*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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*!! विषय!!*
*सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*
*( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)*
*[ चतुर्थ भाग]*
*जय श्रीमन्नारायण*
कल के लेख में आपने पढ़ा श्री मैत्रेय जी एवं पाराशर जी वार्ता करते हैं पाराशर जी जोकि व्यास जी के पिता श्री भी हैं वह बताते हैं सात समुद्रों के बीच में सात द्वीप बसे हुए हैं
*अब आगे-----*
आदरणीय पाराशर जी ने कहा हे मैत्रेय जंबूद्वीप इन सबके बीच में स्थित है और उसके बीचो बीच में स्वर्णमई सुमेरू पर्वत स्थित है ऊंचाई 84000 योजन है (एक योजन 4 कोस का होता है और एक कोष 3 किलोमीटर का होता है)
और नीचे की ओर यहां 16000 योजन पृथ्वी में फंसा हुआ है इसका विस्तार ऊपरी भाग में 32000 योजन है तथा नीचे तलहटी में केवल 16000 योजन है इस प्रकार इस पर्वत पर पृथ्वी रूप कमल की कर्णिका क(कोश) के समान है इसके दक्षिण में हिमालय हेमकूट और निषध तथा उत्तर में नील' श्वेत और श्रृंगी नामक वर्ष पर्वत है [जो भिन्न-भिन्न वर्षों का विभाग करते हैं] उनमें बीच के दो पर्वत [निषध और नील] एक एक लाख योजन तक फैले हुए हैं उनसे दूसरे 10 10 हजार योजन कम है वे सभी दो-दो सहस्त्र योजन और इतने ही चौड़े हैं हे द्विज मेरु पर्वत के दक्षिण की ओर पहला भारत वर्ष है तथा दूसरा किम्पुरुष वर्ष है और तीसरा हर वर्ष है उत्तर की ओर प्रथम रम्यक फिर हिरण्यमय और तदनंतर उत्तर कुरु वर्ष है जो [द्वीप मंडल की सीमा पर होने के कारण] भारतवर्ष के समान [धनुषाकार ]है हे द्विज श्रेष्ठ इनमें से प्रत्येक का विस्तार नव नव हजार योजन है तथा इन सबके बीच में इला वृत वर्ष हैं जिसमें सुवर्णमय सुमेरू पर्वत खड़ा हुआ है ही महा भाग यह इला बृत वर्ष सुमेरू के चारों ओर नव हजार योजन तक फैला हुआ है इसके चारों ओर चार पर्वत हैं यह चारों पर्वत मानव सुमेरु को धारण करने के लिए ईश्वर कृत किलियां हैं [क्योंकि इनके बिना ऊपर से विस्तृत और मूल में संकुचित होने के कारण सुमेरू के गिरने की संभावना है] इनमें से मंदराचल पूर्व में गंधमादन दक्षिण में विपुल पश्चिम में और सुपार्श्व उत्तर में है यह सभी दस दस हजार योजन ऊंचे हैं इनर पर पर्वतों की ध्वजा ओं के समान क्रमशः ग्यारह ग्यारह 100 योजन ऊंचे कदंब जंबू पीपल और बटके वृक्ष है हे महामुनि इनमें जंबू अर्थात जामुन के वृक्ष के कारण जंबूद्वीप नाम पड़ा उस वृक्ष के फल महान गजराज के समान बड़े होते जो पर्वत पर गिरते हैं तो फटकर सब ओर फैल जाते हैं उनके रस से निकली जंबू नाम की प्रसिद्ध नदी वहां बहती है जिस का जल वहां के रहने वाले पीते हैं
*कदम्बस्तेषु जम्बूश्च पिप्पलो वट एव च। एकादशशतायामाः पादपा गिरिकेतवः।।* (19)
*जम्बूद्वीपस्य सा जम्बूर्नामहेतुर्महामुने। महागजप्रमाणानि जम्ब्वास्तस्याः फलानि वै। पतन्ति भूभृतः पृष्ठे शीर्यमाणानि सर्वतः।।*
(वि०पु०द्वतीय अंश/अ०2/श्लो०19'20)
उसका पान करने से वहां के शुद्ध चित्त लोगों को पसीना दुर्गंध बुढ़ापा अथवा इंद्रिय क्षय नहीं होता उसके किनारे की मृत्यु का उस रस से मिलकर मंद मंद भाई उसे सूखने पर जाम्बूनद नामक स्वर्ण हो जाती है जो सिद्ध पुरुषों का भूषण है
*क्रमशः----*
*श्रीमहन्त*
*स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य*
पुराण प्रवक्ता/ ज्योतिर्विद
*संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा /श्री राम कथा /श्रीमद् देवी भागवत कथा/ श्री महाभारत कथा कुंडली लेखन एवं फलादेश /यज्ञोपवीत वैवाहिक कार्यक्रम/ यज्ञ प्रवचन/ याज्ञिक मंडल द्वारा समस्त वैदिक अनुष्ठान*
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