अनंत आसमां की अनंत ऊंचाइयों में
वायु के आवेग को चीर कर बढ़ते हुए
सूरज के असीम तेज को सहते हुए
उमड़ते घुमड़ते बादलों की छाया में
घूमते हैं दो नादां परिंदे अपनी मस्ती में
हौंसलों की उड़ान पर होकर सवार
जमाने की बंदिशों से बेपरवाह
एक नया जहाँ बनाने के लिए ।
कल की चिंता तो बुजदिल करते हैं
बहादुर तो बस आज में ही जिंदा रहते हैं
एक दूसरे का हाथ थामकर
बेफिक्र हो चल पड़ते हैं लंबे सफर पे
वही तो कहलाते हैं नादान परिंदे ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
2.11.21