*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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*!! विषय!!*
*सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*
*( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)*
*[ चतुर्थ भाग]*
*जय श्रीमन्नारायण*
कल के लेख में आपने पढ़ा श्री मैत्रेय जी एवं पाराशर जी वार्ता करते हैं पाराशर जी जोकि व्यास जी के पिता श्री भी हैं वह बताते हैं
जंबूद्वीप किस प्रकार से सुमेरू पर्वत और अन्य रमणीय पर्वतों से अच्छादित है
*अब आगे-----*
प्रिय मित्रों मैं स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य जब मैंने पुराणों में अपने पृथ्वीलोक के भूगोल को पढ़ा तो दो बातें निकल कर के सामने आएंगे जिस से ह्रदय प्रसन्नता से भर गया प्रथम जब आप लोग समझेंगे पढ़ेंगे मनन करेंगे तो आपको यह पता चलेगा कि भारतवर्ष को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता है दूसरी बात सबसे अधिक भगवान श्रीमन्नारायण जी के अवतार भारतवर्ष में ही क्यों हुए आपने पढ़ा सुमेरू पर्वत पृथ्वी लोक का अथवा ऐसे कर लिया जाए इस ब्रह्मांड अंडज का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसके चारों तरफ अनेकानेक पर्वत है आइए इसी क्रम में आगे बढ़ते हैं इसी प्रकार उसके पूर्व की ओर चित्ररथ दक्षिण की ओर गंधमादन पश्चिम की ओर वैभ्राज और उत्तर की ओर नंदन नामक वन है तथा सर्वदा देवताओं से सेवनीय अरुणोद, महा भद्र , असितोद और मानस यह चार सरोवर हैं। हे मैत्रेय ! शिताम्भ, कुमुन्द, कुररी, माल्यवान तथा वैकंक आदि पर्वत मेरु के पूर्व दिशा के केसराचल हैं इसी प्रकार त्रिकूट शिशिर पतंग रूचक और निषाद आदि केसराचल उसके दक्षिण ओर हैं शिखिवासा, वैडूर्य, कपिल गंधमादन और जारुधि, आदि उसके पश्चिमी केसर पर्वत हैं तथा में मेरु की अति समीपस्थ इला वृत वर्ष में और जठरादी देशों में स्थित शंख कूट ऋषभ हंस नाग तथा कालंज आदि पर्वत उत्तर दिशा की केसरा चल हैं मेरू के ऊपर अंतरिक्ष में 14 सहस्त्र योजन के विस्तार वाली ब्रह्मा जी की महा पुरी विद्यमान है यहां पर
ध्यान देने योग्य बात यह है कि हमारी परम पूज्य पृथ्वी के गोद में स्थित मेरु पर्वत पर ही देवताओं का निवास है इसके बाद अर्थात ब्रह्मा जी की पूरी के बाद में सब और दिशा और विदिशाओं में इंद्र आदि लोकपालों के 8 अति रमणीक और विख्यात नगर हैं विष्णुपदोंद्भवा श्री गंगा जी चंद्र मंडल को चारों ओर से आप्लावित कर स्वर्ग लोक से ब्रम्हपुरी में गिरती हैं वहां गिरने पर वे चारों दिशाओं में क्रम से सीता अलकनंदा चक्षु और भद्रा नाम से चार भागों में विभक्त हो जाती हैं।
श्री विष्णु पुराण के अनुसार
*सा तत्र पतिता दिक्षुचतुर्द्धा प्रतिपद्यते। सीता चालकनन्दा च चक्षुर्भद्रा च वै क्रमात्।।*
*पूर्वेण शैलात्सीता तु शैलं यात्यन्तरिक्षगा। ततश्च पूर्ववर्षेण भद्राश्वेनैति सार्णवम्। ।*
*तथैवालकनन्दापि दक्षिणेनैत्य भारतम्। प्रयाति सागरं भूत्वा सप्तभेदा महामुने।।*
{वि०पु०/द्वि०अं०/अ०2/श्लो०33से36तक}
उनमें से सीता पूर्व की ओर आकाश मार्ग से एक पर्वत से दूसरे पर्वत पर जाती हुई अंत में पूर्व स्थित भद्रास्ववर्ष को पारकर समुद्र में मिल जाती मेरे प्यारे इसी प्रकार अलकनंदा दक्षिण दिशा की ओर भारतवर्ष में आती हैं और सात भागों में विभक्त होकर समुद्र में मिल जाती है पश्चिम दिशा के समस्त पर्वतों को पारकर केतु माल नामक वर्ष में बहती हुई अंत में सागर में जागृति है तथा भद्रा उत्तर के पर्वतों को और उत्तर कुरुवर्ष को पार करती हुई उत्तरीय समुद्र में मिल जाती है माल्यवान और गंधमादन पर्वत उत्तर तथा दक्षिण की ओर नीलांचल और निषध पर्वत तक फैले हुए और उन दोनों के बीच में कर्णिकाकार मेरु पर्वत स्थित है और मर्यादा पर्वतों के बहिर भाग में स्थित भारत , केतुमाल, भद्राश्व और कुरुवर्ष इस लोकपद्म के पत्तों के समान हैं।। जठर और देव कूट यह दो मर्यादा पर्वत हैं जो उत्तर और दक्षिण की ओर नील तथा निषध पर्वत तक फैले हुए हैं पूर्व और पश्चिम की ओर फैले हुए गंधमादन और कैलाश यह दो पर्वत है जिनका विस्तार 80 योजन है समुद्र के भीतर स्थित है पूर्व के समान मेरु के पश्चिम ओर भी निषध और पारियात्र नामक वर्ष पर्वत है यह दोनों पूर्व और पश्चिम की ओर समुद्र के गर्भ में स्थित हैं श्री महामुनी इस प्रकार तुमसे जठर आदि मर्यादा पर्वतों का वर्णन किया जिनमें से दो दो मेरु की चारों दिशाओं में स्थित है इसके चारों ओर स्थित जिन शीतांत आदि पर्वतों के विषय में तुमसे कहा था उनके बीच में सिद्ध चारण आदि से सेवित अति सुंदर कंदरएं हैं उनमें सुरम्य नगर, तथा उपवन है और लक्ष्मी विष्णु अग्नि एवं सूर्य आदि देवताओं के अत्यंत सुंदर मंदिर हैं जो सदा किन्नर श्रेष्ठों से से भी तो रहते हैं उन्हें सुंदर पर्वत द्रोणियों में गंधर्व यक्ष राक्षस दैत्य दानव आदि रात दिन क्रीडा करते हैं संपूर्ण पृथ्वी के स्वर्ग यही कहलाते हैं यह धार्मिक पुरुषों के निवास स्थान हैं पाप कर्मा पुरुष इनमें सौ जन्म में भी नहीं जा सकती हे द्विज श्री विष्णु भगवान भद्राश्व वर्ष में हयग्रीव रूप से केतु माल वर्ष में वराह रूप से और भारतवर्ष में पूर्ण रूप से अर्थात कश्यप बनकर रहते हैं तथा वे भक्त प्रतिपालक श्री गोविंद कुरु वर्ष में मत्स्य रूप में रहते हैं इस प्रकार वे सर्व मय सर्वव्यापी हरि विष्णु पैसे सर्वत्र ही रहते हैं हे मैत्रेय वह सब के आधारभूत और सर्वात्मक हैं किम पुरुष आदि जो 8 वर्ष है उनमें शोक श्रम उद्वेग और क्षुधा का भय आदि कुछ भी नहीं है वहां की प्रजा स्वस्थ हो आतंक हीन समस्त दुखों से रहित है तथा वहां के लोग दस बारह हजार वर्ष की आयु वाले होते हैं उनमें वर्षा कभी नहीं होती केवल पार्थिव जल ही है और ना स्थानों में कृत त्रेतादि युगों की ही कल्पना है इन सभी वर्षों में सात सात कुल पर्वत है और उन से निकली हुई सैकड़ों नदियां हैं
*क्रमशः----*
*श्रीमहन्त*
*स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य*
पुराण प्रवक्ता/ ज्योतिर्विद
*संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा /श्री राम कथा /श्रीमद् देवी भागवत कथा/ श्री महाभारत कथा कुंडली लेखन एवं फलादेश /यज्ञोपवीत वैवाहिक कार्यक्रम/ यज्ञ प्रवचन/ याज्ञिक मंडल द्वारा समस्त वैदिक अनुष्ठान*
*श्रीवासुदेव सेवा संस्थान*
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*श्री जगदीश कृष्णा शरणागति आश्रम लखीमपुर खीरी* *संपर्क सूत्र:- 9648 76 9089*