भारत कभी सोनचिरैया कहलाता था
उद्योग, व्यापार का यहाँ बोलबाला था
दूध दही की नदियां बहा करती थी यहां
हीरे मोतियों से सजा यह मतवाला था
लुटेरे आते गये और लूटकर ले जाते गये
कभी हूण कभी शक , कुषाण आते गये
कभी अरब , गजनी, गोर लूटमार करते गये
कभी मुगल, अंग्रेज , फ्रेंच तिजोरी भरते गये
जो कुछ बचा खुचा था सफेदपोश लूटते रहे
लूट लूट कर स्विस बैंक में तिजोरी भरते रहे
कभी रेशम का संसार कभी नील का भंडार
कभी मसालों का था यहां बेशकीमती उपहार
भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी का साम्राज्य था
खाने के दानों के लिए अमरीका का मोहताज था
अब फिर से इसके "अच्छे दिन" आने लगे हैं
भारतीय फिर.से विश्व के आसमां में छाने लगे हैं
भारत की पहचान फिर से विश्व में बन रही है
सुसंस्कृत सभ्य समाज की स्थापना हो रही है
बड़ी बड़ी एम एन सी के सी ई ओ भारतवासी हैं
कुछ देशों में तो मंत्री भी हम ही भारतवंशी हैं
विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बनने के करीब हैं
140 करोड़ भारतीय ही अब विश्व का नसीब हैं
सबने वादा कर लिया अब हमको कर गुजरना है
भारत को फिर से एकबार पुनः सोनचिरैया बनना है
हरिशंकर गोयल "हरि"
7.12.21