आज सुबह सुबह
हवा का एक कतरा मिला
बड़ा महक रहा था
लग रहा था खिला खिला
हमने उससे पूछा कि
इस तरह महकने का क्या राज है
आपकी सरगोशियों का भी
ये क्या अजब अंदाज है
वो कहने लगा कि
एक अजनबी हसीना से
हम मिलकर आ रहे हैं
उसके बदन की महक में
अभी भी डुबकियाँ लगा रहे हैं ।
आप जो यह महक महसूस कर रहे हैं
बस, उसी हसीना से लेकर के आ रहे हैं ।
थोड़ा आगे चलने पर देखा कि
धूप का एक टुकड़ा जा रहा था
अपनी मस्तियों में मस्त
अल्हड़ सा बेपरवाह नजर आ रहा था
हमने उससे पूछा कि
इतना खिलंदड़ मिजाज कहाँ से लाते हो
खुद तो प्रकाश से सराबोर हो
और पूरे जगत को भी नहलाते हो
वो कहने लगा कि
एक अनजान हसीना रास्ते में मिल गई
उसकी निगाहों की रोशनी हमें मिल गई
उसकी निगाहों के उजोलों से जगमगा रहे हैं
खुद भी चमक रहे हैं और
औरों को भी चमका रहे हैं ।
इतने में एक आवारा बादल
कहीं से आकर टकरा गया
पूरे बदन में सावन का सा
भीगा अहसास जगा गया
हमने पूछा कि कहां से
तुम भीगकर आ रहे हो
ऊपर से नीचे तक तरबतर होकर
किधर की ओर जा रहे हो
वो कहने लगा कि रास्ते में
एक अजनबी बूंद खड़ी थी
अचानक उससे मेरी ये
शरारती आंखें जा लड़ी थी
उसने अपने प्यार की बरसात से
हमको पूरा भिगो दिया
भावनाओं के असीम समंदर में
हमको गहरे डुबो दिया ।
मैं सोचने लगा कि ये क्या हो रहा है
हर कोई यहां अजनबी की बांहों में खो रहा है
ये अजनबी है या जन्मों जन्मों का मीत है
जो कभी अजनबी था आज वह
सबसे प्यारा बन गया , यह कैसी प्रीत है
शायद प्यार इसी का नाम है
जिसके पास यह प्यार की दौलत हो
उसे बाकी धन दौलत से क्या काम है ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
9.12.21