निष्कर्ष ने काश्वी से पूछा एक बात बताओ, “तुम तो दिल्ली में रही हो हमेशा, फिर नेचर से कितनी करीबी कैसे हो गई? दिल्ली की लड़कियों को तो बड़े बड़े मॉल्स और फोरेन ट्रिप्स पर जाने का शौक होता है और तुम यहा
मुसाफ़िर तो रस्ता समझ बैठते है नए कुछ खज़ाना समझ बैठते है यहाॅं कोई भी तो नही है हमारा हमीं सबको अपना समझ बैठते है
ओ खुदा ओ खुदा ओ खुदा... लड़की जो मुझसे वो अंजान है जाने नही क्यों मेरी जान है मधु मेरे दिल की वो महमान है पलक झपकते ही तसव्ववुर नखशिखा अज़ीज दिल को तेरी हर इक अदा...
मोहब्बत इतनी है तुमको मोहब्बत से मोहब्बत छेड़ते जाओ मोहब्बत से दिलो को तोड़ना ही है मोहब्बत क्या दिलो को तोड़ते जाओ मोहब्बत से
हमीं दिल ये अपना जला बैठते हैं खुदी और देने हवा बैठते हैं नदी के किनारे कहीं बैठ करके नई इक नदी हम बहा बैठते हैं
एक तरफ बर्फ से ढके पहाड़ इौर दूसरी तरफ रंग बिरंगा छोटा सा बाज़ार, निष्कर्ष और काश्वी अपनी थीम की तलाश करते आगे बढ़ने लगे। दुकानों के बाहर लटके रंग बिरंगी चीजें, ठंड का एहसास कराते गर्म कपड़ों से सजे
जो बात हमें तकलीफ देती है उसे दिमाग से निकालना इतना आसान नहीं होता और उसे भूलकर किसी और चीज पर ध्यान लगाना काफी मुश्किल होता है, निष्कर्ष और उसके पापा का रिश्ता अब उस स्टेज पर पहुंच गया है जहां दोन
गलती एक नहीं हजार हुईं मुझसे एक तो मोहब्बत दूसरा चांद सेतीसरा हर बार हुई उससेगलती एक नहीं हजार हुईं मुझसे ।वो जिसके काबिल ही नहीं था मैं,उससे दिल लगा बैठा।अधूरी रह गई मेरी इबादत,मैं एक पत्थर
निष्कर्ष को इस तरह अचानक देखकर उत्कर्ष को कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन काश्वी एक दम शॉक थी। निष्कर्ष का चेहरा देखकर उसे समझ आ गया कि वो क्या सोच रहा है, उत्कर्ष के साथ काश्वी को ऐसे देखकर निष्कर्ष को
दोहे—मीरा दीवानी हुई , श्याम दिखे चहुँओर ।विष प्याला अमृत हुआ,श्याम समाए कोर ॥मीरा की वाणी बसे, सप्त सुरों का मेल ।कृष्ण भजन में रम गई,राणा खेलें खेल ॥दासी मीरा हो गई,कृष
माना करा सा है बेपरवाह इश्क मेरापर चाहत बेशुमार हैकैस बतलाऊं सनम कितना है तुमसे प्यारसर्द मौसम में सुनहरी धूप से लिपटकरपिघलती ओस की बूंदों सा खुमारफिजाओं में महकती बाहर सामेरा तुमसे प्यारअधेरी रा
आपने पीछले भाग में देखा अपर्णा - सच में मुझे तो ऐसा नहीं लगता । सेजल अपर्णा को मारने के लिए दौड़ आने लगी तो अपर्णा खुद को उसके मार से बच
अब तक आपने देखातुम कोई मीठा चीज बना लो , जो तुम्हें पसंद आये और फिर वो प्रतिक्षा को बता दि कि कौन चीज कहां हैं और बाहर चली गयी , ये कह कर की , मेरी जब जरूरत हो तो बुला लेना । हिचकिचाना नहीं ... मैं यह
अब तक आपने देखा मानवी अनुभव की लास्ट वाली बात से पूरी तरह से झन्ना गयी उसका मन किया कि वो अनुभव का गला दबा दे । वो अनुभव को पिछे से गुस्से में बोली — तुम हो छि
आपने पिछले भाग में देखा सुलोचना - हुह ... शायद तुम भूल रहे हो कि तुमने मुझे कब का अपने रेस्टोरेंट निकाल चुके हो । अब हमारे बीच कोई बॉस और इम्प्लोई का रिश्ता नहीं रहा ।
प्राचीन काल में ‘करवा’ नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी किनारे एक गाँव में रहती थी । कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी (चौथ) के दिन उसका पति नदी में स्नान करने के लिए गया । स्नान करते स
इतिहास में मीराबाई का नाम बड़े आदर और सत्कार से लिया जाता है मीराबाई मध्यकालीन युग की एक कृष्ण भक्त कवियित्री थी जिन्होंने श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग चुना और हमेशा भजन तथा कीर्तन के
उसे इंतेज़ार रहता है उस इक हसीन लम्हे का । वो लम्हा जो शायद जिंदगी के मायनों से मिला दे , जिंदगी का मतलब बता दें या फिर जिंदगी के उन गुत्थियों को सुलझा दे जिनसे मुंह मोड़ लिया है उसने । अपनी ही दुनिया म
आपने पीछले भाग में देखासुलोचना - हु .. ह .. मैं तुम लड़को को जानती हूँ । जब तुम्हें कोई काम होता है । तो तुम सब बटरिंग करना शुरु कर देते हो । चल अपना काम बोल । क्या चाहिए मेरे से । र
आपने पीछले भाग मे देखा आरव की बात सुनकर सुलोचना भी गुस्से में बोली - मुझे भी कोई शौक नहीं है । इतनी बेजती के होने के बाद जॉब करने की । सोच लो बाद में पछताना ना पड़े तुम्हें । आरव -