पूरे महल और पूरे राज्य मे युवराज्ञी के भव्य स्वयंवर की तैयारीया चल रही थी|
उस पर्बत का भी पुनरुद्धार किया जा रहा था क्योंकि वही पर युवराज्ञी का स्वयंवर आयोजित किया जाने वाला था|
गौरी ने विजय को रुद्र और अर्जुन दोनो को स्वयंवर से दूर रखने की सख्त चेतावनी दे रखी थी|
पर रुद्र तो ठान चुका था कि वो खुद ही इस स्वयंवर मे हिस्सा लेगा|
इधर महाराज-महारानी और राजगुरु की भी बातचीत हो चुकी थी। उन्होंने गौरी के स्वयंवर की पूरी रूपरेखा तैयार कर ली थी। बस वो लोग चाहते थे कि किसी तरह रूद्र भी इस स्वयंवर में हिस्सा ले। राजगुरु ने उनसे कह दिया कि उनको सब कुछ अब नियति पर छोड़ देना चाहिए।
गौरी रुद्र के अलावा किसी के बारे मे सोच भी नही सकता थी पर सिर्फ उसकी जान बचाने के लिए किसी और से शादी करने जा रही थी और रुद्र से दूर होकर वह जीना नहीं चाहती थी इसलिए उसने विजय को भी कसम देकर अपनी बीमारी के बारे में किसी को भी ना बताने के लिए रोके रखा था।
देखते ही देखते एक और दिन भी बीत गया।
अब अगले ही दिन गौरी का स्वयंवर था।
रूद्र किसी को दिखा तो नहीं रहा था पर बहुत ज्यादा चिंता में था। उसे अगले दिन कि बहुत ज्यादा चिंता हो रही थी। हालांकि वह यह भी जानता था कि अर्जुन जरूर कोई ना कोई गलत हरकत जरूर करेगा। इसी सब के बारे में सोचते सोचते हैं वह बाहर से अपने कमरे के अंदर आया और कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। उसने कमरे की लाइट्स ऑन की।
जब उसने सामने देखा तो वह चकित रह गया।
गौरी उसके कमरे में खड़ी थी। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए और हाथों में एक थाली लिए।
गौरी : आप वहां क्यों रुक गए रुद्र? अंदर आइए।
गौरी ने अपने हाथ में उठाया हुआ थाल नीचे रख दिया। रूद्र का हाथ पकड़ा और उसे बेड पर बैठा दिया।
गौरी: यह देखिए मैं आपके लिए क्या लाई हूं! आपका फेवरेट गाजर का हलवा!
गौरी ने थाली के ऊपर से कपड़ा हटाया और उसमें रखा गाजर का हलवा रूद्र को दिया।
रूद्र को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था वह बस गौरी को देखे जा रहा था।
गौरी: क्या हुआ? आप मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो रूद्र? रुकिए मैं आपको अपने हाथों से खिला देती हु ।
गौरी रूद्र को अपने हाथों से हलवा खिलाने लगी लगी।
पर रुद्रा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
रूद्र : कल तुम्हारी शादी किसी और से हो जाएगी और फिर तुम मुझसे कभी नहीं मिल सकोगी इसीलिए यह सब कर रही हो ना?
रूद्र गौरी की आंखों में देखकर बोला। रूद्र की बात सुनकर गौरी ने अपनी नजर नीचे झुका ली।
रुद्र: अगर ऐसा है तो तुम गलत सोच रही हो। अगर तुम्हारी शादी किससे होगी तो वह सिर्फ और सिर्फ मैं हूं!
इसीलिए तुम यह ख्याल अपने दिल और दिमाग से निकाल दो की मैं तुम्हारी शादी किसी और से होने दूंगा और तुम्हें अपने आप से दूर चले जाने दूंगा।
गौरी: देखिए रुद्र! ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं तो यह सब इसलिए कर रही हूं क्योंकि मुझे लगा कि शायद इसके बाद मुझे आपको अपने हाथ का हलवा खिलाने का मौका मिले या ना मिले।
यह कहते कहते गौरी की आंखें नम हो गई पर उसने अपने आंसू अपनी आंखों में ही छुपा लिए।
गौरी: प्लीज रूद्र! खा लीजिए ना! प्लीज!
गौरी बहुत ज्यादा नरमी से बोली। रूद्र गौरी की आंखों मैं पिघल गया और वह गोरी के हाथों से हलवा खाने लगा।
इस सब के दौरान गौरी और रुद्र दोनों ही बहुत ज्यादा भावुक हो गए थे। रूद्र ने सारा हलवा खत्म कर दिया| गौरी ने उसे अपने हाथों से खिलाया था ।
गौरी: अच्छा रूद्र मैं अब चलती हूं।
इतना कहकर गौरी वहां से जाने लगी। पर कभी रूद्र ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया।
रूद्र : तुम इसीलिए मुझसे दूर भाग रही हो ना क्योंकि तुम्हारे स्वयंवर में खतरा है?
यह सुनते ही गौरी की आंखें बड़ी हो गई। उसे लगा कि विजय ने रूद्र को सब बता दिया है शायद।
रुद्र: मैंने महल में लोगों को बातें करते हुए सुना। वह लोग बातें कर रहे थे स्वयंवर प्रतियोगिता बहुत ज्यादा भयानक होने वाली है क्योंकि सारे प्रतियोगी उस राक्षस कैदी के साथ लड़ेंगे। जिसे कुछ साल पहले खुद विजय भैया ने पकड़ा था और वो भी बहुत सारी मशक्कत करने के बाद! उसने तुम्हारे पूरे राज्य में तबाही मचा दी थी।
यही बात है ना गौरी? तुम मुझे इसीलिए यहां से दूर जाने के लिए कह रही थी ना ताकि वह मुझे कोई चोट ना पहुंचा सके?
गौरी रुद्र की बातें सुनकर जरा हड़बड़ा गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या जवाब दें।
गौरी: ऐसा कुछ भी नहीं है। आप जैसा सोच रहे हैं। आपको कोई गलतफहमी हुई है। मुझे देर हो रही है कल मेरा स्वयंवर है। मुझे चलना चाहिए। गुड नाइट।
इतना कहकर गौरी ने अपना हाथ रूद्र से छुड़ा लिया और वहां से जाने लगी और तभी रूद्र उसके सामने आकर खड़ा हो गया।
रूद्र: अगर तुम्हारी जिद है कि तुम मुझे सच नहीं बताओगी तो अब मेरी भी जिद है कि मैं इस स्वयंवर में हिस्सा जरूर लूंगा और तुमसे शादी करूंगा। भले ही इसमें मेरी जान ही क्यों ना चली जाए और अगर तुम मुझसे प्यार करती ही नहीं तो तुम्हें उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा और अगर तुम्हें फर्क पड़ता है तो इसका मतलब तुम मुझसे प्यार करती हो और यह सब जो तुम कर रही हो यह सब नाटक है| सच कह रहा हूं ना मैं?
रूद्र की यह बात सुनकर गौरी एक पल के लिए हड़बड़ा गई पर दूसरे ही पल उसने ऐसा दिखाया जैसे उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।
गौरी: देखिए रूद्र! वैसे तो मुझे इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ता पर मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से किसी की भी जान खतरे में पडे। इसलिए आप इस स्वयंवर में हिस्सा बिल्कुल नहीं लेंगे।
रुद्र: अच्छा अगर तुम्हें फर्क ही नहीं पड़ता तो तुम मुझे यह सब बता ही क्यों रही हो? तुम तो अपनी शादी की तैयारियां करो और मुझे क्या करना है यह मैं खुद देख लूंगा।
गौरी रूद्र को कोई जवाब नहीं दे पाई। इसलिए वह गर्दन झुका कर वहां से चली गई। पर रूद्र ने ठान लिया था कि कल वह गौरी को पाकर ही रहेगा।
अगले दिन नीलम गढ़ की रौनक तो देखते ही बन रही थी। पूरी रियासत में खुशी का माहौल था। राजमहल को दुल्हन की तरह सजाया गया था। कैलाशधाम पर्वत पर स्वयंवर की पूरी तैयारियां कर दी गई थी। हर कोई स्वयंवर की तैयारियों में व्यस्त था। पर विजय और पूजा सुबह से बस रूद्र को ढूंढ रहे थे क्योंकि वह सुबह से कहीं गायब था।
इधर कई सारी दासिया गौरी को तैयार कर रही थी। कोई गौरी का दुपट्टा ठीक कर रही थी तो कोई उसे आभूषण पहना रही थी। एक ने उसके बाल सवारे और उसे दुपट्टा ओढाया|
पर गौरी का मन तो कहीं और ही था। उसे श्रृंगार मैं भी रस नहीं था। उसकी आंखों के सामने उसे अपना प्यार दूर जाता हुआ दिख रहा था|
गौरी तैयार होकर बहुत ज्यादा सुंदर और आकर्षक लग रही थी।
उसका लाल रंग का शादी का जोड़ा , हाथों में लाल रंग की चूड़ियां, माथे पर दुपट्टा। उसके शरीर पर हर तरह के गहने मौजूद थे। गौरी का रूप आज कुछ अलग ही लग रहा था। इस लाल रंग के जोड़े में वह बहुत ज्यादा सुंदर लग रही थी।
शालिनी जी और विवेक जी दोनों गौरी के कमरे में आए|
गौरी को देखते ही शालिनी जी ने उसे काला टीका लगाया और उसे गले से लगा लिया।
शालिनी जी : आप बहुत ज्यादा सुंदर लग रही है बेटा। मैं और विवेक जी हमेशा से चाहते थे कि तुम हमारे घर की बहू बन कर आओ पर तुम्हारी खुशी से बढ़कर हमारे लिए और कुछ भी नहीं है।
विवेक जी : अगर तुम्हें रूद्र से अच्छा लड़का मिलता है तो हमें तुम्हारे किसी और से शादी करने के फैसले से कोई दिक्कत नहीं है । तुम हमेशा से हमारी बेटी थी हो और हमेशा रहोगी| हम तुम्हें बहुत ज्यादा मिस करेंगे बेटा।
विवेक जी के ऐसा कहते हैं गौरी के आंसुओं का बांध टूट गया और वह विवेक जी के सीने से लग कर रोने लगी। यह देखकर शालिनी जी की भी आंखों से आंसू छलक पड़े। गौरी उनके भी गले लगी।
गौरी: मैं भी आप सबको बहुत ज्यादा मिस करूंगी ममा- पापा! आप दोनों की जगह मेरी जिंदगी में और कोई भी नहीं ले सकता। मैं आप दोनों से बहुत ज्यादा प्यार करती हूं।
गौरी ने झुककर दोनों के पैर छुए।
शालिनी जी: हम लोग भी आपसे बहुत ज्यादा प्यार करते हैं बेटा। हमेशा खुश रहिए।
शालिनी जी और विवेक जी ने गौरी के सर पर हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया।
तभी महाराज और महारानी वहां पधारे।
महारानी: हे ईश्वर! कितनी सुंदर लग रही है हमारी बेटी! महाराज देखिए तो! भगवान करे आप को किसी की नजर ना लगे!
उन्होंने भी गौरी की नजर उतारी।
महाराज : नीलाद्री ! बेटा आइए! हमें चलना चाहिए देर हो रही है। आइए!
महाराज के एक हाथ में उनकी शाही तलवार थी और दूसरे हाथ में उन्होंने गौरी का हाथ लिया और वह लोग प्रस्थान के लिए चल दिए।
पूरे रास्ते भर गौरी बस रूद्र को एक नजर देखने के लिए तरस रही थी। उसे रूद्र कहीं भी नहीं दिखाई दिया।
सब लोग महल के प्रवेश द्वार पर इकट्ठा हुए थे। वहा पर विजय और पूजा भी थे।
" भैया रूद्र और अर्जुन दोनों कही दिखाई नहीं दे रहे। कहां है वह दोनों?" गौरी ने धीरे से विजय से पूछा।
पर विजय ने उसे बताया कि वह सुबह से रुद्र को ढूँढ रहा है पर उसे रूद्र कहीं भी नहीं मिला और अर्जुन को भी उसने सुबह से कहीं नहीं देखा था।
यह बात सुनकर गौरी जरा चिंता में आ गई क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि रूद्र और अर्जुन दोनों कोई भी गड़बड़ करें।
तभी महाराज ने विजय और विवेक जी को आगे बुलाया। महाराज विवेक और विजय ने मिलकर गौरी को डोली में बिठाया। गौरी नम आंखों से शालिनी जी और सब को देख रही थी।
सबने कैलाशधाम पर्वत की ओर प्रस्थान किया । विजय ने गौर किया तो राजगुरु भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे वह बाकी सब को रवाना करके राजगुरु की खोज में महल में निकल पड़ा।
तभी उससे राजगुरू हडबडी मे आकर टकरा गए|
विजय : क्या हुआ राजगुरु? आप इतनी हड़बड़ी में कहां जा रहे हैं ? कहां चले गए थे आप?
आपको पता है मैं सुबह से रूद्र को ढूंढ रहा हूं पर वह कहीं भी नहीं मिला और उससे बड़ी चिंता की बात यह है कि सुबह से अर्जुन भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा है ।
गौरी और बाकी सब स्वयंवर के लिए निकल चुके हैं । जैसे ही वह लोग वहां पर पहुंचेंगे स्वयंवर की प्रतियोगिता आरंभ हो जाएगी। मुझे तो बहुत ज्यादा चिंता हो रही है राजगुरु!
राजगुरु : आप शांत हो जाइए राजकुमार! मैं जानता हूं रूद्र कहां पर है।
विजय: क्या? क्या रुद्र आपके साथ है राजगुरु ? कहां पर है वह?
राजगुरु : नहीं! रूद्र मेरे साथ नहीं है! पर मैं जानता हूं कि रूद्र कहां पर है।
मेरे कुछ गुप्तचरो ने मुझे बताया कि कल रात को युवराज्ञी रूद्र से मिलने उनके कमरे में गई थी। जब वह उनसे मिलकर वापस लौटी तो अर्जुन रूद्र के कमरे में गया था और रूद्र तभी से गायब है। मुझे लगा कि अर्जुन ने रूद्र के साथ जरूर कुछ किया है ताकि वह स्वयंवर में हिस्सा न ले सके। इसीलिए मै खुद रुद्र के कमरे में गया था। रूद्र के कमरे में जाकर जब मैंने देखा तो रूद्र कही पर भी नही थे|
मैने जब गौर से सारा कमरा देखा तो एक अलमारी को देखकर मुझे शक हुआ| जब मैने वो अलमारी खोली तो उसमे रुद्र बेहोश पड़े हुए थे और उनको बांधकर रखा गया था। उनके सिर पर चोट लगी हुई थी| हो ना हो यह सब अर्जुन ने ही किया है!
मैने एक सिपाही को भेजा था डॉक्टर को लाने के लिए! वो उनके पास है और उन्हे होश मे लाने की कोशिश कर रहे हैं और रही अर्जुन की बात!
तो जहां तक मैं जानता हूं अर्जुन अब तक तो स्वयंवर में पहुंच भी चुका होगा|
विजय : हमे रुद्र को कुछ भी करके जल्द से जल्द स्वयंवर मे पहुंचाना होगा| उसे जल्दी होश मे लाना होगा|
वो दोनो रुद्र के कमरे की ओर गए|
इधर सब लोग पर्बत पर पहुंचे|
महाराज और विवेक जी दोनो गौरी की डोली के पास आकर खडे हो गए|
वो दोनो गौरी को डोली मे से बाहर लाये|
गौरी के वहा पर कदम रखते ही हर ओर से गौरी की जयजयकार होने लगी| वहा पर बहुत सारी प्रजा उपस्थित थी
" युवराज्ञी नीलाद्रि की जय! युवराज्ञी नीलाद्रि की जय!"
उस जगह की काया ही पलट चुकी थी| सब कुछ बहुत सुंदर लग रहा था|
शिव-शक्ति की मुर्तीयों को सुशोभित किया गया था|
हर जगह फूलों की सजावट थी|
गौरी को वो सब देखते ही कुछ धुंधली धुंधली सी तस्वीरे नजर आने लगी| वो उसकी पिछली ज़िंदगी की यादे थी|
" युवराज्ञी आइये! कृपया अपना स्थान ग्रहण किजीये| हमे प्रतियोगिता आरंभ करनी है|" महाराज की आवाज के साथ गौरी अपने सपने से बाहर आयी|
सब लोगों ने प्रस्थान किया|
इधर राजगुरु और विजय रुद्र के कमरे मे थे| डॉक्टर उसका इलाज कर रहे थे| उसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी|
" डॉक्टर कुछ भी करीये! रुद्र को जल्द से जल्द होश मे लाइये| इनका होश मे आना बहुत जरूरी है|" विजय डॉक्टर से हाथ जोडकर बोला|
" आप चिंता मत करीये राजकुमार! मैने इन्हे इंजेक्शन दे दिया है| ये जल्दी ही होश मे आ जायेंगे|" डॉक्टर बोले|
वो कह ही रहे थे कि तभी रुद्र धीरे धीरे होश मे आने लगा|
ये देखकर विजय और राजगुरु बहुत ज्यादा खुश हो गए|
"रुद्र! रुद्र उठो! भोलेनाथ की कृपा से तुम्हें जल्दी होश आ गया| " विजय उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर बोला|
रुद्र धीरे धीरे उठकर बैठा| अब भी उसके सिर मे हलका सा दर्द था
" आपकी ये दशा कैसे? क्या हुआ था आपको? " राजगुरु ने उससे पूछा|
" कल रात गौरी के जाने के बाद जब मै अपने कमरे मे कुछ कर रहा था तभी किसी ने मेरे सिर पर कुछ बहुत जोर से मारा| उसके बाद मुझे कुछ याद नही है राजगुरु|" रूद्र ने धीरे धीरे याद करके बताया|
" रुद्र जल्दी चलो! हमे जाना होगा वरना तुम गौरी को फिर से खो दोगे| सब लोग स्वयंवर के लिए जा चुके हैं| " विजय बोला|
" क्या?" ये सुनते ही रुद्र के पैरो तले की जमीन खिसक गई|
वो लोग उसी समय वहा से निकल पडे|
इधर सब लोगो ने आगे बढकर अपना अपना स्थान ग्रहण किया|
प्रतियोगिता के लिए सामने ही बहुत बडा मैदान तैयार किया गया था|
गौरी अपनी पलके नीचे झुकाये बैठी रही|
" विजय कहा रह गए बेटा? हमे देर हो रही है!" महाराज ने पूजा से पूछा|
" पिताजी! आप चिंता मत किजीए वो आते ही होंगे!" पूजा बोली|
इधर विवेक, शालिनी और रिया की नजरे भी रुद्र को ढूँढ रही थी पर रेवती गौरी की शादी से खुश थी|
तब तक वहा विजय और राजगुरु आ पहुँचे|
विजय ने अपना स्थान लिया|
"आइये राजगुरु! आप स्वयं प्रतियोगिता का आरंभ करवाइये!" महाराज ने उनसे कहा|
राजगुरु ने प्रतियोगिता आरंभ की|
राजगुरू : सर्वप्रथम आप सबको मेरा सादर प्रणाम!
मै आप सबका यहा उपस्थित होने के लिए युवराज्ञी और संपूर्ण राजपरिवार की ओर से आभार व्यक्त करता हूँ|
अब हम बढते है स्वयंवर प्रतियोगिता का ओर|
सिपाहियों! "
राजगुरु के आदेश करते ही सिपाही लाल कपडे में ढका कुछ बहुत बडा बग्गी जैसा कुछ खिंचते हुए मैदान के बीचोबीच लाये|
राजगुरु के इशारे पर सिपाहियों ने उस लाल कपडे को हटाया|
उसे हटाते ही हर ओर शांति फैल गई|
वहा पर एक बहुत ही बडा लोहे का पिंजरा था और उसमे एक बहुत ही हट्टा कट्टा राक्षस जैसा दिखने वाला इंसान था|
काला रंग, कपडे विचित्र, लंबे बाल, लंबे नाखून!
वो बहुत ज्यादा भयानक दिख रहा था और वो उस पिंजरे से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था| उसके आंखों में बहुत ज्यादा गुस्सा था|
राजगुरु : आप सब तो जानते ही होंगे।
यह वही है जिसको राजकुमार ने हमारे वन से पकड़ा था। कुछ सालों पहले इसने हमारे पूरे राज्य में त्राहिमाम मचा दिया था।
इस स्वयंवर की शर्त यही है कि इस मानवरूपी दैत्य को जो मृत्युदंड देगा वही बनेगा हमारी युवराज्ञी का वर और इस साम्राज्य का महाराज!
यह सुनते ही वहां बैठे सारे राजकुमारों के पसीने छूट गए क्योंकि वह बहुत ही शक्तिशाली था।
मैं यहां बैठे हैं सारे राजकुमारों से निवेदन करता हूं कि आप में से जो भी इस प्रतियोगिता के लिए इच्छुक है कृपा कर आगे आए और इसका सामना कर युवराज्ञी का वरन करें!
राजगुरु की बात सुनकर सारे राजकुमारों में आपस में अजीब से चर्चा होने लगी| कोई भी सामने नहीं आ रहा था।
राजगुरु: क्या बात है? क्या कोई आपत्ति है? आप लोगों में से जो कोई भी इच्छुक होगा वह आगे आकर इस कैदी को मृत्युदंड दे।
राजगुरु की बात सुनकर सारे राजकुमारों का एक प्रतिनिधि उठकर खड़ा हुआ।
"राजगुरु क्षमा प्रार्थी हूं किंतु हम में से किसी को यह नहीं पता था कि स्वयंवर की प्रतियोगिता इस प्रकार होने वाली है। यह कोई पुरानी सदी नहीं है जिसमें किसी राक्षस को मारकर राजकुमारी का वरन किया जाए!
इस मानव रूपी राक्षस से लड़ना मतलब अपने ही हाथों से अपना गला घोट देना है|
इसीलिए हम सब इसी वक्त यहां से जा रहे हैं। हम में से कोई भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेना चाहता।"
उसकी यह बात सुनते ही सब के पैरों तले जमीन खिसक गई।
सब के बाद समझाने के बावजूद भी उनमें से कोई भी राजकुमार वहां पर नहीं रुका और सब लोग वहां से चले गए।
" अब क्या होगा महाराज? यहां पर तो कोई भी राजकुमार उपस्थित नहीं है तो राजकुमारी का स्वयंवर किस प्रकार संपन्न होगा?" राजगुरु ने बहुत ज्यादा चिंतित होकर महाराज से कहा।
सब लोग बहुत ज्यादा चिंता में पड़ गए थे। गौरी को भी यह बात बुरी लगी थी
किसी को भी समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे करे तो करे क्या!
" मैं लूंगा इस स्वयंवर में हिस्सा! मैं लडूंगा इससे!" किसी की आवाज से सारा माहौल गूंज उठा|
वह आवाज़ अर्जुन की थी।
अर्जुन को वहां देखकर सब लोग चौक गए। गौरी को तो बहुत बड़ा झटका लगा था। उसके मना करने के बावजूद भी अर्जुन उस स्वयंवर में हिस्सा लेने जा रहा था।
" मैं ले लड़ूंगा इससे और गौरी से शादी भी मैं ही करूंगा।" अर्जुन की आवाज में बहुत ज्यादा पजेशन था और उसकी आंखों में गौरी को पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा भी दिखाई दे रहा था।
" राजगुरु यह सब क्या हो रहा है? क्या यह जो कुछ हो रहा है हमें होने देना चाहिए?" महाराज ने राजगुरु से पूछा|
" महाराज! आप चिंता मत कीजिए। भोलेनाथ जो भी करेंगे हम सबके भले के लिए ही होगा। आप केवल अनुमति दे दीजिए।" राजगुरु की बात महाराज ने मान ली और अर्जुन को लड़ने की अनुमति दे दी।
गौरी को यह बात पसंद नहीं आई। वह नहीं चाहती थी की अर्जुन स्वयंवर में हिस्सा ले पर वह कुछ कर भी नहीं सकती थी|
उस कैदी का पिंजरा खोल दिया गया|
वह बहुत भयानक आक्रोश करता हुआ पिंजरे से बाहर निकला। इतने सालों का गुस्सा वह शायद आज एक साथ अर्जुन पर उतारने वाला था। पर अर्जुन भी पूरी तरह से तैयार था उसको मार कर गौरी से शादी करने के लिए!
जैसे ही युद्ध शुरू हुआ गौरी ने अपनी माला अपने हाथ में कस कर पकड़ ली और अपनी आंखें बंद कर ली।
इस ओर अर्जुन राक्षस पर टूट पड़ा। उन दोनों में बहुत ज्यादा घमासान होने लगा। वह कैदी अर्जुन पर बहुत ज्यादा भारी पड़ रहा था। पर अर्जुन भी हार मानने वालों में से नहीं था| वह भी उसे बहुत ज्यादा मारा था। पर इस सब में अर्जुन को बहुत ज्यादा चोट लग गई थी। उस दैत्य का इतने साल का गुस्सा आज अर्जुन पर फूट रहा था। उस ने अर्जुन को बहुत ज्यादा मारा। अर्जुन लहूलुहान होकर जमीन पर गिर पड़ा।
जैसे-जैसे लड़ाई आगे बढ़ रही थी सबकी सांसे तेज हो गई थी।
अर्जुन लहुलूहान होकर जमीन पर गिर पड़ा था।
उस कैदी ने पास में ही पड़ा बहुत बड़ा पत्थर उठाया और अर्जुन की ओर बढ़ने लगा। वो अर्जुन के पास आकर रुका। अर्जुन को लगा कि अब उसकी जान जाने वाली है पर वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था क्योंकि वह बहुत ज्यादा घायल हो चुका था।
वो पत्थर उठाकर अर्जुन के ऊपर फेंकने के लिए आगे बढ़ा। सब ने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर ली। सबकी सांसें थम गई थी।
पर तभी गौरी को कुछ अजीब सा अहसास हुआ और उसने अपनी आंखें खोली।
जब सबने मैदान में देखा तो अर्जुन और उस कैदी के बीच रूद्र आकर खड़ा था। उसने अपने हाथों से उस कैदी को रोक रखा था।
अर्जुन ने जब रूद्र को देखा तो उसकी भी आंखें बड़ी हो गई थी।
यह नजारा देखकर सब चौक गए थे। पर विजय और राजगुरु दोनों के चेहरों पर खुशी साफ नजर आ रही थी। महाराज और महारानी भी खुश थे।
"मैं जानती थी कि रुद्र गौरी को इतनी आसानी से अपने आप से अलग नहीं होने देगा।" शालिनी जी बोली।
उनकी बात सुनकर विवेक जी और रिया दोनों ही खुश हो गए। पर रेवती का चेहरा देखने लायक हो गया था।
रूद्र ने अपनी ताकत से उस कैदी के हाथ से उस पत्थर को दूर फेंक दिया| वो भी उस पत्थर के साथ दूर जाकर गिरा।
अब रुद्र उस कैदी के साथ लड़ने लगा। रूद्र ने अपनी ताकत का अद्भुत प्रदर्शन किया। उसने कुछ ही वार में उस कैदी को ढेर कर दिया।
पर इस सब के दौरान गौरी के आंखों के सामने कुछ नजारे गुजरने लगे। शायद यह सब उसे वीर का शौर्य याद दिला रहा था।
रुद्र ने अपनी ताकत के साथ-साथ अपने दिमाग का भी इस्तेमाल कर के इस प्रतियोगिता को जीत लिया। उस कैदी को उसने मार गिराया।
यह देख कर सब लोग बहुत ज्यादा खुश हो गए। गौरी भी यह सब देखकर बहुत ज्यादा अचंभित थी। जिस बात से डर कर वह रूद्र को इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेने देना चाहती थी रूद्र ने वही बात कर दिखायी|
"रूद्र ने उस कैदी को मार गिराया। यानी कि रुद्र ने ये प्रतियोगिता जीत ली है और इसका अर्थ यही है कि हमारी बेटी के लिए योग्य वर रूद्र ही है।
हम हमारी बेटी और इस राज्य की युवराज्ञी नीलाद्री का विवाह रूद्र के साथ करने की घोषणा करते हैं।" महाराज ने बहुत ज्यादा खुश होकर सब को संबोधित किया।
गौरी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे। सब लोग उसके लिए बहुत ज्यादा खुश थे।
वो खुश होकर रूद्र की ओर जा ही रही थी कि तभी अर्जुन उठ खड़ा हुआ।
" नहीं! जब तक मैं जिंदा हूं ऐसा कभी नहीं हो सकता| गौरी मेरी थी, मेरी है और हमेशा मेरी ही रहेगी| सिर्फ और सिर्फ मेरी|
मैं हम दोनों के बीच कभी भी किसी को नहीं आने दूंगा। पहले भी तुमने गौरी को मुझसे छीन लिया था.ट पर इस बार नहीं! इस बार मैं तुम्हें फिर से ऐसा नहीं करने दूंगा|
गौरी से शादी करने से पहले तुम्हें मुझसे होकर गुजरना होगा क्योंकि जब तक मैं जिंदा हूं मैं गौरी को अपने आप से दूर नहीं होने दूंगा। भले ही इसके लिए मुझे फिर से तुम्हारी जान क्यों ना लेनी पड़े।"
अर्जुन बहुत ज्यादा गुस्से में चिल्ला चिल्ला कर कहने लगा।
उसे तो रूद्र को उसकी जान बचाने के लिए शुक्रिया कहना चाहिए था पर वो फिर से वही गलती दोहराने चला था जो उसने सदियों पहले की थी|
गौरी उनकी बातें सुनकर सहम गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह दोनों ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं।
वहां मौजूद हर इंसान को पता चल गया था कि अर्जुन ऐसी बातें क्यों कर रहा है! क्योंकि उसे भी अपना पिछला जन्म याद आ चुका था!
अर्जुन ने वहीं पर खड़े एक सिपाही की तलवार छीन ली और रूद्र पर हमला कर दिया। रूद्र उससे बचने लगा।
इस सबके बीच रूद्र ने भी एक सिपाही के हाथ से तलवार ले ली और उससे लड़ने लगा।
"तुम्हें मेरी जान नहीं बचानी चाहिए थी रुद्र!
ये करके तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी।" अर्जुन बोला|
"मैं तुमसे फिर एक बार कह रहा हूं अर्जुन!
ये सब यहीं पर रोक दो! फिर से वही गलती मत करो जो तुमने पहले की थी!
मैं और गौरी दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं।
वो मुझसे प्यार करती है तुमसे नहीं।" रूद्र उसे समझाने लगा|
" मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं उससे प्यार करता हूं और यही हम दोनों के लिए काफी है।" अर्जुन बोला|
वो रूद्र पर लगातार वार किए जा रहा था। दोनों तलवार से लड़ रहे थे।
यह सब देख कर गौरी को कुछ तो धुंधला धुंधला याद आ रहा था। रूद्र को इस प्रकार तलवार से लड़ता देख गौरी को वीर के तलवार प्रशिक्षण की याद आ रही थी।
उसकी आंखों के सामने जो चित्र धुंधले थे वह अब कुछ हद तक साफ होने लगे थे। वह बस दंग होकर उनकी तरफ देख रही थी|
अर्जुन और रूद्र दोनों को लड़ता देख गौरी को वही दिन याद आया जिस दिन सेनापति वीरभद्र और युवराज राजवीर आमने-सामने थे। उस दिन भी राजवीर वीर पर उसकी जान लेने के मंतव्य से हमला कर रहा था। इसी जगह पर! इसी तरह!
इसी प्रकार एक-एक करके गौरी को सब याद आने लगा।
तभी अर्जुन ने रूद्र पर एक जोरदार वार किया जिससे रूद्र की बाह पर गहरा जख्म हो गया। उस से खून बहने लगा।
" वीर!!!"
गौरी बहुत जोर से चिल्लाई।
गौरी के मुंह से वीर सुनते ही रूद्र बहुत ज्यादा चौक गया। वहां खड़ा हर इंसान चकित था। गौरी की आंखों से आंसू बह रहे थे। रूद्र समझ गया कि गौरी को सब कुछ याद आ गया है। रूद्र को चोट लगी थी फिर भी उसकी आंखों में अजीब सी चमक आ गई।
पर ये सब देखकर अर्जुन को बहुत ज्यादा गुस्सा आ गया और रूद्र का ध्यान भटका हुआ देखकर अर्जुन ने तलवार से रूद्र पर एक और वार कर दिया जो सीधे रूद्र के सीने पर लगा।
" वीर!!! " गौरी बहुत जोर से चिल्लाई।
रूद्र को लहूलुहान देखकर सब के पैरों तले की जमीन खिसक गई। रूद्र को बहुत गहरी चोट आई थी । वो जमीन पर लहूलुहान होकर गिर पड़ा।
सब लोग अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए।
गौरी रोते-रोते रूद्र की तरफ भागी। उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। उसके चेहरे से रूद्र के लिए उसकी तडप साफ देखी जा रही थी।
गौरी दौड़ते हुए बिना कुछ सोचे समझे रूद्र की तरफ आ रही थी। उसका दुपट्टा भी उसके सिर से सरक कर जमीन पर नीचे गिर गया| वोरुद्र के पास पहुंची।
उसने रुद्र का सिर अपनी गोद में ले लिया।
"वीर! वीर! वीर उठीये ना!
ये.... ये.... कितना खून बह रहा है!
महाराज! जल्दी से कोई डॉक्टर को बुलाइये!" गौरी जोर जोर से चिल्ला रही थी|
ये देखकर अर्जुन गुस्से से आगबबूला हो गया|
उसने गुस्से मे गौरी का हाथ पकडा और उसे जबरदस्ती उठाकर कहने लगा, " गौरी! गौरी!
तुम ये क्या कर रही हो?
तुम्हें इससे कोई फर्क नही पडना चाहिए!
तुम मुझसे प्यार करती हो! मेरी तरफ देखो! मेरी तरफ देखो गौरी!"
अर्जुन उसका हाथ पकडकर कह रहा था पर गौरी का सारा ध्यान रुद्र पर था|
जब गौरी ने उसकी तरफ देखा तब अर्जुन ने अचानक से रूद्र के घाव पर पैर रख दिया| इसी के साथ रुद्र बहुत ज्यादा तडप उठा| उसको बहुत ज्यादा दर्द हुआ|
उसकी चींख से सारा माहौल काँप गया|
विजय ने सिपाहियों को कुछ इशारा किया और वो भी आगे बढ़ने लगा पर अर्जुन ने वो सब देख लिया|
" रुक जाओ! सब लोग ध्यान से सुन लो!
अगर किसी ने भी हमारे बीच आने की कोशिश भी की तो ये तलवार इसके सीने के आरपार कर दूंगा| " अर्जुन ने एक हाथ मे गौरी को पकड रखा था और दूसरे हाथ से तलवार रुद्र के सीने पर रखकर बोला|
"नहीं! नहीं रुक जाओ।
भैया! भैया आप वहीं रुक जाइए।
कोई भी आगे नहीं आएगा । भैया प्लीज!" गौरी जोर से चिल्ला कर बोली।
गौरी की बात सुनकर वह सब रुक गए। पर गौरी की तरफ देखकर अर्जुन को बहुत अजीब लगा।
" देखो अर्जुन! प्लीज रूद्र को छोड़ दो। आप यह सब क्या कर रहे हो? आप तो ऐसे नहीं थे।" गौरी रोते हुए अर्जुन से बोली।
" मैं शुरुआत से ऐसा ही हूं गौरी!
तुम नहीं जानती मैंने तुम्हारा कितने लंबे समय तक इंतजार किया है और अब मैं इंतजार जाया नहीं जाने दे सकता।
पहले भी इसने तुम्हें मुझ से अलग कर दिया था। पर मैं इस बार ऐसा नहीं होने दूंगा।
मै इसे इस बार ऐसा नहीं करने दूंगा! " अर्जुन बहुत ज्यादा गुस्से में बोला
" अर्जुन मेरी बात मानिए! प्लीज रूद्र को छोड़ दीजिए। आप यह सब क्यों कर रहे हैं? आपके आगे हाथ जोड़ती हूं पर प्लीज रूद्र को छोड़ दीजिए। " गौरी अर्जुन के आगे हाथ जोड़कर बोली।
" इससे तो मेरा बहुत पुराना हिसाब बाकी है और आज मैं वो चुकता करके रहूंगा| वो भी इसे मार कर! उसके बाद हम दोनों शादी कर लेंगे।" अर्जुन बोला|
यह सुनते ही गौरी गुस्से से आगबबूला हो गई। उसकी आंखों में खून उतर आया। उसने अर्जुन का हाथ गुस्से में झटक दिया और अर्जुन को एक जोरदार तमाचा जड़ दिया।
सब लोग इसे बहुत ज्यादा चौक गए।
" क्या कहा तुमने? रूद्र को मारोगे तुम? रूद्र को मारोगे?
तो ठीक है हाथ लगाकर दिखाओ इन्हें!
अब तक तुमने मेरा प्यार देखा है अर्जुन! पर तुमने मेरा गुस्सा नहीं देखा!
तुमने पहले भी हमारी खुशहाल जिंदगी में जहर घोल दिया था। मेरा हंसता खेलता परिवार तुमने बरबाद कर दिया था।
जिसे मैंने अपनी जान से बढ़कर प्यार किया उस वीर को तुमने मुझसे हमेशा के लिए छीन लिया था।
शायद मैं तुम्हें इस सब के लिए माफ भी कर देती पर तुमने रूद्र की जान लेने की बात करके बहुत गलत किया अर्जुन!
अब मैं खड़ी हूं तुम्हारे और रूद्र के बीच!
अगर तुम्हें मुझे पाना है तो तुम्हें रूद्र को जान से मारना होगा और अगर तुम्हें रूद्र को मारना है तो तुम्हें मेरी लाश पर से गुजरना होगा! अगर है हिम्मत तो मुझे मार कर रूद्र तक पहुंचो!"
गौरी ने अपनी बात खत्म की और रूद्र के पास जाकर उसे उठाने लगी।
गौरी : आप ठीक तो है ना?
रुद्र : मैं ठीक हूं! तुम्हें सब याद आ गया?
इतना कहकर रूद्र गौरी की तरफ देख कर मुस्कुराने लगा और उसने गौरी को कसकर गले से लगा लिया।
गौरी : हां मुझे सब याद आ गया है! मुझे सब याद आ गया है वीर! आप मेरे वीर हो और मैं आपकी भैरवी!
यह सब देखकर अर्जुन बहुत ज्यादा जोर से चिल्ला उठा।
सब लोग उसकी तरफ देखने लगे।
" आह्ह्ह्ह! मैं नहीं चाहता था कि इतिहास अपने आप को फिर से दोहराए। मैं नहीं चाहता था कि जो कुछ सदियों पहले हुआ था वो सब इस बार भी हो पर तुमने मेरे सामने कोई रास्ता नहीं छोड़ा।
अगर तुम मेरी नहीं हो सकती तो तुम किसी की नहीं हो सकती। इसीलिए तुम्हें मरना होगा गौरी!"
कहकर अर्जुन तलवार लिये तेजी से गौरी की तरफ दौडा और उसने गौरी के पेट में तलवार घोप दी|
एक पल के लिए सब की सांसे रुक गई थी। गौरी ने भी डर के मारे अपनी आंखें बंद कर ली थी।
पर जब खुद को जिंदा पाकर गौरी ने अपनी आंखें खोली तो उसने देखा कि रूद्र ने अर्जुन की तलवार अपने हाथों में कसकर पकड़ रखी थी।
वो तलवार गौरी के पेट के बहुत करीब थी। रूद्र के हाथ से खून की बूंदे जमीन पर गिर रही थी पर फिर भी रूद्र ने वो तलवार नहीं छोड़ी। यह देख कर सब की जान में जान आई। रूद्र ने गौरी की जान बचाई थी पर यह देख कर अर्जुन का गुस्सा और बढ़ गया।
रूद्र अर्जुन की तलवार पकड़े हुए उठा। रूद्र ने उसकी तलवार इस हद तक कसकर पकड़ी थी कि कुछ ही पल में उसके दो टुकड़े हो गए। ये देखकर अर्जुन चौक गया।
" तुम्हें क्या लगा? तुम इतनी आसानी से हम दोनों को फिर से अलग कर दोगे और हम कुछ नहीं कर पाएंगे?
नहीं अर्जुन!
इस बार हम ऐसा नहीं होने देंगे! मैं ऐसा नहीं होने दूंगा!
मैंने कहा था ना तुमसे तुम्हारी मौत भगवान ने मेरे हाथों लिखी है!
आज यह बात में तुम्हें सच करके दिखाऊंगा क्योंकि मैं सब कुछ सहन कर सकता हूं। तुम मेरी जान ही क्यों ना ले लो मैं वह भी सहन कर सकता हूं पर जब बात गौरी पर आती है तो अपने नाम के मुताबिक में रुद्र हो जाता हूं।" रुद्र बहुत ज्यादा गुस्से में आ गया|
उसने अर्जुन के हाथ से वो तलवार खींच कर फेक दी। वो अर्जुन से फिर एक बार भिड़ गया पर इस बार ज्यादा जोश और ज्यादा ताकत के साथ क्योंकि शायद इस बार गौरी का प्यार उसके साथ था इसलिए!
दोनों ही एक दूसरे से लड़ रहे थे। दोनों एक दूसरे पर लगातार वार पर वार किए जा रहे थे। लड़ते लड़ते ही दोनों शिव-शक्ति की प्रतिमाओं के पास पहुंचे। दोनों में बहुत ज्यादा घमासान हुआ। इस सब के दौरान दोनों ही लगातार उन प्रतिमाओं के पैरों पर टकरा रहे थे जिस वजह से वह प्राचीन शिल्प हिलने लगे।
आखिरकार रूद्र ने अर्जुन को बहुत मारा पर अर्जुन ने इस बार भी दगा करके रूद्र की आंखों में मिट्टी फेंक दी और चाल से उसको बहुत मारा। रूद्र बेहाल होकर जमीन पर गिर पड़ा।
रूद्र को बेहाल नीचे पड़ा देखकर गौरी दौड़ते हुए उसके पास जाने लगी पर अर्जुन ने कसकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे रोक लिया। रूद्र उठने की कोशिश कर रहा था पर उसमें अब ताकत नहीं बची थी।
"कहां जा रही हो भैरवी? वो तो हार चुका।
उसके पास जाकर क्या करोगी? मैं जीत चुका हूं फिर एक बार!
क्या अभी भी तुम मेरे साथ नहीं जाना चाहती?" अर्जुन बोला|
" छोड़ो मेरा हाथ! मुझे रुद्र के पास जाना है।" इतना कहकर गौरी ने अर्जुन का हाथ झटक दिया और रूद्र की ओर भागी।
पर अर्जुन को इस बार इतना गुस्सा आया कि उसने गौरी के बाल पकड़ लिए और उसे पीछे की तरफ खींचा।
"मुझे लगता है तुम इस तरह नहीं मानोगी। मुझे तुमसे शादी जबरदस्ती करनी पड़ेगी और यही सजा तुम्हारे लिए मौत से भी ज्यादा बत्तर होगी। यही सही रहेगा।
मैं तुमसे अभी इसी वक्त इसकी आंखों के सामने शादी करूंगा।" अर्जुन यह सब कह ही रहा था कि गौरी कुछ तो देख कर बहुत ज्यादा डर गई और उसने अपनी पूरी ताकत के साथ खुद को अर्जुन से छुड़ाकर अर्जुन को वहां से बहुत ज्यादा दूर धकेल दिया|
इसी के साथ अर्जुन दूर जाकर गिरा। ऊपर से महादेव और पार्वती की भव्य मूर्ति खंडित होकर जमीन पर नीचे गिर पड़ी। जिसके मलबे के नीचे गौरी दब गई। गौरी ने अर्जुन की जान बचाई। जब तक किसी को कुछ समझ में आता गौरी मलबे के नीचे दब चुकी थी।
अर्जुन को समझ में आ गया कि गौरी ने देख लिया था कि उसके ऊपर वह मूर्तियां गिरने वाली है इसलिए उसने अपनी जान की परवाह ना करते हुए उसकी जान बचाई। ये प्रतिमा बस उसी जगह गिरी थी जहां पर अर्जुन खड़ा था क्योंकि रुद्र वहां से थोड़ी दूरी पर गिरा हुआ था।
यह सब देख कर अर्जुन की आंखों से आंसू बहने लगे|