*🦚 जय श्रीमन्नारायण🦚*
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*‼️ गुरु ही सफलता का स्रोत ‼️*
*भाग ११*
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*गतांक से आगे:-------*
*यस्मान् महेश्वरः साक्षात कृत्वा मानुष विग्रहं।*
*कृपया गुरुरूपेण मग्नाः प्रोद्धरति प्रजा:।।*
*अर्थात:--*
स्वयं परमेश्वर मानव मूर्ति धारण करके कृपया पूर्वक गुरु रूप में माया में मग्न जीवो का उद्धार करते हैं वास्तव में सिद्ध गुरु और दिव्य गुरु भी हैं मूल में सर्वत्र परमेश्वर ही एकमात्र अनुग्राहक है उनके शिवाय और कोई भी अनुग्रह नहीं कर पाते परंतु गुरु के जो प्रकार भेद किए गए हैं उसका कारण है ज्ञानेंद्र यादें का प्रणाली भेद मूलक जिस किसी उपाय से हो अथवा बिना उपाय के ही हो ज्ञान उत्पन्न होते ही उसका कार्य होगा ही अतः सद्गुरु का मतलब साक्षात परमेश्वर अथवा उनका अनुग्रह प्राप्त उन्हीं को समर्पित जीवन मुक्त अधिकारी पुरुष समझना होगा यह अधिकारी देवता सिद्धौर मनुष्य तीनों ही हो सकते हैं गुरु शब्द का वास्तविक अर्थ लेने से इस प्रकार की शंका हो सकती है यह गुरु शब्द का संकुचित अर्थ लें तो कहा जा सकता है किमाया से उधार न कर सकने पर भी जो उर्ध्व गति ऊर्ध्वलोक का भोगेश्वर अमरत्व आदि परिमित सिद्धि दे सकते हैं व्यवहारिक दृष्टि से उन्हें ही गुरु कहा जा सकता है मायिक जगत में भी विभिन्न ऊर्ध्व स्तरों में आनंद और भोग्य की कमी नहीं है पृथ्वी तत्व से लेकर कला तत्व तक प्रत्येक तत्व में ही भोग्य विषय और भोग उपकरण वाले नाना भुवन हैं उन भवनों में भी गुरु हैं ऐसे भी गुरु हैं जो ज्ञान दे सकते हैं पर भोग्या विज्ञान नहीं दे सकते ज्ञान देकर वह माया से मुक्त कर देते हैं पर विज्ञान के अभाव से ज्ञानी अधिकार नहीं प्राप्त कर सकता वह स्वयं मुक्त होते हैं परंतु दूसरे को मुक्त नहीं कर सकते इसलिए परोपकार करने में समर्थ नहीं होते यह गुरु ज्ञानी होते हैं योगी नहीं वास्तविक सद्गुरु यह भी नहीं सिद्ध योगी होने के नाते जो योगी और ज्ञानी दोनों हो वही सतगुरु है वह विज्ञान दान करते हैं इसलिए शिष्य के भोग और मोक्ष दोनों का ही विधान कर सकते हैं पूर्णत्व तो उन्हीं की कृपा से पाया जा सकता है गुरु को ज्ञान का का अंजन लगाकर जो हमारे दिव्य चक्षु को खोल देते हैं वह सद्गुरु ही हैं क्योंकि गुरु ऊपर भगवान गुरुदेव में अधि स्थित हो कर शिष्य को दीक्षा देकर के उसके अंदर के पशुता को नष्ट कर ज्ञान का भंडार भर कर उसे मोक्ष का अधिकारी भोग का अधिकारी अनेका अनेक लोगों में रहने का अधिकारी बना देते हैं यह क्रिया शक्ति दर्शन आदि विभिन्न उपायों से प्रयुक्त हो सकती है और उसके अनुसार दीक्षा के भी भेद होते हैं शिष्य के उद्धार का सामर्थ्य गुरु का लक्षण है योग वशिष्ठ में आया है
*दर्शनात स्पर्शनात शब्दात कृपया शिष्य देहके।*
*जनयेत यः समावेशम शाम्भवम स हि देशिका।।*
अर्थात:- जो दरस परस और शब्द के द्वारा शिष्य कि देश में देव तत्व का शिव भाव का आवेश जगा सकते हैं वही देशिक या गुरु हैं कुंडलिनी प्रबुद्ध होकर षटचक्र का भेदन करके ब्रम्हरन्ध्र मे परम शिव के साथ मिल जाने से या आवेश होता है सत्य संकल्प गुरु केवल एक बार कृपा दृष्टि डालकर भी इस महत कार्य को कर सकते हैं योग्य शिष्य का उद्धार और अयोग्य को योग्य बना कर उद्धार करना यही गुरु का काम है बोध सार में नरहरि ने कहा है
*तत तद्विवेक वैराग्ययुक्त वेदांतयुक्तिभिः।*
*श्रीगुरु: प्राप्यत्येव अपदममपि पद्मतां।।*
*प्रापय्य पद्मतामेंनं प्रबोधयति तत्क्षणात।।*
अर्थात श्री गुरु विवेक वैराग्य युक्त वेदांत युक्ति से पद्म रूप में परिणित कर सकते हैं उसके बाद उसे एक पल में जगा देते हैं भास्कर राय ने *ललिता सहस्त्रनाम* के भाष्य में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है:-
*अयोग्येपि योग्यतामापाद्य श्रीगुरु सूर्यः बोधयति*
अर्थात श्री गुरु रूपी सूर्य अयोग्य को भी योग्य बना कर प्रबुद्ध करते हैं परंतु योगी गुरु भी हैं यह सही है की ज्ञानी योगी से श्रेष्ठ है कहीं ज्ञानी गुरु कर्तव्य कहीं योगी गुरु कर्तव्य या त्याज्य है यह आचार्य अभिनव के गुरु शंभू नाथ रे अपने मुंह से इस प्रकार कहा है वह कहते हैं जो मोक्ष ज्ञानार्थी है उसके गुरु का स्वभ्यस्त ज्ञान होना जरूरी है दूसरे प्रकार का गुरु मिलने पर भी उसके लिए वह गुरु अनिवार्य है क्योंकि जो *आमोदार्थी यथा भृन्गः पुष्पात् पुष्पान्तरं व्रजेत्।*विज्ञानार्थी तथा शिष्यो गुरोर्गुव्वन्तरं वृजेत।।*
अर्थात जो गुरु विज्ञान दान में असमर्थ है वाह शक्तिहीन हो जो स्वयं अग्य हैं वह दूसरे का उपकार कैसे कर सकते हैं जो मुक्त और विज्ञान प्रार्थी हैं उसको गुरु स्वयं योग सिद्ध होना जरूरी है यही तीसरे प्रकार की योगी हैं जो मोक्ष और विज्ञान आर्थी हैं इस तरह अगर मित ज्ञानी गुरु हो तो शिष्य का कर्तव्य है अखंड मंडल पूर्ण ज्ञान संपादन सीट गुरु के चरणों में समर्पित होकर गुरु को अपने हृदय में बसाकर हर क्षण हर पल हर सांस में गुरु का ध्यान और गुरु की आज्ञा पालन करता रहे
*क्रमशः :-----*
*श्रीमहंत*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम लखीमपुर -खीरी*
*मो0:-9648769089*