*जय श्रीमन्नारायण*
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*‼️आपकी जिज्ञासाएं??हमारे समाधान।‼️*
*🦚भाग :-2*
*गतांक से आगे:----*
केवट का गुरु कोई साधारण मनुष्य नहीं अपितु स्वयं भगवान भोलेनाथ थे पूर्व जन्म में जब वह परिवार के भरण-पोषण के लिए शिकार करता था एक दिन भूख और प्यास से व्याकुल जंगल में भटकता रहा और शिकार नहीं मिला हाथों में धनुष बाण है कमर में तलवार और पीठ पर तरकस बंधा हुआ है उसी के साथ साथ पक्की लौकी के तोबी में जल भरकर के उसको भी कमर में बांध रखा है दिन शिवरात्रि का है एक बेल के वृक्ष के ऊपर चढ़कर शिकार का इंतजार कर्ता है रात भर मैं तीन बार शिकार दिखाई देता है और वह धनुष पर बाण का संधान करता है झटका लगने से कुछ जल और बेल पत्र टूट कर के नीचे गिर जाते हैं शिकार भी हाथ से जाता रहता है तीनों बार यही दशा हुई सवेरा भूख से व्याकुल शिकारी वृक्ष से नीचे आता है और जैसे ही नीचे आता है भगवान भोलेनाथ प्रकट हो जाते हैं कहते हैं वरदान मांग लो तुमने मेरा पूजन किया है बिना कुछ खाए पिए व्रत धारण किया है शिकारी कहता है प्रभु मुझे तो नहीं मालूम कि मैंने कौन सा व्रत किया है किस समय आप का पूजन किया मैं तो पापी पेट के लिए रात भर पेड़ पर बैठा शिकार का इंतजार करता रहा तीन बार शिकार हाथ में आया लेकिन दया भाव से मैं उसे मार नहीं सका भगवान शिव शंकर हंसे और बोले वत्स जब तुमने धनुष पर बाण रखकर के खींचा तो ऊपर से बेल के पत्ते टूट कर इस पेड़ की जड़ में स्थापित मेरी प्रतिमा पर गिरे तुम्हारे जल पात्र से हर बार जल भी गिरा शिवरात्रि में जो रात्रि कालीन तीन बार मेरी पूजन होती है उसी समय पर जल और बेलपत्र मुझे प्राप्त हुई है इसलिए मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं अतः तुम जो चाहो वरदान मांग लो शिकारी रोने लगा और बोला नाथ मैंने जीवन में आज तक कभी भी कोई अच्छा काम नहीं किया है पशु पक्षियों को मार कर केवल अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता रहा हे नाथ मेरा उद्धार कैसे होगा मुझे मोक्ष कैसे मिलेगा मैं केवल मोक्ष ही चाहता हूं आपके दर्शन हो गए अब मेरी कोई लालसा नहीं बची ध्यान देने योग्य बात है कि गुरु वही है जो मनुष्य को प्रभु से मिला करके परम पद का अधिकारी बना दे आज भोले बाबा ने उस शिकारी का मार्गदर्शन करते हुए कहा अब इसके बाद तुम क्षीरसागर में जाकर कछुआ बनोगे उस समय यदि तुमने भगवान नारायण के किसी भी अंग को स्पर्श कर लिया तो तुम्हारा मोक्ष हो जाएगा शिकारी ने कहा प्रभु अगर मैं प्रभु को नहीं छू सका तब भोलेनाथ कहने लगे वत्स अगर तुम उस जीवन में नारायण को नहीं छू पाए तो अगला तुम्हारा केवट के घर में होगा और तुम गंगा जी के किनारे बास करोगे गंगा जी में अपनी नौका चलाओगे वह त्रेता युग का समय रहेगा भगवान नारायण का अवतार अयोध्या धाम के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में होगा नाम श्री रामचंद्र होगा वह अपने छोटे भाई लक्ष्मण एवं अपनी अर्धांगिनी सीता जी के साथ माता पिता की आज्ञा के कारण 14 वर्ष के लिए वन के लिए गमन करेंगे और जब गंगा के किनारे आएंगे तब वो गंगा पार करने के लिए नाव मांगेंगे उस समय उनके चरणों को धूल कर वह चरणामृत पान कर लेना और तब उन्हें गंगा से पार करना इस तरीके से तुम्हारा उद्धार हो जाएगा शिकारी कहने लगा नाथ गंगा के घाट पर केवल मेरी ही नाव तो नहीं होगी वह तो अनेकों नावे होंगी क्या पता वह किस नाविक को बुला ले भगवान भूत भावन भोलेनाथ ने कहा मेरे प्रिय भक्त जो नारायण की तरफ एक कदम ही बढ़ता है तो श्रीमन्नारायण हजारों कदम चल करके स्वयं ही उसके पास आते हैं फिर मैं तुमको यह वरदान देता हूं कि भगवान राघवेंद्र सरकार छोटे भैया लखन एवं माता जानकी के समेत तुम्हारे ही घाट पर तुम से ही नाव मांगेंगे वही शिकारी त्रेता युग में केवट बना और इसीलिए वह बार-बार कहता था *कहई तुम्हार मरम मैं जाना*
जगतगुरु भगवान भोलेनाथ ने पहले ही उसको सब कुछ बता रखा था इसीलिए उसने कहा *बरू तीर मारहिं लखनु पै जब लगि न पाँय पखारि हौं।*
*तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपालु पर उतरिहौ।।*
जब स्वयं भगवान भोलेनाथ जैसा गुरु हो फिर दबने की डरने की शंका की बात ही कहां होती है इसीलिए कहता है चाहे मुझे लक्ष्मण जी बाण ही क्यों ना मार दे लेकिन हे रघुराई जब तक मैं आपके चरण नहीं धुल लूंगा तब तक मैं आपको नाव में नहीं बैठा लूंगा यह भक्तवत्सल आता है यह गुरु के प्रति आस्था है दृढ़ निश्चय है कि गुरु ने कहा है जो आए हैं वह भगवान हैं तो यह भगवान हैं मेरा उद्धार करने के लिए आए हैं और यह सब केवल गुरु कृपा से ही संभव है त्रैलोक्य में दूसरी कोई शक्ति है ही नहीं जो गुरु के वचन को टाल दे अथवा गुरु के वचन को निष्फल कर दे गुरु में ही यह शक्ति है कि वह मानव को महामानव पुरुष को पुरुषोत्तम बना सकती है आवश्यकता है तो सिर्फ गुरु के प्रति श्रद्धा अगाध प्रेम और विश्वास की बिना गुरु के कुछ भी संभव नहीं है प्रातः स्मरणीय गोस्वामी जी ने लिखा है *बिनु गुरु भवनिधि तरई न कोई । जो विरंचि शंकर सम होई।।*
चाहे स्वयं ब्रह्मा और शिव ही क्यों ना हो लेकिन बिना गुरु के वह भी भवसागर पार नहीं कर सकते अर्थात मोक्ष के अधिकारी नहीं होते इसलिए गुरु दीक्षा गुरु मंत्र नामदान जरूरी है जब हम गुरु की शरण में जाते हैं तो गुरु पारस मणि के समान हमारा स्पर्श करके हमें परम गति प्रदान करके लोहे से सोना और सोने से कुंदन बना देते हैं
*प्रश्न:- शिष्य का गुरु के प्रति क्या व्यवहारिक कर्तव्य होना चाहिए???*
*क्रमशः :---*
*शेष अगले अंक में------*
*श्रीमहन्त*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*प्रवक्ता*
*श्रीमद्भागवत कथा, संगीतमय श्रीराम कथा, एवं ज्योतिष फलादेश व समाधान*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम*
*लखीमपुर- खीरी*
*मो0:-9648769089*