के उपलक्ष्य मे है!
वीर! आइये!" महाराज ने सेनापति वीर की ओर हाथ बढाया|
वीर हँसते हुए ही उनके पास जाकर उनके गले लग गए|
हर तरफ महाराज चंद्रसेन और सेनापति वीरभद्र के नाम की जयजयकार हो रही थी|
भैरवी को तो वीर पर बहुत गर्व हो रहा था| वीर भी बहुत ज्यादा खुश था|
इस सबके दौरान राजवीर की नजर सिर्फ भैरवी की ओर थी|
महाराज ने अपना हाथ उपर उठाकर सबको शांत किया|
"जैसे की हमने कहा था! इस समारोह की एक और खास वजह है जो इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है!" महाराज की इस बात से सब सोच मे पड गए की इस बारे में किसी को कुछ भी पता नही था|
"आज हमे एक अत्यंत आवश्यक घोषणा करनी है|
हम महाराज चंद्रसेन अपनी पुत्री युवराज्ञी भैरवी का विवाह सेनापति वीरभद्र के साथ करने की घोषणा करते हैं! ये विवाह एक माह पश्चात संपन्न होगा और आज इस समारोह मे आप सबकी उपस्थिती मे ही हम मँगनी संपन्न करेंगे|" महाराज जो कहना था कह चुके थे|
ये सुनते ही वीर-भैरवी चौंक गए|
भैरवी तो खुशी के मारे महाराज के गले की लग गयी| वीर भी बहुत खुश हो गया| वो महाराज के पैर छूने लगा पर महाराज ने उसे रोका और उसे भी गले लगा लिया|
पर दूसरी ओर राजवीर के पैरो तले जमीन खिसक गई|
महारानी रागिनी और राजवीर के दोस्त भी सुन्न रह ग पर महाराज त्रृतूराज बाकी सबकी तरह खुश थे क्योंकि उन्हे तो कुछ पता ही नही था|
उधर युवराज्ञी और सेनापति को नाम की जयजयकार से वातावरण गूँज उठा| अंगूठीयाँ लायी गई| उन दोनो ने हसी खुशी एक-दूसरे को अँगूठी पहनायी| उनपर लगातार पुष्पवर्षा हो रही थी|
आज उन दोनो की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था| वीर ने भैरवी को गले लगा लिया| दोनो के चेहरे पर समाधान नजर आ रहा था|
भैरवी को वीर की होते देख राजवीर की आँखो से कब अपने आप आँसू निकलने लगे उसे पता भी नही चला!
रागिनी उसके पास आयी पर वो वहा से चला गया|
रागिनी भी उसके पीछे पीछे गई| उन दोनों को इस तरह जाता देख महाराज त्रृतूराज भी उनके पीछे पीछे गए|
राजवीर सीधे अपने कक्ष मे चला गया| उसने अपनी पगडी, आभूषण, सब निकाल कर फेंक दिया| उसने पूरा कमरा तहसनहस कर दिया|
वो सब चीजे इधर उधर फेंक रहा था और लगातार रोये जा रहा था|
तभी रागिनी वहा आ गई|
भैरवी हर तरफ राजवीर को ढूंढ रही थी पर वो उसे मिल नही रहा था| वीर ने उससे पूछा कि वो किसे ढूँढ रही है तब भैरवी ने उसे बताया की राजवीर को उसने उनके बारे में बताया नही था.इसलिए वो जाकर उसकी प्रतिक्रिया देखना चाहती है| उसके बाद तो वीर भी उसे ढुंढने मे भैरवी की मदद करने लगा|
"राजवीर! राजवीर! रूक जाइए! रुक जाइये बेटा!
हमारी बात तो सुनिये राजवीर!
राजवीर भगवान के लिए रुक जाइये!" रागिनी राजवीर को रोकने की कोशिश कर रही थी|
तभी महाराज त्रृतूराज वहा आ गए|
" ये सब क्या हो रहा है महारानी? राजवीर? " महाराज ने पूछा|
" महाराज! महाराज देखिये ना! राजवीर को रोकिये!" रागिनी महाराज से रोते हुए बोली|
" राजवीर! राजवीर बेटा! रुक जाइये! ये क्या कर रहे हैं आप?" महाराज राजवीर के पास गए और उसे रोक लिया|
"राजवीर! रुक जाइये बेटा! क्या हुआ? हमे तो बताइये!" महाराज बोले|
राजवीर रोते रोते नीचे बैठ गया| रागिनी ने उसके पास जाकर उसे गले लगा लिया|
"क्या गलती थी माँ मेरी? क्या गलती थी? केवल प्रेम ही तो किया था ना मैने! तो क्यो माँ? क्यो?" राजवीर रोये जा रहा था|
महाराज त्रृतूराज भी उसके पास नीचे बैठ गये|
अपने इकलौते बेटे को रोते हुए देखकर उन दोनो का दिल पसीज गया|
महाराज की आँखो मे भी पानी आ गया|
"मुझे लग रहा था कि अब भैरवी मेरे करीब आने लगी है!
फिर ये सब कैसे हो गया माँ? वो किसी और की कैसे हो सकती है? ये सब मेरे साथ ही क्यों माँ? मै भैरवी से बहुत प्रेम करता हूँ माँ! बहुत प्रेम करता हूँ! " राजवीर रो रहा था|
ये सुनकर महाराज त्रृतूराज चौक गए| उनको सारी बात समझ आ गई| उनकी भी आँखों मे भी पानी आ गया|
" ये.... ये..... आप क्या कह रहे हो बेटा?" वो रोते हुए बोले|
"पिताजी!पिताजी मै भैरवी से बहुत प्रेम करता हूँ! मै उसके बिना नही रह सकता| मुझे भैरवी ला दिजीए| मुझे भैरवी ला दिजीए|" वो रोते रोते अपने पिता के गले लग गया|
"मत रोइये बेटा| मत रोइये| हम क्या करे? हम आपको कैसे अपना प्रेम लाकर दे दे?
आपने हमसे ये बात क्यो छिपायी? काश आपने हमे पहले बता दिया होता! हम पहले से जानते थे कि भैरवी और वीर एक दूसरे से प्रेम करते हैं! " महाराज रोते हुए बोले|
उनकी बात से महारानी और राजवीर चौंक गए|
" हाँ बेटा! हमे ये पहले से पता था! अब आप ही बताइये कि हम कैसे आपको भैरवी लाकर दे? वो दोनो एक दूसरे से बहुत प्रेम करते है! आज तक कभी ऐसा नही हुआ कि आपने हमसे कुछ माँगा हो और हम आपको दे ना पाये हो पर ये हम आपको कैसे दे? " वो तीनो रो रहे थे|
तभी अचानक महारानी की नजर दरवाजें पर खडी भैरवी और वीर पर पडी|
"भैरवी!" महारानी की बात सुनकर सब ने उस ओर देखा|
भैरवी रो रही थी|
वो सब सुन चुके थे| ये सब सुनकर उनके पैरो तले जमीन खिसक गई थी|
वो सब लोग उनको देखकर खडे हो गए|
भैरवी राजवीर के पास आयी| उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे| वीर भी उसके पीछे पीछे ही था|
" राजवीर! ये हम क्या सून रहे हैं?
ये.... ये... सब कैसे? हम तो अच्छे दोस्त है ना? तो फिर?"
पर राजवीर कुछ बोल ही नही रहा था|
"हम कुछ पूछ रहे हैं राजवीर!" भैरवी ने इस बार चिल्लाकर पूछा|
"हम प्रेम करते हैं तुमसे! सिर्फ आज ही नही, उसी दिन से जिस दिन तुम हमे पहली बार मिली थी| ये सब दोस्ती वोस्ती हमने आपके पास आने के लिए की थी आपसे|" राजवीर भी बहुत ज़्यादा चिल्लाकर बोला|
"और तुमने क्या किया? धोखा दिया हमे! इस वीर से मँगनी कर ली!
हम प्रेम करते है तुमसे! तुम इसके साथ मँगनी तोड दो| हमारी हो जाओ| हम बहुत खुश रखेंगे तुम्हे! तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करेंगे पर तुम इसके साथ मँगनी तोड दो!" राजवीर भैरवी की बाहे पकडकर कहने लगा|
ये सब देखकर वीर को बहुत गुस्सा आया पर उसने दिखाया नही|
"आप पागल हो गए हैं राजवीर! ऐसा नही हो सकता! हम आपसे प्रेम नही करते! हम वीर से प्रेम करते है और केवल आज ही नहीं! हमेशा से!" भैरवी उसके हाथ झटकते हुए बोली|
पर उसने इस बार उसका हाथ बहुत जोर से पकडा और पीछे मरोड दिया|
"हमने क्या कहा सुनाई नही दिया तुम्हे?हम प्रेम करते हैं तुमसे!" वो गुस्सेमें बोला|
अब वीर का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया और उसने सीधे राजवीर को एक घुसा मार दिया|
उसी के साथ राजवीर भैरवी से अलग हो गया|
राजवीर के माता पिता उसको उठाने उसके पास गए|
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई भैरवी को चोट पहुंचाने की? तुम समझते क्यो नही कि वो तुमसे प्यार नही करती! अब हमारा विवाह होने वाला है तो बेहतर यही होगा कि तुम हमारे बीच ना आओ!" वीर भैरवी को संभालते हुए बहुत ज्यादा गुस्सेमें बोला|
"वीर! भगवान के लिए आप शांत हो जाइये| हम राजवीर की तरफ से माफी माँगते है|" महाराज वीर के आगे हाथ जोडकर कहने लगे|
"ये आप क्या कर रहे हैं पिताजी! आप क्यो माफी माग रहे हैं? हमने कोई गलती नही की है और रही बात बीच मे आने की तो बीच मे मै नही ये आया है! मेरे और भैरवी के!
जो भी हमारे बीच आयेगा उसे मै जिवीत नही छोडुंगा! " राजवीर गुस्से मे उठा और तलवार उठा ली|
उसने तलवार से सीधे वीर पर वार कर दिया| वो तलवार वीर के पेट मे घोपने वाला था|
पर अचानक भैरवी बीच मे आ गई| राजवीर ने तलवार सीधे भैरवी के पेट मे घोप दी|
उसे लगा की वीर घायल हुआ है पर जैसे ही उसने ध्यान से देखा, भैरवी के पेट से खून बह रहा था|
वो नजारा देखते ही राजवीर सुन्न हो गया| उसके माता पिता तो जम से गए थे|
वीर की तो धडकन रुक गई|
राजवीर ने वो तलवार खींची| जैसे ही उसने वो तलवार बाहर निकाली, भैरवी की आँखों से पानी बहने लगा,
उसके मुह से खून बहने लगा और वो नीचे गिर पडी|
वीर ने उसे पकड लिया| राजवीर ने वो तलवार फेंक दी और भैरवी के पास गया| उसके माता पिता भी भैरवी के पास आये|
" भैरवी!भैरवी! नही भैरवी! ये क्यों किया आपने?" वीर रोने लगा|
"भैरवी! भैरवी! नही!मुझे माफ कर दो! " राजवीर भैरवी को हाथ लगाने लगा पर वीर ने उसे धक्का देकर भैरवी से दूर कर दिया|
"सावधान! युवराज राजवीर! हाथ मत लगाना मेरी भैरवी को! हाथ मत लगाना!" वीर गुस्सेमें बोला पर वो फिर से रोने लगा|
राजवीर भी रो रहा था|
"न्...न्....नही.... वीर!" भैरवी ने बडी मुश्किल से कहा| उसने अपना खून से सना हाथ राजवीर की ओर बढाया|
वो देखते ही राजवीर आगे आया और उसने भैरवी का हाथ पकड लिया|
"मुझे माफ कर दो भैरवी! मुझे माफ कर दो!" राजवीर रोने लगा|
" म्.... मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है! वीर आप भी माफ कर दिजीये ना इन्हे...... !" भैरवी कहने लगी|
पर वीर ने राजवीर से मुंह मोड लिया|
"क्या... इतनी सी भी बात.......आह्.....
....नही मानेंगे आप हमारी? " भैरवी कराहते हुए कह रही थी|
वो सुनते ही वीर और जोर से रोने लगा| उसने बस रोते हुए हा मे गर्दन हिला दी| वो देखते ही भैरवी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई|
"हम आपसे बहुत प्रेम करते है!" उसने वीर की ओर देखकर कहा| उसी के साथ उसने अपनी आँखे बंद कर ली|
" नही! नही! नही भैरवी!
नही! उठो! " वीर जोर जोर से चिल्ला कर उसे उठाने लगा पर कोई फायदा नही था|
ये देखकर राजवीर तो सुन्न हो गया|
वीर ने भैरवी को उठाया और रोते रोते ही कमरे से बाहर निकला| उसके पीछे पीछे सब निकले|
वीर भैरवी को राजवैद के पास ले जा रहा था| वहा जाने का रास्ता समारोह के कक्ष से होकर ही था और वैसे भी आज का समारोह इतना बडा था कि राजवैद सहित सब इस समारोह का ही हिस्सा थे|
वो भैरवी को वहा से ले जाने लगा| उसका ध्यान सिर्फ भैरवी पर था|
जैसे ही वो कक्ष मे पहुंचा वो सिर्फ राजवैद के ढूंढने लगा|
सब लोग उनको देखने लगे| किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था| जैसे ही महाराज चंद्रसेन और अमात्य की नजर उनपर पडी उनके तो पैरो तले जमीन ही खिसक गई|
भैरवी को इस हाल मे देखकर वो दंग रह गए|
वीर भागता हुआ राजवैद के पास गया| राजवीर और उसके माता पिता भी उसी के पीछे थे|
महाराज चंद्रसेन और अमात्य भी भागते हुए वहा आये|
"राजवैद जी देखिये ना भैरवी को! इसे क्या हो गया!
मेरी भैरवी! देखिये ना!" वीर रोते हुए भैरवी को अपनी बाहो मे उठाये खडा था और राजवैद से कह रहा था|
राजवैद ने तुरंत ही भैरवी की नब्ज देखी|
"क्या हुआ युवराज्ञी को? इनकी हालत तो बहुत गंभीर प्रतीत होती है| हमे जल्दी से जल्दी इनका उपचार शुरू करना होगा| आप आइये मेरे साथ!" राजवैद ने कहा और वो चल पडे|
वीर भी भैरवी को लेकर उनके पीछे पीछे चल पडा|
सब उसके पीछे पीछे राजवैद के साथ गए|
सारा समारोह अब भंग हो चुका था| वीर भैरवी के जीवन का सबसे सुंदर दिन राजवीर के कारण मातम मे तबदील हो गया था|
राजवैद वीर को अपनी प्रयोगशाला मे लेकर आये|
"इन्हें वहा लेटा दिजीये!" वो बोले|
उन्होने तत्काल अपनी कुछ शिष्याओं को बुलाया और उनको कुछ समझाने लगे|
वीर ने भैरवी को बिस्तर पर सुला दिया|
तब तक सब उसके पीछे पीछे आ गए|
राजवैद कुछ जडी बुटीया तैयार करने मे व्यस्त हो गए|
"आप जरा भी चिंता मत करीये भैरवी! आपको कुछ नही होगा!
मै! आपका वीर आपके साथ हू! आपने कहा था ना कि हम दोनो मिलकर किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं! तो इस मुश्किल को भी हम साथ मिलकर मात दे ही देंगे! " वीर भैरवी का हाथ पकडकर रोने लगा|
"क्या कोई मुझे बतायेगा की मेरी बच्ची को हुआ क्या है?" महाराज चंद्रसेन रोते हुए बोले|
राजवैद कि शिष्याए भैरवी का घाव साफ करने लगी और उसपर दवा लगाने लगी|
राजवीर भी भैरवी की दूसरी ओर जाकर खडा हो गया| वो भैरवी का हाथ अपने हाथ मे लेने वाला ही था कि वीर ने उसे रोक लिया| उसने उसका हाथ पकड लिया और राजवीर को दूर धकेल दिया|
"हाथ मत लगाना उसे! भैरवी ने तुम्हे माफ कर दिया इसका मतलब ये नहीं की मैने भी तुम्हें माफ कर दिया! आज वो जिस हालत मे है ना उसकी वजह तुम हो!
क्या बिगाडा था हमने तुम्हारा? हाँ? जो हमारे जीवन के सबसे खास दिन को इस तरह बरबाद कर दिया तुमने?" वीर रोते हुए कह रहा था|
राजवीर के भी आँखो से आंसू बहने लगे|
महाराज चंद्रसेन वीर को शांत करने लगे और उससे पूरी बात पूछने लगे, तब वीर ने महाराज को पूरा घटनाक्रम बताया|
ये सुनकर महाराज और अमात्य दोनो सुन्न रह गए|
महाराज चंद्रसेन तो रोने लगे| तभी त्रृतूराज आगे आये और उनसे राजवीर की तरफ से हाथ जोडकर माफी मांगने लगे पर महाराज चंद्रसेन ने उन्हे कुछ नही कहा|
राजवैद कोई दवा बनाकर लाये और भैरवी को पिलाने लगे| पर वो दवा पिलाने से पहले ही भैरवी के मुंह से खून निकलने लगा और वो जोर जोर से साँसे लेने लगी|
उसके घाव से भी खून था कि रुकने का नाम नही ले रहा था|
ये सब देखकर वहा खडे हर इंसान की रूह काँप गई|
"भैरवी! भैरवी नही! आप हिम्मत रखिये! सब ठीक हो जायेगा! आप हिम्मत मत हारीये! थोडा और सह लिजीये हमारे ख़ातिर!" वीर भैरवी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहने लगा|
सब राजवैद से पूछ रहे थे कि भैरवी को क्या हुआ!
राजवैद ने सबको बाहर जाने के लिए बोल दिया क्योंकि वो भैरवी पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहे थे| वीर वहा से जाना नही चाहता था पर महाराज चंद्रसेन उसे जबरदस्ती बाहर से आये| भैरवी की हालत उससे देखी नही जा रही थी|
सब लोग कक्ष के बाहर ही इंतजार करने लगे|
बाहर जाने के कुछ देर बाद ही राजवैद की एक शिष्या बाहर आयी|
वीर ने उसे रोका और भैरवी को बारे मे पूछा|
तब उसने बताया कि राजवैद कह रहे थे कि युवराज्ञी का बचाना असंभव प्रतीत हो रहा है|
ये सुनते ही सबके पैरों तले जमीन खिसक गई| राजवीर को तो बहुत बडा झटका लगा| महाराज चंद्रसेन मे जान ही नही रही|
वीर टूट ही गया पर तभी उसकी नजर राजवीर पर पडी और वीर का गुस्सा आपे से बाहर हो गया|
वो राजवीर के पास गया और उसकी गरेबान पकडकर कहने लगा, "अगर मेरी भैरवी को कुछ हो गया ना तो.....
तो मै तुझे जिंदा नही छोडूंगा! तुझे और तेरे राज्य दोनो को आग लगा दूंगा!" महाराज त्रृतूराज और महारानी रागिनी ने उसे रोका|
पर इतना कहकर वीर ने उसे छोड दिया|
ये सब देखकर महाराज त्रृतूराज मन ही मन टूट गए थे|
वो फिर से महाराज चंद्रसेन के पास गए और उनसे राजवीर की तरफ से माफी माँगने लगे| वो महाराज से हाथ जोडकर कहने रहे थे| उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे|
ये देखकर महाराज चंद्रसेन ने उनके हाथ पकड लिये|
"आप माफी मत मांगिए! इस सब मे आपका कोई दोष नहीं किंतु हम आपसे ये बात स्पष्ट रूप से कह देना चाहते हैं कि अगर हमारी पुत्री को कुछ भी हो गया ना तो हम किसी को क्षमा नही कर पायेंगे इसी लिए कृपा कर आप अपने पुत्र को लेकर यहा से चले जाइये! भगवान ना करे की हमारी बेटी को कुछ हो पर अगर ऐसा कुछ हुआ और उस वक्त आपका बेटा हमारे सामने हुआ, तो हम संकोच नही करेंगे उसका सिर धड से अलग करने मे!" महाराज चंद्रसेन ने साफ साफ कह दिया|
उनकी बातो मे सच्चाई थी|
इसीलिए महाराज त्रृतूराज ने वहा से जाना ही उचित समझा| पर राजवीर भैरवी को इस हालत मे छोडकर जाना नही चाहता था| तब महारानी ने उसे अपनी कसम दे दी और वहा से लेकर चली गई|
वो लोग नीलमगढ से उसी समय प्रस्थान कर गए|
पर राजवीर की आँखो मे भैरवी के लिए आँसू और साथ ही वीर और पूरे नीलमगढ के लिए नफरत साफ नजर आ रही थी|
लगातार तीन दिन तक भैरवी का उपचार चलता रहा| तब तक वीर वही कक्ष के बाहर प्रार्थना करते हुए बैठा रहा|
अमात्य ने भैरवी की कुशलता के लिए भव्य पूजा की| वो भी तीन दिनो तक चली|
सारा राज्य, सारी प्रजा भैरवी कि कुशलता कि प्रार्थना कर रही थी और शायद उसी कि बदौलत तीसरे दिन भैरवी को होश आया|
ये सुनकर सबकी जान मे जान आयी| वीर तो सबसे ज्यादा खुश था|
जैसे ही वो उससे मिलने गया, सबसे पहले भैरवी ने राजवीर के बारे मे पूछा| तब वीर और महाराज चंद्रसेन ने उसे समझा बूझाकर सुला दिया|
भैरवी को कुछ दिन लग गए प्रकृती स्थिर होने मे! जब वो ठीक होने लगी| तब उसे राजवीर के बारे मे बताया गया|
पर अब राजवीर नाम का संकट उनके जीवन से टल गया था| भैरवी और वीर दोनो फिरसे साथ थे|
अमात्य के कहे अनुसार विवाह मुहूर्त मे कोई बदलाव नही किया गया| बस वीर के कहने पर विवाह उसी कैलाशधाम पर्बत पर रखा गया| इससे भैरवी बहुत खुश थी|
सारा राज्य उनके विवाह की तैयारीयों में लग गया|
अब वीर का पूरा ध्यान बस भैरवी और उनके विवाह पर था|