*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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एक बार पुनः आप लोगों की सेवा में प्रेषित है----
*‼️आपकी जिज्ञासाएँ?हमारे समाधान‼️*
*भाग -१*
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*प्रश्न:- हवन और यज्ञ क्यों किये जाते हैं??*
*उत्तर:--*
यज्ञों की परंपरा भारतवर्ष में हजारों वर्षों से समाज का एक अविभाज्य अंग रही है और यज्ञों की महत्ता निर्विवाद रूप से प्रामाणिक और सत्य मानी जाती रही है आज के युग में भले ही हवन को कुछ पदार्थों को फूंक देने की प्रिया मात्र समझ लिया जाए परंतु यह धारणा वैसी ही भ्रम पूर्ण है जैसे कि किसान को कीमती अन्न खेत की मिट्टी में डालते हुए देखकर किसी कृषि संबंधित ज्ञान से रहित व्यक्ति को होती है किसान बड़े यत्न से मिट्टी में अन्न के बीज बोता हैं परंतु उसे कोई गारंटी नहीं होती खेत में डाला हुआ यह बीज अवश्य ही उसे निर्बाध रूप से वापस प्राप्त होगा ही फिर भी परिश्रमी कृषक भगवान के भरोसे पर ही पीढ़ी दर पीढ़ी से अपना कर्तव्य पालन करता चला आ रहा है उसे विश्वास रहता है कि मिट्टी में मिला प्रत्येक अन्न का कण हजार गुना होकर पुनः प्राप्त होगा यही बात यज्ञों के विषय में भी है किसान का यज्ञ पार्थिव यज्ञ है और यह तैजस यज्ञ है! एक आधि भौतिक है तो दूसरा आधि दैविक है एक का फल अल्पकाल तक पोषण करने वाला अनाज का ढेर है तो दूसरे का फल देवताओं के प्रसाद के रूप में प्राप्त होने वाली अनंत कालीन तृप्ति है कृषि दोनों ही हैं देवता सूक्ष्म देह में उपस्थित होते हैं इस हेतु द्रव्य अर्थात सामग्री को विधिवत अग्नि में होम कर उसे सूक्ष्म रूप में परिवर्तित किया जाता है अग्नि में डाली हुई वस्तु का स्थूल भाग भस्म के रूप में भूमि पर ही रह जाता है स्थूल सूक्ष्म सम्मिलित भाग यज्ञ धूम्र बनकर वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है जो बाद में बादल बनकर जल रूप में बरस जाने से वह भी धरती पर वापस लौट आता है इसकी तुलना में जो *हवन सामग्री के ज्वलन से जो सूक्ष्म तम( गंध, तरंग इत्यादि) भाग होता है वह देवताओं को परितृप्ति तृप्त करता है*
*स्थूल सूक्ष्मवाद सिद्धान्त* के अनुसार प्रत्येक अंश अपने अंशी (मूल उद्गम जिसका वह अंश है) तक पहुंच कर ही विश्राम लेता है ऊपर फेंका हुआ पत्थर पुणे भूमि पर आकर ही स्थिर होता है जल प्रवाह अपने आदिम उद्गम समुद्र में पहुंचकर ही रहता है इसी प्रकार हवन अग्नि कि प्रत्येक अर्चि: ब्रह्मांड भर में व्याप्त तैजस पदार्थों के आदिम मूल केंद्र सूर्य में पहुंचे बिना समाप्त नहीं होती
*अग्नौ प्रस्ताहुति: सम्यग आदित्यमुपतिष्ठते*
(मनु0 ३/७६)
अर्थात:- अग्नि में विधवत डाली हुई आहुति सूर्य में उपस्थित होती है सूर्य विज्ञान के अनुसार स्वस्थ शक्ति सूर्य से ही प्राप्त होती है पदार्थ विज्ञान के अनुसार जिस तरह अन्न कण विधिवत मिट्टी में मिला देने से 100 गुना हो जाता है इसी प्रकार जल में मिला पदार्थ सहस्त्र गुणित और अग्नि में मिला लाख गुणित हो जाता है अग्नि के संसर्ग से पदार्थ की व्यापकता का अनुमान मात्र इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि जब लाल मिर्च को अग्नि में भूना जाता है तो 100 गज दूर भी उसकी गंध जाती है और लोगों को छींकने को मजबूर कर देती है इसी प्रकार अग्नि में डाली गई वस्तु के लाख गुना हो जाने से यहां यही तात्पर्य है *इसी प्रकार हवन में जो द्रव्य डाले जाते हैं वह सब अनंत गुणित होकर देव गण को परितृप्ति करते हुए अंत में करता को अनेक प्रकार से भोग एवं ऐश्वर्य के रूप में उपलब्ध होते हैं*
और एक बार के किए गए हवन के द्वारा ढेर सा वायुमंडल प्रदूषण से रहित होकर शुद्ध और जीवनदाई हो जाता है इस बात को सारे वैज्ञानिकों ने भी मान्यता प्रदान की है इसीलिए यज्ञ और हवन सर्वजन कल्याण के लिए सर्वत्र सुख समृद्धि के लिए किए जाते हैं
*क्रमशः----*
*श्रीमहंत*
*श्री स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम लखीमपुर-खीरी*
*मो0:-9648769089*