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माँ

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कुपंथी औलादआज के दौर में पुत्र माता पिता को, सदा दे रहे गालियां घात की।वो नहीं जानते नाज से थे पले, मन्नतों से हुए गर्भ से मातु की।ढा रहे वो सितम और करते जुलममारते मातु को और धिक्कारते।डांट फटकार कर एक हैवान बनवृद्ध माँ बाप को घर से निकालते।नौ महीने तुझे गर्भ में माँ रखी, उंगली उसकी पकड़ तू चला हाँथ

छोटे तो सब अच्छा था बड़े होकर जैसे भूल हो गईपहले खेलते थे मिट्टी से जनाब लेकिन अब तो जिंदगी ही धूल हो गई कोई डांट देता था तो झट से रो जाया करते थे फिर पापा मम्मी के सहला देने से तो आराम से सो जाया करते थे अब कोई डांट दे तो रोते नहीं अब आराम से सोते नहीं दोस्तों अब तो

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प्रेम के सागर में अमृत रूपी गागर है माँ मेरे सपनों की सच्ची सौदागर है भूल कर अपनी सारी खुशियां हमको मुस्कुराहट भरा समंदर दे जाती है अगर ईश्वर कहीं है ,उसे देखा कहाँ किसने माँ धरा पर तो तू ही ,ईश्वर का रूप है हमारी आँखों के अंशु ,अपनी आँखों में समा लेती है अपने ओंठों की हंसी हम पर लुटा देती है हमारी

अंधी ममता दिल की सुनती है दिमाग की नहीं डॉ शोभा भारद्वाज इंडोनेशिया एवं सिंगापुर की पृष्ट भूमि में लिखी कहानी यूनी 22 वर्षों से सिंगापुर में मेड का काम कर रही थी यहाँ इन्हें नैनी कहा जाता वह सिंगापूर की नागरिकता लेना चाहती है नहीं मिली वहाँ केवल पढ़े लिखे प्रतिभावान लोगों को नागरिकता दी जाती है

https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2020/06/blog-post_26.html वचनामृतक्यों न उलझूँ बेवजह भला!तुम्हारी डाँट से ,तृप्ति जो मिलती है मुझे।पता है, क्यों?माँ दिखती है,तुममें।फटकारती पिताजी को।और बुदबुदाने लगता हैमेरा बचपन,धीरे से मेरे कानों में।"ठीक ही तो कह रही है!आखिर कितना कुछसह रही है।पल पल ढह र

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*माँ मैं फिर**माँ मैं फिर जीना चाहता हूँ, तुम्हारा प्यारा बच्चा बनकर**माँ मैं फिर सोना चाहता हूँ, तुम्हारी लोरी सुनकर,* *माँ मैं फिर दुनिया की तपिश का सामना करना चाहता हूँ, तुम्हारे आँचल की छाया पाकर**माँ मैं फिर अपनी सारी चिंताएँ भूल जाना चाहता हूँ, तुम्हारी गोद में सिर रखकर,* *माँ मैं फिर अपनी भूख

आर्त्तनाद (लघुकथा)रात भर धरती गीली होती रही। आसमान बीच बीच में गरज उठता। वह पति की चिरौरी करती रही। बीमार माँ को देखने की हूक रह रह कर दामिनी बन काले आकाश को दमका देती। सूजी आँखों में सुबह का सूरज चमका। पति उसे भाई के घर के बाहर ही छोड़कर चला आया। घर में घुसते ही माँ के चरणों पर निढाल उसका पुक्का फट

आप की याद आती है, माँ......आप की याद आती है .........अकेले हम जब भी होते हैं यादों के वो पल संजोते हैं कही अन्दर से चुपके से नि:श्छ्ल प्रेम से झंकृत जोमानसपटल पे अंकित वोमधुर, स्मृति कौंध जाती हैं बहुत ही याद आती है।।माँ...... आप की याद आती हैवो रोटी में प्यार का मक्खन वो गुझिया के खोए का मोयन खाते

गेहूँ की पकी फसल में गिरती चाँद की रोशनी एकदम साफ थी। हवा के बहने से गेंहूँ की बालियां आपस मे रगड़ कर बज रही थी। घर बहुत दूर छूट गया था। रास्ता लंबा था। अनगिनत खेत पार कर चुके थे। हाथ मे लटकती लालटेन में जल रही बाती भभक कर तेज हो जाती तो कही बिल्कुल डिम हो जाती। दूसरे हाथ मे नीम के पेड़ की पतली छड़ी को

माँ केवल कर्तव्य करती है, आसक्ति नहीं रखती। उसका कर्म इतना सुन्दर कि उसे नमन करने को दिल करता है। माताओं ने अपने बच्चों को महान संस्कार दिये हैं। इतिहास में ऐसी आदर्श और पूजनीय माताओं की लम्बी शृंखला है। विश्व के महापुरुषों की क़तार में इन माताओं का नाम भी आता है। इतिहास बताता है कि सुनीति, सुमित्रा

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माँ शक्ति के नौ स्वरूपों की पूजा, अर्चना, उपासना की जाती है। इस साल शारदीय नवरात्रि २९ सितम्बर से शुरू हो रही है। नवरात्रि का पूर्व हिन्दू धर्म से लोगो के लिए बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। इन नौ दिनों तक माँ दुर्गा के शक्ति रूपों की पूजा की जाती है हर दिन एक रूप की पूजा की

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तिरुवनंतपुरम पुलिस ने एक शख़्स के घर से उसकी मां को बचाकर बाहर निकाला. 75 वर्षीय महिला को उसके बेटे ने बांधकर रखा था.The News Minute की रिपोर्ट के मुताबिक़, ललिता को Liver Cirrhosis है और वो अपने छोटे बेटे विजयकुमार के साथ रह रही थी. ललिता का ढंग से इलाज भी नहीं करवाया जा

गिरते-संभलते जैसे तैसे जीवन मे चलना सीखा था,खुदा ईशवर बस नाम ही सुनाये कभी कहा दिखा था।बचपन से माँ की ममता देखते पले बड़े,आज भी ममता के आंचल के कारण है खड़े।ईश्वर की माया देखी जो मा मिली है।जिसके कारण जिंदगी आज खिली खिली है।जन्म से जिसकी सूरत देखी,जिसको सबसे पहले पहचाना,लगता नही आज भी मैंनेउसे भले ढं

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वरदान समान हैं, माँ का दुध नवजात शिशु के लिएशिशु के जन्मम के पश्चात स्तननपान एक स्वारभाविक क्रिया है। स्तननपान के बारे में सही ज्ञान के अभाव के कारण बच्चों में कुपोषण एवं संक्रमण जैसे रोग हो जाते है। स्तनपान की प्रक्रिया शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है।

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माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?""निरुत्तर माता, कुछ पल को चुप होती,मुस्कुराकुर फिर, नन्हे को गोद में भर लेती,चूमती, सहलाती, बातों से बहलाती,माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद? माँ, विह्वल सी हो उठती जज्बातों से,माँ का मन, कहाँ ऊबता नन्हे की बातों से?हँसती, फिर गढ़ती इक नई

न वर्दी, न तिरंगा, यह तो खूनी कफ़न हैं ।वर्दी मे हसता खिलखिलाता मेरा सपूत दिखता हैं वह चेहरा मेरी आंखो मे चमकता हैं। उसकी बाजुओ मे लटकती बंदूक खिलौना लगती हैं। वह उस खिलौने से न खेल सका। वह उस पल को न समझ सका न खेल सका, अपनी पत्नी, माँ, बच्चों को छोड़ गया, रोने की किलकारी सब मे, लिपटे कफ़न तिरंगे मे

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