*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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*!! विषय!!*
*सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*
*( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)*
*[ तृतीय भाग]*
*जय श्रीमन्नारायण*
जय श्रीमन्नारायण कल के भाग में आप लोगों ने पढ़ा कि किस प्रकार से भगवान श्री हरि ने वराह रूप धारण करके पृथ्वी को पुनः स्थापित किया और हिरण्याक्ष का वध किया
अब आगे-----
इस प्रकार से कई प्राचीन उदाहरण हैं जिसमें एक उदाहरण सहस्त्रार्जुन का भी आता है उसे किस प्रकार से महर्षि के आश्रम पर आक्रमण करके बरात उनके आश्रम पर कब्जा किया अपितु हयहयवंश भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी के द्वारा ही प्रारंभ हुआ इसका वर्णन श्रीमद् देवी भागवत पुराण में आता है उसी वंश में सहस्त्रार्जुन जिसको सहस्रबाहु भी कहा जाता है जन्म हुआ राजा बना यद्यपि प्रजा पालक रहा धार्मिक रहा किंतु मित्रों जानने योग्य विषय यह है कि जब व्यक्ति की लोलुपता बढ़ जाती है ऊपर से कुछ भी दिखाई पड़े किंतु अंदर से वह राक्षस प्रवृत्ति का हो जाता है और वह किसी भी प्रकार से धन ऐश्वर्य पृथ्वी आदि को अपने बल से अपने कब्जे में लेकर अपने शासन में लेकर और उसका उपभोग करना चाहता है और अपने आप को प्रतिष्ठित रखना चाहता है इसके लिए चाहे अधर्म करना पड़े पाप करना पड़े किसी की धन संपत्ति आदि को छीन ना हो वह सब कुछ करने को तैयार रहता है यहां तक की उसको ना धर्म से भय है ना देवताओं से भय हैं और ना ही काल से भय लगता है वह स्वयं को सर्वेश्वर मान बैठता है चंद चाटू कारों से घिरे रहने के कारण वह अपने आप को सिरमौर समझ लेता है और इस प्रकार माया के वशीभूत होकर पाप कर्म में में लिप्त रहता हुआ वह संत ऋषि देवता देवभूमि ऋषि भूमि गुरुकुल गौशाला मंदिर आदि पर कब्जा करके उनको हटाकर स्वयं को प्रतिष्ठित करता है वह अपने मन मुताबिक धर्म का उपदेश करता है अपने मन मुताबिक देवता बना लेता है काल्पनिक दुनिया में रह करके वह स्वयं को सर्वेश्वर कहता है और बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि हमारा विज्ञ समाज इतना अनभिज्ञ कैसे हो गया कि वह ऐसे बगुला भक्तों के जाल में फंस जाता है ध्यान देना प्यारे सबसे बड़ी बात क्या है हमारे सनातन धर्म पर आघात करके ही यह लोग आगे बढ़ते हैं और विडंबना यह है उसमें राजतंत्र भी अर्थात आज का लोकतंत्र भी शामिल है यह सब वर्णन बहुत पहले भगवत अंसा अवतार श्री व्यास जी ने भागवत में वर्णन कर दिया था उन्होंने कलयुग में कैसे-कैसे राजा होंगे किस प्रकार की राजनीति या होंगी सब कुछ वर्णित किया है और दुख तब होता है जब हमारे विद्वत जन ही ऐश्वर्य की तरफ लालायित होते हैं इनको न ज्ञान से मतलब होता है ना धर्म से न तपस्या से उनको यह दिखता है कि हमारे गुरु कितने ऐश्वर्य वान है कितने धनवान हैं बड़ी-बड़ी गाड़ियों में चलना बड़े-बड़े महलों में रहना एयर कंडीशन व्यवस्था क्या यह तपस्या है अथवा यह ज्ञान या परमात्म तत्व की प्राप्ति का लक्षण है जो हमारे वास्तविक गुरुजन हैं जिनमें ईश्वर तत्व शिव तत्व नारायण तत्व विद्यमान है उनकी तरफ हम नहीं करते उसका कारण है कि उनको ना तो राजनीति से मतलब है न प्रसिद्धि से मतलब है ना तो वो यह चाहते हैं कि हमारे इतने शिष्य हो यहीं पर हम कमजोर पड़ जाते क्योंकि गोस्वामी जी ने बताया है
*दम्भिन निज मति कल्पि कर प्रगट किये बहु पंथ।।*
वह मन मुखी है अपने मन के पथ पर चलते हैं और उसी पर चलने के लिए सभी को प्रेरित करते हैं ऐसा क्यों करते हैं आगे के लेख में इसका भी वर्णन करने का प्रयास करूंगा कि यह कौन है यह माया मोह कौन है किंतु अभी जो मैं कहना चाहता हूं मैं स्वामि हर्षित कृष्णाचार्य जहां तक मेरा मानना है तो आज हम निराश्रित क्यों हैं हमारे धार्मिक स्थलों आश्रमों मंदिरों आदि पर भू माफियाओं द्वारा कब्जा क्यों किया जाता है और क्यों हम इसका जवाब नहीं दे सकते क्यों हम कुछ नहीं कर सकते क्षमा चाहूंगा लेकिन बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि हमने स्वयं अपनी संस्कृति अपनी विद्या अपने गुरु परंपरा का अनादर किया है हमारे सामने यदि कोई अपने सनातन धर्म की विद्या का अनुकरण करने वाला होता है तुम उसको बड़ी ही हीन भावना से देखते हैं बड़ा ही छोटा समझते हैं और इंग्लिश के दो चार वाक्य बोल कर के अपना सर बड़े गर्व से ऊंचा करते हैं अपने आप को बड़ा विद्वान समझते हैं लेकिन प्यारे मित्रों यही अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा और गुरु कुलों का अंत ही हमारी इस दुर्गति का कारण है हमारा भूगोल कैसा है और कैसा था? आइए पहले इसको समझते क्योंकि यह अति आवश्यक है जब हम अपनी भौगोलिक स्थिति को समझेंगे तब हम यह समझ पाएंगे कि हमें कितना तोड़ा गया है किस प्रकार से कब्जा किया गया है आज तो जो हो रहा है वह सबके सामने है ही लेकिन इसकी शुरुआत कैसे हुई श्री श्रीमद् भागवत जी में व्यास जी ने वर्णन किया है द्वितीय अंश के दूसरे अध्याय में श्री मैत्रेय जी और सम्माननीय श्री पाराशर जी के वार्तालाप अनुसार वर्णन है पाराशर जी ने कहा प्रिय मैत्रेय अगर विस्तार से वर्णन किया जाए तो सैकड़ों वर्षो में भी भूगोल का वर्णन नहीं किया जा सकता आइए संक्षिप्त में बताता हूं
*जम्बूप्लक्षाह्वयौ द्वीपौ शाल्मलश्चापरो द्विज।*
*कुशः क्रौञ्चस्तथा शाकः पुष्करश्चैव सप्तमः।।*
[द्वि० अं०/2अ०/श्लो०5]
अर्थात है द्विज ! जम्बू, प्लक्ष,शाल्मल, कुश, क्रौंच,शाक और सातवां पुष्कर- यह सातों द्वीप हैं जो चारों ओर से खारे पानी, इक्षु रस, मदिरा, घी, दधि, दुग्ध, और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हुए हैं
*क्रमशः----*
*श्रीमहन्त*
*स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य*
पुराण प्रवक्ता/ ज्योतिर्विद
*संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा /श्री राम कथा /श्रीमद् देवी भागवत कथा/ श्री महाभारत कथा कुंडली लेखन एवं फलादेश /यज्ञोपवीत वैवाहिक कार्यक्रम/ यज्ञ प्रवचन/ याज्ञिक मंडल द्वारा समस्त4 वैदिक अनुष्ठान*
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