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*।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।*
*श्रीपराशर भट्टर् और श्रीवेदव्यास भट्टर् का जन्म*
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श्रीपराशर भट्टर् और श्रीवेदव्यास भट्टर् कूरत्तालवान् (कूरेश स्वामी) और माता आण्डाल के सुपुत्र हैं । श्रीपराशर भट्टर् और श्रीवेदव्यास भट्टर् (दोनों भाई) श्रीपेरिय पेरुमाल् और श्रीपेरिय पिराट्टि के विशेष अनुग्रह से और उनके द्वारा प्रदान किये गये महाप्रसाद से इस भौतिक जगत् में प्रकट हुए।
एक बार श्री कूरत्तालवान् भिक्षा माँगने हेतु घर से निकले परंतु बारिश की वजह से बिना भिक्षा के ही खाली हाथ लौटे। माता आण्डाळ और कूरत्तालवान् (कूरेश स्वामी) बिना कुछ पाये खाली पेट विश्राम कर रहे थे । विश्राम के समय उनकी पत्नी श्री आण्डाल को मंदिर के अंतिम भोग की घंटी की गूंज सुनाई देती है। तब श्रीआण्डाल भगवान् से कहती हैं – “यहाँ मेरे पति जो आपके बहुत सच्चे और शुद्ध भक्त हैं जो बिना कुछ खाए ही भगवत्-भागवत कैंकर्य कर रहे हैं दूसरी ओर आप स्वादिष्ट भोगों का आनंद ले रहे हैं, यह कैसा अन्याय है स्वामिन्।”
माता आण्डाल के कुछ इस प्रकार से कहने के पश्चात चिंताग्रस्त पेरियपेरुमाल अपना भोग उत्तम नम्बि के द्वारा उनके घर पहुँचाते हैं। भगवान् का भोग उनके घर आते हुए देखकर कूरत्तालवान् आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने तुरंत अपनी पत्नी की ओर मुड़कर पूछा – "क्या तुमने भगवान् से शिकायत किया की हमें अन्न की व्यवस्था करें ?" यह पूछने के पश्चात, आण्डाल अपनी गलती स्वीकार करती हैं और कूरत्तालवान् इस विषय से नाराज हो गये क्योंकि उनकी पत्नी ने भगवान् को प्रसाद देने के लिए निर्दिष्ट किया। घर आए हुए भगवान् के प्रसाद का अनादर न हो इसीलिये कूरत्तालवान् दो मुट्टी भर प्रसाद ग्रहण करते हैं और स्वयं थोडा खाकर शेष पत्नी को देते हैं। यही दो मुट्टी भर प्रसाद उन्हें दो सुंदर बालकों के जन्म का सहकारी कारण बना।
11 दिन के अशौच के पश्चात 12वें दिन श्रीरामानुज स्वामी जी श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी जी और अन्य श्रीवैष्णवों के साथ उत्साहित होकर दोनों बालकों को आशीर्वाद देने श्रीकूरेश स्वामी जी के तिरुमाली में पधारे। श्रीरामानुज स्वामी जी ने श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी जी को दोनों बालकों को उनके निकट लाने को कहा। श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी जी श्रीपराशर भट्टर को अपने हाथों में लेकर उसे श्रीरामानुज स्वामी जी के पास ले आये। श्रीरामानुज स्वामी जी ने बालक को बड़े प्रेम से अपने हाथों में लिया और आशीर्वाद दिया। उन्होंने श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी (एम्बार स्वामी) जी से कहा, “इस बालक में पवित्र चमक और सुगन्ध हैं। तुमने ऐसा क्या किया है?
श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी जी ने उत्तर दिया कि “मैंने बालक की सुरक्षा के लिये द्वय महामन्त्र का श्रवण कराया था। ”
श्रीरामानुज स्वामी जी श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी जी से कहते हैं, “आप तो मुझसे भी आगे हैं। आप ही इस बालक के आचार्य बनिये।” फिर उन्होंने इस बालक का नाम पराशर मुनि के स्मरण में 'पराशर भट्टर' रखा और श्रीयामुनाचार्य स्वामी जी की दूसरी इच्छा को पूर्ण किया।
श्रीरामानुज स्वामी जी ने श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी जी को बालक का समाश्रयण करने का निर्देश दिया। श्रीरामानुज स्वामी जी श्रीकूरेश स्वामी जी को आज्ञा देते हैं कि पराशर भट्टर को श्रीरंगनाथ भगवान् और श्री रंगनायकी अम्मा जी को दत्तक रूप में दे दें। श्रीकूरेश स्वामी जी ने आदेश का पालन किया। पराशर भट्टर का बचपन के समय से ही रंगनायकी अम्मा जी स्वयं उनका पालन-पोषण करती थीं और जब भी अम्मा जी श्रीरंगनाथ भगवान् को भोग लगातीं तो श्रीपराशर भट्टर स्वामी जी अपने हाथ से सीधे भोग के पात्र में हाथ डाल भगवान् का भोग लगाने से पहिले ही पा लेते और उसके बाद स्वयं भगवान् भी आनंदित होकर प्रसाद पाते हैं।
बहुत ही छोटी उम्र से ही श्रीपराशर भट्टर स्वामी जी बहुत ही कुशाग्र बुद्धि थे । श्रीरामानुज स्वामी जी और श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी जी के बाद वे ही सम्प्रदाय के प्रमुख बने।
श्रीगोविन्दाचार्य स्वामी जी के पूर्वाश्रम के श्रीगोविन्द पेरुमाल कि पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया और श्रीरामानुज स्वामी जी ने उसका नाम 'परांकुश नम्बी' रखा।
श्रीदाशरथी स्वामी जी का श्रीरामानुज स्वामी जी के प्रति बहुत लगाव था और श्रीरामानुज स्वामी जी भी उनके प्रति यही भाव रखते थे। जब श्रीरामानुज स्वामी जी ने श्रीमहापूर्ण स्वामी जी की बेटी अतुलाम्बा के यहाँ एक सेवक बनकर रहने को कहा तो बिना विचार किये उन्होंने श्रीरामानुज स्वामी जी कि आज्ञा का पालन किया।
जब श्रीरामानुज स्वामी जी के आचार्य श्रीमहापूर्ण स्वामी जी ने श्रीयामुनाचार्य स्वामी जी के महान शिष्य श्रीमारनेर नम्बी के अन्तिम क्रिया किये तो वहाँ के अन्य श्रीवैष्णवों ने उनके इस कार्य को अनुचित कहा क्योंकि श्रीमहापूर्ण स्वामी जी एक ब्राह्मण थे और श्रीमारनेर नम्बी एक शूद्र थे। उन लोगों ने श्रीरामानुज स्वामी जी के पास जाकर इस घटना की शिकायत किया। श्रीरामानुज स्वामी जी ने श्रीमहापूर्ण स्वामी जी को बुलाया और इसका उत्तर माँगा। श्रीमहापूर्ण स्वामी जी ने श्रीमारनेर नम्बी की महान श्रीवैष्णवता को समझाया और दृढ़ रहे कि वे जो किये वह सही है। श्रीरामानुज स्वामी जी आनंदित हो गये और सभी को यह बात बताते हैं और कहते हैं कि वे श्रीमहापूर्ण स्वामी जी से सहमत हैं ।
क्रमशः .........
–जय श्रीमन्नारायण