‼️ *श्रीमते रामनुजाय नमः* ‼️
💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹
*🌹🌹गुरु ही सफलता का स्रोत 🌹🌹*
🦚 *भाग ७*🦚
*गतांक से आगे------*
*शिष्य कितना भी क्षमता वान क्यों ना हो जाए उस का साधन आत्मक स्तर कितना भी उच्च क्यों ना हो जाए चाहे उसमें ब्रह्मांड को दोबारा रचने की क्षमता ही क्यों ना आ जाए तब भी वह सद्गुरु के सामने शिशु के समान ही होता है यदि उसमें कोई क्षमता प्रतिभा आ भी जाती है तो वह गुरु की ही तो दी हुई है यह उसे भूलना नहीं चाहिए अन्यथा वह शक्तियां स्वयं गुरु के पास वापस चली जाती है फिर शिष्य चाहे जितना ही प्रिय क्यों ना हो* एक बार एक सद्गुरु आश्रम पर कुछ शिष्य पधारे जिनमें एक शिष्य बहुत ही प्रिय शिष्य था उससे मुलाकात हुई गुरुदेव ने उसको देखा और बोले शाम तक मेरे शिविर में आकर के मुझसे मिल लेना इतना कहकर गुरुदेव चले गए शिष्य मध्यान्ह के बाद गुरुदेव से मिलने के लिए चला और जैसे ही शिविर के पास पहुंचा एक परिकर ने उनका रास्ता रोक लिया और बोला गुरुदेव का आदेश है कि वह अभी आराम कर रहे हैं कोई भी अंदर ना आ सके अब वह चाहे जो भी हो शिष्य ने आश्चर्य से देखा और बोला क्या तुम मुझे नहीं जानते मुझे गुरुदेव ने स्वयं शाम से पहले मिलने के लिए बुलाया है सेवक ने हंस करके कहा बुलाया होगा परंतु मुझे भी गुरुदेव ने आदेश दिया है और जिसका में पूर्णतया पालन करूंगा कुछ एक आध घंटे तक शिष्य बैठा रहा उसके बाद उसने पुनः कहा कि अगर आप नहीं जाने देंगे तब भी मैं अंदर जा सकता हूं सेवक ने कहा मैं मानता हूं आप जा सकते परंतु मैं गुरुदेव के आदेशानुसार आपको जाने नहीं दूंगा यह आप भी जानते हैं जब शिष्य को लगा यह परिकर हमें जाने नहीं देगा तो उन्होंने बैठकर गुरुदेव से मानसिक संपर्क स्थापित किया क्योंकि वह भी उच्च कोटि का साधक था और बड़े ही उलाहना भरे भाव से गुरुदेव को देखते हुए बोले प्रभु यह क्या लीला है आपने ही तो मुझे शाम तक मिलने के लिए कहा था गुरुदेव मुस्कुराए गुरुदेव ने कहा जब तुम यहां आए थे तो तुम्हारे अंदर एक भाव आ गया था वह भाव था *मैं* मैं जानता हूं तुम शेर हो लेकिन मेरे सामने तो नहीं मेरे लिए तो नहीं इसलिए यह लीला करना आवश्यक था
जब शिष्य में अहम आ जाता है तो उसे दूर करना आवश्यक होता है गुरु प्राण धारण साधना जो शिष्य के जीवन की साधक के जीवन की वह सर्वोच्च निधि है जिसके माध्यम से साधक के भंडार इस प्रकार भरते जाते हैं कि उसे अनुभव ही नहीं होता और जब वह किसी वस्तु की कामना करता है तो पीछे मुड़कर देखने पर आश्चर्यचकित रह जाता है उसके पास तो भंडार के भंडार भरे पड़े यद्यपि गुरु की साधना का प्रथम पुष्प तो विरक्ति वेदना बिरह और तनाव ही होता है परंतु सत्य तो यह है कि जो इस पीड़ा और तनाव के परीक्षाकाल को धैर्यता पूर्वक गुजार लेता है उसे ही तो बाद में वह सब कुछ प्राप्त हो पाता है जिसको प्राप्त कर लेना ही जीवन का लक्ष्य है बिना गुरु साधना के अन्य किसी भी साधना का कोई अर्थ नहीं कोई महत्व ही नहीं जीवन में श्रेष्ठ गुरु उनका दिया गुरु मंत्र और उनके द्वारा दी प्रमाणिक समय अनुकूल साधना व्यक्ति के जीवन में तभी प्राप्त हो पाती है जब वास्तव में उसके द्वारा किया गया त्याग उसके द्वारा प्रकट की गई श्रद्धा उसके द्वारा की गई तपस्या का प्रतिफल प्राप्त होने का समय आ गया हूं शास्त्रों में प्रमाण है कि गुरु साधना तभी फलीभूत होती है जब शिष्य सेवा अथवा त्याग के माध्यम से पूर्ण समर्पित हो जाता है और तभी गुरु को चाहिए कि वह ऐसे श्रेष्ठ शिष्य को साधनाएं प्रदान करें गुरु चरणों में उपस्थित होकर यदि शिष्य दिव्य साधना को प्राप्त करता है तो उसके समान सौभाग्यशाली कोई हो ही नहीं सकता *गुरु से प्राण गत संबंध होने चाहिए देहगत नहीं यदि यहां गुरु की तबीयत ठीक नहीं है और आपका मन बड़ा बेचैन हो रहा है बड़ी छटपटाहट महसूस होती है ऐसा लगे कि कुछ खाली खाली सा है और मालूम नहीं होता की वेदना क्या है यह छटपटाहट क्यों है किस कारण से है यही तो प्राण गत और आत्मा के संबंध होते हैं*
*स जातु नोत्तरेद् देवि! निरयाम्बुनिधेः क्वचित्।*
*दीक्षाहीनस्य देवेशि! पशोः कुत्सित्जन्मिनः।।*
*पापौघो$न्तिकमायाति पुण्यम दूरं पलायते।*
*तस्माद्यत्नेन दीक्षैषा ग्राह्या कृतिभिरुत्तमैः।।*
भगवान शिव ने कहा हे देवी दीक्षा के बिना पाप रूपी समुद्र को पार नहीं किया जा सकता अतः हर प्रयास से सद्गुरु से दीक्षा प्राप्त करनी ही चाहिए दीक्षा के बिना साधना की प्रवृत्ति पापों की ओर होती है पुण्य कार्य छूट जाते हैं अतः हर प्रयास से सद्गुरु के चरणों में पहुंच कर पूर्णरूपेण समर्पित होकर दीक्षा प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि बिना गुरु के यह पूरा जीवन ही निरर्थक होता है इस संसार में जो देव अवतार हुए उन्होंने भी यत्न पूर्वक सद्गुरु से दीक्षा और शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को पूर्णता प्रदान की अतः इस जीवन में मूलभूत मोक्ष के लिए सद्गुरु का होना परम आवश्यक है
*क्रमश: :-----*
*श्रीमहंत*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम* *लखीमपुर-खीरी*
*मो0:-9648769089*