निष्कर्ष को ऐसे देखकर काश्वी परेशान हो गई और उसने पूछ ही लिया “क्या हुआ? बात क्या है अचानक सीरीयस क्यों हो गये?”
“कुछ नहीं बस यूं ही” निष्कर्ष ने जवाब दिया
“नहीं.. कुछ तो है आप और आपके पापा के बीच में, आप जब भी उनकी बात करते हो कुछ बदले से दिखते हो, ऐसा क्या है?” काश्वी ने पूछा
“नहीं ऐसा कुछ नहीं है बस कुछ याद आ जाता है कभी कभी तो… छोड़ो तुम परेशान मत हो, चलो कहीं और चलते हैं, यहां पीछे एक टेरिस है जहां से डूबता सूरज दिखता है कुछ देर में सन सेट होगा देखना है?” निष्कर्ष ने बात बदलते हुए कहा
“हां मुझे देखना है पर एक शर्त पर आप मुझे पूरी बात बताओगे” काश्वी ने कहा
“बात कुछ भी नहीं काश्वी”, निष्कर्ष ने जवाब दिया
“बात तो है आप अगर बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं” काश्वी ने थोड़ा निराश होकर कहा
“ठीक है चलो बताता हूं” निष्कर्ष ने काश्वी को चलने का इशारा किया
ढलते सूरज की कम होती रोशनी में हर चीज का रंग ढलता नजर आने लगा, शाम का रंग पीले से संतरी और फिर नीला होता लग रहा है, ढलती शाम का ये नजारा किसी खूबसूरत सिनरी की तरह लग रहा है, काश्वी इस नजारे को भी अपने कैमरे में कैद करने में पीछे नहीं रही, तभी निष्कर्ष की आवाज सुनकर वो रुक गई “देखो वो पंछी झुंड बनाकर अपने घोसलों को लौट रहे हैं, थक हार कर पूरा दिन गुजारकर अपने घर जा रहे हैं, सुकून से रात गुजारने, पर मेरा घर कहीं खो गया है, इतना आगे आ गया कि वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं दिखता”, निष्कर्ष शून्य में ताकता हुआ सब कह रहा है
काश्वी उस दर्द को महसूस कर रही है जो निष्कर्ष की आवाज में है, जो उसकी आंखों में है, काश्वी ने निष्कर्ष से पूछा, “आपका घर कहां खो गया?”
“मां चली गई और उसके साथ घर भी”, निष्कर्ष ने जवाब दिया और फिर चुप हो गया
“और पापा वो तो है न”, काश्वी ने फिर पूछा
“हां वो है पर मेरे साथ नहीं”, निष्कर्ष ने एक लंबी सांस भरते हुए कहा
“क्यों पर?” काश्वी ने पूछा
“काश्वी ये जानने के लिये तुम्हें पूरी कहानी बतानी पड़ेगी”, निष्कर्ष ने कहा
“मैं सुनना चाहती हूं शायद आपको भी इससे अच्छा लगा”, काश्वी ने जवाब दिया
निष्कर्ष ने काश्वी को गौर से देखा फिर कहा “ठीक है तो शुरु से बताता हूं, वो लोकेशन जहां तुम्हारा पहला असाइनमेंट था उसी जगह मेरे मम्मी पापा पहली बार मिले थे। दिल्ली से पापा यहां अपने असानइमेंट के लिये आए थे तब वो फोटोग्राफर बनने की कोशिश कर रहे थे छोटा मोटा काम करके कुछ पैसे कमाने की कोशिश कर रहे थे और मां यहां उदयपुर से
अपने कुछ दोस्तों के साथ घूमने आई थी। फोटो खींचते खींचते पापा की नजर मां पर गई और उन्हें वो अच्छी लगी”, ये कहकर निष्कर्ष मुस्कुराने लगा “अच्छा फिर क्या हुआ?”, काश्वी ने पूछा
“फिर पापा ने मां की भी फोटो लेना शुरू कर दी, उनकी बस का पीछा भी किया और उस होटल का पता लगाया जहां वो ठहरी थी, अगले दिन फोटो प्रिंट करके मां को देने पहुंच गए” निष्कर्ष मुस्कुरा कर सब काश्वी को बता रहा है।
“अच्छा इतने रोमेंटिक है सर, फिर मां ने क्या किया?, काश्वी ने हैरानी से पूछा
“पहले तो वो बहुत डर गई सोचा पता नहीं कौन है कहां से आया है, इस तरह बिना पूछे फोटो खींचने का क्या मतलब? पर पापा के चेहरे की मासूमियत शायद उन्हें भी भा गई थी, पता है उस जमाने में ये सब आसान नहीं था लड़का अगर किसी लड़की से बात करते हुए देखा जाए तो बहुत पिटाई होती थी और फिर मां तो राजस्थान की थी वहां तो और भी सख्ती की जाती थी, डर की वजह से मां ने कोई बात नहीं की पर वो तस्वीरें जरूर ले ली, बस पापा को जैसे ग्रीन सिग्नल मिल गया, उन्होंने तभी से मां के बारे में सब पता करना शुरू कर दिया
जब दोनों दिल्ली लौटे तो पता चला कि मां का कॉलेज खत्म हो रहा था वो उदयपुर से दिल्ली आकर पढ़ाई कर रही थी और आखिरी दिनों में ये टूर रखा गया था। एग्जाम खत्म हो गये थे और रिजल्ट का इंतजार था, पापा को लगा ये आखिरी मौका होगा अगर अभी कुछ नहीं कहा तो वो मां को खो देंगे। उन्होंने पूरा प्लान बनाया और फिर उनके कॉलेज के बाहर इंतजार करने लगे। जब मां बाहर आई तो वो सामने जाकर खड़े हो गये, उन्हें एक लाल गुलाब दिया और कहा, “तुम्हारी तस्वीरें बहुत सुंदर थी चाहता हूं इसी तरह जिंदगी भर तुम्हारी तस्वीरें लेता रहूं क्या ऐसा हो सकता है?”
मां कुछ नहीं बोल पाई बस एक मुस्कुराहट ने सब कुछ कह दिया” ये कहकर निष्कर्ष चुप हो गया
“अरे वाह क्या लव स्टोरी है फिर आगे क्या हुआ? दोनों के परिवारवाले मान गये?” काश्वी ने पूछा
“अरे कहां, नानाजी ने तो साफ इंकार कर दिया, पापा के पास कोई नौकरी नहीं थी छोटे मोटे फोटोग्राफी असाइनमेंट से इंकम कहां थी, पर मां की जिद के आगे वो झुक गये, पापा और मां की शादी हो गई और दोनों दिल्ली आ गये” निष्कर्ष ने बताया
“वाह, निष्कर्ष अब तक सब ठीक लग रहा है ये तो एक परफेक्ट प्रेम कहानी है फिर आप क्यों परेशान हो ऐसा क्या हुआ जिससे आपके और आपके पापा के बीच इतनी दूरी हो गई” काश्वी ने पूछा
“काश्वी कुछ चीजें हमारे हाथ में नहीं होती, वक्त उन्हें तय करता है कब, क्या और कैसे होना है ये कोई और तय करता है
और हमें बस उस रास्ते पर चलना होता है, उन दोनों की लाइफ में अभी सब कुछ हरा दिख रहा है लेकिन इंसान की असली पहचान तब होती है जब वो मुसीबत में होता है पापा और मां खुश थे, पैसे की थोड़ी दिक्कत थी पर फिर भी प्यार के सहारे गाड़ी चल रही थी, जब ये खबर उन्हें पता चली कि वो दो से तीन होने वाले है तो पापा थोड़ी टेंशन में आ गये, पैसे की किल्लत की वजह से उनका ध्यान फोटोग्राफी से हट रहा था, इतने साल संघर्ष करने के बाद भी उनके टेलेंट को किसी ने पहचाना नहीं, अपने परिवार के लिये उन्होंने अपने कैमरे को अलमारी में बंद कर दिया और छोटी मोटी जो भी नौकरी मिली करने लगे, तीन साल जैसे-तैसे सब चल रहा था पर मां को ये बात खाए जा रही थी कि उनकी वजह से पापा ने अपना सबसे पंसदीदा काम छोड़ दिया है हांलाकि पापा ने उन्हें कभी ये जाहिर नहीं होने दिया कि वो इसे लेकर परेशान है पर मां को लगा अगर वो उनकी जिंदगी में नहीं आती तो शायद वो एक सफल फोटोग्राफर होते और किसी ने तो शायद नहीं पर मां ने पापा का टेलेंट पहचाना था”
कहानी थोड़ी गंभीर हो रही है और काश्वी के चेहरे का रंग भी उड़ रहा है निष्कर्ष हर बात में काश्वी का रिएक्शन नोट कर रहा है शायद उसकी अपनी ऑबर्जरवेशन है ये, अपनी कहानी से वो काश्वी को टेस्ट कर रहा है, कहां वो खुश हो रही है कहां उदास, सब निष्कर्ष देख रहा है। आगे कहने के पहले निष्कर्ष ने काश्वी से पूछा, ‘तुम्हें ये सब बताकर परेशान नहीं करना चाहता पर पता नहीं क्यों सब बताने का मन भी कर रहा है पहली बार किसी से ये बात कर रहा हूं, मां हमेशा इसके बारे में बताती थी उन्हें बहुत अच्छा लगता था जब भी पापा बाहर होते थे तो हम यही कहानी दोहराते थे
“बाहर रहते थे मतलब? कहां बाहर? और उन्होंने फोटोग्राफी दोबारा कब शुरू की?” काश्वी ने पूछा