सुबह सात बजे तक दोनों प्रेम के घर वापस आ जाते हैं। प्रेम देखता है कि उसकी मां खाना बना रही थी, और चाची पूजा करके तुलसी के पौधे में जल चढ़ा रही थीं। प्रेम और सागर को देख कर प्रेम की मां खुश हो जाती हैं
अगली सुबह सागर की आँख खुलती है। वह देखता है कि प्रेम उसके पास सो रहा है। यह देखकर सागर के मन में एक अनोखी खुशी होती है। वह देखता है कि अब बारिश रुक चुकी है और खिड़की से सुबह की सूरज की किरणें प्रेम के
अपनी इस बेचैनी को खत्म कर कुछ बोलना चाहिए। कुछ हमे कुछ तुम्हे बोलना चाहिए। रात का वक्त और लंबा सफर, थोड़ी देर हमे ठहर जाना चाहिए। रिश्तों में मिठास रखने के लिए, एक दूसरे के घर जाना चाहिए। जिंदगी
अपनी आत्मा को ऋण और अपेक्षा से मुक्त करो :/ज़िन्दगी का सब से बड़ा बोझ , दुःख , गम , कर्ज़ का होता है चाहे आप को पैसे की मदद ,किसी अपने ने दी हो , रिश्तेदार ने दी हो , दोस्त ने दी हो या आप की मोहब्बत ने आ
ऐ नारी तू नास्तिक कैसे हो गयी तू तो आस्था की प्रतिक थी उषा-काल में तू तुलसी की पूजा किया करती थी तेरी अनुपम सूंदर वाणी से भोर हुआ करती थी तू अपने ही घर परिवार क
लहरें तो मासूम , नाज़ुक , हसींन होती हैं वो भला कश्ती को क्या डूबोएंगी , उन का उछलना , कूदना , मचलना , बहकना यह तो , उन की मस्ती है उन का खेल है - कश्ती को डूबोने वाला तो कोई और है जो समंदर के भीतर र
स्री बुद्ध नहीं बन सकती - /औरत बुद्ध नहीं बन सकती !! एक कट्टर धार्मिक समुदाय की ओर से एक घोषणा ../मेरी प्रतिक्रिया/परन्तु स्री को बुद्ध बनने की , बुद्ध होने की आवश्यकता क्
स्थिर हो जाओ , उफनती - उठती गिरती लहरों को - नियंत्रण कर लो , मुस्कराओ , शांत हो जाओ , झील बन जाओ - कँवल के फूल खिलाओ , पक्षियों को निमंत्रण भेजो , मंद मंद बहती हवा को प्रेम से पुकारो , बच्चों
प्रेम अब अच्छे से समझ चुका था कि वह सागर के प्रति अपने प्यार को जबरदस्ती रोक रहा था, जबकि सागर उसे सच्चे दिल से प्यार करता है। इसलिए, प्रेम ने अब मन बना लिया था कि वह सागर से अपने प्यार का इज़हार करके
दोनों ने सवालों का खेल शुरू किया।सागर: "तो, पहले तुम सवाल पूछो।"प्रेम: "ठीक है, लेकिन याद रखना, सब सच बोलना होगा। न कोई सवाल बदला जाएगा और न ही जवाब देने से मना किया जाएगा।"सागर: "चलो ठीक है, पूछो।"प्
होटल पहुंचकर सागर रिसेप्शन से कमरे की चाबी लेता है, जिस पर लिखा होता है "आठवीं मंजिल, कमरा नंबर 86"। सागर चाबी लेकर प्रेम से लिफ्ट में चलने को कहता है और फिर दोनों लिफ्ट से अपने कमरे तक पहुंच जाते हैं
प्रेम बिना जीवन नहीं प्याराप्रेम बिना तरुवर दुखियारा प्रेम बिना नहीं कहीं उजियारा प्रेम बिना मन में अंधियारा। प्रेम बिना नहीं जीव उत्पत्ति प्रेम बिना चहुं ओर विपत्ति प्रेम बिन
अगली सुबह प्रेम जल्दी उठ जाता है और नासिक जाने के लिए तैयार होता है। उधर सागर भी तैयार होकर प्रेम को फोन करता है। प्रेम फोन उठाकर: "हां सागर, बोलो।"सागर: "नासिक चलने के लिए तैयार हो?"प्रेम: "हां, बिल्
प्रेम: "तो चलो मिली, आज मेरे घर चलो। मेरी माँ के हाथ का खाना खाओ, तुम्हें मज़ा आ जाएगा।"सागर: "हाँ मिली, आंटी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं, तुम्हें ज़रूर चलना चाहिए।"मिली: "लेकिन..."प्रेम: "लेकिन-वेकिन क
थोड़ी देर बाद सागर के पापा भी ऑफिस आ जाते हैं और अनुज से पता चलता है कि प्रेम आज सागर सर के साथ उनकी कार में ऑफिस आया था। इतना सुनने के बाद वे गुस्से में सागर के पास जाते हैं, जहां प्रेम पहले से ही मौ
बरसती शाम का आलम, दिल में उतर आया,भीगी-भीगी राहों में, एक ख्वाब सा छाया।मिट्टी की सौंधी खुशबू, सांसों में बसी है,पत्तों पर टप-टप बूंदें, जैसे राग कोई फिजा में घुली है।चाय की प्याली संग, यादें भी ताज़ा
प्रेम घर जाकर बाइक आंगन में खड़ी कर रहा होता है कि प्रेम की मां, जो प्रेम का इंतजार कर रही थी, उसे आता देख बाहर आ जाती है और पूछती है, "आज तुम देर से घर आ रहे हो, काम ज्यादा था क्या?"प्रेम: "हां मां।"
सागर के पापा गुस्से में: सागर तुम यहाँ क्या कर रहे हो?सागर: पापा, वो लंच कर रहा हूँ।प्रेम: वो मैंने ही जोर दिया था।सागर के पापा: प्रेम, तुमसे बात पूछी मैंने, और सागर, तुम्हें पता है मुझे ये सब पसंद नह
अगली सुबह हुई, सोमवार का दिन था। प्रेम समय से ऑफिस पहुंच गया। मिली भी ऑफिस पहुंच गई थी। प्रेम ने मिली को देखा और उसके पास जाकर बोला: "गुड मॉर्निंग मिली।"मिली: "वैरी गुड मॉर्निंग प्रेम।"प्रेम: "कैसी हो
अगली सुबह होती है। प्रेम और सागर गहरी नींद में सो रहे थे। थोड़ी देर बाद प्रेम की आंख खुलती है। प्रेम सागर को अपने बगल में सोता हुआ देखता है। प्रेम लेटे हुए ही सागर को देखता रहता है और सोचता है कि सागर