सुनो प्रिय
जबसे हमसफर बनी हो, खुशियों की बरसात होने लगी है
कैसे बताऊँ कि रोज नई जिंदगी से मुलाक़ात होने लगी है
तुम्हारे प्यार की सुगंध से, महकने लगा है तन मन जीवन
ख्वाबों में जी रहे हैं हम और हवाओं से बात होने लगी है
दिन कब निकल जाता है तेरे साथ, पता ही नहीं चलता है
प्यार से भीगी भीगी सी अब तो, हर एक रात होने लगी है
अरमानों ने सजाया है सेहरा और उमंगों की डोली खड़ी है
इस दीवाने दिल की देखो ना ये, कैसी बारात सजने लगी है
छलके हैं आंखों से तेरे जबसे, खुशियों के दरिया , सागर
तेरी हर चाल से दुश्मन ए गमों की अब,मात होने लगी है
सदियों तक बना रहे साथ अपना ऐ हमसफर ऐ हमनशीं
खुदा के घर से भी नैमतों की अब तो सौगात होने लगी है
हरिशंकर गोयल "हरि"
9.11.21