*जय श्रीमन्नारायण*
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*भाग:-१*
*गुरु ही सफलता का स्रोत*
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गुरु चाहते हैं कि शिष्य दिव्यता के इस मार्ग पर अग्रसर हो और तुम इस पद पर पहुंच जाओगे तो तुम्हें अपने आप एहसास होगा तुम्हें संतोष होगा कि तुम इस पद पर खड़े हो औरों को तो इस पद का ज्ञान भी नहीं है वह पत्र जहां बुढ़ापा तुम्हें तंग नहीं करेगा मृत्यु तुम्हारे निकट आने का साहस नहीं करेगी तथा तुम्हारा जीवन शमशान में जाकर खाकर नहीं हो जाएगा इस शुक्रिया इस पथ को तंत्र करते हैं जिसकी सहायता से मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर एकात्म हो जाता है और जब वो प्राकृतिक के मूल स्वरूप को जान लेता है तब वह साधक बन जाता है और सतगुरु ऐसे ही शिष्य को आशीर्वाद देते हैं जिससे वह सही अर्थों में साधक बन सके प्रकृति में बन सके शीघ्र उसको ठोकर लगी और वह जागृत अवस्था प्राप्त करें हो सकता है कि तुम्हें ठोकर लगी और गुरु चाहते हैं कि ऐसा शीघ्र क्योंकि तभी शिष्य पहचान पाएगा कि उसके जीवन का वास्तविक लक्ष्य वास्तविक उद्देश्य कुंडलिनी जागरण इस अवस्था को प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है गुरु *और गुरु के द्वारा कठोर परीक्षा भी ली जा सकती है तभी वह अपने शिष्य को इस प्रकार के मार्ग पर आगे बहाने के लिए तैयार होते उसे आगे की शिक्षा दीक्षा और पूर्व शक्तिपात करने को उद्धत होते है अगर आप प्रथम परीक्षा में ही डगमगा गए गुरु पर ही संदेह करने लगे तो जो कुछ भी आपको प्राप्त हुआ है वह भी पुनः वापस गुरु के पास ही चला जाएगा फिर तो वही कहावत है*
( *धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट*) का भौतिक जगत में रहकर हम किस प्रकार प्रकृति को आत्मसात कर सकते हैं यह सिर्फ और सिर्फ गुरू की कृपा से ही संभव है!
इस प्रश्न का उत्तर वायु पुराण से प्राप्त किया जा सकता है मैंने तुम्हें बताया कि तुम निद्रा अवस्था में पड़े रहते हो तुम्हारे सभी क्रियाकलाप इसी अवस्था में चलते रहते हैं ठीक उसी भांति जो एक सत्य को सत्य मानकर उस में भाग लेता है स्वप्न में गिफ्ट देता है कि वह उड़ा रहा है तेरे रहा है तभी कुछ कर रहा है कभी कुछ कर रहा है प्रतिदिन नया सपना देखता है तभी तो इतना भयावह कि उसका शरीर पसीने पसीने हो जाता है और अचानक डर कर के ठीक पड़ता है जब स्वप्नलोक एक मिथ्या जगत है तो फिर तुम्हारा शरीर उससे प्रभावित क्यों होता है पर प्रभाव तो अवश्य होता है क्योंकि जैसे ही तुम आंखें खोलते हो तो पाते हो कि तुम्हारा शरीर कांप रहा है पसीने से भीग गए हो इसका तात्पर्य है किशन अच्छा हो या बुरा तुम अवश्य उस में भाग लेते हो पर अगर मैं तुमसे पूछूं कि तुम इतने परेशान क्यों हो तो तुम कहोगे सो रहे थे और तुमने एक सपना देखा यही तो मैं भी कह रहा हूं की तुम इस क्षण भी सो रहे हो और स्वप्नलोक में खोए हो----
उपरोक्त प्रश्न आध्यात्मिक और भौतिक जगत की भिन्नता पर आधारित है कहां गया है
!! *जागर्ति वै तत जगत!!*
अर्थात:- जादुई मिट्टी जगत में रह सकता है जगत का अर्थ है दुनिया इसका एक औरत है जागृत अवस्था इस से तात्पर्य है की निद्रा में लीन व्यक्ति जगत में नहीं रह सकता
*जय श्रीमन्नारायण*
*क्रमशः :--------*
*श्रीमहन्त*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम*
*लखीमपुर-खीरी*
*मो0:-9648769089*