*जय श्रीमन्नारायण*
*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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*गुरुपूर्णिमा विशेष*
*चतुर्थ भाग*
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प्रिय भागवत भक्तों जीवन एक मिट्टी का बना हुआ पुतला है इस पुतले को किस प्रकार से उत्तम रूप देकर समाज के हित में प्रशस्त करना सद्गुरु का कार्य है सद्गुरु की कृपा से वैष्णो मार्ग गामी होकर नारायण की शरणागति में रहकर अपने मनसा वाचा कर्मणा मनसे वचन से कर्म से वैष्णव सेवा करता वह परम वैष्णव नारायण की कृपा प्राप्त कर गुरु के आशीर्वाद से नारायण को प्राप्त होता है और इस वसुंधरा पर एक सुंदर पुरुष बनकर अपनी दिव्य आभा से इस लोक को आलोकित करता हुआ अंत में नारायण के धाम को प्राप्त होता है
*ऊर्ध्व पुण्ड्रधरो विप्रो सर्वलोकेषु पूजित:।*
*विमान वर मारुह्य याति विष्णो: परम् पदम्: ।*
अर्थात ऊर्ध्व पुण्ड्र धारण करने वाला विप्र सभी लोगों में पूजित होकर अंत में विमानों पर चढ़कर भगवान श्री नारायण की परम पद को प्राप्त होता है इस प्रकार वहां पहुंचकर श्रीमन नारायण के पार्षदों के साथ शामिल होकर अनंत काल तक प्रभु का सानिध्य दर्शन सेवा प्राप्त करता है और उस पावन लोक में आनंद से विचरण करता हुआ देवतुल्य होकर प्रभु की सेवा में लगा रहता है और यह सब तभी संभव है जब सद्गुरु की कृपा प्राप्त हो जाए क्योंकि बिना गुरु के बिना उनकी कृपा की कोई भी पूजन साधन सफल नहीं होता ऐसा श्रुतियों का कहना है स्वयं नारायण ने जब इस पावन धरा पर जन्म लिया वह भी गुरु के सानिध्य में रहकर उनकी कृपा से ही धर्म की स्थापना और अधर्म पर विजय प्राप्त कर सके मानस में कवि कुल शिरोमणि श्री गोस्वामी जी ने लिखा है भगवान श्री राघवेंद्र सरकार जिस समय महर्षि विश्वामित्र जी के साथ वन में पहुंचे वहां पर उन्होंने भगवान रघुराई को कई प्रकार की शिक्षा और दीक्षा दी
*तब ऋषि निज नाथहि जिय चिन्ही। विद्या निधि कहुँ विद्या दीन्ही।।*
इस लिए सिवाय सद्गुरु के और कोई ऐसा नहीं है जो हमे इस भवसागर से पार जाने का रास्ता दिखा सके यह केवल सद्गुरु की कृपा से ही संभव है
क्रमशः-
*श्री महंत*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण श्री वैष्णव शरणागति आश्रम *लखीमपुर खीरी*
( *उत्तर प्रदेश* )
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