हर शाम जब भी चिराग रोशन होते हैं
तेरी यादों के सपने दिल में पलने लगते हैं
ज्यों ज्यों बढ़ती जाती है रात की गहराई
त्यों त्यों दबे पांव चली आती है तन्हाई
फिर मैं और मेरी तन्हाई मिलकर अक्सर
गले लगकर एक दूसरे से बातें करते हैं
तब तन्हाई अपनी दास्तान सुनाने लगती है
कि किस तरह वह आज दिलों पे राज करती है
तब तेरा अक्स मुझे हवा में भी दिखता है
फिर मेरा हाथ जाम की ओर बढ़ता है
कभी तेरी आंखों के नाम कभी होठों के नाम
और कभी तेरे दिये जख्मों के नाम पीता हूँ
तन्हाई और जाम के सहारे ही तो मैं जीता हूँ
जब जाम में भी तू ही नजर आती है
बस, उसी लम्हे में दिल में शांति आती है
तब ऐसा लगता है कि तू कोई गजल गा रही है
और मुझे अपने करीब, और करीब बुला रही है
तब मैं तेरे आगोश में सिमटने लगता हूँ
अपने होने का अहसास भूलने लगता हूँ
तब मैं तुम और ये तन्हाई एकाकार हो जाते हैं
और दूर किसी जन्नत की सैर कर आते हैं ।
ये तन्हाई भी क्या गजब की चीज बनाई है
तेरी यादों के संग संग स्वतः चली आई है
अकेली कभी आती नहीं डिप्रेशन साथ लाई है
इसीलिए इससे बचने में ही सबकी भलाई है ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
20.11.21