जुबां पे शहद और हाथों में कटार रखते हैं
मेरे शहर के लोग , ऐसे ही इकरार करते हैं
जितना अपनापन दिखाया उतना ही लूटा
बड़े भोले हैं , रिश्तों में भी व्यापार करते हैं
आधुनिक दिखने को संस्कार भी तज दिये
छोटे बच्चे भी मां बाप का तिरस्कार करते हैं
संवेदनाएं अब तो शायद मर गई हैं ए "हरि"
अब तो केवल पैसों से ही सरोकार रखते हैं
कानून नाम का डर हमें कहीं दिखता नहीं
जो भी करना है सब खुले बाजार करते हैं
हरिशंकर गोयल "हरि"
16.10.21