सियाचिन की हाड़ गलाती ठंड में थार मरुस्थल की चिलचिलाती गर्मी में
उत्तर पूर्व की उफनती नदियों की धार में
कच्छ के रण के बीच मंझधार में
प्रहरी बनकर देश की रक्षा करता है
वो सैनिक ही है
जिस पर पूरा देश गर्व करता है ।
मां बाप से दूर रहकर
बीवी के प्यार से महरूम होकर
बच्चों को अनाथ जैसा छोड़कर
अपनों के साथ के लिए तरस कर
खेत खलिहान को भाग्य के सहारे छोड़कर
गांव की गलियों से मुंह मोड़कर
देश की सेवा करने जाता है
वह एक सैनिक ही है जिस पर
हर एक मां को दुलार आता है
और जिसमें हर बहन को
अपना एक भाई नजर आता है ।
दुश्मन का बहादुरी से सामना करता है
देश की खातिर लहू बहाने से पीछे कहाँ हटता है
लहू के बजाय देशप्रेम उसकी रग रग में बहता है
वो सैनिक गद्दारों के आगे असहाय नजर आता है
मानवाधिकारों की दुहाई देकर
आतंकियों की पैरवी करने वालों से घबराता है
अकारण ही कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाता है
हां वो एक सैनिक ही है जो
इस भ्रष्ट व्यवस्था में लाचार नजर आता है ।
हर कोई सैनिक नहीं बन जाता है
जिसमें देश के लिए कुछ कर गुजरने का माद्दा हो
वही नवयुवक ही सैनिक बन पाता है
अपना तन मन धन सब कुछ देश पर निछावर करता है
और ईनाम में बस, शहीद का दर्जा पाता है ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
9.12.21