*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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*!! विषय!!*
*सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*
*( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)*
*[ षष्ठम भाग]*
*जय श्रीमन्नारायण*
पिछले अंक में आप सभी लोगों ने पढ़ा किस पर्वत से कौन सी नदी प्रवाहित होती है और वह जंबूद्वीप भारतवर्ष देश में कहां कहां होकर थे निकलती है और अपने काम में जल से किस क्षेत्र को पुष्टि प्रदान करती है *अब आगे---*
इन नदियों के तट पर कुरु ,पांचाल और मध्य देशादिके रहने वाले पूर्व देश और कामरूप के निवासी पुण्ड्र, कलिंग, मगध और दक्षिणात्यलोग, अपरांतदेशवासी, सौराष्ट्रगण तथा शुर, आभीर और अर्बुदगण, कारूष मालव और पारियात्र निवासी , सौवीर, सैन्धव, हूण, साल्व और कोशल देश वासी तथा माद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसीगण रहते हैं। हे महाभाग वे लोग सदा आपस में मिलकर रहते हैं और इन्हीं का जलपान करते हैं इनकी सन्निधि के कारण वे बड़े हृष्ट पुष्ट रहते हैं हे मुनि इस भारतवर्ष में ही सतयुग त्रेता युग द्वापर और कलयुग नामक चार युग हैं अन्यत्र कहीं नहीं हैं इस देश में परलोक के लिए मुनि जन तपस्या करते हैं याज्ञिक लोग यज्ञ अनुष्ठान करते हैं और दानी जन आदर पूर्वक दान देते हैं जंबूद्वीप मैं यज्ञ मय यज्ञपुरुष भगवान श्री विष्णु का सदा यज्ञों द्वारा यजन होता इसके अतिरिक्त अन्य किसी द्वीप में उनकी इस प्रकार से उपासना नहीं होती अन्य अन्य द्वीपों में उनकी और और प्रकार से उपासना होती है *हे महामुनी इस जंबूद्वीप में भी भारतवर्ष सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह कर्म भूमि है इसके अतिरिक्त अन्य अन्य देश भोग भूमियाँ हैं* *हे द्विज उत्तम जीव सहस्त्र ओं जन्मों के अनंतर महान पुण्यो का उदया होने पर ही इस देश में मनुष्य का जन्म प्राप्त होता है देवगढ़ भी निरंतर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग की मार्ग भूत भारतवर्ष में जन्म लिया है वीर पुरुष हम देवताओं की अपेक्षा भी अधिक धन्य (बड़भागी) हैं।*
*अत्र जन्मसहस्राणां सहस्रैरपि सत्तम। कदाचिल्लभते जन्तुर्मनुष्यं पुण्यसञ्चयात्।।(23)*
*गायन्ति देवाः किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे। स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते, भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।। (24)*
*कर्माण्यसङ्कल्पिततत्फलानि, संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते। अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते , तस्मिँल्लयं ये त्वमलाः प्रयान्ति।।(25)*
{श्रीवि०पु० 2अं०/3अ०/22,23,24,25 वाँ श्लो०}
जो लोग इस कर्मभूमि में जन्म लेकर अपने फला कांक्षा से रहित कर्मों को परमात्म स्वरुप श्री विष्णु भगवान को अर्पण करने से निर्मल( पाप पुण्य से रहित) होकर अनंत में ही लीन हो जाते हैं
वह सर्वथा धन्य है पता नहीं अपने स्वर्ग प्रद कर्मों का क्षय होने पर हम कहां जन्म ग्रहण करेंगे धन्य तो वही मनुष्य हैं जो भारत भूमि में उत्पन्न होकर इंद्रियों की शक्ति से हीन नहीं हुए हैं।।
*क्रमशः----*
*श्रीमहन्त*
*स्वामी हर्षित कृष्णाचार्य*
पुराण प्रवक्ता/ ज्योतिर्विद
*संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा /श्री राम कथा /श्रीमद् देवी भागवत कथा/ श्री महाभारत कथा कुंडली लेखन एवं फलादेश /यज्ञोपवीत वैवाहिक कार्यक्रम/ यज्ञ प्रवचन/ याज्ञिक मंडल द्वारा समस्त वैदिक अनुष्ठान*
*श्रीवासुदेव सेवा संस्थान*
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*श्री जगदीश कृष्णा शरणागति आश्रम लखीमपुर खीरी* *संपर्क सूत्र:- 9648 76 9089*