*श्रीमते यतिराजाय नमः*
*‼️ आपकी जिज्ञासायें ?? हमारे समाधान‼️*
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*भाग १:---*
*प्रश्न:- गुरु दीक्षा क्या जरूरी है ??गुरु दीक्षा के कितने रूप हैं ??जब सीखना ही है तो दीक्षा के बिना भी तो सीखा जा सकता है तो दीक्षा के द्वारा गुरु एवं शिष्य के बीच कौन सा संबंध स्थापित हो जाता है*
*उत्तर:- सामान्य मानव के लिए कुछ भी जरूरी नहीं होता परंतु जब कोई साधक एक ऊंचे धरातल पर जाने की इच्छा करता है जब वह पशु जीवन से सही शब्दों में मानव जीवन की ओर बढ़ता है तब उसे एक ऐसे माध्यम की जरूरत पड़ती है जो उसे समझा सके कि उसके लिए कौन सी साधना कौन सा मार्ग जरूरी है किस प्रकार की साधना उसके लिए उपयोगी है वह किस प्रकार का मंत्र उच्चारण करें उसकी ध्वनि कैसी होनी चाहिए और मार्ग में आने वाली बाधाओं को किस प्रकार से दूर किया जा सकता है मोक्ष का मार्ग किस प्रकार से चुना जा सकता है अपना अपने परिवार का अपने पूर्वजों का अपने मित्रों का अपने रिश्तेदारों का उद्धार कैसे किया जा सकता है यह सारे तथ्य गुरु और केवल गुरु के द्वारा ही स्पष्ट किए जा सकते हैं हर आदमी के लिए दो रास्ते नहीं है एक आदमी के लिए एक ही रास्ता है और जो गुरु है वह उसके माइलस्टोन का काम करता है वही रास्ता दिखाता है कि यह तुम्हारा रास्ता है इस रास्ते पर आगे बढ़ो जिस प्रकार सांसारिक और यौन जीवन को सुदृढ़ बनाने के लिए शास्त्रों में विवाहित जीवन का आदेश है उसी प्रकार आध्यात्मिकता साधना आत्मक जीवन को सुंदर बनाने के लिए गुरु के मार्गदर्शन की नितांत आवश्यकता है अगर गुरू ना हो तो वह जीवन पशु समान होता है इस जीवन का कोई अर्थ नहीं होता कोई तात्पर्य नहीं होता जो कार्य हम करते हैं वही कार्य पशु भी करते हैं भोजन करना नित्य नैमित्तिक क्रियाओं का संपादन करना संतानोत्पत्ति करना और सो जाना अंततोगत्वा धीरे धीरे श्वास प्रति स्वास हम मृत्यु की तरफ अर्थात काल की तरफ बढ़ते रहते हैं अपने पीछे क्या छोड़कर जाएं जो विचार मन में होता है और वह विचार क्या है कितना धन जमा कर ले कितनी जमीन इकट्ठी करें कितनी भौतिक संपदा अर्जित कर ले कितने वाहन हैं लोगों में शानो शौकत हो सम्मान हो इससे आपको क्या मिलता है यह सब तो पशु भी करते हैं दिन रात मेहनत करते हैं खेतों में अन्न उगाते हैं ढोते हैं खुद घास खाते हैं और वह अनाज किसान ले जाकर के मंडी में बेच देता है पशु को क्या मिला यही हमारे पशु मानव जीवन की कहानी है हमने धन एकत्र किया अच्छे-अच्छे मकान बनाए बेईमानी मक्कारी दलाली चोरी सूदखोरी सब कुछ की लेकिन साथ में क्या गया जब यमदूत रोका आना हुआ तो बिना किसी से कुछ कहे बिना किसी को कुछ बताएं कालचक्र के नियम को धारण करते हुए काल का ग्रास बन गए इस पंचभूत शरीर को ले जाकर हमारे उन्हीं परिजनों ने आगरे के हवाले कर दिया उसके बाद आए आने पर क्या होता है तीन मकान है इनमें कौन सा कौन लेगा इतनी प्रॉपर्टी है इस का बंटवारा कैसे हो जो बैंक बैलेंस है वह किसको कितना मिलना चाहिए कौन सा वाहन किसके पास रहेगा बुड्ढी मां है अथवा बुड्ढा पिता बचा है उसकी देखभाल कौन करेगा हमारा क्या हुआ अब हमने अपने जीवन में जिन लोगों के लिए इतना पाप किया बेईमानी की घूस खाई अपने पावर का गलत इस्तेमाल किया आज वही लोग हमें भूल चुके हैं हमारे साथ के कर्मचारी जब हमारा नाम आता है तो वह भी बड़े बेदर्द के तरीके से कहते हैं अरे भाई वह व्यक्ति बहुत ही बेकार जीवन जीता था बात चिड़चिड़ा था किसी के काम कभी नहीं आया केवल अपने स्वार्थ के लिए अपने परिवार के लिए अपने रिश्तेदारों के लिए जीवित रहे इस जीवन का अर्थ क्या निकला हिना भौतिकता मिली न जीवन में संतोष मिला क्षणिक सुख के लिए हमने अपने सम्मान को भी खो दिया सम्मान वह नहीं जो सामने किया जाए सम्मान वह हमारी पीठ पीछे हो हमारी मृत्यु के बाद अगर हम लोगों के दिल में दिमाग में यादों में जीवित रहते हैं तो हम मरे कहां यही तो जीवन है यही अमरता है हमारे बाद लोग हमें याद करें हमारी चर्चा हो तो वहां पर हमें याद कर के लोगों का मुख मंडल प्रसन्न हो जाए लोग झूम उठे उनके नेत्रों से अश्रु की धारा बहने लगे तब जीवन सफल है हमारे पूर्वज हमारे माता पिता समाज हमारे बाद भी हमारी जय-जय कार करे और यह सब सिर्फ और सिर्फ गुरु की कृपा से प्राप्त हो सकता है जब हम दीक्षा लेकर अपने जीवन को गुरुदेव भगवान के आदेशानुसार साधना ढंग से जीते हैं लोगों की भलाई के लिए जीते हैं परोपकार करते हैं अपने से छोटा हो या बड़ा हो उसका सम्मान करते हैं सभी का आदर करते हैं जीव जंतु मनुष्य अपना पराया हर किसी के दुख सुख का ध्यान रखते हैं तभी तो हम मानव अथवा साधक कहे जा सकते हैं यह मार्ग गुरु ही प्रशस्त करते हैं वह बताते हैं कि हमें कब कैसे और क्यों क्या करना है हमारी प्रसन्नता खुशहाल जीवन हमारा व्यापार हमारा परिवार हमारा समाज इन सभी का हम कल्याण कैसे कर सकते हैं इन सब बातों का निर्देश और आदेश सदगुरुदेव भगवान के द्वारा ही प्राप्त होता है जो हर क्षण केवल शिष्यों के लिए ही चिंतन करते रहते हैं सदगुरुदेव सोचते हैं कि हम अपने शिष्य को इस धरा धाम से काल के कुचक्र से निकालकर उस परमपिता नारायण के श्री चरणों तक उनकी गोदी तक किस प्रकार पहुंचा सकते हैं यह कैसे संभव होगा और वह करते हैं पृथ्वी से उठा कर के सांसारिक कीचड़ में फंसे हुए शिष्य को अपनी गोदी में लेकर परमात्मा की गोद में बैठा देते हैं जिससे उसके जीवन और परिवार का समाज का पूर्वजों का उधर हो सके कल्याण हो सके एक व्यक्ति यदि परमात्मा की शरण में पहुंचता है तो ठीक वैसे ही सभी का कल्याण करता है जैसे परम पूज्य कवि कुल शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने रामचरितमानस में लिखा है जिस समय केवट भगवान राम से जिद करता है पैर धोने की उसकी प्रार्थना को सुनकर राघवेंद्र सरकार आदेश देते हैं उस आदेश को सुनकर वह बहुत ही प्रसन्न होता है
*केवट राम रजायशु पावा,पानि कठौता भरि लईआवा।।*
वह जल भरकर लाया रघुराई के चरण धुले और यही पर अपनी चतुराई दिखाई है
*पद पखारि जलु पान कर,आपु सहित परिवार।*
*पितर पार कर मुदित मन, प्रभुहिं गयउ लई पार।।*
भगवान श्री नारायण के चरण धुले और उनका चरणामृत खुद भी पान किया अपने परिवार को पिलाया और उसी जल से अपने पितरों का तर्पण कर दिया खुद भी मोक्ष का अधिकारी बना क्योंकि नारायण की शरणागत हुआ अपने परिवार को भी मोक्ष का अधिकारी बना दिया और जो पूर्वज थे उनको भी वह चरणामृत पान करा कर के उनको भी मोक्ष का परम अधिकारी बना दिया *अब ध्यान देने योग्य बात है उस केवट का गुरु कौन था क्योंकि बिना गुरु के ज्ञान असंभव है और फिर ब्रह्म को पहचानना*
*शेष अगले भाग में*
*क्रमश: :----*
*श्रीमहन्त*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम लखीमपुर- खीरी*
*मो0:- 9648769089*