*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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*!! विषय!!*
*सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*
*( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)*
*[ पंचम भाग]*
*जय श्रीमन्नारायण*
आप सभी लोगों ने कल पढ़ा सुमेरु पर्वत के चारों तरफ कौन-कौन से देश नदियां सरोवर पर्वत कन्दराएँ , वन इत्यादि हैं और वहां किस किसका निवास है
*अब आगे अपने भारतवर्ष के बारे में भौगोलिक स्थिति का वर्णन*
हम अपने भारतवर्ष के बारे में इतना ही जानते हैं कि वह चीन पाकिस्तान तिब्बत रूस बंगाल आदि से लगा हुआ देश है विचार करिए क्या हमारा देश इतना बड़ा ही था ऐसा ही था जिस समय भारतवर्ष पूरे विश्व में विश्व गुरु के नाम से जाना जाता था जो चक्रवर्ती राजा हुए उनका पूरे विश्व में राज्य होता था और उनकी राजधानी सदैव भारतवर्ष में ही होती थी *आज भारतवर्ष में दीमक लगा हुआ है जो धीरे धीरे धीरे धीरे क्रमशः देश को समाज को सनातन परंपरा को नष्ट करता जा रहा है लेकिन हमें क्या हम खुश हैं हमारा परिवार खुश है हम जहां जाएं वहां पर दो चार लोग हमारे आगे पीछे हो श्वेत कुर्ता पाजामा फॉर्च्यूनर गाड़ी हमें ना सनातन से मतलब है अपनी संस्कृति से मतलब है ना अपने धर्म से मतलब है और सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हमें अपने देश से भी मतलब नहीं है हम अपने देश का भूगोल अपने देश का सनातन इतिहास जानना नहीं चाहते हैं क्योंकि अगर हम जानेंगे तो हमें उसका विरोध करना पड़ेगा विरोध करेंगे तो हमें ऐसो आराम नहीं प्राप्त होगा नेताजी गुस्सा हो जाएंगे बड़े-बड़े लोग जो काले धंधों में लिप्त हैं वह हमसे दूर हट जाएंगे!* मैं स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य जहां तक मेरा मानना है अगर त्रेता में यदि राम जी ने हम और आप के जैसे ही विचार रखे होते भावना रखी होती तो शायद आज भारत में लंका का राज्य होता क्योंकि पंचवटी उसने बलात कब्जा कर रखा था और आज उसके जैसा कोई भूमाफिया नहीं है भगवान राम ने मित्रता नहीं की अपितु उसने वह जगह छीन करके जिस को दी थी उस सुपनखा की नाक कान काट कर उसे लंका भेज दिया और आगे की कथा आप लोग जानते हैं प्यारे हमको अपना इतिहास जानना होगा हमको अपने धर्म की रक्षा के लिए जागना होगा और सबसे पहले अपने घर से ही सफाई प्रारंभ करनी होगी अपनी गांव नगर देश और सबसे बड़ी बात कि अपने अंदर की अहम को समाप्त करते हुए अनेकत्त्व को समाप्त करते हुए संगठित होकर जो हमारा सनातन धर्म है इसके लिए हमें संघर्ष करना होगा अन्यथा यह दीमक की तरह लगे हुए भू माफिया धीरे धीरे एक दिन हमें घरों से निकालकर और कंदरा ओं में रहने के लिए मजबूर कर देंगे
इसलिए हम को संगठित होना पड़ेगा साधु संत गौ माता हमारे गुरुकुल हमारे धर्म स्थल सनातन आश्रम इन को मजबूत करना होगा इनकी रक्षा करनी होगी और इसके लिए हमें दृढ़ संकल्प वान होना पड़ेगा और जब यह मजबूत होंगे तो हमारे राष्ट्र का नवनिर्माण होगा और इसके लिए हमको अपना धर्म इतिहास अपने धर्म ग्रंथ अपने प्यारे भारतवर्ष के भूगोल की जानकारी की आवश्यकता है जब हम जानेंगे कि हमारा प्लाट इतना बड़ा है हमारा मकान इतना बड़ा है हमारे खेत की यह सीमा है तभी तो हम किसी को उस पर अतिक्रमण नहीं करने देंगे और जब हमें स्वयं पता नहीं है कि हमारे प्लाट मकान और खेत की सीमा कितनी है कहां से है तुम उसकी रक्षा कैसे करेंगे आइए इस के लिए छोटा सा प्रयास मैं हर्षित कृष्णाचार्य *परम आदरणीय श्री श्री 1008 श्री त्रिजटा शिव अघोरी जी महाराज के* मार्गदर्शन में आप लोगों तक लेखनी के माध्यम से आप सब से जुड़ने का प्रयास कर रहा हूं श्री विष्णु पुराण के द्वितीय अंश और तीसरे अध्याय में भारत आदि नव खंडों का वर्णन है श्री पाराशर जी ने सम्माननीय श्री मैत्रेय जी से
बताया है समुद्र के उत्तर तथा हिमालय पर्वत के दक्षिण भाग में जो स्थित है वह देश भारतवर्ष कहलाता है उसमें महाराजा भरत की संतान बसी हुई है हे महामुनी इसका विस्तार 9000 योजन है यहां पर ध्यान देने योग्य बात है एक योजन 12 किलोमीटर का होता है अब आप नव हजार को 12 से गुना कर दीजिए तो 1 लाख 8000 किलोमीटर होता है यह स्वर्ग और अपवर्क प्राप्त करने वालों की कर्मभूमि है इसमें महेंद्र, मलय,सह्य,शुक्तिमान्, ऋक्ष, विन्ध्य, और पारियात्र यह 7 कुल पर्वत यहीं से कर्मानुसार स्वर्ग मोक्ष अंतरिक्ष अथवा पाताल आदि लोको को प्राप्त किया जा सकता है पृथ्वी में यहां के सिवा और कहीं भी मनुष्य के लिए कर्म की विधि नहीं है।
*इस भारतवर्ष के 9 भाग हैं उनके नाम यह हैं--*
इंद्र द्वीप,कसेरू, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान,नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व, और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उन्होंने नवां है
*भारतस्यास्य वर्षस्य नवभेदान्निशामय। इन्द्रद्वीपःकसेरूश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्।।*
*नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुणः। अयं तु नवमस्तेषां द्वीपः सागरसंवृतः।।*【वि०पु०द्वि०अं०/अ० 3/श्लो०6,7】
यह द्वीप उत्तर से दक्षिण तक 1000 योजन है इस के पूर्वी भाग में किरात लोग और पश्चिम में यवन बसे हुए तथा यज्ञ और व्यापार और युद्ध आदि अपने अपने कर्मों की व्यवस्था के अनुसार आचरण करते हुए ब्राह्मण ,क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र गण वर्ण विभाग अनुसार मध्य में रहते हैं हे मुने इसकी शतद्रू और चंद्रभागा आदि नदियां हिमालय की तलहटी से वेद और स्मृति आदि पारि यात्र पर्वत से नर्मदा और सुरसा आदि विंध्याचल से तथा तापी पयोष्णी और निर्विन्ध्या आदि ऋक्षगिरि से निकली हैं। गोदावरी, भीम रथी और कृष्ण वेणी आदि पाप हरिणी नदियां सह्यपर्वत से उत्पन्न हुई कही जाती हैं। कृत माला और ताम्रपर्णी आदि मलया चल से तृषामा और आर्यकुल्या आदि महेंद्र गिरी से तथा ऋषिकुल्या और कुमारी आदि नदियाँ शुक्तिमान् पर्वत से निकली हैं। इनकी और भी सहस्रों शाखा नदियां और उपनदियां हैं।।
*क्रमशः----*
*श्रीमहन्त*
*स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य*
पुराण प्रवक्ता/ ज्योतिर्विद
*संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा /श्री राम कथा /श्रीमद् देवी भागवत कथा/ श्री महाभारत कथा कुंडली लेखन एवं फलादेश /यज्ञोपवीत वैवाहिक कार्यक्रम/ यज्ञ प्रवचन/ याज्ञिक मंडल द्वारा समस्त वैदिक अनुष्ठान*
*श्रीवासुदेव सेवा संस्थान*
द्वारा संचालित
*श्री जगदीश कृष्णा शरणागति आश्रम लखीमपुर खीरी* *संपर्क सूत्र:- 9648 76 9089*