*गुरु ही सफलता का स्रोत*
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*जय श्रीमन्नारायण*
*भाग:-२*
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इस दुनिया के लिए एक और शब्द है संसार संसार शब्द दो शब्दों के सहयोग से बना है सम सार इसका अर्थ है कि जो अवस्था मेरी प्रकृति के अनुरूप है वही संसार है इसलिए अगर मैं कामों को हूं तो सुंदर स्त्री को देखने में अच्छा लगेगा जो कि स्त्री सौंदर्य मेरी प्रकृति के अनुरूप है इसलिए वही मेरे लिए संसार है संसार में और भी वस्तुएं हो सकती हैं परंतु दीप्ति को उसी में प्रसन्नता अनुभव होती है जो कि उसकी प्रकृति के अनुरूप है इसलिए उसे मात्र उसी वस्तु में सार की अनुभूति होती है इस प्रकार सम अर्थात अनुकूलता तथा सार यानी पूर्णता मिलकर उस व्यक्ति के लिए संसार बनते परंतु यह संसार शब्द का नहीं जगत शब्द का प्रयोग किया है दोनों का शाब्दिक अर्थ दुनिया ही है परंतु संसार धर्म माया निद्रा की अवस्था है तथा जगत जागृत अवस्था परिसूचक है तुम अपनी संसार में हो और मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि तुम ही ठोकर लगे जिससे कि सिंधिया अवस्था से तुम जाग सको और तू करती है तब लगेगी जब तुम्हारी कोई अत्यंत प्रिय वस्तु तुमसे दूर हो जाए मिट जाए तभी तुम्हें सत्यता का आभास होगा महात्मा बुद्ध 20 वर्ष तक निद्रा अवस्था में थे और जब उन्हें ठोकर लगी उन्हें एहसास हुआ अरे वह कहां मृग मरीचिका के पीछे दौड़ रहे हैं उसी क्षण उन्होंने अपने पुत्र अपनी पत्नी और सभी भौतिक सुखों का परित्याग कर दिया उनके पास भी सुंदर पत्नी अद्वितीय धन मान सम्मान सब कुछ था जिसकी हर व्यक्ति को इच्छा होती है पर जो ही सत्य उनके सामने उजागर हुआ उन्होंने उसे सब कुछ त्याग दिया उन्हें ठोकर लगी और वह निद्रा से जाग गए जबकि तुम लोगों को अभी तक अपने जीवन में ठोकर भी नहीं लगी मैं यही तो चाहता हूं ठोकर लगे और तुम निद्रा अवस्था से जागृत अवस्था में आ जाओ पता नहीं जब तुम्हारी आत्मा के द्वार खुलेंगे तो तुम अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करोगे अथवा नहीं पर निश्चय ही वह गुरु के लिए स्वर्णकषण होगा जब तुम अपनी निद्रा से जाग जाओगे क्योंकि गुरु के जीवन का एकमात्र लक्ष्य अपने शिष्य को सत्य से परिचित करवाना होता है अगर तुम गुरु के पास जाओ और कहो मेरी पत्नी अत्यधिक बीमार है स्वाभाविक है गुरु यही कहेंगे चिंता मत करो वह जल्दी ठीक हो जाएगी कारण वह जानते हैं तुम क्या सुनना चाहते हो इसलिए गुरु को विवश होकर कहना पड़ता है सब ठीक हो जाएगा उनके यह शब्द इसीलिए कहने पढ़ते हैं क्योंकि तुम लोगों को भ्रम में रहने की आदत है सत्य को जानना नहीं चाहते ठोकरों को सहना नहीं चाहते केवल वह व्यक्ति ही हर संघर्ष हरि स्थिति सहर्ष स्वीकार करता है जो दृढ़ संकल्प युक्त होता है वही ठोकरो की चोट को झेल पाता है ऐसा व्यक्ति हर प्रकार की मुसीबत झेल सकता है फिर समस्त ब्रह्मांड की शक्तियां उसके कदमों तले रहती है राजा भी ऐसे सन्यासी के समक्ष सिर झुकाता है राजा कहता है वो उसकी इच्छा को पूरी करने को तैयार है परंतु सन्यासी कहता है चल मेरे पर छोड़ तू क्या दे सकता है मुझे क्योंकि बहुत जाग चुका है वह सब चिता को जानता है उसने गुरु के कठोर अनुशासन को पहचाना है उनके त्याग को उनके संघर्ष को जाना है तभी वह आज इस लायक है गुरु एक ब्रह्मांड की अलौकिक शक्ति का नाम एक सशक्त जो आपको नया जीवन देकर नया नाम देकर जागृत अवस्था में आगे बढ़ने के लिए इज्जत करता है दूसरा कोई कर ही नहीं सकता शंकराचार्य जी ने:- *शत् श्लोकी* के पहले श्लोक में ही सद्गुरु का वर्णन किया है:-
*दृष्टांता नैव दृष्टस्रिभुवन जठने सद्गुरूर्ज्ञानदातु:*
*स्पर्शश्र्चेत्तत्र कल्प्यः स नयति यदहोस्वर्णतामश्मसारम।*
अर्थात:- स्त्री भवन में ज्ञान दाता सतगुरु के लिए देने योग्य कोई अपना नहीं दिखती उन्हें पारस मणि करें वह भी नहीं जचती कारण पारस लोहे को सोना तो बना देता है पर पारस नहीं बनाता परंतु सतगुरु चरणों का आश्रय लेने वाले शिष्य को सद्गुरु अपनी समानता दे डालते हैं अपने जैसा बनाते हैं इसलिए सद्गुरु की कोई उपमा नहीं मैं "" *श्रीमहंत हर्षित कृष्णाचार्य"* मेरा अनुभव है गुरु के सामने भगवान की भी उपमा नहीं दे सकते क्योंकि भगवान अपने भक्तों को स्वीकार करते हैं परंतु उसकी किए गए कर्मों को उसे खुद भोगना पड़ता है सद्गुरु उनके पापों को स्वयं अपने ऊपर ले कर गोविंद से मिलाने का कार्य करते हैं गुरु तो भगवान का ही स्वरूप है भगवान शंकर ने स्वयं कहा है:-
*आदिनाथो महादेवि महाकालो हि यः स्मृतः।*
*गुरु: स एव देवेशि सर्वमंत्रेषु नापरः*।।
अर्थात:- मंत्र दान के समय और उसके पश्चात जो गुरु मनुष्य के रूप में सामने है वह शिष्य की एक कल्पना है उस शरीर में स्थित ज्ञान ही शिष्य के लिए परमात्मा स्वरुप गुरु है इन गुरु के शरण और उनके कर कम लोगों की छत्रछाया पाकर शिष्य धन्य धन्य हो जाता है
*क्या गुरु का भी ऋण होता है*
क्रमशः--------
*श्रीमहन्त*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम*
*लखीमपुर- खीरी*
*मो0:-9648769089*