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यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास--- धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ---- प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

26 नवम्बर 2018

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________________________ १-धर्म्मपाल २-सिंहपाल ३-जगपाल ४- नरपाल ५-संग्रामपाल ६-कुन्तपाल ७-भौमपाल ८-सोचपाल ९-पोचपाल १०-ब्रह्मपाल ११-जैतपाल । करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से --- यह बारहवाँ पाल शासक था --- 1030 ई०सन् विजयपाल १२- विजयपाल (1030) १३- त्रिभुवनपाल(1000) १४-धर्मपाल (1090) १५- कुँवरपाल (1120) १६-अजयपाल(1150) १७-हरिपाल ( 1180) १८-सुघड़पाल(1196) १९- अनंगपाल(1120 ) २०- पृथ्वी पाल (1242) २१- राजपाल (1264) २२- त्रिलोकपाल(1284) २३-विप्पलपाल(1330) २४-गुगोलपाल(1352) २५-अर्जुनपाल(1374) २६- विक्रमपाल(1396) २७-अभयन्द्रपाल (1418) २८- पृथ्वी राज पाल (1440) २९चन्द्रसेनपाल(1462) ३०-भारतीचन्द्रपाल(1484) ३१-गोपालदास (1506) ३२- द्वारिका दास(1528) ३३-मुकुन्ददास(1550) ३४- युगपाल(1572) ३५-तुलसीपाल (1894) ३६- धर्म्मपाल(1616) ३७-रतनपाल(1638) ३८-आरतीपाल ( 1860) ३९- अजयपाल(1682) ४०-रक्षपाल (1704) ४१-सुधाधरपाल( 1726 ) ४२-कँवरपाल(1748 ) ४३-श्रीगोपाल( 1770 ) ४४-माणिक्यपाल( 1792 ) ४५-अमोलपाल(1814 ) ४६-हरिपाल ( 1836) ४७-मधुपाल (1856 ) ४८-अर्जुन पाल (1879) उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध तक अड़तालीस यदुवंशी पाल उपाधि धारक शासकों की शासन सत्ता रही व्रज क्षेत्र कि परिसीमा करौली रियासत में ---👇 करौली के ये शासक अपने नाम- के बाद पाल उपाधि लगाते थे । कुछ ने दास उपाधि को भी लगाया। _________________________ दास शब्द और गोप शब्द ऋग्वेद के कई सन्दर्भों में यदु और तुर्वसु के लिए आया है । ऋग्वेद 10/62/10 उत् दासा परिविषे स्मत्दृष्टी गोपर् ईणसा यदुस्तुर्वशुश्च ।।ऋ०10/62/10 वस्तुत ये समग्र समीकरण मूलक प्रमाण अहीरों के पक्ष में हैं कि करौली के शासक स्वयं को पाल अथवा गोपाल या गोपोंं के रूप में ही प्रस्तुत करते हैं । प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित रूप - सावत सोत तथा सूद आदि , कम्बल से कम्बल तथा कमरिया रूप ---जो राजस्थान के भीलबाड़ा क्षेत्र से निर्गत हुए । ये सभीे शब्द कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली में प्रचलन हुए। इसी प्रकार कुक्कुर शब्द से कुर्रा , कुर्रू ककुरुआ आदि रूपों का विकास हुआ । कुकुरो भजमानश्च शुचिः कम्बलबर्हिषः । “अन्धकात् काश्यदुहिता चतुरोलभतात्मजान् कुकुरं भजमानं च शमं कम्बलबहिषम्” हरिवंश पुराण ३८ ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश था । जहाँ कुक्कुर जाति के यादव रहते थे ; यह प्रदेश राजपूताने के अन्तर्गत था ; जो कभी मत्स्य देश था  । और कालान्तरण में उसके वंशजों द्वारा इसका पुन: नामकरण हुआ कुकुरावलि। कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली _________________________ संस्कृत ग्रन्थों में कुकुर यादवों के विषय में पर्याप्त आख्यान परक विवरण प्राप्त होता है । कोश ग्रन्थों में इस शब्द की व्युत्पत्ति काल्पनिक रूप से इस प्रकार दर्शायी गयी है । जैसे कुम् पृथिवीं कुरति त्यजति स्वामित्वेन इति कुकुर इति कुकुर कथ्यते। अर्थात् दो स्वामित्व से द्वारा अपनी भूमि त्यागता है वह कुकुर है ।। अग्र प्रकरण में पुराणों से उद्धृत ये तथ्य अनुमोदक हैं ।👇 यदुवंशीयनृपभेदे तेषां ययातिशापात् राज्यं नास्तीति पुराणकथा  । अर्थात् यदु के वंशज जिनके पूर्वज यदु ने ययाति के शाप से राज्य प्राप्त नहीं किया । “ कुकुरनृपश्चान्धकुकुरः भजमानशुचिकम्बलबर्हिषास्तथान्धकस्य पुत्राः” इति विष्णु पुराण। वारगाथा काल में नल्ह सिंह भाट द्वारा विजय पाल रासो के रचना की गयी । नल्हसिंह भाट कृत इस रचना के केवल '42' छन्द उपलब्ध है। विजयपाल, जिनके विषय में यह रासो काव्य है, विजयगढ़, करौली के 'यादव' राजा थे। इनके आश्रित कवि के रुप में 'नल्ह सिंह' का नाम आता है। रचना की भाषा से यह ज्ञात होता है कि यह रचना 17 वीं शताब्दी से पूर्व की नहीं हो सकती है। और विजयपाल का समय 1030  के समकालिक है । अस्तु काल के प्रभाव से मथुरा को त्याग कर जब विजयपाल के वंशज सम्वत् 1052 में बयाने के पास बनी पहाड़ी की उपत्यका में ये जा बसे | क्यों कि बयाना वज्रायन शब्द का तद्भव रूप है । और वज्र कृष्ण के प्रपौत्र (नाती) थे । पुराणों में वज्रनाभ का वर्णन इस प्रकार है :- श्रीकृष्णप्रपौत्त्रः- यथा   -“ अनिरुद्धात् सुभद्रायां वज्रो नाम नृपोऽभवत् । प्रतिबाहुर्वज्रसुतश्चारुस्तस्य सुतोऽभवत् ॥ “ इति गरुडपुराण १४४ अध्यायः ॥ अपि च “ प्रद्युम्न आसीत् प्रथमः पितृवद्रुक्मिणीसुतः । स रुक्मिणो दुहितरमुपयेमे महारथः ॥ तस्यां ततोऽनिरुद्धोऽभून्नागायुतबलान्वितः स चापि रुक्मिणः पौत्त्रीं दौहित्रो जगृहे ततः ॥ वज्रस्तस्यामभूद्यस्तु मौषलादवशेषितः । प्रतिबाहुरभूत्तस्मात् सुबाहुस्तस्य चात्मजः ॥ “ इति श्रीभागवते १० स्कन्धे ९० अध्यायः । अर्थात् वज्र अनिरुद्ध और सुभद्रा नामक पत्नी से उत्पन्न थे । _________________________ परन्तु कुछ इतिहास कारों की अवधारणा है कि राजस्थान राज्य के भरतपुर ज़िले में स्थित एक महत्त्वपूर्ण नगर बयाना का नामकरण बाणपुर ये हुआ। कहा जाती है कि इस स्थान का प्राचीन नाम 'बाणपुर' था। इसके अतिरिक्त, इसके अन्य नाम 'वाराणसी', 'श्रीप्रस्थ' या 'श्रीपुर' भी उपलब्ध हैं। 'ऊखा मन्दिर' से प्राप्त 956 ई. के एक अभिलेख  से ज्ञात होता है कि यहाँ का राजा उस समय लक्ष्मण सेन था। बयाना आगरा के निकट स्थित होने के कारण इतिहास में बहुत प्रसिद्ध रहा है। यहाँ से गुप्तकालीन सिक्के भी प्राप्त हुए हैं, जो यह साबित करते हैं कि यहाँ गुप्त शासकों का शासन भी रहा था। करौली उत्तर भारत के राजस्थान राज्य का प्रमुख नगर और करौली ज़िले का मुख्यालय है, जो पूर्व में करौली राज्य की राजधानी था। करौली कस्बे की स्थापना 1348 ई. में यादव वंश  के राजा अर्जुनपाल ने की थी। इसका मूलत: नाम कल्याणपुरी था, जो कल्याणजी के मन्दिर के कारण प्रसिद्ध था। इसको भद्रावती नदी के किनारे होने के कारण 'भद्रावती नगरी' भी कहा जाता था। जनश्रुतियों के अनुसार इस राज्य का निर्माण 995 ईस्वी सन् में श्री कृष्ण के 88 वें वंशज राजा विजय पाल यादव द्वारा करवाया गया था। हालांकि आधिकारिक तौर पर करौली यदुवंशी, शासक राजा अर्जुनपाल द्वारा 1348 ई. में स्थापित किया गया। परन्तु इसके सूत्रधार विजयपाल ही थे । करौली जयपुर से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये ज़िला 5530 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। पूर्व में इस स्थान का नाम कल्याणपुरी था। यह नाम यहाँ की एक स्थानीय देवी कल्याणजी के नाम पर रखा गया था। करौली ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है राजा विजयपाल के पुत्र त्रिभुवनपाल ने त्रिभुवनगढ़ का किला बनवाया | त्रिभुवनपाल के पुत्र धर्मपाल (द्वितीय) और हरिपाल थे ; जिनका समय संवत् 1227 का है | कृष्ण जी के प्रपौत्र (नाती )वज्र को मथुरा का अधिपति बनाने का प्रसंग श्रीमद भागवत् के दशम स्कन्ध में आता है । यह पुराण बारहवीं सदी की रचना है । कहा जाता है की लगभग सातवीं शताब्दी के आस- पास सिन्ध से कुछ यदुवंशी मथुरा वापिस आ गए और उन्हों ने यह इलाका पुनः विजित कर लिया । इन राजाओं की वंशावली राजा धर्मपाल से शुरू होती है । जो की श्री कृष्ण 77 वीं पीढ़ी के वंशज थे । धर्म्मपाल के बाद बारहवाँ शासक विजयपाल पाल हुआ। जिसका समय 1030 ई०सन् है । भरतपुर के जाट इन्हें अपना पूर्वज मानते हैं । धर्म्मपाल के बाद पैंतालीसवाँ पाल शासक अर्जुन पाल हुआ ।ये सभी पाल शासक पाल उपाधि का ही प्रयोग करते थे । क्यों कि इनका विश्वास था कि हमारे पूर्व पुरुष यदु ने गोपालन की वृत्ति को ही स्वीकार किया था । अतः पाल उपाधि गौश्चर गोप तथा अभीरों की आज तक है । ऋग्वेद के दशम मण्डल के बासठ में सूक्त की दशवीं ऋचा में देखें-- उत् दासा परिविषे स्मत्दृष्टी गोपर् ईणसा यदुस्तुर्वशुश्च मामहे।।ऋ०10/62/10 यदु और तुर्वसु नामक दास ---जो गायों से घिरे हुए हैं। ---जो बड़े सौभाग्य की दृष्टि वाले हैं  हम उनका प्रशंसा  करते हैं । ---जो पहले चरावाहे थे वे कालान्तरण में कृषक हुए । और हिन्दुस्तान में जाट , गुज्जर और अहीरों से बड़ा कोई किशान नहीं ।। ऋ०10/62/10/ इतिहास का एक और समीकरण यह है कि पूर्वोत्तर के पाल वंश के सूत्र और करौली के सूत्र धार समान और एक ही थे ।👇 _________________________ धर्मपाल (७७०-८१० ई.)- गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल ७७० ई. में सिंहासन पर बैठा। धर्मपाल ने ४० वर्षों तक शासन किया। धर्मपाल ने कन्‍नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष में उलझा रहा। उसने कन्‍नौज की गद्दी से इंद्रायूध को हराकर चक्रायुध को आसीन किया। चक्रायुध को गद्दी पर बैठाने के बाद उसने एक भव्य दरबार का आयोजन किया तथा उत्तरापथ स्वामिन की उपाधि धारण की। धर्मपाल बौद्ध धर्मावलम्बी था। उसने काफी मठ व बौद्ध विहार बनवाये। उसने भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय का निर्माण करवाया था। उसके देखभाल के लिए सौ गाँव दान में दिये थे। उल्लेखनीय है कि प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय एवं राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने धर्मपाल को पराजित किया था। देवपाल (८१०-८५० ई.)- धर्मपाल के बाद उसका पुत्र देवपाल गद्दी पर बैठा। इसने अपने पिता के अनुसार विस्तारवादी नीति का अनुसरण किया। इसी के शासनकाल में अरब यात्री सुलेमान आया था। उसने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाई। उसने पूर्वोत्तर में प्राज्योतिषपुर, उत्तर में नेपाल, पूर्वी तट पर उड़ीसा तक विस्तार किया। कन्‍नौज के संघर्ष में देवपाल ने भाग लिया था। उसके शासनकाल में दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे। उसने जावा के शासक बालपुत्रदेव के आग्रह पर नालन्दा में एक विहार की देखरेख के लिए ५ गाँव अनुदान में दिए। वास्तव में धर्म पाल ब्राहमणों के प्रपञ्च को जानता था अतः वह बौद्धों के प्रति भी उदरवादी था । उसने ब्राह्मणों की वर्ण-बद्ध -जाति-व्यवस्था का कभी अनुमोदक नहीं किया । सौभाग्य से दौनों के पिता का नाम गोपाल ही था । _________________________ भागवत पुराण के दशम स्कन्ध में भी यही वर्णन है । कि यदुवंशी होने से कृष्ण राज सिंहासन पर नहीं बैठ सकते हैं ! परन्तु उग्रसेन पर भी यही नियम लागू होना चाहिए क्यों कि वे भी यदुवंशी थे । परन्तु कृष्ण पल ही यह क्यों लागू हुई ? असंगत बात है ✊✊✊ _________________________________________ पहाड़ों पर बसने वाले डोगरा जन-जाति में भी इन यादवों की कई खांपें मिली हुई हैं । वस्तुत डोगर और ढिढोर परस्पर विकसित शब्द हैं । ढिढोर कबीले को अहीर से सम्बद्ध हैं ढढोर ' यदुवंशी अहीरों की एक प्रसिद्ध गोत्र है जिनका निर्गमन राजस्थान के प्रसिद्ध ढूण्ढार क्षेत्र से हुआ है। करौली के संस्थापक कुकुर यादवों की शाखा के ही  लोग थे ; यद्यपि ये लोग चरावाहों की परम्पराओं का निर्वहन यदु के द्वारा स्थापित होने से करते थे । क्यों कि यदु ने कभी भी राज्य स्वीकार नहीं किया । वे गोप थे और हमेशा गायों से घिरे रहते थे । ऋग्वेद के दशम मण्डल के 62 वें सूक्त की दशवीं ऋचा में देखें-- " उत् दासा परिविषे स्मत्दृष्टी गोपर् ईणसा यदुस्तुर्वशुश्च मामहे ।।ऋ०10/62/10 इतिहास लेखक डॉ मोहन लाल गुप्ता के अनुसार करौली के यदुवंशी अपने नाम-के बाद सिंह विशेषण न लगाकर पाल विशेषण लगाते थे क्यों कि ये स्वयं को गोपाल , गोप , तथा आभीर , गौश्चर मानते और बंगाल का पाल वंश भी इन्हीं से सम्बद्ध है । भारतीय इतिहास में जादौन ठाकुरों की बात की जाय तो ये स्वयं को पाल अथवा गोपाल या कहें की गोप मानने के पक्ष में कभी नहीं हैं । जबकि धर्म पाल  विजयपाल तथा अठारहवीं सदी के अर्जुन पाल को अपना पूर्वज बतातें हैं । और गोपोंं अथवा अहीरों को तो विदेशी या शूद्र कहकर अपमानित करते रहते हैं धर्म्मपाल स्वयं कृष्ण की 77 वीं पीढ़ी के वंशज हैं । ---जो स्वयं कृष्ण के गोपालक स्वरूप के उपासक थे । और स्वयं को गोप अथवा पाल ही मानते थे । इनके वंशजों द्वारा कभी भी सिंह अथवा ठाकुर उपाधि नहीं लगायी गयी । हाँ ठाकुर उपाधि का प्रचलन बारहवीं सदी में तुर्को के द्वारा व्यवहृत तक्वुर रूप से हुआ। क्यों कि ठाकुर संस्कृत भाषा का शब्द नहीं है । _________________________ और भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर जो भारतीय भाषाओं में ठक्कुर - ठाकुर ,टैंगॉर तथा ठाकरे रूपों में प्रकाशित हुआ। जमीदारी खिताबो के तौर पर भारत में इस शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए सबसे पहले हुआ ---जो तुर्की काल में जागीरों के या भू-खण्डों के मालिक थे । उस समय पश्चिमीय एशिया तथा भारतीय प्राय द्वीप में इस्लामीय विचार धाराओं का भी आग़ाज (प्रारम्भ) नहीं हुआ था। उसके लगभग एक शतक बाद ई०सन् 712 में मौहम्मद बिन-काशिम अरब़ से चल कर ईरान में होता हुआ भारत में सिन्धु के मुहाने पर उपस्थित होता है। उस समय जादौन पठानों के कबीलों में अपने रुतबे का इज़हार करने के लिए सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब के रूप में तक्वुर( tekvur) शब्द का प्रचलन था तब जादौन पठान ईरानी एवं यहूदी विचार धारा से ओत-प्रोत थे । सर्वत्र ईसाई विचार धारा का बोल-बाला था । यहाँ ठाकुर शब्द की व्युत्पत्ति पर एक प्रमाण :- Origin and meaning of tekvur name.. The Turkish name, Tekfur Saray, means "Palace of the Sovereign" from the Persian word meaning "Wearer of the Crown". It is the only well preserved example of Byzantine domestic architecture at Constantinople. The top story was a vast throne room. The facade was decorated with heraldic symbols of the Palaiologan Imperial dynasty and it was originally called the House of the Porphyrogennetos - which means "born in the Purple Chamber". It was built for Constantine, third son of Michael VIII and dates between 1261 and From Middle Armenian թագւոր (tʿagwor), from Old Armenian թագաւոր (tʿagawor). Attested in Ibn Bibi's works...... (Classical Persian) /tækˈwuɾ/ (Iranian Persian) /tækˈvoɾ/ تکور • (takvor) (plural تکورا__ن_ हिन्दी उच्चारण ठक्कुरन) (takvorân) or تکورها (takvor-hâ)) alternative form of Persian in Dehkhoda Dictionary.. _________________________ तुर्कों की कुछ शाखाऐं सातवीं से बारहवीं सदी के बीच में मध्य एशिया से यहाँ आकर बसीं। इससे पहले यहाँ से पश्चिम में आर्य (यवन, हेलेनिक) और पूर्व में कॉकेशियाइ जातियों का बसाव रहा था। यहाँ हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। उसके राज्यविस्तार के पतन के बाद यहाँ विदेशीयों हूणों कुषाणों तथा तुर्कों एवं सीथियन (Scythian) जन-जातियाें का राजपूतीकरण हुआ । मंगोल तथा चीन के इतिहास में चाउ-हुन चीन के प्रथम राजनैतिक वंश और हूणों ( हुनों) का समायोजन रूप है । भारतीय इतिहास में सिन्धु और अफगानिस्तान के गादौन / जादौन पठानों की भी संख्या थी। ठाकुर शब्द के मूल रूप के विषय में हम आपको बताऐं! कि तुर्किस्तान में (तेकुर अथवा टेक्फुर ) परवर्ती सेल्जुक तुर्की राजाओं की उपाधि थी। बारहवीं सदी में तक्वुर शब्द ही संस्कृत भाषा में ठक्कुर शब्द के रूप में उदिय हुआ । संस्कृत शब्दकोशों में इसे ठक्कुर के रूप में लिखा गया है। कुछ समय तक ब्राह्मणों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है । क्योंकि ब्राह्मण भी जागीरों के मालिक होते थे । जो उन्हें राजपूतों द्वारा दान रूप में मिलती थी। और आज भी गुजरात तथा पश्चिमीय बंगाल में ठाकुर ब्राह्मणों की ही उपाधि है। तुर्की ,ईरानी अथवा आरमेनियन भाषाओ का तक्वुर शब्द एक जमींदारों की उपाधि थी समीप वर्ती उस्मान खलीफा के समय का हम इस सन्दर्भों में उल्लेख करते हैं। कि " जो तुर्की राजा स्वायत्त अथवा अर्द्ध स्वायत्त होते थे ; वे ही तक्वुर अथवा ठक्कुर कहलाते थे " उसमान खलीफ का समय (644 - 656 ) ई०सन् के समकक्ष रहा है । भारत में यहाँ हर्षवर्धन का शासन तब क्षीण होता जा रहा था उस्मान को शिया लोग ख़लीफा नहीं मानते थे। सत्तर साल के तीसरे खलीफा उस्मान (644-656 राज्य करते रहे हैं) उनको एक धर्म प्रशासक के रूप में निर्वाचित किया गया था। उन्होंने राज्यविस्तार के लिए अपने पूर्ववर्ती शासकों- की नीति प्रदर्शन को जारी रखा । इन्हीं के मार्ग दर्शन में तुर्कों ने इस्लामीय मज़हब को स्वीकार किया। ठाकुर शब्द विशेषत तुर्की अथवा ईरानी संस्कृति में अफगानिस्तान के पठान जागीर-दारों में भी प्रचलित था पख़्तून लोक-मान्यता के अनुसार यही जादौन पठान जाति ‘बनी इस्राएल’ यानी यहूदी वंश की है। इस कथा की पृष्ठ-भूमि के अनुसार पश्चिमी एशिया में असीरियन साम्राज्य के समय पर लगभग 2800 साल पहले बनी-इस्राएल के दस कबीलों को देश -निकाला दे दिया गया था। और यही कबीले पख़्तून थे । मुग़ल काल में भी अकबर से लेकर अन्तिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र तक , हर मुग़ल शासक अकबर के बाद तक़रीबन सारे बादशाह राजपूत कन्याओ से ही पैदा हुए । - जहाँगीर , शाहजहाँ , औरंगजेब आदि i मुस्लिम काल में हजारों राजपूतो ने इस्लाम स्वीकार किया - जैसे- कायमखानी , खानजादे , मेव ,रांघड , चीता , मेहरात , राजस्थान के रावत जो फिर हिन्दू बन गए आदि सब राजपूत मुस्लमान ही तो है। और जादौन अफगानिस्तान मूल के ईरानी यहूदीयों का कबीला था । ---जो सातवीं सदी के आसपास कुछ मुसलमान हो गये मणिकार अथवा पण्यचारी का व्यवसाय करने वाले मनिहार तथा बंजारे भी थे ---जो हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी अत: राजस्थान के बंजारा समाज में जादौन कबीला भी है । जिनका ऐैतिहासिक विवरण निम्न है :- As Follows (1) Dharawat (2)ghuglot (3)Badawat (4) Boda (5)Malod (6)Ajmera (7) Padya (8)Lakhavat (9) Nulawat... All the above Come under the jadon (jadhav) Sub-Group of the Charan Banjara also called as Gormati in the area. from the same area among the Labhana banjara the following clan are reported : 1- kesharot 2-dhirbashi 3- Gurga 4- Rusawat 5- Meghawat 6- khachkad 7-Pachoriya 8 Alwat 9- khasawat 10 bhokan 11- katakwal 12- Dhobda 13 Machlya 14 -khaseriya 15-Gozal 16- borya 17- Ramawat 18 Bhutiya 19 Bambholya 20 Rethiyo 21-Majawat the Rathor and jadon are Charan banjara are more common in the area Among the sonar Banjara clan names like medran are found but the type is rare. A Sub-Group by name Banjara (the drum -beater are also found in the pusad area having topical clan names like (1) Hivarle, ( 2) karkya (3)Failed (4) Shelar (5) kamble (6) Deopate (7) Dhawale. These clan names unlike the other given above Do not sound akin to Rajput clan names and are similar to those among the pardhan or other lower castes in the area who are traditionally enged in drum- beating at the time marriage or other ceremonies. it is likely that these lower castes were assimilated in the Banjara community as there drum-beater or the lowest in ranks among the Banjara adopted the function along with the clan names/surnames of the local lower castes engaged in the function. Rathod is also used as a clan name among the Gormati Banjaras which is very common another common surname is jadhav which sound akin the Maratha surname in Maharashtra. madren is a clan name reported from the Sonar Banjara.... हिन्दी अनुवाद:---निम्नलिखित के अनुसार (1) धारवत (2) घुह्लोट (3) बदावत (4) बोडा (5) मालोड (6) अजमेरा (7) पद्या (8) लखवत (9) नुलावत ... उपरोक्त सभी चरन बंजारा के जादौन (जाधव) उप-समूह के तहत आते हैं । जिन्हें क्षेत्र में गोर्मती भी कहा जाता है। लैबाना (लभाना) बंजारा के बीच एक ही क्षेत्र से निम्नलिखित कबीलों की सूचना दी गई है: 1- केशारोट 2-धीरबाशी 3- गुड़गा 4- रसवत 5- मेघावत 6- खचकड़ 7-पचोरिया 8 अलवत 9- खसावत 10 भोकन 11- कटकवाल 12- ढोबा 13 मच्छिया 14-चेकेसरिया 15-गोज़ल (गोयल) 16- बोर्य 17- रामावत 18 भूटिया 1 9 बंबोल्या 20 रेथियो 21-माजावत आदि.. राठौर और जादौन क्षेत्र में चारन बंजारा अधिक आम हैं सोनार बंजारा कबीले के नाम जैसे मेद्रान में पाए जाते हैं लेकिन यह प्रकार दुर्लभ है। बंजारा नाम से एक उप-समूह (ड्रम -बीटर नगाड़ा बजाने वाला ) पुसाड क्षेत्र में भी पाए जाते हैं ; जिसमें सामयिक कबीलों के नाम होते हैं (1) हिवरले, (2) करका (3) असफल (4) शेलर (शिलार) (5) कॉम्बले (6) द्योपेत ( 7) धवले। ऊपर दिए गए दूसरे के विपरीत ये कबीले नाम राजपूत कबीले के नामों की तरह नहीं लगते हैं और वे उस क्षेत्र में क्षमा या अन्य निचली जातियों के समान हैं जो पारम्परिक रूप से शादी या अन्य समारोहों में ड्रम को पीटते हैं। यह सम्भावना है कि बंजारा समुदाय में इन निचली जातियों को समेकित (समायोजित) किया गया था । क्योंकि बंजारा के बीच ड्रम-बीटर या सबसे कम रैंक समारोह में लगे स्थानीय निचली जातियों के कबीलों के नामों / उपनामों के साथ समारोह को अपनाया था। राठोड और जादौन गोर्मती के बीच एक कबीले नाम के रूप में भी प्रयोग किया जाता है जो कि आम बात है, एक आमनाम जाधव है । जो महाराष्ट्र में मराठा उपनाम जैसा लगता है। जादौन पठान---जो अफगानिस्तानी मूल के उनमें मणिकार अथवा मनिहार भी बंजारा वृत्ति से जीवन यापन करते थे । पश्चिमीय एशिया के यहूदीयों के ऐैतिहासिक दस्ताबेज़ों में यहूदीयों को सोने - चाँदी तथा हीरे जवाहरात का सफल व्यापारी भी बताया गया है मदर सोनार बंजारा से एक कबीले का नाम है जादौन । मिश्र में कॉप्ट (Copt )यहूदीयों की सोने -चाँदी का व्यवसाय करने वाली शाखा है। जो भारतीय गुप्ता वार्ष्णेय गोयल आदि यदुवंशी वैश्य शाखा से साम्य परिलक्षित करती है। मनिहार-- मनिहार (अंग्रेजी: Manihar) हिन्दुस्तान में पायी जाने वाली एक मुस्लिम बिरादरी की जाति है। इस जाति के लोगों का मुख्य पेशा चूड़ी बेचना है। इसलिये इन्हें कहीं-कहीं चूड़ीहार भी कहा जाता है। मुख्यतः यह जाति उत्तरी भारत और पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में पायी जाती है। यूँ तो नेपाल की तराई क्षेत्र में भी मनिहारों के वंशज मिलते हैं। ये लोग अपने नाम के आगे जातिसूचक शब्द के रूप में अब प्राय: सिद्दीकी ही लगाते हैं। मुसलमान होने से.. मणिकार अथवा पण्यचारि दौनों शब्द कालान्तरण में मनिहार तथा बंजारा रूप में परिवर्तित हुए । उत्पत्ति का इतिहास-- इन जातियों की उत्पत्ति के विषय में दो सिद्धान्त हैं ; एक भारतीय, दूसरा मध्य एशियाई। भारतीय सिद्धान्त के अनुसार ये मूलत: राजपूत थे जो सत्ता को त्याग कर मुसलमान बने। इसका प्रमाण यह है कि इनकी उपजातियों क़े नाम राजपूत उपजातियों से काफी कुछ मिलते हैं जैसे-भट्टी, सोलंकी, चौहान, बैसवारा, जादौन आदि। इसीलिये इनके रीति रिवाज़ हिन्दुओं से मिलते हैं; दूसरी ओर मध्य एशियाई सिद्धान्त के अनुसार ये वो लोग है जिनका गजनी में शासकों के यहाँ घरेलू काम करना था और इनकी महिलायें हरम की देखभाल करती थी जो 1000 ई० में महमूद गज़नवी क़े साथ भारत आये और फिरोजाबाद के आस-पास नारखी बछिगाँव आदि के क्षेत्रों में बस गये। इन पठानों की कुछ उपजातियाँ --- (1)शेख़ (2) इसहानी, (3) कछानी, (4) लोहानी, (5) शेख़ावत, (6) ग़ोरी, (7) कसाउली, (8) भनोट, (9) चौहान, (10) पाण्ड्या, (11) मुग़ल, (12) सैय्यद, (13) खोखर, (14) बैसवारा और (15) राठी (16) गादौन अथवा जादौन पश्चिमीय पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के पठानों में जादौन पठानों की एक शाखा है । ---जो पश्तो भाषा बोलते हैं -जैसे राजस्थानी पिंगल डिंगल उपभाषाओं के सादृश्य- पश्तून लोगों के प्राचीन इस्राएलियों के वंशज होने की अवधारणा-- पश्तून लोगों के प्राचीन इस्राएलियों के वंशज होने की अवधारणा (Theory of Pashtun descent from Israelites) १९वीं सदी के बाद से बहुत पश्चिमी इतिहासकारों में एक विवाद का विषय बनी हुई है। पश्तून लोक मान्यता के अनुसार यह समुदाय इस्राएल के उन दस क़बीलों का वंशज है; जिन्हें लगभग २,८०० साल पहले असीरियाई साम्राज्य के काल में देश-निकाला मिला था। सम्भवत वैदिक सन्दर्भों में दाशराज्ञ वर्णन इसकी संकेत है । ऐैतिहासिक विवरण के सन्दर्भों में - पख़्तूनों के बनी इस्राएल होने की बात सोलहवीं सदी ईस्वी में जहाँगीर के काल में लिखी गयी किताब “मगज़ाने अफ़ग़ानी” में भी मिलती है। अंग्रेज़ लेखक अलेक्ज़ेंडर बर्न ने अपनी बुख़ारा की यात्राओं के बारे में सन् १८३५ में भी पख़्तूनों द्वारा ख़ुद को बनी इस्राएल मानने के बारे में लिखा है। यद्यपि पख़्तून ख़ुद को बनी इस्राएल तो कहते हैं लेकिन धार्मिक रूप से वह मुसलमान हैं, यहूदी नहीं। अलेक्ज़ेंडर बर्न ने ही पुनः १८३७ में लिखा कि जब उसने उस समय के अफ़ग़ान राजा दोस्त मोहम्मद से इसके बारे में पूछा तो उसका जवाब था ; कि उसकी प्रजा बनी इस्राएल है इसमें सन्देह नहीं लेकिन इसमें भी सन्देह नहीं कि वे लोग मुसलमान हैं एवं आधुनिक यहूदियों का समर्थन नहीं करेंगे। विलियम मूरक्राफ़्ट ने भी १८१९ व १८२५ के बीच भारत, पंजाब और अफ़्ग़ानिस्तान समेत कई देशों के यात्रा-वर्णन में लिखा कि पख़्तूनों का रंग, नाक-नक़्श, शरीर आदि सभी यहूदियों जैसा है। यहूदी होने से ये स्वयं को जूडान अथवा जादौन पठान कहते हैं इधर भारतीय जादौन समुदाय भी स्वयं को यदुवंशी कहता है । जे बी फ्रेज़र ने अपनी १८३४ की 'फ़ारस और अफ़्ग़ानिस्तान का ऐतिहासिक और वर्णनकारी वृत्तान्त' नामक किताब में कहा कि पख़्तून ख़ुद को बनी इस्राएल मानते हैं और इस्लाम अपनाने से पहले भी उन्होंने अपनी धार्मिक शुद्धता को बरकरार रखा था। जोसेफ़ फ़िएरे फ़ेरिएर ने सन् 1858 ईस्वी में अपनी अफ़ग़ान इतिहास के बारे में लिखी किताब में कहा कि वह पख़्तूनों को बनी इस्राएल मानने पर उस समय मजबूर हो गया ;जब उसे यह जानकारी मिली कि नादिरशाह भारत-विजय से पहले जब पेशावर से गुज़रा तो यूसुफ़ज़ाई कबीले के प्रधान ने उसे इब्रानी भाषा (हिब्रू) में लिखी हुई बाइबिल व प्राचीन उपासना में उपयोग किये जाने वाले कई लेख साथ भेंट किये। इन्हें उसके ख़ेमे में मौजूद यहूदियों ने तुरन्त पहचान लिया। जार्ज मूरे द्वारा इस्राएल की दस खोई हुई जातियों के बारे में जो शोधपत्र (1861) में प्रकाशित किया गया है, उसमे भी उसने स्पष्ट लिखा है कि बनी इस्राएल की दस खोई हुई जातियों को अफ़ग़ानिस्तान व भारत के अन्य हिस्सों में खोजा जा सकता है । वह लिखता है कि उनके अफ़्गानिस्तान में होने के पर्याप्त सबूत मिलते हैं। वह लिखता है कि पख्तून की सभ्यता संस्कृति, उनका व उनके ज़िलों ,गावों आदि का नामकरण सभी कुछ बनी इस्राएल जैसा ही है। ॠग्वेद के चौथे खंड के 44 वें सूक्त की ऋचाओं में भी पख़्तूनों का वर्णन ‘पृक्त्याकय अर्थात् (पृक्ति आकय) नाम से मिलता है । इसी तरह तीसरे खण्ड का 91 वीं ऋचा में आफ़रीदी क़बीले का ज़िक्र ‘आपर्यतय’ के नाम से मिलता है। भारत में हर्षवर्धन के उपरान्त कोई भी ऐसा शक्तिशाली राजा नहीं हुआ जिसने भारत के बृहद भाग पर एकछत्र राज्य किया हो। इस युग मे भारत अनेक छोटे बड़े राज्यों में विभाजित हो गया जो आपस मे लड़ते रहते थे। तथा इसी समय के शासक राजपूत कहलाते थे ; तथा सातवीं से बारहवीं शताब्दी के इस युग को राजपूत युग कहा गया है। राजपूतों के दो विशेषण और हैं ठाकुर और क्षत्रिय ये ब्राह्मणों द्वारा प्रदत्त उपाधियाँ हैं। कर्नल टोड व स्मिथ आदि विद्वानों के अनुसार राजपूत वह विदेशी जन-जातियाँ है । जिन्होंने भारत के आदिवासी जन-जातियों पर आक्रमण किया था ; औरअपनी धाक जमाकर कालान्तरण में यहीं जम गये इनकी जमीनों पर कब्जा कर के जमीदार के रूप " और वही उच्च श्रेणी में वर्गीकृत होकर राजपूत कहलाए ब्राह्मणों ने इनके सहयोग से अपनी कर्म काण्ड परक धर्म -व्यवस्था कायम की "चंद्रबरदाई लिखते हैं कि परशुराम द्वारा क्षत्रियों के सम्पूर्ण विनाश के बाद ब्राह्मणों ने माउंट-आबू पर्वत पर यज्ञ किया व यज्ञ कि अग्नि से चौहान, परमार, प्रतिहार व सोलंकी आदि राजपूत वंश उत्पन्न हुये। इसे इतिहासकार विदेशियों के हिन्दू समाज में विलय हेतु यज्ञ द्वारा शुद्धिकरण की पारम्परिक घटना के रूप में देखते हैं " जितने भी ठाकुर उपाधि धारक हैं वे राजपूत ब्राह्मणों की इसी परम्पराओं से उत्पन्न हुए हैं सत्य का प्रमाणीकरण इस लिए भी है कि ठाकुर शब्द तुर्कों की जमींदारीय उपाधि थी। संस्कृत ग्रन्थ अनन्त संहिता में श्री दामनामा गोपाल: श्रीमान सुन्दर ठक्कुर: का उपयोग भी किया गया है, जो भगवान कृष्ण के सन्दर्भ में है। यह समय बारहवीं सदी ही है । इसके कुछ समय बाद पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय में श्रीनाथजी के विशेष विग्रह के साथ कृष्ण भक्ति की जाने लगी । जिसे ठाकुर जी सम्बोधन दिया गया । पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय का जन्म पन्द्रवीं सदी में हुआ है । और यह शब्द का आगमन छठी से बारहवीं सदी में तक्वुर शब्द के रूप में और भारतीय धरा पर इसका प्रवेश तुर्कों के माध्यम से हुआ । महमूद गजनबी ने (1000-1030) र्इ. और मुहम्मद गोरी ने (1175-1205) र्इ. के मध्य भारत पर आक्रमण किए थे ; ये भी मंगोलियन तुर्की थे । तभी से तक्वुर ठक्कुर रूप धारण कर संस्कृत भाषा में समाविष्ट हुआ। और इसका प्रचलन विस्तारित तक्वुर (tekvur) खिताब 16 वीं सदी की संस्कृत भाषा में ठक्कुर शब्द रूप में ; संस्कृत और फारसी बहिन बहिन होने से जादौन लोगों की बोली (क्षेत्रिय भाषा) डिंगल और पिंगल प्रभाव वाली राजस्थानी व्रज उपभाषा का ही रूप है । जो राजस्थान करौली( कुकुरावली) क्षेत्रों की रही है । और जादौन पठानों की भाषा पश्तो , पहलवी पर जिनका पूरा प्रभाव है । जादौन पठान यहूदीयों की शाखा होने से यदुवंशी तो हैं ही । विदित हो कि करौली के संस्थापक यादव शासक विजयपाल आदि सभी पाल उपाधि धारक थे । ---जो चरावाहों अथवा गोपोंं का विशेषण है । और वर्तमान जादौन ठाकुर उपाधि धारक जन-जाति का स्वयं को गोपों या अहीरों से स्वयं को सम्बद्ध न मानना इनको जादौन पठानों की भारतीय शाखा सूचित करता है । _________________________ ये कहते हैं कि हमारा गोपों से कोई सम्बन्ध नहीं है परन्तु इतिहास कार अहीरों को ही यादव मानने के पक्ष में । क्योंकि यादव ही सदीयों से गोपालन करने वाले रहे हैं । इसी लिए गोप विशेषण केवल यादवों को रूढ़ हो गया । संस्कृत भाषा में गोप शब्द का अर्थ:- (गां गोजातिं पाति रक्षतीति गोप: । (गो पा कः) जातिविशेषः यादव । गोयल इति हिन्दी भाषा में॥ तत् पर्य्यायः १ गोसंख्यः २ गोधुक् ३ आभीरः ४ वल्लवः ५ गोपालः ६ गोप:। ७ गौश्चर: ८ पाल: इति अमरःकोश ।२।९ ।५७ ॥ हम आप को बताऐं कि अमरकोश संस्कृत के कोशों में अति लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इसे विश्व का पहला समान्तर कोश (थेसॉरस्) कहा जा सकता है। इसके रचनाकार अमरसिंह बताये जाते हैं जो चन्द्रगुप्त द्वितीय (चौथी शब्ताब्दी) के नवरत्नों में से एक थे। कुछ लोग अमरसिंह को विक्रमादित्य (सप्तम शताब्दी) का समकालीन बताते हैं। इस कोश में प्राय: दस हजार नाम हैं, जहाँ मेदिनी में केवल साढ़े चार हजार और हलायुध में आठ हजार हैं। इसी कारण पण्डितों ने इसका आदर किया और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई। और अमर सिंह ने आभीर तथा गोप परस्पर पर्याय वाची रूप में वर्णित कर यादवों के व्यवसाय परक विशेषण माने हैं । परन्तु हिन्दू समाज की रूढि वादी ब्राह्मण वर्ण-व्यवस्था में तो देखिए! कि यहाँ अहीरों को क्षत्रिय कभी नहीं माना जाना ! निश्चित रूप में यादवों के इतिहास को विकृत करने में हिन्दू धर्म के उन ठेकेदारों का हाथ है । स्मृति-ग्रन्थों का निर्माण रूढि वादी ब्राह्मणों ने की है । जिनमें आँशिक नैतिक मूल्यों की आढ़ में अनेक अनैतिकताओं से पूर्ण बातों का भी समायोजन कर दिया गया है । गोपों की काल्पनिक मनगढ़न्त व्युत्पत्ति का वर्णन स्मृति-ग्रन्थों में भिन्न भिन्न प्रकार से है । कहीं “मणिबन्ध्यां तन्त्रवायात् गोपजातेश्च सम्भवः । ” इति पराशरपद्धतिः ॥ अर्थात् मणि बन्ध्या में तन्त्रवाय्यां से गोप उत्पन्न हुए! तो मनु-स्मृति कार कहीं गोपों का वर्णन बहेलियों , चिड़ीमार ,कैवट , तथा साँप पकड़ने वालों के साथ वनचारियों के रूप में वर्णित किया है। मनुः स्मृति में अध्याय -८ / २६० / “व्याधाञ्छाकुनिकान् गोपान् कैवर्त्तान् मूल खानकान् । व्यालग्राहानुञ्छवृत्तीनन्यांश्च वनचारिणः ) अहीरों या गोपों ने ब्राह्मणों की इस अवैध -व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया । इनकी गुलामी (दासता) स्वीकार न करके दस्यु अथवा विद्रोही बनना स्वीकार कर लिया है ! आइए देखें--- यादवों को कैसे वीर अथवा यौद्धा जन जाति से शूद्र बनाया गया है ? यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़-उ०प्र० ब्राह्मण समाज तथा ख़ुद को असली यदुवंशी क्षत्रिय कहने वाले जादौन तथा अन्य राज-पूत सभी अहीरों को यादव नहीं मानते हैं और उन्हें चोर , लुटेरा मानकर परोक्ष रूप में गालियाँ देते रहते हैं अहीरों के विषय में ये कहते हैं कि अहीरों अथवा गोपों ने प्रभास क्षेत्र में यदुवंशी स्त्रीयों सहित अर्जुन को लूट लिया था । इस लिए ये गोप यदुवंशी नहीं होते हैं । अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं को क्यों लूट लिया था ? और अहीरों के यदुवंशी न होने के लिए ये इसी बात को प्रमाणों के तौर पर पेश करते हैं । अब हम इसी प्रश्न का पौराणिक सन्दर्भों पर आधारित उत्तर प्रस्तुत करते हैं ! गोपों ने अर्जुन को इसलिए परास्त कर लूटा --- एक दिन जब दुर्योधन श्री कृष्ण से भावी युद्ध के लिए सहायता प्राप्त करने हेतु द्वारिकापुरी जा पहुँचा। जब वह पहुँचा उस समय श्री कृष्ण निद्रा मग्न थे ;अतएव वह उनके सिरहाने जा बैठा ! इसके कुछ ही देर पश्‍चात पाण्डु पुत्र अर्जुन भी इसी कार्य से उनके पास पहुँचा ! और उन्हें सोया देखकर उनके पैताने बैठ गया। जब श्री कृष्ण की निद्रा टूटी तो पहले उनकी द‍ृष्टि अर्जुन पर पड़ी। पहली दृष्टि का फल---- अर्जुन से कुशल क्षेम पूछने के भगवान कृष्ण ने उनके आगमन का कारण पूछा। अर्जुन ने कहा, “भगवन्! मैं भावी युद्ध के लिये आपसे सहायता लेने आया हूँ।” अर्जुन के इतना कहते ही सिरहाने बैठा हुआ दुर्योधन बोल उठा, “हे कृष्ण! मैं भी आपसे सहायता के लिये आया हूँ। क्योंकि मैं अर्जुन से पहले आया हूँ इसलिये सहायता माँगने का पहला अधिकार मेरा है।” दुर्योधन के वचन सुनकर भगवान कृष्ण ने घूमकर दुर्योधन को देखा और कहा, “हे दुर्योधन! मेरी द‍ृष्टि अर्जुन पर पहले पड़ी है, और तुम कहते हो कि तुम पहले आये हो। अतः मुझे तुम दोनों की ही सहायता करनी पड़ेगी। मैं तुम दोनों में से एक को अपनी पूरी सेना दे दूँगा और दूसरे के साथ मैं स्वयं रहूँगा। किन्तु मैं न तो युद्ध करूँगा और न ही शस्त्र धारण करूँगा। अब तुम लोग निश्‍चय कर लो कि किसे क्या चाहिये ? अर्जुन ने श्री कृष्ण को अपने साथ रखने की इच्छा प्रकट की जिससे दुर्योधन प्रसन्न हो गया क्योंकि वह तो श्री कृष्ण की विशाल गोप यौद्धाओं की नारायणी सेना लेने के लिये ही आया था। इस प्रकार श्री कृष्ण ने भावी युद्ध के लिये दुर्योधन को अपनी एक अक्षौहिणी नारायणी सेना दे दी और स्वयं पाण्डवों के साथ हो गये। अब हम घटना काआगे वर्णन करने से पूर्व एक अक्षौहिणी सेना का मान बताते हैं ---- 21870 रथ तथा 21870 हाथी तथा 65610 अश्वारोहि तथा 109350 पदाति ( पैदल सैनिक ) यह एक अक्षौहिणी सेना का मान होता था । संस्कृत भाषा जिसकी व्युत्पत्ति- इस प्रकार वर्णित है👇 अक्ष ऊहः समूहः संविकल्पकज्ञानं वा सोऽस्यामस्ति इनि, अक्षाणां रथानां सर्व्वेषामिन्द्रियाणाम् “वा ऊहिनीणत्वं वृद्धिश्च । रथगजतुरङ्गपदाति संख्याविशेषान्विते सेनासमूहे । “अक्षौहिण्यामित्यधिकैः सप्तत्या चाष्टभिः शतैः । संयुक्तानि सहस्राणि गजानामेकविंशतिः। एवमेव रथानान्तु संख्यानं कीर्त्तितं बुधैः । पञ्चषष्टिः सहस्राणि षट् शतानि दशैव तु । संख्यातास्तुरगास्तज्ज्ञैर्विना रथ्यतुरङ्गमैः । नॄणां शतसहस्रं तु सहस्राणि न वैवतु । शतानि त्रीणिचान्यानि पञ्चाशच्च पदातय इति । गोपों की अक्षौहिणी सेना में कुछ गोप यौद्धाओं का संहार भी हुआ । और कुछ शेष भी बच गए थे इन्हीं गोपों ने प्रभास क्षेत्र में परास्त कर गोपिकाओं सहित लूट लिया था 👇। इसी बात को बारहवीं शताब्दी में रचित ग्रन्थ -भागवत पुराण के प्रथम अध्याय स्कन्ध एक में श्लोक संख्या 20 में आभीर शब्द के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना का वर्णन किया गया है । इसे भी देखें---👇 "सो८हं नृपेन्द्र रहित: पुरुषोत्तमेन सख्या प्रियेण सुहृदा हृदयेन शून्य: ।। अध्वन्युरूक्रम परिग्रहम् अंग रक्षन् । गौपै: सद्भिरबलेव विनिर्जितो८स्मि ।२०। हे राजन् ! जो मेरे सखा अथवा प्रिय मित्र -नहीं ,नहीं मेरे हृदय ही थे ; उन्हीं पुरुषोत्तम कृष्ण से मैं रहित हो गया हूँ । कृष्ण की पत्नीयाें को द्वारिका से अपने साथ इन्द्र-प्रस्थ लेकर आर रहा था । परन्तु मार्ग में दुष्ट गोपों ने मुझे एक अबला के समान हरा दिया। और मैं अर्जुन कृष्ण की गोपिकाओं अथवा वृष्णि वंशीयों की पत्नीयाें की रक्षा नहीं कर सका! (श्रीमद्भगवद् पुराण अध्याय एक श्लोक संख्या २०) पृष्ठ संख्या --१०६ गीता प्रेस गोरखपुर संस्करण देखें- इसी बात को महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय में वर्णन किया है परन्तु निश्चित रूप से यहाँ पर युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन ही नहीं है अत: यह प्रक्षिप्त नकली श्लोक हैं। देखें👇 "ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस । आभीरा मन्त्रामासु समेत्यशुभ दर्शना ।। अर्थात् उसके बाद उन सब पाप कर्म करने वाले लोभ से युक्त अशुभ दर्शन अहीरों ने अापस में सलाह करके एकत्रित होकर वृष्णि वंशीयों गोपों की स्त्रीयों सहित अर्जुन को परास्त कर लूट लिया ।। महाभारत मूसल पर्व का अष्टम् अध्याय का यह 47 श्लोक है। महाभारत के मूसल पर्व में गोप के स्थान पर आभीर शब्द का प्रयोग सिद्ध करता है। कि गोप शब्द ही अहीरों का विशेषण है। हरिवंश पुराण यादवों का गोप (अहीर) अथवा आभीर रूप में ही वर्णन करता है यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है ; क्योंकि गोपालन ही इनकी शाश्वत वृत्ति (कार्य) वंश परम्परागत रूप से आज तक अवशिष्ट रूप में मिलती है । अर्जुन के प्रति यादवों का दूसरा बड़ा विरोध का कारण सुभद्रा का हरण था ---- जब एक बार वृष्णि संघ, भोज और अन्धक वंश के समस्त यादव लोगों ने रैवतक पर्वत पर बहुत बड़ा उत्सव मनाया। इस अवसर पर हज़ारों रत्नों और अपार सम्पत्ति का दान -गरीबों को दिया गया। बालक, वृद्ध और स्त्रियाँ सज-धजकर घूम रही थीं। अक्रूर, सारण, गद, वभ्रु, विदूरथ, निशठ, चारुदेष्ण, पृथु, विपृथु, सत्यक, सात्यकि, हार्दिक्य, उद्धव, बलराम तथा अन्य प्रमुख यदुवंशी अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उत्सव की शोभा बढ़ा रहे थे। गन्धर्व और बंदीजन उनका विरद बखान रहे थे। गाजे-बाजे, नाच तमाशे की भीड़ सब ओर लगी हुई थी। इस उत्सव में कृष्ण और अर्जुन भी बड़े प्रेम से साथ-साथ घूम रहे थे। वहीं कृष्ण की बहन सुभद्रा भी थीं। उनकी रूप राशि से मोहित होकर अर्जुन एकटक उनकी ओर देखने लगा। कदाचित अर्जुन काम-मोहित हो गया । एक दिन जब सुभद्रा रैवतक पर्वत पर देवपूजा करने गईं। पूजा के बाद पर्वत की प्रदक्षिणा की। ब्राह्मणों ने मंगल वाचन किया। जब सुभद्रा की सवारी द्वारका के लिए रवाना हुई, तब अवसर पाकर अर्जुन ने बलपूर्वक उसे उठाकर अपने रथ में बिठा लिया और अपने नगर की ओर चल दिया। गोप सैनिक सुभद्राहरण का यह दृश्य देखकर चिल्लाते हुए द्वारका की सुधर्मा सभा में गए ! और वहाँ सब हाल कहा। सुनते ही सभापाल ने युद्ध का डंका बजाने का आदेश दे दिया। वह आवाज़ सुनकर भोज, अंधक और वृष्णि वंशों के समस्त यादव योद्धा अपने आवश्यक कार्यों को छोड़कर वहां इकट्ठे होने लगे। सुभद्राहरण का वृत्तान्त सुनकर सभी यादवों की आंखें चढ़ गईं। उनका स्वाभिमान डगमगाने लगा उन्होंने सुभद्रा का हरण करने वाले अर्जुन को उचित दण्ड देने का निश्चय किया। कोई रथ जोतने लगा, कोई कवच बांधने लगा, कोई ताव के मारे ख़ुद घोड़ा जोतने लगा, युद्ध की सामग्री इकट्ठा होने लगी। तब बलराम ने विचार किया कि अभी युद्ध का उचित समय नहीं है । इसलिए बलराम ने गोपों से कहा- "हे वीर योद्धाओ ! कृष्ण की राय सुने बिना ऐसा क्यों कर रहे हो ?" फिर उन्होंने कृष्ण से कहा- "जनार्दन! तुम्हारी इस चुप्पी का क्या अभिप्राय क्या है ? तुम्हारा मित्र समझकर अर्जुन का यहाँ इतना सत्कार किया गया और उसने जिस पत्तल में खाया, उसी में छेद किया। यह दुस्साहस करके उसने हम समस्त यादवों को अपमानित किया है। मैं यह कदापि नहीं सह सकता।" तब कृष्ण बोले- भाई बलराम "अर्जुन ने हमारे कुल का अपमान नहीं, सम्मान किया है। क्योंकि यादवों में तो ये वधू-अपहरण परम्परा है ही उन्होंने हमारे वंश की महत्ता समझकर ही हमारी बहन का हरण किया है। क्योंकि उन्हें स्वयंवर के द्वारा उसके मिलने में संदेह था। उसके साथ संबंध करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। सुभद्रा और अर्जुन की जोड़ी बहुत ही सुन्दर होगी।" कृष्ण की यह बात सुन कर कुछ यादव लोग कसमसाए । और अर्जुन---से बदला लेने के लिए संकल्प बद्ध हो गये वही नारायणी सेना के गोप रूप में यादव यौद्धा ही थे --- जैसा कि हमने ऊपर वर्णन किया है सन्दर्भित ग्रन्थ-- ↑ महाभारत, आदिपर्व, अ0 217-220 ↑ श्रीमद् भागवत, 10।86।1-12 गोप निर्भाक होने से ही अभीर कहलाते थे । गोप यादवों का व्यवसाय परक विशेषण है ; गो-पालक होने से तथा यादव वंशगत विशेषण है । यदु की सन्तान होने से " यदोर्पत्यं इति यादव" और अभीर यादवों का ही स्वभाव गत विशेषण है ।क्योंकि ये कभी किसी से डरते नहीं हैं । हिब्रू बाइबिल में भी इनके इसी विशेषण को अबीर रूप में वर्णित किया है जिसका अर्थ है: वीर सामन्त अथवा यौद्धा मार्शलआरट का विशेषज्ञ । संस्कृत भाषा में अभीर शब्द की व्युत्पत्ति-मूलक विश्लेषण इस प्रकार है👇 अ = नहीं भीर: = भीरु अथवा कायर अर्थात् अहीर या अभीर वह है जो कायर न हो इसी का अण् प्रत्यय करने पर आभीर रूप बनता है ---जो समूह अथवा सन्तान वाची है । इसी लिए दुर्योधन ने इन अहीरों(गोपों) का नारायणी सेना के रूप में चुनाव किया ! और समस्त यादव यौद्धा तो अर्जुन से तो पहले से ही क्रुद्ध थे ! यही कारण था कि ; गोपों (अहीरों)ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था । क्योंकि नारायणी सेना के ये यौद्धा दुर्योधन के पक्ष में थे और कृष्ण का देहावसान हो गया था और बलदाऊ भी नहीं रहे थे । क्योंकि फिर इनको निर्देशन करने वाले बलराम तथा कृष्ण दौनों में से कोई नहीं था । फिर तो इन यदुवंशी गोपों ने अर्जुन पर तीव्रता से आक्रमण कर तीर कमानों से उसे परास्त कर दिया बहुत से यादव यौद्धा तो पहले ही आपस में लड़ कर मर गये थे । ये केवल कृष्ण से सम्बद्ध थे । नारायणी सेना के इन गोपों ने केवल अर्जुन से ही युद्ध किया था । नकि कृष्ण की रानियों अथवा यदुवंशी गोपिकाओं के रूप में वधूओं को लूटा था ! लूटपाट के वर्णन अतिरञ्जना पूर्ण व अहीरों के प्रति द्वेष भाव को अभिव्यञ्जित करने वाले लेखकों के हैं । केवल यदुवंश की सभी स्त्रीयों को अर्जुन के साथ न जाने के लिये कहा ! परन्तु ---जो साथ चलने के लिए सहमत नहीं हुईं थी उन्हें प्रताडित कर चलने के लिए कहा ! बहुत सी गोपिकाऐं स्वेैच्छिक रूप से गोपों के साथ वृन्दावन तथा हरियाणा में चलीं गयी । यहाँ यह तथ्य भी उद्धरणीय है कि -👇 भगवान कृष्ण ने अपने अवसान काल से पूर्व अर्जुन को निर्देश दिया था कि ---हे अर्जुन आप इन सभी यदु वंशी गोप स्त्रीयों को यादव यौद्धाओं के संहार के पश्चात् अपने साथ ही ले जाना सम्भवत: कृष्ण अर्जुन के साथ गोपियों को जानबूझ कर भेजा था क्योंकि वह इस बात को भली भांति जानते थे कि यादव योद्धा अर्जुन को बिल्कुल भी पसन्द नहीं करते हैं ! जब से उसने सुभद्रा का हरण किया है । किन्तु यादवों के बल पौरुष और प्रभाव को अर्जुन इसीलिए झेल पा रहा था क्योंकि उसके साथ भगवान् कृष्ण थे ! किन्तु अर्जुन यह समझता था कि मैं परम शक्तिशाली हूं मैंने नारायणी सेना को भी परास्त कर दिया है । तो ये अर्जुन का भ्रम था । नारायणी सेना शान्त थी कृष्ण के प्रभाव से क्योंकि वह कृष्ण की ही सेना थी ! आज उनके इसी अहंकार को तोड़ने के लिए भगवान कृष्ण ने अपने शरीरान्त काल में गोपियों को अर्जुन के साथ भेजा था ; ताकि आज उसका यह अहंकार भी खण्ड खण्ड हो जाए कि अहीरों को भी वह हरा सकता है ! कृष्ण इस तथ्य को भली-भांति जानते थे ; कि अहीर योद्धा अर्जुन को युद्ध में अवश्य ही परास्त कर देंगे और गोपियों को अपने साथ उनको ले जाएंगे और प्रभास क्षेत्र में यही हुआ। और अहीरो को अपने यदुवंश का मान रखना था । और इधर कृष्ण का भी मान रखना था । क्योंकि कृष्ण ही नारायणी सेना के अधिपति थे । कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में सर्व-प्रथम सभी के सम्मुख कहा था ये नारायणी सेना अपराजेय है इस पर कोई विजय प्राप्त नहीं कर सकता ; परन्तु उधर कृष्ण पाण्डवों के भी सारथी थे । कृष्ण के रथेष्ठा अर्जुन को हराना यदुवंश और कृष्ण के ही मान का घटाना था । इसलिए कृष्ण के रहते गोपों ने अर्जुन को कुछ नहीं कहा और अन्त समय में कृष्ण के अवसान काल में गोपों ने अर्जुन का भी मान मर्दन कर दिया और नारायणी सेना के अपराजेयता का संकल्प अहीरों ने अखण्ड बनाए रखा । और फिर यादव अथवा अहीर स्वयं ही ईश्वरीय शक्तियों (देवों) के अंश थे ; गोपों (अहीरों) को देवीभागवतपुराण तथा महाभारत , हरिवंश पुराण आदि मे देवताओं का अवतार बताया गया है ; देखें 👇 " अंशेन त्वं पृथिव्या वै , प्राप्य जन्म यदो:कुले । भार्याभ्याँश संयुतस्तत्र , गोपालत्वं करिष्यसि ।१४ अर्थात् अपने अंश से तुम पृथ्वी पर गोप बनकर यादव कुल में जन्म ले ! और अपनी भार्या के सहित अहीरों के रूप में गोपालन करेंगे।। वस्तुत आभीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं ! तब प्रभास क्षेत्र में अर्जुन इनका मुकाबला कैसे कल सकता था ? क्योंकि अहीरों का मुकाबला तो त्रेता युग में राम भी नहीं कर पाये थे । पुष्य-मित्र सुंग कालीन पाखण्डी ब्राह्मणों ने वाल्मीकि-रामायण के युद्ध काण्ड के 22 में सर्ग में राम के द्वारा समु्द्र के कहने पर अहीरों को उत्तर में स्थित द्रुमकुल्य देश में अमोघ वाणों से मार दिया था । ऐसी काल्पनिक मनगढ़न्त कथाओं का समायोजन किया । परन्तु अहीरों को राम फिर भी नहीं मार पाये अत: यह राम की पराजय ही सिद्ध होती है । क्योंकि अहीर तो आज भी जिन्दा हैं।👇 वास्तविक रूप में माना जाय ये सारी काल्पनिक मनगढ़न्त कथाऐं मात्र हैं जो वाल्मीकि-रामायण में अहीरों को आधार करके लिखी गयी हैं। इस कारण से की इन बातों को सत्य का आधार प्राप्त हो सके । यद्यपि अवान्तर काल में बहुत सी काल्पनिक घटनाओं का समायोजन पुराणों के रूप में भी हुआ है ;जो अहीरों को हेय सिद्ध करने के लिए जोड़ा गया । _________________________ अहीर वस्तुत पापी , लोभी या चोर उच्चके कभी नहीं होते हैं । क्योंकि तुलसी जैसे रूढ़ वादी सन्त कवि से भी नहीं रहा गया तो वह भी अहीरों के विषय में कह गये "निर्मल मन अहीर निज दासा तुलसी जैसे-रूढि वादी कवि भी अहीरों की प्रशंसा करने से अपने आप को नहीं रोक पाए हैं देखें--- रामचरित मानस का उत्तर काण्ड --👇 तेइ तृन हरित चरै जब गाई। भाव बच्छ सिसु पाइ पेन्हाई॥ नोइ निबृत्ति पात्र बिस्वासा। निर्मल मन अहीर निज दासा॥6॥ भावार्थ:-उन्हीं (धर्माचार रूपी) हरे तृणों (घास) को जब वह गो चरे और आस्तिक भाव रूपी छोटे बछड़े को पाकर वह पेन्हावे। निवृत्ति (सांसारिक विषयों से और प्रपंच से हटना) नोई (गो के दुहते समय पिछले पैर बाँधने की रस्सी) है, विश्वास (दूध दुहने का) बरतन है, निर्मल (निष्पाप) मन जो स्वयं अपना दास है। (अपने वश में है), दुहने वाला अहीर है॥6॥ यहाँ भी तुलसी दास ने संकेत किया है कि अहीर किसी का गुलाम नहीं होता वह तो अपना ही मन मौजी है । और हरियाणा के जाट , अहीर तथा गुजरात के गूज़र (गौश्चर:) इन्हीं यदुवंशी गोपों की बिखरी हुई शाखाऐं हैं । ---जो गौ- चारण करते करते आज कृषि करते हैं । और ये ही भारतीय कृषि का आधार स्तम्भ हैं। आधुनिक काल में भी कुछ रूढि वादी काशी ब्राण्ड ब्राह्मण तथा राजपूत अहीर ,जाट तथा गूजरों को हीनता की दृष्टि से देखते हैं । अहीर शब्द प्राचीनत्तम है जब जाट और गुर्जर जैसे- शब्द भी अस्तित्व में नहीं थे यादव किसी के साथ विश्वास घात कभी नहीं करते थे । क्यों कि यह क्षात्र-धर्म के विरुद्ध भी था । गर्ग संहिता अश्व मेध खण्ड अध्याय 60,41,में यदुवंशी गोपों ( अहीरों) की कथा सुनने और गायन करने से मनुष्यों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं ; एेसा वर्णन है । गोप शूद्र नहीं अपितु स्वयं में क्षत्रिय ही हैं । जैसा की संस्कृति साहित्य का इतिहास 368 पर वर्णित है👇 अस्त्र हस्ताश़्च धन्वान: संग्रामे सर्वसम्मुखे । प्रारम्भे विजिता येन स: गोप क्षत्रिय उच्यते ।। यादव: श्रृणोति चरितं वै गोलोकारोहणं हरे : मुक्ति यदूनां गोपानं सर्व पापै: प्रमुच्यते ।102। अर्थात् जिसके हाथों में अस्त्र एवम् धनुष वाण हैं ---जो युद्ध को प्रारम्भिक काल में ही विजित कर लेते हैं वह गोप क्षत्रिय ही कहे जाते हैं । जो मनुष्य गोप अर्थात् आभीर (यादवों )के चरित्रों का श्रवण करता है । वह समग्र पाप-तापों से मुक्त हो जाता है ।।102। महाभारत के मूसल पर्व में आभीर शब्द के द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना वर्णित की गयी है । निश्चित रूप से वह मूल भाव से मेल नहीं खाती है । क्योंकि यहाँ अर्जुन और यादवों (गोपों) के युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन नहीं है ; और अहीरों को अशुभ-दर्शी तथा पापकर्म करनेवाला, लोभी के रूप में वर्णन करना महाभारत कार की अहीरों के प्रति विकृतिपूर्ण अभिव्यक्ति मात्र है । इसी प्रकार का वर्णन विष्णु पुराण आदि में भी है । इतना ही नहीं भागवतपुराण में तो पुराण कार ने आभीर शब्द के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा गोपों को अर्जुन सहित गोपिकाओं को लूटने वाला बता गया है । और गोपों को दुष्ट विशेषण से अभिव्यक्ति किया है । अहीरों अथवा गोपों ने अर्जुन सहित कृष्ण की 16000 गोपिकाओं के रूप में पत्नियों को लूटा था अथवा नहीं एेसा वर्णन मात्र कल्पना रञ्जित ही है । निश्चित रूप से गोपों द्वारा अर्जुन को परास्त करने की घटना तो रही होगी ; परन्तु स्त्रीयाँ लूटने और धन लूटने की घटना काल्पनिक व मनगढ़न्त ही हैं । कुछ मूर्ख रूढ़ि वादी ब्राह्मणों ने यादवों के प्रति द्वेष स्वरूप गलत रूप में उन्हें प्रस्तुत करने के लिए ही बहुत सी काल्पनिक घटनाओं का समायोजन इनके साथ कर दिया है। क्योंकि अर्जुन और यादवों (गोपों) के मध्य पूर्व -युद्ध की पृष्ठ-भूमि को वर्णित ही नहीं किया है । यादवों की किसी कन्या का अपहरण उस समय उनकी प्रतिष्ठा का विषय था । जैसा कि हर स्वाभिमानी समाज का होता भी है । अब गोपों ने भी एक स्त्री के अप हरण में अर्जुन के साथ चलने वाली हजारों स्त्रीयों का अपहरण किया ! और वे स्त्रीयाँ वृष्णि वंशी गोपों की पत्नी रूप में गोपिकाऐं ही थीं । तब भी आश्चर्य क्या ? परन्तु इनकी घटनाओं के विस्तार में कल्पना मात्र ही है । क्योंकि गोप गोपिकाओं का अपहरण क्यों करने लगे ? और आपको बतादें कि नन्द ही गोप नहीं थे अपितु यदुवंशी होने से वसुदेव और कृष्ण भी गोप थे महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में इसका प्रमाण देखें---👇 प्रथम दृष्ट्या तो ये देखें-- कि वसुदेव को गोप कहा है। यहाँ हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया जाता है । वसुदेवदेवक्यौ च कश्यपादिती। तौच वरुणस्य गोहरणात् ब्रह्मणः शापेन गोपालत्वमापतुः। यथाह (हरिवंश पुराण :- ५६ अध्याय ) "इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत । गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१ येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा । स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२ द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण: ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३ ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते। स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४ वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले । गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५। तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:। तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६। देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।२७। सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति। गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें--- अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री पाण्डेय "राम" "ब्रह्मा जी का वचन " नामक 55 वाँ अध्याय। उपर्युक्त संस्कृत भाषा का अनुवादित रूप इस प्रकार है :-हे विष्णु ! महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा ।२१। कि हे कश्यप अापने अपने जिस तेज से प्रभावित होकर वरुण की उन गायों का अपहरण किया है । उसी पाप के प्रभाव-वश होकर तुम भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों) का जन्म धारण करें ।२२। तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ जन्म धारण करेंगी।२३। इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण कर महर्षि कश्यप दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि सहित आनन्द पूर्वक जीवन यापन करते रहेंगे । हे राजन् वही कश्यप वर्तमान समय में वसुदेव गोप के नाम से प्रसिद्ध होकर पृथ्वी पर गायों की सेवा करते हुए जीवन यापन करते हैं। मथुरा के ही समीप गोवर्धन पर्वत है; उसी पर पापी कंस के अधीन होकर वसुदेव गोकुल पर राज्य कर रहे हैं। कश्यप की दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि ही क्रमश: देवकी और रोहिणी के नाम से अवतीर्ण हुई हैं २४-२७। (उद्धृत सन्दर्भ --) यादव योगेश कुमार' रोहि' की शोध श्रृंखलाओं पर आधारित--- पितामह ब्रह्मा की योजना नामक ३२वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या २३० अनुवादक -- पं० श्रीराम शर्मा आचार्य " ख्वाजा कुतुब संस्कृति संस्थान वेद नगर बरेली संस्करण) अब कृष्ण को भी गोपों के घर में जन्म लेने वाला बताया गया है। देखें👇 गोप अयनं य: कुरुते जगत: सार्वलौकिकम् । स कथं गां गतो देशे विष्णुर्गोपर्त्वमागत: ।।९। अर्थात्:-जो प्रभु भूतल के सब जीवों की रक्षा करनें में समर्थ है । वे ही प्रभु विष्णु इस भूतल पर आकर गोप (आभीर) क्यों हुए ? अर्थात् अहीरों के घर में जन्म क्यों ग्रहण किया ? ।९। हरिवंश पुराण "वराह ,नृसिंह आदि अवतार नामक १९ वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या १४४ (ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करण) सम्पादक पण्डित श्री राम शर्मा आचार्य . तथा गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण की कृति में भी वराहोत्पत्ति वर्णन " नामक पाठ चालीसवाँ अध्याय में है और इतना ही नहीं समस्त ब्राह्मणों की आराध्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सत्ता गायत्री भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या हैं । और उसका वर्णन भी आभीर तथा गोप शब्द के पर्याय वाची रूप में वर्णित किया है । तथा हरिवंश पुराणों में ही अन्यत्र भी कृष्ण ने अपना जन्म अहीरों में माना है ।👇 एतदर्थं च वासो८यं वज्रे८स्मिन् गोप जन्म च। अमीषामुत्पथस्थानां निग्रहार्थ दुरात्मनाम्।। 58।। इस लिए व्रज में मेरा निवास हुआ और इसलिए मैेने अहीरों (गोपों)में अवतार ग्रहण किया है कुमार्ग पर स्थित हुए सभी दुरात्माओं का दमन करने के लिए यहाँ मेरा अवतार हुआ है ।। हरिवंश पुराण -विष्णु पर्व बाल चरित यमुना वर्णन नामक ग्यारह वाँ अध्याय )पृष्ठ संख्या 318 गीता प्रेस गोरखपुर संस्करण और इतना ही नहीं समस्त ब्राह्मणों की आराध्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री भी नरेन्द्र सेन अहीर की ही कन्या हैं । और उसका वर्णन भी आभीर तथा गोप शब्द के पर्याय वाची रूप में वर्णित किया है । और अनेक भारतीय पुराणों में जैसे अग्नि- पुराण,पद्मपुराण आदि में अहीरों को देवताओं के रूप में अवतरित किया है ; और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री को भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या के रूप में भी वर्णन किया गया है। वहाँ भी अहीर (आभीर) तथा गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची रूप में वर्णित हैं। पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड के अध्याय 16 में गायत्री को नरेन्द्र सेन आभीर (अहीर)की कन्या के रूप में वर्णित किया गया है ।👇 " स्त्रियो दृष्टास्तु यास्त्व , सर्वास्ता: सपरिग्रहा : आभीरः कन्या रूपाद्या शुभास्यां चारू लोचना ।७। न देवी न च गन्धर्वीं , नासुरी न च पन्नगी । वन चास्ति तादृशी कन्या , यादृशी सा वराँगना ।८। अर्थात् जब इन्द्र ने पृथ्वी पर जाकर देखा तो वे पृथ्वी पर कोई सुन्दर और शुद्ध कन्या न पा सके परन्तु एक नरेन्द्र सेन आभीर की कन्या गायत्री को सर्वांग सुन्दर और शुद्ध देखकर आश्चर्य चकित रह गये ।७। उसके समान सुन्दर कोई देवी न कोई गन्धर्वी न सुर और न असुर की स्त्री ही थी और नाहीं कोई पन्नगी (नाग कन्या ) ही थी। इन्द्र ने तब उस कन्या गायत्री से पूछा कि तुम कौन हो ? और कहाँ से आयी हो ? और किस की पुत्री हो ८। गोप कन्यां च तां दृष्टवा , गौरवर्ण महाद्युति:। एवं चिन्ता पराधीन ,यावत् सा गोप कन्यका ।।९ ।। पद्म पुराण सृष्टि खण्ड अध्याय १६ १८२ श्लोक में इन्द्र ने कहा कि तुम बड़ी रूप वती हो , गौरवर्ण वाली महाद्युति से युक्त हो इस प्रकार की गौर वर्ण महातेजस्वी कन्या को देखकर इन्द्र भी चकित रह गया कि यह गोप कन्या इतनी सुन्दर है !👇 यहाँ विचारणीय तथ्य यह भी है कि पहले आभीर-कन्या शब्द गायत्री के लिए आया है फिर गोप कन्या शब्द । अत: अहीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय हैं । वस्तुत आभीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं पद्म पुराण में पहले आभीर- कन्या शब्द आया है फिर गोप -कन्या भी गायत्री के लिए .. तथा अग्नि पुराण मे भी आभीरों (गोपों) की कन्या गायत्री को कहा है । और सुनो !गो-पालन यदु वंश की परम्परागत वृत्ति ( कार्य ) होने से ही भारतीय इतिहास में यादवों को गोप ( गो- पालन करने वाला ) कहा गया है । वैदिक काल में ही यदु को दास सम्बोधन के द्वारा असुर संस्कृति से सम्बद्ध मानकर ब्राह्मणों की अवैध वर्ण-व्यवस्था ने शूद्र श्रेणि में परिगणित किया था । तो यह दोष ब्राह्मणों का ही है यादवों का कदापि नहीं यदु की गोप वृत्ति को प्रमाणित करने के लिए ऋग्वेद की ये ऋचा सम्यक् रूप से प्रमाण है । ऋग्वेद भारतीय संस्कृति में ही नहीं अपितु विश्व- संस्कृतियों में प्राचीनत्तम है । " उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे । (ऋ०10/62/10) अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनों दास गायों से घिरे हुए हैं ; गो-पालन शक्ति के द्वारा सौभाग्य शाली हैं हम उनका वर्णन करते हैं । (ऋ०10/62/10/) विशेष:- व्याकरणीय विश्लेषण - उपर्युक्त ऋचा में दासा शब्द प्रथमा विभक्ति के अन्य पुरुष का द्विवचन रूप है । क्योंकि वैदिक भाषा ( छान्दस् ) में प्राप्त दासा द्विवचन का रूप पाणिनीय द्वारा संस्कारित भाषा लौकिक संस्कृत में दासौ रूप में है । परिविषे:-परित: चारौ तरफ से व्याप्त ( घिरे हुए) स्मद्दिष्टी स्मत् दिष्टी सौभाग्य शाली अथवा अच्छे समय वाले द्विवचन रूप । गोपर् ईनसा सन्धि संक्रमण रूप गोपरीणसा :- गो पालन की शक्ति के द्वारा । गोप: ईनसा का सन्धि संक्रमण रूप हुआ गोपरीणसा जिसका अर्थ है शक्ति को द्वारा गायों का पालन करने वाला । अथवा गो परिणसा गायों से घिरा हुआ यदु: तुर्वसु: च :- यदु और तुर्वसु दौनो द्वन्द्व सामासिक रूप । मामहे :- मह् धातु का उत्तम पुरुष आत्मने पदीय बहुवचन रूप अर्थात् हम सब वर्णन करते हैं । अब हम इस तथ्य की विस्तृत व्याख्या करते हैं । यहाँ एक तथ्य विचारणीय है कि असुर शब्द का पर्याय वैदिक सन्दर्भों में दास शब्द है । दास शब्द देव संस्कृति के विरुद्ध रहने वाले दाहिस्तान Dagestan को निवासीयों का विशेषण है । ---जो ईरानी असुर संस्कृति के अनुयायी तथा अहुर-मज्दा (असुर महत्) में आस्था रखने वाले हैं । पुराणों में भी कहीं गोपों को क्षत्रिय कहा गया है; तो स्मृति-ग्रन्थों में उन्हीं गोपो को शूद्र रूप में वर्णित कर दिया है । अब स्मृति-ग्रन्थों में गोपों को शूद्र कह कर वर्णित किया गया है। यह भी देखें--- इसकी आँशिक वर्णन हम ऊपर कर चुके हैं । यहाँ भी कुछ देखें---👇 व्यास -स्मृति )तथा सम्वर्त -स्मृति में एक स्थान पर लिखा है । स्मृति-ग्रन्थों की रचना काशी में में बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में लिखीं गयी । गोपों में हीन भावना भलने के लिए उन्हें शूद्र कन्या में क्षत्रिय से उत्पन्न कर दिया । 👇 " क्षत्रियात् शूद्र कन्यानाम् समुत्पन्नस्तु य: सुत: । स गोपाल इति ज्ञेयो भोज्यो विप्रैर्न संशय: अर्थात् क्षत्रिय से शूद्र की कन्या में उत्पन्न होने वाला पुत्र गोपाल अथवा गोप होता है । और विप्रों के द्वारा उनके यहाँ भोजान्न होता है इसमें संशय नहीं .... फिर पाराशर स्मृति में वर्णित है कि..गोप अर्थात् अहीर शूद्र हैं । वर्द्धकी नापितो गोप: आशाप: कुम्भकारक: । वणिक् किरात: कायस्थ: मालाकार: कुटुम्बिन: एते चान्ये च बहव शूद्र:भिन्न स्व कर्मभि: चर्मकारो भटो भिल्लो रजक: पुष्करो नट: वरटो मेद। चाण्डालदास श्वपचकोलका: ।।११।। एतेsन्त्यजा समाख्याता ये चान्ये च गवार्शना: एषां सम्भाषणाद् स्नानंदर्शनादर्क वीक्षणम् ।।१२।। वर्द्धकी (बढ़ई) , नाई , गोप , आशाप , कुम्हार ,वणिक् ,किरात , कायस्थ, माली , कुटुम्बिन, ये सब अपने कर्मों से भिन्न बहुत से शूद्र हैं । चमार ,भट, भील ,धोवी, पुष्कर, नट, वरट, मेद , चाण्डाल ,दाश,श्वपच , तथा कोल (कोरिया)ये सब अन्त्यज कहे जाते हैं । और अन्य जो गोभक्षक हैं वे भी अन्त्यज होते हैं । इनके साथ सम्भाषण करने पर स्नान कर सूर्य दर्शन करना चाहिए तब शुद्धि होती है ।👇 जब रूढि वादी ब्राह्मणों को लगा कि अहीरों की प्रतिष्ठा हम ब्राह्मणों से भी अधिक हो रही है ।तब ब्राह्मणों ने कपट प्रपञ्च के द्वारा अहीरों को शूद्र, दस्यु अथवा हेय रूप में वर्णित किया। स्मृतियों की रचना काशी में हुई , वर्ण-व्यवस्था का पुन: दृढ़ता से विधान पारित करने के लिए काशी के इन ब्राह्मणों ने रूढ़ि वादी पृथाओं के पुन: संचालन हेतु स्मृति -ग्रन्थों की रचना की जो पुष्यमित्र सुंग की परम्पराओं के अनुगामी थे । देखें--- निम्न श्लोक दृष्टव्य है इस सन्दर्भ में..👇 " वाराणस्यां सुखासीनं वेद व्यास तपोनिधिम् । पप्रच्छुमुर्नयोSभ्येत्य धर्मान् वर्णव्यवस्थितान् ।।१।। अर्थात् वाराणसी में सुख-पूर्वक बैठे हुए तप की खान वेद व्यास से ऋषियों ने वर्ण-व्यवस्था के धर्मों को पूछा । निश्चित रूप इन विरोधाभासी तथ्यों से ब्राह्मणों के विद्वत्व की पोल खुल गयी है । जिन्होंने योजना बद्ध विधि से समाज में ब्राह्मण वर्चस्व स्थापित कर के लिए सारे -ग्रन्थों पर व्यास की मौहर लगाकर अपना ही स्वार्थ सिद्ध किया है । देव संस्कृति के विरोधी दास अथवा असुरों की प्रशंसा असंगत बात है ; अत:मह् धातु का अर्थ प्रशंसायाम् के सन्दर्भों में नहीं है ऋग्वेद के प्राय: ऋचाओं में यदु और तुर्वसु का वर्णन नकारात्मक रूप में ही हुआ है ! दास शब्द ईरानी भाषाओं में दाहे शब्द के रूप में विकसित है । नि:सन्देह जिस यदु वंश में गायत्री सदृश्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी का जन्म नरेन्द्र सेन अहीर के घर में हुआ हो । और उन्हीं अहीरों के समाज में कृष्ण का जन्म हुआ हो फिर अहीरों को मूर्खों की उपधियाँ क्यों दी गयी ? अहीरों को पृथ्वी पर ईश्वरीय शक्तियाँ का रूप माना गया है । समस्त ब्राह्मणों की साधनाऐं गायत्री के द्वारा सिद्ध होने वाली हैं और वह गायत्री नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या है । कुछ पुराणों ने गोपों (यादवों ) को क्षत्रिय भी स्वीकार किया है । ब्रह्म पुराण में वर्णन है कि 👇 " नन्द क्षत्रियो गोपालनाद् गोप : अर्थात् नन्द क्षत्रिय गोपलन करने ही गोप कहलाते हैं । ( इति ब्रह्म पुराण) और भागवतपुराण में भी यही संकेत मिलता है गर्ग संहिता का उद्धरण हम लिख चुके हैं । भागवतपुराण के यद्यपि बहुतायत अंश प्रक्षिप्त (नकली) है । कुछ यादव विरोधी भागवतपुराण के प्रक्षिप्त नकली अंश उद्धृत करके कहते हैं कि कहते हैं कि वसुदेव और नन्द भाई नहीं थे ! परन्तु भागवतपुराण में ही वसुदेव नन्द को अपना भाई कहते हैं।👇 यदुकुलावतंस्य वरीयान् गोप: के रूप में वर्णित किया है भागवतपुराण के दशम् स्कन्ध अध्याय 5 में नन्द के विषय में वर्णन है । यदुकुलावतंस्य वरीयान् गोप: पञ्च प्राणतुल्येषु । पञ्चसुतेषु मुख्यमस्य नन्द राज:। 67। प्रसिद्ध पर्जन्य गोप के प्रणों के सामान -प्रिय पाँच पुत्र थे जिसमें नन्द राय मुख्य थे ।👇 वसुदेव उपश्रुत्वा,भ्रातरं नन्दमागतम् । पूज्य:सुखमाशीन: पृष्टवद् अनामयम् आदृत:।47। भा०10/5/20/22 यहाँ स्मृतियों के विधान के अनुसार अनामयं शब्द से कुशलक्षेम क्षत्रिय जाति से पूछी जाती है । ब्राह्मणं कुशलं पृच्छेत् बाहु जात: अनामयं । वैश्य सुख समारोग्यं , शूद्र सन्तोष नि इव च।63। ब्राह्मण: कुशलं पृच्छेत् क्षात्र बन्धु: अनामयं । वैश्य क्षेमं समागम्यं, शूद्रम् आरोग्यम् इव च।64। संस्कृत ग्रन्थ नन्द वंश प्रदीप में वर्णित है कि नन्द का जन्म यदुवंशी देवमीढ़ के वंश में हुआ । नन्द का जन्म यदुवंशी देवमीढ़ के वंश में हुई 👇 " नन्दोत्पत्तिरस्ति तस्युत, यदुवंशी नृपवरं देवमीढ़ वंशजात्वात ।65। अब ब्रह्माण्डपुराण के उत्तरखण्ड राधा - हृदय अध्याय 6 में वर्णित है कि " जज्ञिरे वृष्णि कुलस्थ, महात्मनो महोजस: नन्दाद्या वेशाद्या: श्री दामाश्च सबालक: ।68। अर्थात् यदुवंश की वृष्णि शाखा में उत्पन्न नन्द आदि गोप तथा श्री दामा गोप आदि बालक सहित थे ब्रह्म वैवर्त पुराण श्री कृष्ण जन्म खण्ड अ०13,38,39,में सर्वेषां गोप पद्मानां गिरिभानुश्च भाष्कर: पत्नी पद्मावते समा तस्य नाम्ना पद्मावती सती ।। तस्या: कन्या यशोदात्वं लब्धो नन्दश्च वल्लभा: ।94। जब गर्गाचार्य नन्द जी के घर गोकुल में राम और श्याम का नामकरण संस्कार करने गए थे ; तब गर्ग ने कहा कि नन्द जी और यशोदा तुम दोनों उत्तम कुल में उत्पन्न हुए हो; यशोदा तुम्हारे पिता का नाम गिरिभानु गोप है और माता का नाम पद्मावती सती है तुम नन्द जी को पति रूप पाकर कृतकृत्य हो गईं हो! कुछ कथा- वाचक ---जो कृष्ण चरित्र के विवरण के लिए भागवतपुराण को आधार मानते हैं तो भागवतपुराण भी स्वयं ही परस्पर विरोधाभासी तथ्यों को समायोजित किए हुए है ।👇 रोहिण्यास्तनय: प्रोक्तो राम: संकर्षस्त्वया । देवक्या गर्भसम्बन्ध: कुतो देहान्त विना ।।८ (भागवतपुराण दशम् स्कन्ध अध्याय प्रथम) भगवन् आपने बताया कि बलराम रोहिणी के पुत्र थे ।इसके बाद देवकी के पुत्रों में आपने उनकी गणना क्यों की ? दूसरा शरीर धारण किए विना दो माताओं का पुत्र होना कैसे सम्भव है? तब द्वित्तीय अध्याय श्लोक संख्या 8 में शुकदेव परिक्षित को इसका उत्तर देते हुए कहते हैं ।👇 भगवानपि विश्वात्मा विदित्वा कंसजं भयम् । यदूनां निजनाथानां योग मायां समादिशत् ।6। गच्छ देवि व्रजं भद्रे गोप गोभिरलंकृतम्। रोहिणी वसुदेवस्य भार्या८८स्ते नन्द गोकुले ।। अन्याश्च कंस संविग्ना विवरेषु वसन्ति हि ।।7 देवक्या जठरे गर्भं शेषाख्यं धाम मामकम् । तत् संनिकृष्य रोहिण्या उदरे संनिवेशय ।।8 अथाहमंशभागेन देवक्या: पुत्रतां शुभे ! प्राप्स्यामि त्वं यशोदायां नन्दपत्न्यां भविष्यसि ।9। अर्थात् विश्वात्मा भागवान् ने देखा कि मुझे हि अपना स्वामी और सब कुछ मानने वाले यदुवंशी गोप कंस के द्वारा बहुत ही सताए जी रहे हैं। तब उन्होंने अपनी योगमाया को आदेश दिया।6। कि देवि ! कल्याणि तुम व्रज में जाओ वह प्रदेश गोपों और गोओं से सुशोभित है । वहाँ नन्द बाबा के गोकुल में वसुदेव की पत्नी रोहिणी गुप्त स्थान पर रह रही हैं। कंस के भय से उनकी और भी पत्नियाँ कंस से डर कर नन्द के सानिध्य में छिपकर रह रहीं हैं 7।। इस समय मेरा अंश जिसे शेष कहते हैं ; देवकी के उदर में गर्भ रूप में स्थित है ! उस गर्भ को तुम वहाँ से निकाल कर गोकुल में रोहिणी के उदर में रख दो ।8। कल्याणि ! अब ---मैं अपने समस्त ज्ञान बल आदि अंशों के साथ देवकी का पुत्र बनुँगा और तुम नन्द की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेना !9। प्रथम बात तो यहाँ यह प्रक्षिप्त है कि(गर्भ अन्तरण )की घटना प्राकृतिक नियमों के विपरीत हो गयी ! ---जो कि असम्भव है।उस युग में वह भी प्राकृतिक सिद्धान्तों के पूर्णत विरुद्ध ! अब भागवतपुराण में परस्पर विरोधाभासी प्रसंग वर्णित करते हैं ---जो संकर्षण शब्द की व्युत्पत्ति-के सन्दर्भ में है ।👇 गर्भ संकर्षणात् तं वै प्राहु: संकर्षणं भुवि । रामेति लोकरमणाद् बलं बलवदुच्छ्रयात् ।13। अर्थात् देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में खींच खींचे जाने के कारण शेष जी को लोग संसार में संकर्षण कहेंगे । अब दशम् स्कन्ध के अष्टम् अध्याय में पहले क्या लिखा है --दौनों की तुलना करें ! भागवतपुराण में गर्गाचार्य संकर्षण शब्द की व्युत्पत्ति-मूलक विश्लेषण (Etymological Analization )ही अवैज्ञानिक व असंगत है प्रस्तुत करते हैं । अयं हि रोहिणी पुत्रो रमयन् सुहृदो गुणै:! आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद् बलं विदु: यदूनामपृथग्भावात् संकर्षणमुशन्त्युत।।12 गर्गाचार्य कहते हैं कि यह रोहिणी का पुत्र है इसलिए इसका नाम रौहिणेय भी होगा । यह अपने लगे सम्बन्धियों और मित्रों को अपने गुणों से अत्यन्त आनन्दित करेगा । प्रथम भाग .... _________________________ प्रेषक:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

Yadav Yogesh kumar -Rohi- की अन्य किताबें

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अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश

10 फरवरी 2018
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अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश ____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात्  उन पापकर्म करनेवाले तथा लोभ से पतित चित्त वाले ! अशुभ -दर्शी अहीरों ने एकत्रित होकर वृष्णि वंशी यादवों को लूटने की सलाह की ।४७। बौद्ध

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सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण

10 फरवरी 2018
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सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण । कृष्ण का वास्तविक वंश ---____________________________________कृष्ण वास्तविक रूप में आभीर (गोप) ही थे ।क्योंकि महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप ही कहा गया है ।और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर ) परिवार में हुआ यादव

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कृष्ण का यथार्थ जीवन-दर्शन

10 फरवरी 2018
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श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं । जिनका सम्बन्ध असीरियन तथा द्रविड सभ्यता से भी है । द्रविड (तमिल) रूप अय्यर अहीर से विकसित रूप है।_________________________________________कृष्ण का स्पष्ट प्रमाण हमें छान्दोग्य उपनिषद के एक श्लोक में मिलता है। छान्दोग्य उपनिषद  :--(3.17.6 ) कल्पभेदादिप्रायेणैव “

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यदुवंशी क्षत्रिय नहीं अपितु शूद्र होते हैं ; ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था के अनुसार और क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं ।

13 फरवरी 2018
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यदुवंशी क्षत्रिय नहीं शूद्र हैं ; क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं_________________________________________जब यदु को ही वेदों में दास अथवा शूद्र कहा है । ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है।  वह भी गोपों को र

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--

13 फरवरी 2018
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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________(यादव योगेश कुमार'रोहि)'शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ....-यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषणनवीन गवेषणाओं पर आधारित  🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🌃🌃🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🗼🌅🌅🎠🎠🎠🎠      शूद्र कौन थे ? और इनक

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प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।

13 फरवरी 2018
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प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थ

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आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________

16 फरवरी 2018
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आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________सृष्टि -सञ्चालन का सिद्धान्त बडा़ अद्भुत है ।जिसे मानवीय बुद्धि अहंत्ता पूर्ण विधि से कदापि नहीं समझ सकती है ।विश्वात्मा ही सम्पूर्ण चराचर जगत् की प्रेरक सत्ता है । और आत्मा प्राणी जीवन की , इसी सन्दर्

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अफगानिस्तान में जादौन पठानों का खिताब तक्वुर (ठक्कुर) और भारत में जादौन ठाकुर ..

13 अप्रैल 2018
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---जो लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे । जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे। यद्यपि पाश्चात्य इतिहास विदों के अनुसार यहुदह् ही यदु:  शब्द का रूप है ।एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में भी मिलता है । जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ?

3 मई 2018
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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया दें आपका बन्धु यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० ______________________________________________गोपों ने प्रभा

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? एक विचार विश्लेषण ---

6 मई 2018
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है ।---मैं भी असली घोषी अहीर हूँ ।मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूतोंलोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है इन लोगों हम्हें समाज में कभी भी

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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य . ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।

8 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य .....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे ।जैसे यूरोप में पाँचवीं

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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।

10 मई 2018
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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।यादवों के इतिहास को बिगाड़ने के षड्यन्त्र तो खूब किया गया परन्तु  फिर भी सफल न हो पाए षड्यन्त्रकारी ! सत्य विकल्प रहित निर्भीक एक रूप होता है ।जबकि असत्य बहुरूप धारण करने वाला बहुरूपिया ।आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।जाट और

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सुरों का निवास स्थान स्वर्ग आज का स्वीडन ! एक शोध श्रृंखला अन्वेषक:-- यादव योगेश कुमार 'रोहि'

12 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य ।. ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी ; संस्कृत साहित्य में देव संस्कृति के अनुयायी ब्राह्मणों ने भरत शब्द  का अर्थ जंगली या असभ्य किया है । और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारत में आगत देव स

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भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं । जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।

30 मई 2018
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टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में हुआ था ।भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं ।जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय। असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय।

4 जुलाई 2018
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इतिहास के बिखरे हुए पन्ने " कुछ कथा- वाचक ---जो कृष्ण चरित्र के विवरण के लिए भागवतपुराण को आधार मानते हैं तो भागवतपुराण भी स्वयं ही परस्पर विरोधाभासी तथ्यों को समायोजित किए हुए है ।👇रोहिण्यास्तनय: प्रोक्तो राम: संकर्षस्त्वया ।देवक्या गर्भसम्बन्ध: कुतो देहान्त विना ।।८(भागवतपुराण दशम् स्कन्ध अध

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण

12 जुलाई 2018
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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग प्रथम __________________________________________भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर ! जो भार

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -

24 अगस्त 2018
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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ -यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण एवं नवीन गवेषणाओं पर आधारित शोध है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआइन्हीं तथ्यों की एक विस्तृत विवेचना :- -------------

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ऋग्वेद का पुरुष-सूक्त है ! पाणिनीय कालीन पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी पुरोहितों द्वारा रचित -- देखें प्रमाण- युक्त विश्लेषण " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 सितम्बर 2018
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वर्ण-व्यवस्था की प्रक्रिया का वर्णन करने वाले ऋग्वेद के पुरुष सूक्त की वास्तविकताओं पर कुछ प्रकाशन:--- वैदिक भाषा (छान्दस्) और लौकिक भाषा (संस्कृत) को तुलनानात्मक रूप में सन्दर्भित करते हुए --__________________________________________ऋग्वेद को आप्तग्रन्थ एवं अपौरुषेय भारतीय रूढि वादी ब्राह्मण समा

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गणेश , विष्णु और श्री इन पौराणिक पात्रों का तादात्म्य रोमनों के देवता जेनस सुमेरियन पिस्क-नु तथा रोमनों सुमेरियन देवी ईष्टर

2 अक्टूबर 2018
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यजुर्वेद में गणेश का वर्णन ऋग्वेद के सादृश्य परगणपति रूप में  प्राप्त होता है । देखें👇“ओ३म् गणानांत्वां गणपतिगूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूँ हवामहे !निधीनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।”उपर्युक्त ऋचा यजुर्वेद (23/19) में  है।यहाँ देव गणेश वर्णित हैं।यद्यप

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क्या कृष्ण अहीर थे ?

9 अक्टूबर 2018
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-क्या कृष्ण अहीर थे ?विचार-विश्लेषण---  यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजा़दपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद- अलीगढ़---सम्पर्क सूत्र --8077160219...../_________________________________________संस्कृत भाषा में आभीरः, पुल्लिंग विशेषण शब्द है ---जैसे कि वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में उद्धृत किसानों है वाचस्पत्

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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ।

18 अक्टूबर 2018
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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ। यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण नवीन गवेषणाओं पर आधारित है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ।आर्य विशेषण किस जन-जाति का प्रवृत्ति-मूलक विशेषण था ? -------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही

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भारतीय पुराणों में महापुराणों मे परिगणित भविष्य पुराण आठारहवीं सदी की रचना है । जिसमे आदम और हव्वा का वर्णन है

13 नवम्बर 2018
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक  राजनेताओं के  साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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इतिहास लेखक डॉ मोहन लाल गुप्ता के अनुसार करौली के यदुवंशी अपने नाम के बाद 'सिंह' विशेषण न लगाकर 'पाल' विशेषण लगाते थे ; क्यों कि ये स्वयं को गोपाल, गोप तथा आभीरया या गौश्चर मानते थे और बंगाल का पाल वंश भी इन्हीं से सम्बद्ध है ।करौली शब्द स्वयं कुकुरावलि का तद्भव है :- कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली

25 नवम्बर 2018
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी ।ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश ज

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करौली का इतिहास और वहाँ के शासकों का वंश व व्यवसाय --- अद्यतन संस्करण--

25 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे  । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में ।जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित

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भरतपुर के जाट जिन्हें अपना पूर्वज मानते हैं । धर्म्मपाल के बाद पैंतालीसवाँ पाल शासक अर्जुन पाल हुआ ।ये सभी पाल शासक पाल उपाधि का ही प्रयोग करते थे । क्यों कि इनका विश्वास था कि हमारे पूर्व पुरुष यदु ने गोपालन की वृत्ति को ही स्वीकार किया था । अतः पाल उपाधि गौश्चर गोप तथा अभीरों की आज तक है ।

26 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एकशाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशजमाने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित र

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यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास--- धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ---- प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

26 नवम्बर 2018
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________________________१-धर्म्मपाल२-सिंहपाल३-जगपाल ४- नरपाल५-संग्रामपाल६-कुन्तपाल७-भौमपाल८-सोचपाल९-पोचपाल१०-ब्रह्मपाल११-जैतपाल । करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---यह बारहवाँ पाल शासक था ---1030 ई०सन् विजयपाल १२- विजयपाल (1030)१३- त्रिभुवनपाल(1000)१४-धर्मपाल (1090)१५- कुँवरपाल (1120)१६-

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संस्कृत व हिन्दी वर्णमाला का ध्वनि वैज्ञानिक विवेचन नवीनत्तम गवेषणाओं पर आधारित ----- यादव योगेश कुमार "रोहि"

3 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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हिन्दी वर्णमाला का वैज्ञानिक विवेचन (संशेधित संस्करण)

22 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________

29 दिसम्बर 2018
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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर "_________________________________________प्रस्तुति-करण :-  यादव योगेश कुमार 'रोहि' प्रेम सृष्टि का  एक वह अनुभव है ।--जो उसके निर्माण की आधार -शिला है ।प्रेम अनेक उन  भावनाओं का समुच्चय है । जो पारस्परिक स्नेह से प्रस्फुटित होकर लेकर भ

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यादव इतिहास

15 फरवरी 2019
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के अल्पज्ञानी लोग आभीर और यादवों को पृथक दिखाने के लिए महाभारत के मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं 👇________________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात् वे

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । यादव योगेश कुमार "रोहि"

27 फरवरी 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों। वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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💥 भागवत धर्म के संस्थापक आभीर जन-जाति के लोग 💥

5 मार्च 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आरा

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मनुःस्मृति और श्रीमद्भगवत् गीता का पारम्परिक विरोध :-

7 मार्च 2019
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सामवेद की महत्ता को लेकर श्रीमद्भगवद् गीता और मनुःस्मृति का पारस्परिक विरोध सिद्ध करता है ;या तो तो मनुःस्मृति ही मनु की रचना नहीं है ।या फिर  श्रीमद्भगवद् गीता कृ़ष्ण का उपदेश नहीं ।परन्तु इसका बात के -परोक्ष संकेत प्राप्त होते हैं कि कृष्ण देव संस्कृति के विद्रोही पुरुष थे । जिन्हें ऋग्वेद के अष्ट

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है । अब योग क्या है ? और स्वास्थ्य क्या है ? इनकी व्याख्यापरक परिभाषा पर भी विचार आवश्यक है 👇

16 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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सत्य जो किया ने कहा नहीं !

22 मार्च 2019
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राक्षसों को महाभारत में धर्मज्ञ कहा है । ______________________________________राक्षस शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में होता है ।धर्म की रक्षा करने वाला " धर्मस्य रक्षयति इति "राक्षस रक्षस् एव स्वार्थे अण् । इति राक्षस “क्वचित् स्वार्थिका अपि प्रत्ययाः प्रकृतितो लिङ्गवचनान्यतिवर्त्तन्ते ।_______________

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धर्म पहले क्या था ? और अब क्या है ?

23 मार्च 2019
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आप जानते हो जब कोई वस्त्र नया होता है ।वह शरीर पर सुशोभित भी होता है ; और शरीर की सभी भौतिक आपदाओं से रक्षा भी करता है ।👇परन्तु कालान्तरण में वही वस्त्र जब पुराना होने पर जीर्ण-शीर्ण होकर चिथड़ा बन जाता है ।अर्थात्‌ उसमें अनेक विकार आ जाते हैं ।तब उसका शरीर से त्याग देना ही उचित है ।आधुनिक धर्म -पद

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पश्चिमी एशिया की संस्कृतियों में ईश्वर वाची शब्द–

26 मार्च 2019
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जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक देव संस्कृति के अनुयायीयों से भी  सम्बद्ध है। ________________________________________---- विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि' जैसे हिब्रू ईश्वर वाची शब्द  यहोवा ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ ) आद संस्कृत क्

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"योग आत्म-साक्षात्कार की कुञ्जिका " यादव योगेश कुमार "रोहि"

31 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है ।परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् का ही रूप है ।आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa( स्वेसा )तथाswījēn( स्वजेन) शब्द आत्म बोधक हैं । अर्थात् own, relation प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक में: 1-swēs (a) 2-`own'; swēs n. (b) `property' 2-

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"चौधरी, ठाकुर तथा चौहान जैसी उपाधियों के श्रोत " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 अप्रैल 2019
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चौधरी शब्द पुल्लिंग विशेषण-पद के रूप में हिन्दी में विद्यमान है यह शब्द जिसका सम्बन्ध संस्कृत भाषा के चक्रधारिन् ( चक्रधारी)  शब्द से तद्भूत है-👇जो मध्यकालीन कौरवी तथा बाँगड़ू बोलीयों में चौधरी शब्द के रूप में विकसित हुआ ।संस्कृत कोश -ग्रन्थों में चक्रधारि कृष्ण का विशेषण रहा है ।कालान्तरण में चक्र

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भविष्य पुराण अठारहवीं सदी की रचना है । परन्तु अन्ध भक्त रहते है यह महर्षि वेद - व्यास- की रचना है !

7 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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ठाकुर उपाधि न तो वंश गत है । यह तुर्को और मुगलों की उतरन के रूप में एक । जमीदारीय खिताब था ।. प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

8 अप्रैल 2019
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_____________________________________टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में किया गया था ।जिसका प्रयोग " स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।उत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि सेइस शीर्षक (उपा

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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है । गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।

9 अप्रैल 2019
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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है ।गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।गोषन् (गोष: )गां सनोति सन--विच् ।“सनोतेरनः” पा० नान्तस्य नित्यषत

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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है । विचार-विश्लषेण--- यादव योगेश कुमार "रोहि"

12 अप्रैल 2019
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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है ।और अहीर -रेजीमेण्ट इस मार्शल आर्ट प्रायोजकों के लिए एक प्रायौगिक संस्था बनकर देश की सुरक्षात्मक गतिविधियों को सुदृढ़ता प्रदान करेगी।एेसा मेरा विश्वास है ।इस लि

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घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।

12 अप्रैल 2019
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यद्यपि हम घोष हैं परन्तु घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।और यह किसी वंश का सूचक कभी नहीं था ।क्यों कि हैहय वंशी यादव राजा दमघोष से पहले भी घोष यादवों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण रहा।इस विषय में वेद प्रमाण हैं; उसमे भी ऋग्वेद और उसमे भी इसके चतुर्थ और षष्ठम् मण्डल मध्यप्रदेश

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मध्यप्रदेश के घोष समाज को ठाकुर उपाधि की अपेक्षा यादव लिखना चाहिए ! क्यों कि ठाकुर उपाधि तुर्को और मुगलों की सामन्तीय उपाधि!

13 अप्रैल 2019
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''''''''''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""यद्यपि हम घोष हैं परन्तु लोग हम्हें अहीर अथवा गोप कहकर भी पुकारा जाता हैं । क्यों कि ये सभी विशेषण शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण व पर्याय वाची  है।परन्तु गोष: शब्द के रूप में -और यह किसी वंश की सूचक उपाधि

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वर्ण-व्यवस्था और मनु का ऐैतिहासिक विवेचन एस नवीनत्तम व्याख्या-

19 अप्रैल 2019
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वैदिक सन्दर्भों के अनुसार दास से ही कालान्तरण दस्यु शब्दः का विकास हुआ हैं।मनुस्मृति मे दास को शूद्र अथवा सेवक के रूप में उद्धृत करने के मूल में उनका वस्त्र उत्पादन अथवा सीवन करने की अभिक्रिया  कभी प्रचलन में थी।परन्तु कालान्तरण में लोग इस अर्थ को भूल गये।भ्रान्ति वश एक नये अर्थ का उदय हो गया।जिस पर

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व्यवस्थित मानव सभ्यता के प्रथम प्रकाशक के रूप में ऋग्वेद के कुछ सूक्त साक्ष्य के रूप में हैं ।

19 अप्रैल 2019
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भारतीयों में प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक तथ्यों का एक मात्र श्रोत ऋग्वेद के 2,3,4,5,6,7, मण्डल है ।आर्य समाज के विद्वान् भले ही वेदों में इतिहास न मानते हों ।तो भीउनका यह मत पूर्व-दुराग्रहों से प्रेरित ही है। यह यथार्थ की असंगत रूप से व्याख्या करने की चेष्टा है परन्तु हमारी मान्यता इससे सर्वथा विपरीत ही ह

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चौहान ,परमार ,प्रतिहार,सोलंकी शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण :–यादव योगेश कुमार "रोहि"

20 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है । भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है । _______________________________________ प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरु

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पाखण्ड शब्द का इतिहास .... ही निर्धारित करता है । पुराणों और महाभारत रामायण आदि के लेखन का काल निर्धारण ....👇

6 मई 2019
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पाखण्ड शब्द का इतिहास ....ही पोल खोलता है । ब्राह्मणों के पाखण्डी की..________________________________________जैन परम्पराओं में पाषण्ड शब्द को पासंडिय अथवा पासंडी रूप में उद्धृत किया गया है । जैसा कि निम्न प्राकृत भाषा की पक्तियाँ लिपिबद्ध हैं 👇क्रमांक ३ "समयसार" की गाथा क्रमांक ४०८, ४१० एवं ४१३ म

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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ? यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !

6 मई 2019
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !---मैं भी असली घोषी अहीर जन समुदाय से तालुकात रखता  हूँ । मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूत समुदाय के लोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है

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समग्र महाभारत का एक समग्र विश्लेषण मूलक अध्ययन"

15 मई 2019
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"एक कथन शाश्वत सत्य है कि --जो  तथ्य या कथ्य अपने आप में पूर्ण होते हैं ; उन्हें क्रम-बद्ध करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।परन्तु भारतीय संस्कृति के अभिभावक और आधार भूत वेदों और  उनके व्याख्या कर्ता या विवेचक ग्रन्थों पुराणों, रामायण तथा महाभारत आदि में परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न कथाओं का वर्णन  त

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भारत में भागवत धर्म का उदय और विकास -

23 मई 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।यद्यपि प्रारम्भ में यह भागवत धर्म के रूप में ही गुप्त काल में  मान्य था कालान्तरण में ब्राह्मणों ने इसे वैष्णवधर्म बना कर हिन्दू धर्म में विलय कर लिया ।भागवत धर्म में वर्ण-व्यवस्था के लिए कोई स्थानान्तरण नहीं था।'भागवत धर्म' का तात्प

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जादौन चारण बंजारों का इतिहास-

27 मई 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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कर्म की उत्पत्ति और उसका स्वरूप-

2 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।हमने किसी शास्त्र को पढ़ा नहीं परन्तु हमने विचार करना प्रारम्भ किया

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जादौन जन-जाति के आयाम -

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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जादौन चारण बंजारों का ऐैतिहासिक विवरण -उद्धृत अंश भारत की बंजारा जाति और जनजाति -3" लेखक S.G.DeoGaonkar शैलजा एस. देवगांवकर पृष्ठ संख्या- (18)चैप्टर द्वितीय...

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्यों कि पुराणों या स्मृतियों ने जिन वेदों को आप

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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ" एक समीक्षात्मक लेख .../

9 जून 2019
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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ"__________________________________________महाभारत बौद्ध कालीन संस्कृतियों का प्रकाशन करने वाला अधिक है ।-जैसे चाण्यक नीति से प्रभावित निम्न श्लोक देखे:-👇सतां साप्तपदं मैत्रं स सखा मे८सि पण्डित:।सांवास्यकं करिष्यामि नास्ति ते भयमद्य वै।56।( महाभारत शान्ति पर्व

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शब्दों की अर्थावनति - राँड़ और रड़ुआ --

9 जून 2019
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रडुओं का  क्या हाल होता है भक्तो                     सुनो- क्वार कनागत कुत्ता रोवे।तिरिया रोवे तीज त्यौहार ।                 आधी रात पै रडुआ रोवे सुनके पायल  की झंकार ।।_____________________________________________भावार्थ:- अश्वनी मास अर्थात क्वार के महीने में जब कनागत आते हैं यानी सूर्य कन्या राशि

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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।

9 जून 2019
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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।समझने की आवश्यकता है कि नास्तिकता क्या है ?अपने अस्तित्व को न मानना ही नास्तिकता है ।क्यों कि लोग अहं में जीते है ।परन्तु यदि वे स्वयं में जी कर देखें तो वे परम आस्तिक हैं ।बुद्ध ने भी

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मनस् सिन्धु की विचार लहरें ! जहाँ ज्ञान के बुद्बुद ठहरें !

9 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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कर्म का जन्म और सृष्टि का विस्तार- एक आध्यात्मिक विवेचना

9 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।मुझे भी आश्चर्य होता है !कि जिस प्रश्न को हम पर कोई उत्तर नहीं है ।फ

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भागवत धर्म के प्रणयिता -

9 जून 2019
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वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर अनेक व्यभिचारपूर्ण और पाखण्ड पूर्ण क्रियाऐं धर्म के रूप में व्याप्त हैं ।केवल हरिवंशपुराण को छोड़ कर सभी पुराणों में कृष्ण को चारित्रिक रूप से पतित वर्णित किया है।नियोग गामी पाखण्डी ब्राह्मणों ने  कृष्ण को एक कामी ,व्यभिचारी ,और रासलीला का नायक बनाकरयादवों की गरिमा को

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।

14 जून 2019
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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।____________________________________________वेद की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर की कन्या थीं और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी आभीर( गोप) वसुदेव के पुत्र थे ।ऐसा महाभारत के खिल-भाग हरिवंश प

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भागवत धर्म का स्वरूप-भाग प्रथम एवं द्वितीय -प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"

14 जून 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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कृष्ण के मौलिक आध्यात्मिक सिद्धान्त सदैव पुरोहित वाद और वैदिक यज्ञ मूलक कर्म--काण्डों ते विरुद्ध हैं ।

15 जून 2019
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भागवत धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाला एक मात्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद् गीता थी ।--जो उपनिषद् रूप है । परन्तु पाँचवी शताब्दी के बाद से अनेक ब्राह्मण वादी रूपों को समायोजित कर चुका है --जो वस्तुत भागवत धर्म के पूर्ण रूपेण विरुद्ध व असंगत हैं ।--जो अब अधिकांशत: प्रक्षिप्त रूप में महाभारत क

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कर्म और धर्म के सिद्धान्त - यादव योगेश कुमार" रोहि"

15 जून 2019
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कर्म का स्वरूप और जीवन का प्रारूप :- विचारक यादव योगेश कुमार 'रोहि' कर्म का अपरिहार्य सिद्धान्त - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 का श्लोक 5 भागवत धर्म के सार- गर्भित सिद्धान्त--जैसे कर्म सृष्टि और जीवन का मूलाधार है निम्न श्लोक देखें-_________________________________________न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्

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कर्म धर्म और जाति की सुन्दर व्याख्या - यादव योगेश कुमार "रोहि"

15 जून 2019
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गुप्त काल में -जब ब्राह्मण वाद का विखण्डन होने लगा तो परास्त ब्राह्मण वाद ने अपने प्रतिद्वन्द्वी भागवत धर्म को स्वयं में समायोजित कर लिया ।यह भागवत धर्म अहीरों का भक्ति मूलक धर्म था ।और ब्राह्मणों का धर्म था - वर्ण व्यवस्था मूलक व स्वर्ग एवं भोग प्राप्ति हेतु पशु बलि व यज्ञ परक कर्म काण्डों पर आधार

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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर

19 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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अहीर ही यादव होते हैं !

20 जून 2019
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश जहाँ

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साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

22 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल ,गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार ह

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

23 जून 2019
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है ।यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं ।क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है ।वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ

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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।

25 जून 2019
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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के र

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श्रीमद्भगवत् गीता का उचित स्थान महाभारत का भीष्म पर्व नहीं अपितु शान्ति पर्व होना चाहिए था ।

30 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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"राम विश्व संस्कृतियों में " एस संक्षिप्त परिचय- " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

30 जून 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है ________________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:

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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।

1 जुलाई 2019
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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।और पश्चिमीय एशिया तथा यूरोप की  समस्त भाषाओं में ये दौनों  शब्द प्राप्त हैं ।परन्तु  आर्य शब्द वीर  शब्द का ही सम्प्रसारित रूप है ।अत: वीर शब्द ही  प्रारम्भिक है ।दौनों शब्दों की व्युपत्ति पर एक सम्यक् विश्लेषण -प्रस्तुति-करण :-यादव योगेश कुमार  'रोहि'_

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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत प्राच्य और पाश्चात्य इतिहासकारों के हवाले से...

4 जुलाई 2019
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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत- शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- महाभारत ,वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों के सन्दर्भों से उद्धृत करते हुए चीन के इतिहास से भी कुछ प्रकाशन किया है।यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने ...शायद आप नहीं जानते हो

6 जुलाई 2019
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यूनानीयों तथा ट्रॉय वासी -जब एगमेम्नन और प्रियम के नैतृत्व में यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न थे ।तब उनकी संस्कृतियों में वैदिक परम्पराओं के सादृश्य कुछ संस्कार थे ।जैसे मृतक का दाह-संस्कार आँखों पर दो स्वर्ण-सिक्का रखकर किया जाने तथा बारह दिनों तक शोक होना....यह समय ई०पू० बारहवीं सदी है होमर ई०पू० अ

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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित ।

18 जुलाई 2019
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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित --------------------------------------------------------- भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् शोध "यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित तथ्य विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः

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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप के अन्तर्गत वर्णमाला की व्युत्पत्ति मूलक विवेचना। रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)

4 अगस्त 2019
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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)__________________________________________________माहेश्वर सूत्र को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने वैदिक भाषा (छान्दस्) के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से माहेश्वर सूत्रों का न

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राम और सीता पश्चिमीय संस्कृतियों में....

15 अगस्त 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है __________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है: ‘वैदे

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राम और सीता ऋग्वेद में तो हैं ही ; ये प्राचीनत्तम पात्र सुमेरियन तथा मिश्र की संस्कृतियों में भी

17 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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राम सीता लक्ष्मण और भरत सुमेरियन और मिश्र की संस्कृतियों में...

18 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !

20 अगस्त 2019
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ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहे है ।और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही कहता है ।वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।जिसका अर्थ होता है केवल और केवल " मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी "पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित यूरोपीय

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !

25 अगस्त 2019
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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !परिचय :-- यादव योगेश कुमार'रोहि'_______________________________________________ कामी वासनामयी मलिन हृदय ब्राह्मणी संस्कृति ने हि

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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-

1 सितम्बर 2019
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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-_________________________________________ऋग्वेद के प्रथम मण्डल अध्याय दश सूक्त चौबन 1/54/ 6-7-8-9- वी ऋचाओं तक यदु और तुर्वशु का वर्णन है ।और इसी सूक्त में राधा तथा वासुदेव कृष्ण आदि का वर्णन है ।परन्तु यहाँ भी परम्परागत रूप से  देव संस्कृतियों के पु

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ऋग्वेद में कृष्ण का वर्णन है परन्तु आर्य्य समाजी मानसिकता के लोग वैदिक ऋचाओं की यौगिग शब्द मूलक अर्थ व्यञ्जन करते हैं और ये भी मानवीय वेद को अपौरुषेय बनाते हैं ।

5 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है । यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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अहीर विश्व संस्कृतियों में प्रतिभासित रूप --

9 सितम्बर 2019
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आज के समय से लगभग ई०पू० द्वित्तीय सदी में संस्कृत के विद्वानों ने चरावाहों के एक समुदाय की वीरता और भयंकरताप्रवृत्ति को दृष्टि गत करके उन्हें अभीरु अथवा अभीर कहा । क्योंकि यहाँं के पुरोहितों को इनके मूल नाम "एवीर" / अबीरमें अभीर की ध्वनि सुनायी दी ।अहीर हिब्रू-भाषाओं में बीर/ बर से विकसित है ।जो अबी

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कृष्ण के चरित्र को पतित करने का एक षड्यन्त्र ...

10 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण  निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार  वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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तुमको हम इतना समझा दें कि धर्म वास्तव में क्या है ? धर्म साधना है मन की , इन्द्रिय-नियमन की क्रिया है|

15 सितम्बर 2019
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जिस घर में रोहि संस्कार नहीं, और शिक्षा का प्रसार नहीं ||*********************उन्मुक्त Sex का ताण्डव है , वहाँ चरित्र सलामत कब है||***********************इस काम की उच्छ्रंखलता से दुनियाँ में जो कुकर्म है ,पाप पतन कारी कितना .? आदमी अब बेशर्म है ||*********************इन सभी विकृतियों की

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कुछ प्रथाऐं जो अब समाज के लिए अनावश्यक और अर्थ हीन हैं !

16 सितम्बर 2019
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एक परम्परागत पण्डित जी कहते हैं ; कि ये त्रयोदशी- भोग राज परिवारों की प्रथा है।तो हमारा उनसे कहना कि फिर जनता इसका अनुकरण क्यों करती है ?क्या राजा के समान सुविधाऐं जनता के पास हैं ?नहीं !और आज राज तन्त्र है क्या ?नहीं !तो इस मूर्खता पूर्ण पृथा को राजपरिवारों के साथ समाप्त कर दो !गरीब जनता क्यों

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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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आभीरों का भागवत धर्म ( आत्मा की खोज और जीवन का रहस्य )

27 सितम्बर 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है । परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् धातु का ही रूप है । आद्य-जर्मनिक भाषाओं में यह रूप :- swḗsa( स्वेसा ) तथा swījēn( स्विजेन) शब्द के रूप में आत्मा का बोधक हैं । अर्थात् own, relation ।प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक भाषा में: 1-sw

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है । तृतीय चरण की प्रस्तुति ... _______________________________________________

1 अक्टूबर 2019
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_______________________________________________योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है ।तृतीय चरण की प्रस्तुति ..._______________________________________________योग’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की  ‘युजँ समाधौ’ संयमने

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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -

4 अक्टूबर 2019
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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -__________________________________________संसार में ज्ञान और कर्म का सापेक्षिक अनुपात ही जीवन की सार्थकता का कारण है ।गुरू इसी सार्थकता का ही निमित्त कारण है ।अन्यथा व्यक्ति एक अभाव में या तो अन्धा है या तो लंगड़ा ।  गुरू ! की

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चारण और भाटों का साहित्यिक परिचय...

5 अक्टूबर 2019
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पिंगल और डिंगल -राजस्थान की पूर्वीय और पश्चिमीय बोलीयों का सीमांकन करती हैं ।'डिंगल' पश्चिमीय राजपूताने की वह राजस्थानी भाषा गत शैली है; जिसमें चारण लोग आज तक काव्य और वंशावली आदि लिखते चले आ रहे  हैं । विशेषत: चारण लोग डिंगल भाषा में काव्य रचनाऐं करते रहे हैं।'यह' भाषाशैली कृत्रिम होते हुए भी कलात

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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)

2 नवम्बर 2019
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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)____________________________________________वैदिक साहित्य में असुरों के विशाल तथा दृढ़ दुर्गों एव प्रासादों ( भवनों)के वर्णन मिलते हैं ।संभवतः लवण-पिता मधु या उनके किसी पूर्वज ने यमुना के तटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो ; यह अधिकार लवण के समय से समाप

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"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " संशोधित संस्करण (भाग एक)

6 नवम्बर 2019
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।उसने  अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना वही  भाषा है ।मनुष्य कभी शब्दों से तो कभी संकेतों द्वारा  संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य सदीयों से करता रहा है।अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता रहा है ।किन्तु भाषा उसे

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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है !

6 नवम्बर 2019
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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है ! _______________________________ बड़े बड़े आलिमों को , इसने छला है !!इसके आगे ज़ोर किसी चलता नहीं भाई! ना इससे पहले किसी का चला है !!ये आँधी है , तूफान है ये हर ब़ला है!परछाँयियों का खेल ये सदीयों का सिलस़िला है !आश़िकों को जलाने के लिए इसकी

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मेरी अनुभूतियों के पल और बीते हुए कल...

31 दिसम्बर 2019
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हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है !सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है ।मुझे हर तरफ मोड़ा उन हालातों ने मेरे रुहानी जज्बातों ने या विरोधीयों की बातों ने ।मेरा व्यक्तित्व बस परिस्थियों की सौगात है ।ये मेरा प्रारब्ध है किसी गैर की कहाँ औख़ात है ये परिस्थियाँ हैं मेरे ग़म से नातों क

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अनुभतियों के पल मेरे बीते हुए पल ...

2 जनवरी 2020
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गलतीयाँ सामाजिक विसंगतियाँ ।और भूल मनुष्यगत भौतिक विस्मृतियाँ ।दौनों की ही अलग-अलग हैं गतियाँ।।हमने बहुत समझा औरों को दिल में बहुत कुछ और था ।हमको अपना समझा गैरों ने जिन पर हमारा नहीं गौर था हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है ! सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है । मुझे हर तरफ मोड़ा

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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।

4 जनवरी 2020
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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।फिर क्यों ये मेरा मन, उदास है ।मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।मेरे प्रभु तेरी खुशबू , बड़ी अद्भुत और ख़ास है- मैं एक पापी तू सर्वव्यापी मेरा विश्वास है- ।है तेरा शमा तू 'न जन्मा न तेरा नाश है ।मुझे एहसास है प्रभु मेरे पास है ।××××××××××××××××××××××××××××××सत्कर्

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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है। तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।

6 जनवरी 2020
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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार... है ।___________________________तेरी बातें ये सौगातें ,जीवन का एक सार हैं ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार... है ।मेरे प्रभू तेरा बजूह , मन में जो भी संजोता ।

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उसूल सदियों सदियों पुराने हैं

6 फरवरी 2020
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धर्म की आड़ में उसूल कुछ सदियों सदियों पुराने हैं।प्रसाद वितरण करने वालों में भी अब ज़हर खुराने हैं ।।धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।अब मन्दिर ही मक्कारों के ठिकाने हैं ।शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।ईमानदारी जहालत के मायनेहा

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"सत्य विकल्प रहित और सर्वथा एक रूप होता है जबकि असत्य बहुरूपिया और बहुत से विकल्पों में उद्भासित होता है "

16 फरवरी 2020
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किसी की महानता और प्रसिद्धि कुछ अहंवादी व्यक्तियों को सहन नहीं हुई तो उन्होंने अपने अहं को तुष्ट करने के लिए उनके इतिहास और वंश-व्युत्पत्ति को इस प्रकार से सम्पादित किया कि उन्हें सर्वथा हीन और हेय रूप में समाज की दृष्टि में सिद्ध किया जा सके !ये महान और वीरतापूर्ण प्रवृत्तियों से सम्पन्न जनजातिय

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छलावा ...

18 फरवरी 2020
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धर्म बनाया ढ़कोसला ! तिलक ,छाप ठगने की कला ।इनका ईश्वर पैसे भी लेता ।आज हमको ये पता चला।।और देव दासीयाँ को 'रोहि' ।पुजारियों ने हरपल छला ।।सुन्दरता नाम नहीं 'रोहि' किसी के गोरे होने का ।और पवित्रता नाम नहीं ,केवल शरीर के धोने का ।।काला हो या हो श्यामल और लम्पट, चंचल ना हो कभी ।।गोरा भी कुरूप हो जात

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अर्जुन को नारायणी सेना के वीरों ने परास्त कर दिया ..

21 फरवरी 2020
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कारण एक सुभद्रा का हरण ।।वह भी चुपके से न किया रण।। नारायणी सेना के यौद्धा शान्त कारण था कृष्ण का संरक्षण ।जब कृष्ण भी अर्जुन के साथ नहीं।।तब अर्जुन की औकात नहीं ।।सब असहाय बाल और स्त्रियाँ हैंयादव स्त्रियों के नाथ नहीं ।ले जा रहा सैकड़ों अबला जन को ,ये निर्लज्ज बेहया दीठा है ।जो लोभी लालची और कामी

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अहीर जाट और गूजरों की समान खापें ...

21 फरवरी 2020
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।आज इसी तथ्य का विश्लेषण करते हैं ।अब कुछ जाट तो जो स्वयं को भरत पुर के राजा सूरजमल से जोड़ते हैं ।जिसका समय सत्रहवीं सदी है ।अपने को सिनसिनीवार जाट कहते हैं ।राजस्थानी क्षेत्र में भरत पुर में एक सूरजमल की प्रतिमा के

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"घर घर की घटना अजब अजब बनी हालात "

22 फरवरी 2020
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घर घर की घटना अजब ।अजब बनी हालात ।एक बार कोई महानुभाव ।कोलेब में रहते गात ।स्टार मेकर पर करते । महिलाओं संग मुलाकात ।सुना रहे थे पत्नी को अपने स्वरों की सौगात ।पत्नी जरि कौयला भई ,सुन पर तिरियन की बात ।कोलर पकड़ रगड़ पति को धरि दीनी दो लात ।और पूछती इतनी देर तककहाँ बिताते रात ।कई दिनों से दूर दूर तु

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गोप ,गोपाल, गौधुक ,आभीर यादव गुप्त गौश्चर पल्लव घोष आदि....

24 फरवरी 2020
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यादव शब्द एक वंशमूलक विशेषण है ।जब कि गोप गोपालन वृत्ति( व्यवसाय) मूलक विशेषण और आभीर( अभीर शब्द से अण् तद्धित प्रत्यय करने पर निर्मित हुआ आभीर एक प्रवृत्ति मूलक विशेषण है ) जिसका अर्थ है वीर अथवा निर्भीक यौद्धा परन्तु षड्यन्त्र पूर्वक पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने यादवों को वंश के आधा

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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।।

29 फरवरी 2020
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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।। ऊँच नीच और छुआछूत । है अहंकार संवादों में । हिन्दू हो या मुसलमान , अब नेकी नहीं इरादों में । सब एक वृक्ष के पौधे थे । था एक सूत्र परदादों में ।।विचार ,उम्र और , समान सम्पदा ।ये सम्बन्ध सफल है सर्वदा ।। समय ,परिस्थिति और देश में

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बोला शब्द की अवधारणा का श्रोत ...

3 मार्च 2020
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होलि शब्द की अवधारणा का श्रोत मूलत: संस्कृत भाषा के स्वृ= तापे उपतापे च धातु से निष्पन्न है । य: स्वरयति तापयति सर्वान् लोकान् इति सूर्य: कथ्यते "अर्थात् जो सम्पूर्ण लोगों को तपाता है वह सूर्य है " होली एक वसन्त सम्पातीय ऋतु-सम्बन्धी अग्नि का स्वागत उत्सव है ---जो ग्रीष्म ऋतु के आगमन रूप फाल्गुनी

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हरे कृष्णा हरे रामा रामा हरे हरे...गीत

5 मार्च 2020
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हरे कृष्णा हरे रामा ~~ रामा रामा हरे - हरे कृष्णा हरे !हरे रामा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे ..🎼🎼हरे रामाँ~~ हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे रामा हरे ।(दीर्घ )-हरे कृष्णाँ आँ हरे रामाँ आँआँ .... हरे कृष्णा हरे हरे हरे रामा हरे ---हरे रामाँ हरे कृष्णा कृष्णा- कृष्णा हरे हरे कृष्णा हरे ~~_______

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"कृष्ण का धर्म भागवत और उनका व्यक्तित्व " एक संक्षिप्त परिचय

6 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश दिया। उनकी इस कूट राजनीति में एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा पर उत्पन्न हुआ जिसन

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कृष्ण का व्यक्तित्व और उनका भागवत धर्म "एक प्रस्तावना " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'

8 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया  ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश किया। उनकी इस कूट राजनैतिक गतिविधि में  एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण  ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा प

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भागवत पुराण के प्रक्षेप ...(भाग प्रथम )

14 मार्च 2020
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सत्य और यथार्थ यद्यपि समानार्थक प्रतीत होने वाले नाम हैं ।'परन्तु सत्य हमारी कल्याण मूलक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।समय , परिस्थिति और देश के अनुकूलता पर जो उचित है- वही सत्य है ।सत्य मे यद्यपि कल्याण का भाव विद्यमान है।यथार्थ में नहीं...यथार्थ को पुराण कार व्यक्त न कर सके ।इसी लिए तत्कालीन पुरोहि

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भागवत पुराण और श्रीमद्भगवदगीता का काल निर्धारण ...

17 मार्च 2020
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श्रीमद्भगवदगीता में पञ्चम सदी में मिलाबट की गयी जिसमें वर्ण व्यवस्था और याज्ञिक 'कर्म' काण्डों को समायोजित कर दिया गया । वर्ण- व्यवस्था कृष्ण का प्रतिपाद्य विषय नहीं था ,अपितु इसके खण्डन करने के लिए ही उन्होंने नया मार्ग भागवत धर्म के नाम से प्रसारित किया ।जिसके उपदेश श्रीमद्भगवदगीता उपनिषत् को रूप

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लोक-तन्त्र हुआ डम्प ...

19 मार्च 2020
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अभिवञ्चन अधिकारों का हो ! क्या कर्तव्य भावना के मायने ?तस्वीर बदलती है रोहि ,अक्श नहीं बदलते आयने । लोकतंत्र नहीं षड्यंत्र है केवल शोषण का सब मंत्र है जूस डाला आम-जन को अवशेष केवल अन्त्र हैं !नेताओं की लूट भी संवैधानिक है यहांँ गरीबों का विद्रोह जुल्म के मानिक यहांँ परोक्ष राजतंत्र जहां सब परम्परा

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नन्द और वसुदेव दौनों सगे सजातीय गोप बन्धु थे ।

29 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त तथा गोप अथवा गोपाल नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्ति के कारण हुए ...______________________________________________(हरिवंशपुराण एक समीक्षात्मक अवलोकन ...)हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व में दशम अध्याय का 36वाँ वह श्लोक देखें -रेवत के प्रसंंग में यह श्लोक विचारणीय है 👇__________

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने .... हैहयवंश और शक यवन हूण पारद किरात पह्लव आदि की विलय गाथा ... भाग प्रथम

31 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त और गोप नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्तियों के कारण हुआशक यवन हूण पारद और पह्लवों से हैहयवंश के यादवों का सामंजस्य व विलय ... भाग प्रथम______________________________________________(हरिवंशपुराण के एक समीक्षात्मक अवलोकन सन्दर्भ में हमने पाया कि भारतीय पौराणिक कथाऐं पश्चिमीय

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अवर जन जाति का इतिहास ....

1 अप्रैल 2020
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the avars were a confederation ofheterogeneous (diverse or varied) people consisting of Rouran, Hephthalites, and Turkic-Oghuric races who migrated to the region of the Pontic Grass Steppe (an area corresponding to modern-day Ukraine, Russia, Kazakhstan) from Central Asia after the fall of the Asiat

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इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह...

11 अप्रैल 2020
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प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ; आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं !सभी में लेखकों के पूर्वाग्रह समाहित रहे हैं ।अहीरों की निर्भीकता और पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के का

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जीवन की अनन्त यात्रा ...

13 अप्रैल 2020
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जीवन की अनन्त यात्रा ...__________________________________अभिशाप है अकेलापन 'रोहि' इस जहान का !अनन्त के द्वार से लौट आया।- दीदार किया भगवान का ।।एकान्त जो शान्त है । इस संसार का वरदान है कोई ।नये जोश और जज्बात को । विश्राम लेता थका बटोही ।।ये एकान्त और अकेलापन दौनों एक स्थिति के ,प्रवाह है

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दास और दस्यु के सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक है ।वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है ।और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल में आते -आत

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दास और दस्यु के वैदिक कालीन सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक शब्द रहे हैं । वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है । और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल

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आज का ये हाल है ...

16 अप्रैल 2020
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अजब चाल है अजब हाल है । क्या बताऊँ सब बेमिसाल है ।विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाना ! लड़के लड़कियों की मजाल है ।ये गैंग-रेप किडनैप के तरीके । अन्धा हो जाना फिर दारू पीके ।आज वस्त्रों में अब सब तन दीखे। और क्रिया कलाप भी बे सलीके ।नैतिकता अब बि

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अहीर ,गूर्जर ,जाट और राजपूतों का इतिहास में विवरण विभिन्न सन्दर्भों में ...

18 अप्रैल 2020
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____________________________________ इतिहास अपने आप को पुनः दोहराता है।____________________________________ महान होने वाले ही सभी ख़य्याम नहीं होते ।उनकी महानता के 'रोहि' इनाम नहीं होते । फर्क नहीं पढ़ता उनकी शख्सियत में कुछ भी ,ग़मों में सम्हल जाते हैं जो कभी नाकाम नहीं होते।।बड़ी सिद्दत से संजोया

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मिथक और यथार्थ के समकक्ष ...

25 अप्रैल 2020
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प्रश्न (1)कुछ लोग जो आज भी पूर्व दुराग्रह से ग्रस्त रूढ़िवादी सड़ी-गली मानसिकता से समन्वित होकर जी रहे हैं ।ले सत्य के प्रकाश ले बचकर असत्य के अँधेरे में ही जी रहे हैं ।उन्हें प्रकाश से भय या चौंद भी लगती हैं ।उन्हें 'हम क्या 'कहें' उनका इस प्रवृत्ति के कारण उल्लू या चमकादर या एकाक्ष कौआ वे लोग अक्

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

2 मई 2020
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है । अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु क

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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।

5 मई 2020
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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।मन को तसल्ली मिलती है , प्रभु का भजन गाके ।समय के पथ पर जिन्दगी जा रही है यों ही ।फिर कुछ हासिल नहीं होगा रोहि पछिताके।________________________________________कौन है बनाने वाला इस संसार का -२कौन है खिवैया मेरी मझधार का -2धड़कनों की तालों में श्वाँसों की ल

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गुर्जर ,जाट और अहीरों का समन्वय...

10 मई 2020
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ब्राह्मणस्य द्विजस्य वा भार्या शूद्रा धर्म्मार्थे न भवेत् क्वचित्।रत्यर्थ नैव सा यस्य रागान्धस्य प्रकीर्तिता ।। (विष्णु- स्मृति)___________________________________________अर्थात्‌ ब्राह्मण के लिए शूद्रा स्त्री धर्म कार्य के लिए नही अपितु वासना तृप्ति के लिए होनी चाहिए अत:

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भागवत धर्म की प्रस्तावना...

14 मई 2020
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जब जैन-धर्म तथा बौद्ध-धर्म ह्रास के मार्ग पर बढ़ रहे थे तब दूसरी ओर इन्हीं के समानान्तरण भागवत धर्म भी वैदिक-धर्म की प्रतिक्रिया स्वरूप उदय हो रहा था ।वैदिक-धर्म भी अपने पुनरुत्थान में लगा था। उसने गुप्त काल के प्रारम्भ में भागवत धर्म को अपना में आत्मसात् करने का प्रयास किया।ब्राह्मण-चिंतकों ने खर्च

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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....

19 मई 2020
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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारह वीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प

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चौहानों का गूजरों और जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)

21 मई 2020
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चौहानों का गूजरों ,जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारहवीं सदी तक स

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वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।( तेरी राहों खड़े हैं दिल थाम के )

4 जून 2020
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ओ३म्' ओ .....वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।तू ही मेरा हुजूर , मुझसे क्यों है दूर ।तेरा ही है ये नूर , फिर कैसी ये गुरूर ।।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।आज देश

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हरि का भजन कर , मत चल तनकर । हरि का भजन कर , मत चल तनकर । जीवन का है लम्बा सफर ... ( दिल दे दिया है )

4 जून 2020
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हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ...हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ... 'हरि बोल 'हरि बोल .....ओ--- रे मुसाफिर तेरा बड़ी दूर घर ..हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ..._

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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने वाले....

4 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे !देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले इसी प्रकार के दूषित प्रवृत्ति के लोग थे । श्रीमदभगवद् गीता पञ्चम सदी में महाभार

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यादव इतिहास के बिखरे हुए पन्ने....

5 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र को रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे ! देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले कुछ इसी प्रकार की दूषित प्रवृत्ति के लोग थे ।यह घटना है पुष्यमित्र सुंग कालीन

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक ...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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भागवत धर्म की रूप रेखा ...

17 जून 2020
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भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म का पारस्परिक विरोध निरूपण-संशोधित संस्करण -___________________________________________भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में बलदाऊ का वर्णन हरिवंशपुराण में है ।एक प्रसंग के अनुसार जब एक यादव भक्त यमुना जी के इस कुण्ड के जल में प्रवेश करके दिव्य भागवत मन्त्रों द्वारा

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सोमवंशी ययाति पुत्र यदु बनाम सूर्य वंशी हर्यश्व पुत्र यदु ...

5 जुलाई 2020
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महाभारत का सम्पादन बृहद् रूप पुष्यमित्र सुंग के शासन काल में हुआ ।भारत की प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक राजधानी मगध थी ।जो आधुनिक विहार है ।मगध से विहार बनने के सन्दर्भ में ये तथ्य विदित हैं कि महात्मा बुद्ध के नवीनत्तम सम्प्रदाय पाषण्ड में जो नव दीक्षित श्रमण थे उनके आश्रमों को विहार कहा गया था ।पाषण्ड श

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पुराणों में दो यदु हुए ययाति पुत्र और हर्यश्व पुत्र .. अहीर ययाति पुत्र यदु के वंशज हैं ।

6 जुलाई 2020
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महाभारत की कथाऐं जन- किंवदंतियों पर आधारित आख्यानकों का बृहद् संकलन हैं।जिसे महर्षि व्यास के नाम पर सम्पादित किया गया और इसे जय संहिता का नाम दिया गया ।कोई भा मानवीय ग्रन्थ पूर्व दुराग्रह से रहित नहीं होता है ।दुराग्रह कहीं न कहीं मोह और हठों से समन्वित रूप से प्रेरित होते हैं ।और हठों और मोह दौनों'

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दो यदु ,दो ययाति, दो नहुष जिसमें एक सूर्य के और एक सोम वंश के सूर्यवंश के अम्बरीष पुत्र नहुष , ययाति और हर्यश्व पुत्र यदु का अस्तित्व ही कल्पना प्रसूत है ।...

7 जुलाई 2020
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यदु जब दो हैं । तो फिर अहीर कौन से यदु के वंशज यादव हैं ?ययाति और देवयानि के पुत्र यदु जो तुर्वशु के भाई हैं ।या इक्ष्वाकु वंशी राजा हर्यश्व और उनका पत्नी मधुमती के गर्भ से उत्पन्न यदु के वंशज यादव हैं !हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 41-45 पर वर्णन है कि⬇पुत्र की इच्छा रखने वाले

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गोप कृष्ण की लीला .... हरिवशं पुराण

9 जुलाई 2020
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गोपों अथवा अहीरों के साथ भारतीय ग्रन्थों में दोगले विधान कहीं उन्हें क्षत्रिय तो कहीं वैश्य तो कहीं शूद्र कहा गया यह शसब क्रमोत्तर रूप से हुआ ....____________________________________________इसी सन्दर्भ में हरिवशं पुराण में एक आख्यानक है ⬇एक बार जब कृष्ण हिमालय पर्वत के कैलास शिखर पर तप करने तथा भूत

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यदु के लिए गोप और उनके वंशज गोप अहीर आदि नामों से जाने गये ...

10 जुलाई 2020
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यादवों ने कभी वर्ण -व्यवस्था को नहीं माना ।कारण वह राजतंत्र की व्यवस्था का अंग थी और ये किसी के द्वारा परास्त नहीं हुए ।क्योंकि इनकी गोपों'की नारायणी सेना अजेय थी ।इसी नवीन भागवत धर्म की अवधारणा का भी जन्म हुआ था ।इसलिए ब्राह्मणों ने द्वेष वश अहीरों या यादवों को शूद्र वर्ण में निर्धारित करने की असफल

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🌸– •यादव –यादव– यादव– यादव– यादव •–🌸

13 जुलाई 2020
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यादव" भारत में ही नहीं अपितु पश्चिमी एशिया, मध्य अफ्रीका , तथा यूरोप का प्रवेश द्वार समझे जाने वाले यूनान तक अपनी धाक दर्ज कराने वाली आभीर जन-जाति का प्रतिनिधि समुदाय है। पारम्परिक रूप से इन्हें इनके वृत्ति (व्यवसाय) मूलक विशेषण के तौर पर गोप , गोपाल कहा जाता है ।यद्यपि वंशमूलक रूप से भारतीय पुराणों

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कायस्थः कासाइट कार्थेज काशी और कशमीर तक ...

16 जुलाई 2020
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भारतीय समाज ही नहीं अपितु विश्व के सम्पूर्ण मानव समाजों में संस्कृतियों की भित्तियाँ ( दीवारें) धर्म की आधार-शिलाओं पर प्रतिष्ठित हुईं । भाषा जो परम्परागत रूप से अर्जित सम्पदा है वह भी मानव समाजों के सांस्कृतिक , धार्मिक और व्यावहारिक जीवन के संवादों की संवाहिका रही है । संस्कृतियों 'ने समय के अन्तर

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यादवों का इतिहास ...

22 जुलाई 2020
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा भ्रान्त -मति राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने के लिए महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं । ____________________________________ ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७। अर्था

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शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-   --------------------------------------------------------------

23 जुलाई 2020
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  शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-  --------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत शोध " यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित.भारत में वर्ण व्यवस्था के नियामक शूद्रजातीया शब्द और इस नाम से सूचित जनज

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ब्राह्मण बकरे के सजातीय वैश्य गाय के सजातीय क्षत्रिय भेड़े (मेढ़ा)के और शूद्र घोड़े के सजातीय है । अब बताओ सबसे श्रेष्ठ पशु कौन है ?

26 जुलाई 2020
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कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता ७/१/४/९ में सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन है कि ______________________________________________प्रश्न किया श्रोता ने " यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् ?मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादा उच्येते ? 10/90/11जिस पुरुष का विधान क्या गया ?उसका कितने प्रकार कल्पना की गयी अर्थात

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शूद्र ऐर आर्य शब्दों की अवधारणा इतिहास में ----

29 जुलाई 2020
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  शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--13 फरवरी 2018 | Yadav Yogesh kumar -Rohi- (324 बार पढ़ा जा चुका है) लेख शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय-- शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________🎠शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ --------------------------------

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भरद्वाज के पिता

30 जुलाई 2020
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भरत से पहले देशका नाम क्या हो सकता है?क्यों कि कुछ बातें तर्क की कषौटी पर खरी नहीं उतरती हैं ।भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भरत ने ममता के पुत्र दीर्घतमा को अपना पुरोहित बनाकर अनेक अश्वमेध यज्ञ किये ।भागवत पुराण के नवे स्कन्ध के बीसवें अध्याय के श्लोकों तीस में में वर्णन है कि भरत ने दिग्विजय के

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur) और भारत में राजपूतो साथ ठाकुर शब्द का सम्बन्ध ...

8 अक्टूबर 2020
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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur)_______________________________________तुर्कों और पठानों का खिताब था तक्वुर हिन्दुस्तानी भाषाओं मे विशेषत: व्रज भाषा में आने पर यह ठक्कुर हो गया यद्यपि संस्कृत पुट देने के लिए इसे ठक्कुर रूप में प्रतिष्ठित किया गया  ठाकुर  शब्द नवी

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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दुर्गा भारतीय और अशीरियन मिथकों में ...

20 अक्टूबर 2020
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भारतीय पुराणों में दुर्गा को यदु वंश में उत्पन्न नन्द आभीर की पुत्री कहा गया है ये देवी यशोदा के उदर से जन्म धारण करती हैं हम आपको मार्कण्डेय पुराण से सन्दर्भ देते हैं देखें निम्न श्लोक ...वैवस्वते८न्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे शम्भो निशुम्भचैवान्युवत् स्येते महासुरौ |३७|______________________

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देव संस्कृति और कृष्ण ...

28 अक्टूबर 2020
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महानुभावों ! षड्यन्त्र सदीयों से प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक उपक्रियाओं के रूप में अपना विस्तार करते रहे हैं । जिसे जन साधारण भी सदा ही निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहा है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दि

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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है इन्द्र सूर्य और अग्नि भी असुर है और कृष्ण ो भी असुर कहा गया है

5 नवम्बर 2020
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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है मह् पूजायाम् धातु से महत् शब्द विकसित हुआ वह जो पूजा के योग्य है फारसी जो वैदिक भाषा की सहोदरा है वहाँ महत् का रूप मज्दा हो गया है सूर्य को उसके प्रकाश और ऊर्जा के लिए वेदों में असुर कहा

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गोप यादव और आभीर सदैव से एक वंश के विशेषण थे ...

19 दिसम्बर 2020
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यादवों को गो पालक होनो से ही गोप कहा गया है |भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर वर्णित है|______नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः । वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥●☆• नन्द आदि यदुवंशीयों की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले ग

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यादवों के आदि पूर्वज...

22 दिसम्बर 2020
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यादवों के इतिहास के सबसे बड़े विश्लेषक और अध्येता परम श्रृद्धेय गुरुवर सुमन्त कुमार यादव के श्री चरणों मे श्रृद्धानवत होते हुए यह यादवों के पूर्वज व यादव संस्कृति के प्रवर्तक  यदु का पौराणिक विवरण जिज्ञासुओं में प्रेषित है प्रस्तुति करण :-यादव योगेश कुमार रोहिसम्पर्क सूत्र 8077160219..._____________

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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-

27 अक्टूबर 2022
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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-आज कल टीवी चैनल वाले चाहे जिस पौंगा पण्डित को पकड़ लाते हैं और उसका परिचय धर्मगुरू अथवा शंकराचार्य कहकर सारी दुनियाँ से कराते हैं। उनकी ब

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