पिछले दिनों करीब दो दशक बाद पाकिस्तान की छठवीं जनगणना सम्पन्न हुई। इसके अनुसार आज पाकिस्तान की जनसंख्या 20 करोड़ 78 लाख है। 1998 में की गई पिछली जनगणना में पाकिस्तान की जनसंख्या लगभग 13 करोड़ थी और उससे पहले की 1981 में साढ़े आठ करोड़। अभी जो जनगणना हुई है उसमें पाक अधिकृत कश्मीर तथा गिलगित बाल्टिस्तान की आबादी शामिल नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक इन दोनों क्षेत्रों की आबादी लगभग 65 लाख होनी चाहिए। यदि इस आबादी को पाकिस्तान की शेष आबादी से जोड़ दिया जाए तो पाकिस्तान की कुल आबादी 21 करोड़ के पार चली जाएगी। इतनी आबादी के साथ पाकिस्तान ब्राजील को पीछे छोड़कर विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा देश बन गया है। अब इससे आगे सिर्फ चीन, भारत, अमेरिका और इण्डोनेशिया ही हैं। अनुमान है कि सन् 2030 तक पाकिस्तान इण्डोनेशिया (आबादी 26 करोड़) से भी आगे निकलकर विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश बन जाएगा। यदि पाकिस्तान की वर्तमान जनसंख्या वृद्धि दर कायम रही तो संभावना है कि कालांतर में पाकिस्तान अमेरिका (आबादी 32 करोड़) से भी आगे निकलकर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश बन सकता है।
यह घोर आश्चर्य का विषय है कि 1946 में पाकिस्तान (3.3 करोड़) की आबादी बांग्लादेश (4.2 करोड़) की आबादी से लगभग एक करोड़ कम थी। लेकिन सन् 2000 में पाकिस्तान (14.7 करोड़) की आबादी बांग्लादेश (13.2 करोड़) की आबादी से लगभग डेढ़ करोड़ ज्यादा हो गई। आज की परिस्थिति यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश की आबादी का अन्तर बढ़कर लगभग पाँच करोड़ हो गया है। इस प्रकार देखें तो पाकिस्तान आज जनसंख्या विस्फोट का शिकार है। जनसंख्या विशेषज्ञों की राय में दुनिया के बड़े देशों में पाकिस्तान अकेला है जिसकी जनसंख्या वृद्धि दर सर्वाधिक है। वैसे विश्व में अन्य धर्मों के मुकाबले मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर सर्वाधिक है। फिर भी जब बड़े मुस्लिम बहुल देशों की बारी आती है तब भी पाकिस्तान की जनसंख्या वृद्धि दर सर्वाधिक पायी जाती है।
पाकिस्तान के जनसंख्या विस्फोट को देखकर ऐसा लगता है जैसे वहाँ की सरकारों ने जनसंख्या नियंत्रण का कभी भी कोई ठोस प्रयास नहीं किया। क्योंकि जहाँ बांग्लादेश जैसे देशों में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएँ परिवार नियोजन के साधनों का प्रयोग करती हैं, वहीं पाकिस्तान में यह प्रतिशत सिर्फ 30 के आसपास है। परिवार नियोजन की सफलता के लिए जानकारों की राय है कि निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की सहभागिता अवश्य होनी चाहिए। परंतु जैसा कि पाकिस्तान के प्रसिद्ध पत्रकार खालिद अहमद मानते हैं कि वैसे ही महिलाओं की सामाजिक हैसियत पुरुषों से कम होती है पर पाकिस्तान के मामले में यह दोहरी समस्या बन जाती है क्योंकि पाकिस्तानी अलग तरीके से इस्लाम की व्याख्या करते हैं। वहाँ के मुल्ला-मौलवी जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों को हतोत्साहित करते हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि हाल में हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक पाकिस्तान के पुरूष और महिला दोनों ने यह इच्छा जाहिर की है कि उन्हें कम-से-कम चार बच्चे चाहिएँ। जबकि अन्य देशों में लोग आम तौर पर दो ही बच्चे चाहते हैं।
जनसंख्या विस्फोट स्पष्ट तौर पर यह दर्शाता है कि पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र-राज्य है। इस विस्फोट के परिणाम अब वहाँ चारों ओर देखे जा सकते हैं। पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची की आबादी दो करोड़ के पार पहुँच चुकी है। कहते हैं कि दुनिया के किसी भी बड़े शहर की आबादी इतने कम समय में इतनी ज्यादा नहीं बढ़ी जितनी कराची की। क्योंकि सिर्फ 13 साल में एक करोड़ से अधिक लोग कराची में बढ़ गए हैं। हाल में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक दुनिया में रहने लायक 140 शहरों की सूची में कराची का स्थान 135 वाँ है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वहाँ का जीवन कितना दुष्कर होगा। लगभग ऐसी ही स्थिति पाकिस्तान के अन्य शहरों की भी होने वाली है। पाकिस्तान के सामने इस बढ़ी हुई आबादी को लेकर चुनौतियाँ ही चुनौतियाँ हैं। इतनी बड़ी संख्या में युवाओं के लिए रोजगार मुहैया कराना एक गंभीर समस्या तो है ही। इसी के साथ सबको शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना पाकिस्तान के लिए अत्यंत कठिन होता जा रहा है।
जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबंध महिलाओं की शिक्षा से होता है। जब लड़कियाँ शिक्षित हो जाती हैं तो अपने आप जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आने लगती है। इसका अत्यंत सफल उदाहरण भारत का केरल राज्य है। इसी तरह बांग्लादेश का उदाहरण भी हमारे सामने है। कहते हैं कि शिक्षा परिवार नियोजन का सबसे कारगर साधन है। परंतु विडम्बना यह है कि पाकिस्तान में स्त्री शिक्षा सर्वाधिक उपेक्षित है। आज भी वहाँ की लड़कियों के लिए स्कूलों में नामांकन पाना, स्कूलों में बतौर छात्रा पढ़ाई जारी रखना और अन्ततः उच्च शिक्षा में प्रवेश और उसे पूरा करना चुनौती भरा काम है। अभी भी वहाँ सभी लड़कियों का नामांकन नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा सारे विश्व में पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्रों के हिसाब से पाकिस्तान दूसरे स्थान पर है। जिनमें लड़कियों की संख्या अधिक है। इस तरह शिक्षा के लाभ से पाकिस्तान की आबादी का बड़ा हिस्सा अभी भी वंचित है। मलाला का उदाहरण यह बताने के लिए काफी है कि पाकिस्तान का कट्टर तबका किस कद्र स्त्री शिक्षा के विरुद्ध है।
इसलिए यह आशा करना व्यर्थ है कि निकट भविष्य में पाकिस्तान की जनसंख्या वृद्धि दर में कोई खास कमी आएगी! पाकिस्तान दुनिया के उन देशों में है जहाँ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और कर का अनुपात सबसे कम है। इसका परिणाम यह है कि सरकार विकास कार्यों के लिए पर्याप्त धन इकट्ठा नहीं कर पाती है। जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर बहुत असर पड़ता है।
जैसा कि विदित है पाकिस्तान के 70 सालों के इतिहास में वहाँ की शासन व्यवस्था पर फौजी तानाशाह और चुनी हुई सरकारें लगभग आधे-आधे समय के लिए काबिज रही हैं। फौजी तानाशाहों ने तो मनमाने ढंग से शासन किया ही, फौज ने चुनी हुई सरकारों को भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित किया। मुख्यतः फौजी हस्तक्षेप के कारण आज तक एक भी निर्वाचित प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। फौजी वर्चस्व के कारण ही देश की प्राथमिकताएँ बदलती रही हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि वहाँ की तमाम सरकारों की प्राथमिकता विकास कार्य न होकर राष्ट्र की तथाकथित सुरक्षा रही है।
पाकिस्तानी जानकारों की राय है कि जनसंख्या विस्फोट पाकिस्तान के अस्तित्व पर एक आसन्न संकट है। यदि युवाओं को रोजगार नहीं मिला तो वे असामाजिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा देश में बेतहाशा असमानता बढ़ेगी जिससे सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ेगा। इसलिए इनकी राय में पाकिस्तान की निर्बाध बढ़ती जनसंख्या वृद्धि दर एक ऐसे टाइम बम की तरह है जिसके फटने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है।
लेखक निवेश एवं लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग , वित्त मंत्रालय ,भारत सरकार में संयुक्त सचिव हैं। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं ।
4 सितम्बर 2018