तेरह घंटे का सफर शुरू तो बहुत जोश के साथ हुआ लेकिन दिन चढ़ते-चढ़ते सबका जोश ठंडा होने लगा। बस में बातों का सिलसिला अहिस्ता अहिस्ता थमने लगा। अब बस, बस के चलने की आवाज और हवा का शोर सुनाई दे रहा है। हमेशा की तरह काश्वी का कैमरा उसके हाथ में है। हरियाणा के बाद अब पंजाब की सौंध्री खुश्बू आने लगी जहां से गुजर कर हिमाचल का रास्ता निकलता है। सरसों के पीले खेतों में सिर पर पगड़ी बांधे किसान काम करते नजर आए, कहीं घरों के चूल्हों से निकलता धुआं आसमान की ओर सफेद बादल सा उठता दिखाई दिया। हाइवे के साथ थोड़ी दूर दौड़ती ट्रेन भी नजर आई, ट्रेन की आवाज सुनने के लिये काश्वी ने अपने हेड फोन कान से निकाल दिए, छुक छुक चलती गाड़ी पंसद थी उसे, रास्ते की हर खूबसूरत चीज को काश्वी वहीं रोक कर अपने कैमरे के जरिए फोटो बनाकर साथ ले जा रही है, ये तस्वीरें उसे रास्ते
की हर चीज याद दिलाएगी जब भी वो इसे याद करना चाहेगी। ये सफर काश्वी के लिये एक अच्छा एक्सपीरियंस होने वाला है ये अंदाजा था उसे और इससे जुड़ी हर बात को वो रिकॉर्ड में रखना चाहती है। अपनी तस्वीरों के साथ अपने दिल दिमाग में हर तस्वीर की व्याख्या करती जा रही है वो, जैसे खुद को समझा रही हो कि वो जो देख रही है कैसे हो रहा है उसके क्या मायने हैं, उसके दिमाग का डेटा बेस भर रहा है दिमाग का दायरा बढ़ रहा है, अपने शहर की छोटी छोटी गलियों और बड़ी बड़ी इमारतों से अलग उसे यहां छोटे-छोटे घर और खुला आसमान दिख रहा है। हाइवे से गुजरकर जब किसी छोटे से शहर से होकर निकलती उसकी बस तो वो ये देखकर हैरान होती कि यहां के लोगों का पहनावा और व्यवहार कैसे अलग है पिछले शहर से, दिल्ली में कुछ और हरियाणा में कुछ और पंजाब में कुछ और… पहनने, ओढ़ने का तरीका अलग, जीने का तरीका अलग, पंरपराएं और मान्यताएं अलग, भाषा भी तो एक सी नहीं, जबकि अभी कुछ ही घंटे हुए सफर करते, कुछ किलोमीटर
में ही कैसे सब बदल जाता है ये देखकर वो हर बार हैरानी होती है और सोचती है कि इंसान तो वही है पर दिखता अलग क्यों है?
कई घंटे हो गये चलते-चलते, सबने थोड़ा रूक कर कुछ खाने-पीने का फैसला किया। हाइवे के एक कोने पर छोटे से शॉपिंग आरकेड के बाहर बस रुकी, यहां से आगे का रास्ता पहाड़ का था तो वहां रुकना मुश्किल होगा इसलिये लंच और चाय कॉफी के लिये यहां रूकना सभी को सही लगा। सब बस से नीचे उतर गये और अंदर रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ने लगे, निष्कर्ष ने सबको बताया कि यहां बस आधे घंटे के लिये रुकेगी। सब मस्त थे, कोई कुछ खा रहा था और कोई बातों में लगा था। निष्कर्ष भी सबका ख्याल रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा आखिर ये सारे स्टूडेंट उसकी जिम्मेदारी जो है, वो हर टेबल पर जाकर सबसे बात करने लगा, कुछ देर बाद उसे काश्वी का ख्याल आया, पूरे रेस्टोंरेंट में देखा पर वो वहां नहीं दिखी, निष्कर्ष ने अपनी टीम से कहा और सब उसे ढूंढने निकल गये। रेस्टोरेंट से बाहर आकर निष्कर्ष भी काश्वी को ढ़ूढने निकल गया। पूरे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में उसे तलाश करने लगा निष्कर्ष और आखिरकार वो उस कॉम्प्लेक्स की एक छोटी सी हैंडक्राफ्ट की दुकान में कुछ चीजें देखती मिली। हाथ से बनी चीजों के बारे में काश्वी दुकान में बैठी एक बूढ़ी सी महिला से पूछ रही थी, अपने कैमरे से चीजों की तस्वीरें खींचने के साथ वो उसे बनाने का तरीका भी सीख रही थी शायद, निष्कर्ष दुकान के बाहर से उसे देखता रहा और फिर कुछ पल के बाद अंदर जाकर कहा, “काश्वी, आप यहां हैं सब ढूंढ रहे हैं, अकेले क्यों आ गई किसी को साथ ले आना था” काश्वी ने निष्कर्ष की तरफ देखा और कहा, “वो बस ऐसे ही, घूमते- घूमते यहां आ गई” निष्कर्ष मुस्कुरा दिया और कहा, “आपको कुछ खाना नहीं, सब वहां लंच कर रहे हैं” “नहीं, कुछ नहीं, मैं ठीक हूं, थैंक्स, आप चलो, मैं बस आती हूं”, काश्वी ने निष्कर्ष से कहा
निष्कर्ष को लगा कि काश्वी उसे इतने प्यार से जाने के लिये कह रही है, अब तो जाना ही पड़ेगा, निष्कर्ष वहां से वापस रेस्टोरेंट आ गया। आधे घंटे के बाद सब वापस बस की तरफ जाने लगे, निष्कर्ष अब भी काश्वी को ढ़ूंढ रहा था उसे लगा पता नहीं वो कहां है उसने टाइम देखा या अपने कैमरे के साथ ही बिजी है, ये सोचता हुए निष्कर्ष हर तरफ देख रहा था, बस के पास पहुंचा तो काश्वी वहीं थी। बस का दरवाजा खुला और सब उसमें चढ़ गये, गाड़ी स्टार्ट हुई और एक बार फिर सफर शुरू हो गया। काश्वी अब बस में बैठकर अभी-अभी खींची अपनी तस्वीरों को देखने लगी, जो उसे पंसद आई उसने सेव कर लिया और जो नापंसद थी उन्हें डीलीट कर दिया। अब भी काश्वी की दुनिया में सिर्फ वो, उसका कैमरा, कानों में लगा हेडफोन और खिड़की के बाहर गुजरते रास्तों की आती जाती चीजें ही है, बस के बाकी लोग उसके लिये जैसे है ही नहीं, पूरे रास्ते काश्वी ने
किसी से बात नहीं की। पहाड़ी रास्तों से गुजरती बस ऊपर की तरफ बढ़ रही थी बाहर जो दिख रहा था, उसे ठीक से देखने
से पहले ही बस घूम जाती थी, छोटे-छोटे मोड़ और पतले लंबे पेड़ों का जंगल, साफ हवा में घुली फूलों की खुश्बू और ढलती शाम की हल्की ठंड, अपने घोसलों को वापस लौटते पक्षियों का शोर जो शहरों के ट्रेफिक में सुनाई भी नहीं देता, यहां बस के शोर के बावजूद साफ-साफ सुनाई दे रही है, पहाड़ों की चढ़ाई और फिर ढलान वाले रास्तों से गुजरना अपने आप में सुकून सा भरा होता है जो घंटों के सफर की थकान को झट से दूर कर देता है। शाम के छह बज गये, मंजिल बस करीब है, निष्कर्ष ने सबको बताया कि 20 मिनट में हम पहुंचने वाले है, जहां से शुरु होगा फोटोग्राफी सीखने का एक नया सफर उन सबके लिये जो बस में सवार हैं।