*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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*!! विषय!!*
*सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*
*( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)*
*[प्रथम भाग]*
आज बहुत दिन बाद पुनः धारावाहिक क्रम से लिखने का प्रयास कर रहा हूं जिसका श्रेय परम आदरणीय सम्मानीय श्री 1008 श्री शिव त्रिजटा अघोरी जी को जाता है जो हमारे इष्ट के भी इष्ट के उपासक हैं और हमारे लिए शिव सदृश गुरु तुल्य है अतः उनके चरण वंदन करते हुए उनके द्वारा दिए गए विषय पर हम अपनी छुद्र बुद्धि के अनुसार शास्त्रों से संग्रह करते हुए प्रकाश डालना चाहते हैं जय श्रीमन्नारायण श्रीमते रामानुजाय नमः
सर्वप्रथम हम सृष्टि के आदि से प्रारंभ करते हैं व्यास जी के वचन अनुसार श्री विष्णु पुराण श्री श्रीमद् भागवत जी श्री देवी भागवत जी के अनुसार जिस समय सृष्टि की आदि रचना प्रारंभ हुई ब्रह्मा आदि देवता प्रकट हुए ब्रह्मा जी को आदेश हुआ कि आप सृष्टि की रचना करें ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का उपक्रम प्रारंभ किया किंतु सबसे बड़ी अड़चन आ गई सृष्टि तो बढ़ती जा रही है परंतु उनके रहने की जगह नहीं है देवताओं ने विचार किया एक कमल के पत्ते पर सृष्टि कब तक स्थिर रहेगी अतः इसके लिए पृथ्वी मंडल का होना आवश्यक है किंतु दुर्भाग्य यह है हिरण्याक्ष राक्षस जो हिरण्यकश्यप का भाई था वह पृथ्वी को चुरा कर और अथाह जल राशि में छिपा कर बैठा था उसे प्राप्त करना किसी भी देवता के बस में नहीं था मित्रों सबसे अधिक ध्यान देने योग्य बात यह है आदिकाल से विधर्मी ओं की एक परंपरा रही वहां पहले सनातन धर्म से बड़ा प्रेम करते हैं जब तक कमजोर रहते उन्हीं से शक्ति प्राप्त करते हैं उन्हीं से वरदान प्राप्त करते हैं शक्ति संचय के साथ-साथ वह अपना संगठन भी मजबूत करते हैं अपनी यूनिटी बनाते हैं और उसके बाद सनातन धर्म पर आक्रमण कर देते हैं फिर चाहे वो उनके धार्मिक स्थल हो या देवता अथवा कोई सनातन धर्म को मानने वाला संतो भक्तो महात्मा आदि को प्रताड़ित करते हैं और उनको विधर्मी बनने के लिए अपनी यूनिटी में मिलने के लिए प्रयास करते हैं और जब वह नहीं मिलता है तो उसको समाप्त भी कर देते हैं एक हिरण्याक्ष नहीं इसके बाद इसका भाई हिरण्यकश्यप उसने तो सीधा आदेश कर दिया था कि कोई भी व्यक्ति किसी देवालय अथवा मंदिर को नहीं जा सकता है किसी देवी देवता का पूजन नहीं कर सकता है कोई यज्ञ जब तक हम अंकित या दिन नहीं कर सकता है गुरु का माता-पिता का सम्मान नहीं कर सकता है मांस मदिरा का सेवन करो वेश्याओं की संगति करो और पूजन करना है तो मेरा चित्र बनाकर के पूजा करो क्योंकि मैं ही भगवान हूं उसने कहा ध्यान देंगे आप लोग कि मैं ही भगवान हूं मेरी पूजा करो आज भी बहुत सारे लोग हैं जो कहते हैं मैं भगवान हूं मैं किसी का नाम तो नहीं लूंगा आप सभी लोग स्वयं समझदार हैं अब उनको क्या संज्ञा दी जाए अतः मैं अपनी बात पर आता हूं श्रीमान जी हिरण्याक्ष पृथ्वी को लेकर के समुद्र की गहराइयों में उतर गया तो सारे देवता परेशान हो गए क्योंकि कोई भी देवी देवता युद्ध में विजई नहीं हो सकता था तब देवताओं ने विचार-विमर्श किया और कहा अब शिवाय नारायण की हमें कोई और नहीं बचा सकता अर्थात पृथ्वी को लाने में अन्य कोई सक्षम नहीं है एक बात और बता दें देवताओं ने यह कहा क्यों क्योंकि जो है भगवान पुरुषोत्तम से ही है उत्पन्न है इसके बारे में विष्णु पुराण के प्रथम अंक चौथे अध्याय के छठे श्लोक में बताया गया है --
*आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः।*
*अयनं तस्य ता: पूर्वँ तेन नारायणः स्मृतः।।*
नर (अर्थात पुरुष- भगवान पुरुषोत्तम)- से उत्पन्न होने के कारण जल को नार कहते हैं वह "नार" (जल) ही उनका प्रथम अयन {निवास स्थान है} इसलिए भगवान को नारायण कहते हैं
और जब जल उन्हीं से उत्पन्न है और श्रीमन्नारायण का निवास स्थान भी है तो जल के अंदर की वस्तु को प्राप्त करना केवल नारायण के ही बस की बात है यह विचार कर देवगण छीर सागर के किनारे पहुंचे और नारायण से प्रार्थना करने लगे
क्रमशः----
*श्रीमहन्त*
*स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य*
पुराण प्रवक्ता/ ज्योतिर्विद
*संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा /श्री राम कथा /श्रीमद् देवी भागवत कथा/ श्री महाभारत कथा कुंडली लेखन एवं फलादेश /यज्ञोपवीत वैवाहिक कार्यक्रम/ यज्ञ प्रवचन/ याज्ञिक मंडल द्वारा समस्त वैदिक अनुष्ठान*
*श्रीवासुदेव सेवा संस्थान*
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*श्री जगदीश कृष्णा शरणागति आश्रम लखीमपुर खीरी* *संपर्क सूत्र:- 9648 76 9089*