*श्रीयतिराजाय नमः*
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*‼️आपकी जिज्ञासाएँ?हमारे समाधान‼️*
*भाग ४*
*गतांक से आगे:---*
*प्रश्न:- शिखा धारण बंधन क्यों क्या प्रयोजन?*
*उत्तर:-* सिर के ऊपरी भाग में ब्रह्मरंध्र स्थान पर बालों का एक गुच्छा होता है जिसे सामान्यतः शिखा कहां जाता पूरा यह देखने में आता है की साधना अनुष्ठानों में अनुरक्त रहने वाले साधक सिर पर चोटी अथवा शिखा रखते हैं आखिर कोई ना कोई कारण तो अवश्य ही होगा इस प्रथा के पीछे इसी का विश्लेषण कर रहा हूं थर्मल फिजिक्स के सिद्धांतों के अनुसार सफेद की अपेक्षा काले रंग की वस्तु अधिक मात्रा में सूर्य की किरणें बात आप को आकर्षित करती हैं इस बात की जांच प्रयोगशाला में की गई दो शीशे के बर्तनों को लिया गया जिनमें से एक सफेद तथा दूसरा काला था उन दोनों बर्तनों को सूर्य की धूप में रखा गया तदोपरांत 5 मिनट के बाद थर्मामीटर से तापमान नापा गया तो यह पाया गया काले बर्तन का तापमान सफेद की अपेक्षा 5 डिग्री अधिक है सफेद और काले कपड़े के दो समान टुकड़े ले और धूप में सुखाने के लिए डालें तो सफेद की अपेक्षा काला जल्दी सूख जाएगा इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है की काली वस्तुओं में सूर्य की किरणों को आत्मसात करने की विशेष शक्ति होती है मेधा एवं बुद्धि के लिए गायत्री मंत्र की उपासना की जाती है वह सूर्य की उपासना होती है क्योंकि सूर्य को बुद्धि और तेजस्विता का भंडार माना गया है शिखा के ठीक नीचे बुद्धि का केंद्र होता है शिखा अपने काले रंग के कारण सूर्य से मिला प्रकाश सैनी शक्ति का विशेष आकर्षण करके बुद्धि को ऊर्ध्वगामी और उन्नत बनाती है इसी सिद्धांत के मानने से विद्वत जन शीश के मध्य शिखा धारण करते हैं शिखा के आकार का यदि अध्ययन किया जाए तो यह एक तरह से सिर के ऊपर लगे लाइटिंग कंडक्टर की तरह इलेक्ट्रो सिटी के सिद्धांतों के अनुसार नुकीली वस्तु समतल वस्तु की अपेक्षा अधिक विद्युत आवेश को आकर्षित करती है इसी सिद्धांत के नियम से ऊंची ऊंची इमारतों में धातु निर्मित रॉड या लाइटिंग कंडक्टर लगाए जाते है जिससे आकाश से बिजली गिरकर एंटीने के माध्यम से भूमिगत हो जाती है और इमारत या आसपास की आबादी को कोई शक भी नहीं पहुंचती नोकीली वस्तुओं में विद्युत को आकर्षित करने का गुण अधिक होता है इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए शिखा की बनावट उपयुक्त सी लगती है सूर्य की विकिरण एवं वातावरण में व्याप्त आवेश तो सिखा अपने नुकीले होने के कारण सुगमता से आत्मसात कर नीचे ब्रह्मरंध्र तक पहुंचा देती है।
*यह तो बात हुई शिखा क्यों? अब बात करते हैं शिखा का बंधन क्यों किया जाता है?*
जब साधक साधन आत्मक अनुष्ठान मंत्र जप आदि करता है या ध्यान में संलग्न होता है तो एक अमृत तत्व का सृजन होता है जो कि सिखा के नीचे स्थिर सहस्रार में प्रविष्ट हो जाता है इस अमृत तत्व का केंद्र सूर्य है जो कि समस्त तेजस्विता का भंडार है साधना काल में उत्पन्न यह अमृत तत्व सहस्रार से बाहर निकलने का प्रयत्न करता है परंतु शिखा में लगी गांठ के कारण बाहर निकल नहीं पाता शिखा के अभाव में याचिका में घटना लगी होने पर यह अमृत तत्व सूर्य से तो नहीं मिल पाता किंतु अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है इस प्रकार साधना क्रिया में उत्पन्न ऊर्जा व्यर्थ चली जाती है *शिखा इस ऊर्जा को भीतर ही रोक देने के लिए बांधी जाती है विद्युत सिद्धांत के अनुसार वर्तुल आकार गोल या आबंध वस्तुओं पर विद्युत सहसा संक्रांत नहीं होती इसलिए भी सिखा को गोल गांठ देना उचित लगता है जिस से उत्पन्न ऊर्जा या विद्युत तरंग बाहर वातावरण में निकल कर समाप्त ना हो जाए समाधि के समय अंगूठी और तर्जनी के मेल से वर्तुल बनाना मुट्ठी बांधना यह सब क्रियाएं भी इसी विद्युत सिद्धांत पर आधारित है संक्षेप में शिखा का कार्य साधक के अंदर की ऊर्जा को बाहर नि:सृत होने से रोकना है एवं सूर्य व वातावरण में व्याप्त किरणों को तेजस्विता को आकर्षित कर आत्मसात करना है इस दृष्टि से शिखा धारा एवं साधना काल में इसका बंधन अत्यधिक महत्वपूर्ण है चाहे वह वैदिक मत हो अथवा वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से सर पर शिखा रखना अत्यंत आवश्यक है*
*क्रमशः:-*
*जय श्रीमन्नारायण* *श्रीमहंत*
*हर्षित कृष्णाचार्य* *प्रवक्ता*
*संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा एवं श्री राम कथा ज्योतिषीय फलादेश*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम लखीमपुर-खीरी*
*संपर्क सूत्र:- 9648 7690 89*
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