*श्रीयतिराजाय नमः*
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*‼️गुरु ही सफलता का स्रोत‼️*
*भाग:-९*
*गतांक से आगे:----------*
*ब्रम्हाण्ड रश्मिनिकरेश्वनु गुज्जछदमात।*
*यस्य स्तुतीं प्रकृतिरेव स्वयं करोति।*
*गायन्ति यां ऋषिजनाः सुजनाश्च तं वै।*
*तं वन्दे रामानुजस्य चरणारविन्दम।।*
जिनकी स्तुति स्वयं प्रकृति भी करती है उस स्तुति का गुंजारण ब्रम्हाण्ड की रश्मियों में भी निर्गत हो रहा है । उस दिव्य स्तुति का उच्च कोटि के ऋषि मुनि योगीजन अत्यंत श्रद्धा एवं आनन्द मग्न होकर गैन एवं वन्दना करते हैं ऐसे सद्गुरु श्री रामानुज स्वामी के चरण कमलों का मैं भक्ति पूर्वक नमन व वन्दन करता हूं
सदगुरुदेव श्री स्वामी जी करते हैं मैं कोई भगवा कपड़े पहने सन्यासी या साधु नहीं हूं तुम्हारी तरह सारी जिम्मेदारियों को स्वाभाविक रूप से संपादित करते हुए आनंद को प्राप्त कर सकता हूं इसलिए चिंता मुझे व्याप्त होती नहीं तनाव होता नहीं। इस लिए रात को सोते ही मुझे नींद आ जाती है। इसीलिए चेहरे पर प्रसन्नता होती है ओज रहता है एक मस्ती रहती है और मैं वही सब तुम सबके चेहरे पर देखना चाहता हूँ। यह सब तुम्हें केवल गुरु के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है जब तुम अपने आप को गुरु में पूरी तरह से स्थापित कर गुरु को पूर्ण रूप से अपने आप में समाहित कर दो और गुरु को पूर्ण रूप से समाहित करने का तात्पर्य क्या है कैसे स्थापित कर दें कैसे समाहित कर दें समाहित का अर्थ है अपने आप में मिला देना जैसे पानी से पानी मिलता है दूध से दूध मिलता है पानी और दूध का घनत्व एक बराबर है वह आपस में मिल जाते हैं अगर पानी को या पेट्रोल को मिलाया जाए तो इनका घनत्व एक जैसा नहीं इसलिए वह आपस में मिल नहीं सकते गुरु आपको अपने जैसा बनाना चाहते हैं वही घनत्व आप को देना चाहते हैं जिससे कि आप पहले मिल सके आप पर तो अपने में समाहित कर सकें बहुत सरल कला है
और प्रत्यक्ष समाहित होने से कितना फायदा होगा? जो कुछ ज्ञान तुमने प्राप्त किया ही नहीं वह ज्ञान अपने आप मिल जाएगा आपको मिलेगा क्यों नहीं वहां ज्ञान को लेकरआपके अंदर समाहित हो जाएगा।एक गरीब घर की लड़की जिसके घर में खाने पड़ते हैं वह एक करोड़पति से शादी कर ले तो वह भी करोड़पति बन जाती है आधा सेकंड लगता है ज्यों ही शादी हुई वह करोड़पति बन गई इसी प्रकार जैसे ही आप गुरु को अपनाते हैं अपने में समाहित करते हैं उनको समर्पित होते हैं ठीक उसी क्षण आप भी गुरु के समान तेजस्वी हो जाते हैं आपको पहले गुरु को अपने अंदर समाहित करना पड़ेगा ऐसा समर्पण जब मानस में आएगा जब सिर को उतारे गा तो गुरु तक पहुंचेगा सिरे को उतारने के दो अर्थ होंगे सिर का अर्थ है घमंड बुद्धि तुम्हारे पिता की बुद्धि है कि यह गुरुजी नया करते हैं यह तो खुद घर में बैठे हैं मेरा बेटा बिगड़ जाएगा मेरे घर से भी जाएगा उनकी चिंता यह नहीं है कि कुछ सीख लेगा उनको चिंता यह है कि घर से चला जाएगा यह गुरुजी के घर में बैठा रहेगा नौकरी नहीं करेगा तो तनख्वाह कट जाएगी उनका रोना अपने खुद के स्वार्थ का है तुम्हारे लिए रोना नहीं है तुम्हारे लिए परेशानी नहीं है होते तो तुम जैसे ही मरते तुम्हारे पीछे बे भी मर जाते तो तुम चिंता करते वह भी चिंता की अग्नि में कूद जाते लेकिन एक भी ऐसे नहीं मारा वही प्राणी ऐसा बता दो इतिहास में कोई ऐसा नहीं मिला जिसका कोई अपना मरा हो उसके दुख में उसने अपने भी प्राण छोड़ दिए पत्नी रोती है अब घर को कौन संभालेगा पुत्र रोता है हमें खर्चा कौन देगा भाई रोता है अब हमारा साथ कौन देगा सभी अपने अपने स्वार्थ के लिए रोते हैं तुम्हारे लिए कोई नहीं रोता गुरुदेव कहते हैं कि अपने आप में पूर्णांक सन्यासी बन जाएं गृहस्थ रहते हुए भी सन्यासी बन जाए कोई चिंता न करें साल भर ऐसा करके देख ले या तो साल भर में डूब जाएंगे और यह जिंदगी भर कह देंगे कुछ नहीं गुरु के पास रहकर ही सब कुछ प्राप्त हो सकता है तुम अपने घर में रहकर प्राप्त नहीं कर सकते उस घर में बैठ सकते हो बैठने की क्रिया है जब तुम सब कुछ दे दोगे तो अपने आप में गुरु को प्रत्यक्ष कर दोगे तुम चूकोगे नहीं तुम्हारा हाथ नहीं चुकेगा इसके लिए पहले गुरु को अपने अंदर बैठा ले जब गुरु अंदर बैठा होगा तो ना तुम्हें डूबने देगा न परिवार को और ना ही तुम्हारे कारोबार को और गुरु के साथ होने का तात्पर्य है कि गुरु के अनुकूल कार्य है वह करो मैं "श्री महंत हर्षित कृष्णाचार्य" अपने स्वार्थ के लिए नहीं कह रहा हूं मैं गुरु हूं इसलिए नहीं कह रहा हूं मैं तुम शास्त्र की बात कर रहा हूं जो आदि गुरु शंकराचार्य आदि जगतगुरु श्री रामानुजाचार्य जीने करते हैं तुम मेरे लिए कुछ कार्य करोगे तब भी मुझे कुछ फर्क पड़ेगा नहीं और नहीं करोगे तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा जब इतने साल तुमने मेरा कोई कार्य नहीं किया तो कौन सा डूब गया मेरा परिवार और तुम कर दोगे तो कौन सा भगवान बन जाऊंगा और मुझे भगवान बनने की इच्छा है नहीं जब मैं भगवान हूं तो मुझे भगवान बनने की ख्वाहिश नहीं है भगवान का तात्पर्य है जो पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर सके वह भगवान कोई आकाश में टिमटिमाते हुए दिए को भगवान नहीं कहते जहां पूर्णता प्राप्त हो जहां एकदम से किसी प्रकार का तनाव ना हो चिंता न हो उसे भगवान कहा जाता है जो सृष्टि की रचना पालन संहारण की क्षमता रखता हूं हर किसी को भगवान ने नहीं कहा जाता गुरु को भगवान कहा जाता है क्योंकि गुरु दीक्षा देकर मनुष्य को नया जीवन प्रदान करता है नया नाम देता है नया गोत्र देता है और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है उसके अंदर की बुराइयों का संहारण करता है और उसके अंदर दिव्य ज्ञान की प्रकाश को प्रकाशित करता है इसलिए गुरु को भगवान का पद दिया गया नाम दिया गया सन्यासी गृहस्थ को समझाएं तो प्रभाव पड़ता है लेकिन एक गृहस्थ गुरु तुम्हारे बीच आकर खड़ा हो गया तो उसे विशेष बात करनी पड़ेगी प्रमाण देने होंगे शास्त्र के उदाहरण देने होंगे मगर तुम इतने न्यून हो कि तुम समझ लेते हो कि गुरु जी वैसे ही हैं जैसे हम हैं यह तुम्हारा भ्रम है तुम्हारी आंख का भ्रम है तुम्हारी आंखों में कमजोरी है जहां बगुले बैठे हैं वहां हंस भी बैठे हैं तुम समझोगे यह भी बगुला है हमको चिंता नहीं क्योंकि यह जानता हूं कि मैं हंस हूं मुझे क्या है कि लोग मुझे हंस कहीं या बगुला कहीं इसमें क्या अंतर आएगा जीवन का प्रत्येक दिन पूर्णता से भरा है जब *तुमको समर्पित होकर के मंत्रों के द्वारा चैतन्य होकर गुरु तत्व का प्रकाश प्राप्त करके अपने जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ो गे तब तुम्हें उस परम तत्व का ज्ञान होगा अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है जो शरीर की अग्नि से भिन्न दूसरे प्रकार की अग्नि है इसका कार्य व्यक्ति के चित्त में स्थित सारी कमियों और विकारों काम क्रोध लोभ मोह और अहंकार को जलाकर पवित्र करना है* विकारों के नष्ट होने से मानव चेतना का मस्तिष्क ब्रह्मांड के ज्ञान को समझने में सामर्थ्य बान हो जाता है गुरु रूपी बीज मंत्र के जप के प्रभाव से व्यक्ति चित अवधि तक प्रसन्नता पूर्वक जीवित रह सकता है जिसे शास्त्रों में इच्छा मृत्यु शब्द से विभूषित किया है
*क्रमशः :----*
*श्रीमहंत*
*हर्षित कृष्णाचार्य* *प्रवक्ता*
*श्रीमद्भागवत कथा एवं संगीतमय श्री राम कथा वा ज्योतिष फलादेश*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम लखीमपुर- खीरी*
*मो0:-9648769089*