दिल के घाव कभी दिखा ना सके
हम आज तक उन्हें भुला ना सके
गुलाबी खुशबू से महकता तन बदन
उसकी गिरफ्त से खुद को बचा ना सके
वो चले गये थे एक दिन रूठकर हमसे
तो जिंदगी भर उन्हें कभी बुला ना सके
एक छुअन से सिहर जाता था ये बदन
वैसी छुअन हम फिर कभी पा ना सके
जिस मुस्कान से सजती थी महफिलें
उसी मुस्कान पे सब कुछ लुटा बैठे
जिस गली में उनका ठिकाना था कभी
उस गली से हम अपना दिल लगा बैठे
कतरा कतरा कर टूटता रह गया दिल
इश्क ए मलहम से भी उसे जुड़ा ना सके
हरिशंकर गोयल "हरि"
30.11.21