सच कहीं छुपा बैठा है झूठ का बोलबाला है पर एक ना एक दिन उसका होता मुंह काला है
चार सौ बीस लोग दो और दो पांच करते रहते हैं
जब सच का डंडा चलता है तो नौ दो ग्यारह हो जाते हैं
बड़ी मतलबी दुनिया है गजब के खेल करती है
बेईमानी रावण को नायक बनाने का खेल रचती है
झूठे आरोप मढ़ना हर किसी की फितरत बन गई है
आजकल तो यारो अपनी जिंदगी से ही ठन गई है
ना कोई तीन में गिनता है ना तेरह में शामिल हैं
तीन दो पांच करने से "हरि" होता क्या हासिल है
आज के हालात छठी का दूध याद दिला देते हैं
पर हम भी एक और एक ग्यारह की हिम्मत रखते हैं
हरिशंकर गोयल "हरि"
25.10.21