वो आज हवा में उड़ती है
सितारों से बातें करती है
आसमानी ख्वाब सजाती है
सरिता सी कल कल बहती है
झरने सी मस्ती करती है
सागर सी गहराई रखती है
तूफानों से भी टकरा जाती है
अंधेरे में दीपक सी जलती है
वो आज मर्दों पर भी भारी है
जी हां, वो आत्मनिर्भर नारी है ।
घर के खर्चों में हाथ बंटाती है
बचत को कई गुना बढ़ाती है
पाई पाई को मोहताज नहीं है अब
घर की जरूरतों को भी पूरा करती है
अब वो किसी पर बोझ नहीं है
अब परिवार का सम्मान पाती है
कभी राख थी आज एक चिंगारी है
जी हां, वो आत्मनिर्भर नारी है ।
आत्मनिर्भर होने से चमक बढ़ गई
मैके ससुराल में भी धमक बढ़ गई
कुछ को कुछ ज्यादा ठसक चढ़ गई
मर्दों से आगे निकलने की सनक चढ़ गई
कुछ कर गुजरने की ललक बढ़ गई
हाय, चेहरे की क्या रौनक बढ़ गई
दुर्गा, लक्ष्मी, शारदा की अवतारी है
जी हां, वो आत्मनिर्भर नारी है ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
25.11.21