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कलंक चतुर्थी

25 अगस्त 2020

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*श्रीमते रामानुजाय नमः*


*अज्ञानता वस किसी पर संदेह करना एक दिन मनुष्य को ऐसी स्थिति में पहुंचा देता है कि वह पश्चाताप की अग्नि में जलने लगता है और उसे प्रायश्चित का कोई उपाय नहीं दिखता बिना जाने बिना विचार किए किसी प्रकार का निर्णय करना कितना गलत होता है यह भगवान श्री कृष्ण जी ने अपनी लीला मात्र से दर्शाया है देखने का अपना नजरिया हो सकता है अपना तरीका होता है एक गिलास में आधे गिलास तक जल भरा हुआ है अब किसी को देखने पर मालूम पड़ता है गिलास आधा खाली तो वही दूसरा व्यक्ति देखता है की गिलास आधा भरा हुआ है देखने का तरीका अलग-अलग है बातें दोनों सही हैं एक में आत्मविश्वास है गिलास आधा तो भरा हुआ है दूसरे में आत्मग्लानि है गिलास आधा खाली है यह तरीका अपने-अपने देखने का है भगवान श्री कृष्ण अपनी लीला से ऐसा ही प्रदर्शित करते हैं आइए कथा को श्रवण करें जय श्री कृष्णा*


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*स्यमंतक मणि की कथा*


*(गणेश चतुर्थी पर चन्द्र-दर्शन करने पर अभिशापित हुए मनुष्य को दोष-मुक्त करने वाली कथा* )

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श्रीमद्भागवत पुराण के दसवें स्कंध के अध्याय 56 और 57 में श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं,'' परीक्षित ! सत्राजित ने श्री कृष्ण पर मणि चोरी का झूठा कलंक लगाया था और फिर अपने उस अपराध का मार्जन करने के लिए उसने स्वयं स्यमंतक मणि सहित अपनी कन्या सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण को सौंप दी। ''


राजा परीक्षित ने पूछा," भगवन् ! सत्राजित ने भगवान श्री कृष्ण का क्या अपराध किया था ? उसे स्यमंतक मणि कहाँ से मिली ? और उसने अपनी कन्या श्री कृष्ण को क्यों सौंप दी ? ''


श्री शुकदेव जी कहते है- परीक्षित ! सत्राजित ने श्रीकृष्ण को झूठा कलंक लगाया था। फिर उस अपराध का मार्जन करने के लिए उसने स्वयं स्यमन्तक मणि सहित अपनी कन्या सत्याभामा भगवान श्रीकृष्ण को सौंप दी।

राजा परीक्षित ने पूछाः भगवन् ! सत्राजित ने भगवान श्रीकृष्ण का क्या अपराध किया था ? उसे स्यमंतक मणि कहाँ से मिली ? और उसने अपनी कन्या उन्हें क्यों दी ?


श्रीशुकदेव जी ने कहाः परीक्षित! सत्राजित भगवान सूर्य का बहुत बड़ा भक्त था। वे उसकी भक्ती से प्रसन्न होकर उसके बहुत बड़े मित्र बन गये थे। सूर्य भगवान ने ही प्रसन्न होकर बड़े प्रेम से उसे स्यमंतक मणि दी थी। सत्राजित उस मणि को गले में धारण कर ऐसा चमकने लगा, मानो स्वयं सूर्य ही हो। परीक्षित !जब सत्राजित द्वारका आया, तब अत्यन्त तेजस्विता के कारण लोग उसे पहचान न सके। दूर से ही उसे देखकर लोगों की आँखें उसके तेज से चौंधिया गईं। लोगों ने समझा कि कदाचित स्वयं भगवान सूर्य आ रहे हैं। उन लोगों ने भगवान के पास आकर उन्हें इस बात की सूचना दी। उस समय भगवान चौसर खेल रहे थे।


लोगों ने कहाः 'शंख-चक्र-गदाधारी नारायण! कमलनयन दामोदर! यदुवंशशिरोमणि गोविन्द! आपको नमस्कार है। जगदीश्वर देखिये, अपनी चमकीली किरणों से लोगों के नेत्रों को चौंधियाते हुए प्रचण्डरश्मि भगवान सूर्य आपका दर्शन करने आ रहे हैं। प्रभो ! सभी श्रेष्ठ देवता त्रिलोकी में आपकी प्राप्ति का मार्ग ढूँढते रहते हैं, किन्तु उसे पाते नहीं। आज आपको यदुवंश में छिपा हुआ जानकर स्वयं सूर्यनारायण आपका दर्शन करने आ रहे हैं।


श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! अनजान पुरूषों की यह बात सुनकर कमलनयन भगवान श्रीकृष्ण हँसने लगे। उन्होंने कहा- 'अरे, ये सूर्यदेव नहीं है। यह तो सत्राजित है, जो मणि के कारण इतना चमक रहा है। इसके बाद सत्राजित अपने समृद्ध घर में चला आया। घर पर उसके शुभागमन के उपलक्ष्य में मंगल-उत्सव मनाया जा रहा था। उसने ब्राह्मणों द्वारा स्यमंतक मणि को एक देवमन्दिर में स्थापित करा दिया। परीक्षित ! वह मणि प्रतिदिन आठ भार सोना दिया करती थी। और जहाँ वह पूजित होकर रहती थी, वहाँ दुर्भिक्ष, महामारी, ग्रहपीड़ा, सर्पभय, मानसिक और शारीरिक व्यथा तथा मायावियों का उपद्रव आदि कोई भी अशुभ नहीं होता था। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसंगवश कहा-'सत्राजित ! तुम अपनी मणि राजा उग्रसेन को दे दो।'परन्तु वह इतना अर्थलोलुप-लोभी था कि भगवान की आज्ञा का उल्लंघन होगा, इसका कुछ भी विचार न करके उसे अस्वीकार कर दिया।

एक दिन सत्राजित के भाई प्रसेन ने उस परम प्रकाशमयी मणि को अपने गले में धारण कर लिया और फिर वह घोड़े पर सवार होकर शिकार खेलने वन में चला गया। वहाँ एक सिंह ने घोड़े सहित प्रसेन को मार डाला और उस मणि को छीन लिया। वह अभी पर्वत की गुफा में प्रवेश कर ही रहा था कि मणि के लिए ऋक्षराज जाम्बवान् ने उसे मार डाला। उन्होंने वह मणि अपनी गुफा में ले जाकर बच्चे को खेलने के लिए दे दी। अपने भाई प्रसेन के न लौटने से उसके भाई सत्राजित को बड़ा दुःख हुआ। वह कहने लगा, 'बहुत सम्भव है श्रीकृष्ण ने ही मेरे भाई को मार डाला हो, क्योंकि वह मणि गले में डालकर वन में गया था।' सत्राजित की यह बात सुनकर लोग आपस में काना-फूँसी करने लगे। जब भगवान श्रीकृष्ण ने सुना कि यह कलंक का टीका मेरे सिर लगाया गया है, तब वे उसे धो-बहाने के उद्देश्य से नगर के कुछ सभ्य पुरूषों को साथ लेकर प्रसेन को ढूँढने के लिए वन में गये। वहाँ खोजते-खोजते लोगों ने देखा कि घोर जंगल में सिंह ने प्रसेन और उसके घोड़े को मार डाला है। जब वे लोग सिंह के पैरों का चिन्ह देखते हुए आगे बढ़े, तब उन लोगों ने यह भी देखा कि पर्वत पर रीछ ने सिंह को भी मार डाला है।

भगवान श्रीकृष्ण ने सब लोगों को बाहर ही बिठा दिया और अकेले ही घोर अन्धकार से भरी हुई ऋक्षराज की भयंकर गुफा में प्रवेश किया। भगवान ने वहाँ जाकर देखा कि श्रेष्ठ मणि स्यमन्तक को बच्चों का खिलौना बना दिया गया है। वे उसे हर लेने की इच्छा से बच्चे के पास जा खड़े हुए। उस गुफा में एक अपरिचित मनुष्य को देखकर बच्चे की धाय भयभीत की भाँति चिल्ला उठी। उसकी चिल्लाहट सुनकर परम बली ऋक्षराज जाम्बवान क्रोधित होकर वहाँ दौड़ आये। परीक्षित !जाम्बवान उस समय कुपित हो रहे थे। उन्हें भगवान की महिमा, उनके प्रभाव का पता न चला। उन्होंने एक साधारण मनुष्य समझ लिया और वे अपने स्वामी भगवान श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगे। जिस प्रकार मांस के लिये दो बाज आपस में लड़ते हैं, वैसे ही विजयाभिलाषी भगवान श्रीकृष्ण और जाम्बवान आपस में घमासान युद्ध करने लगे। पहले तो उन्होंने अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार किया, फिर शिलाओं का तत्पश्चात वे वृक्ष उखाड़कर एक दूसरे पर फेंकने लगे। अन्त में उनमें बाहुयुद्ध होने लगा। परीक्षित ! वज्र-प्रहार के समान कठोर घूँसों की चोट से जाम्बवान के शरीर की एक एक गाँठ टूट गयी। उत्साह जाता रहा। शरीर पसीने से लथपथ हो गया। तब उन्होंने अत्यंत विस्मित-चकित होकर भगवान श्रीकृष्ण से कहा- 'प्रभो ! मैं जान गया। आप ही समस्त प्राणियों के स्वामी, रक्षक, पुराणपुरूष भगवान विष्णु हैं। आप ही सबके प्राण, इन्द्रियबल, मनोबल और शरीर बल हैं। आप विश्व के रचयिता ब्रह्मा आदि को भी बनाने वाले हैं। बनाये हुए पदार्थों में भी सत्तारूप से आप ही विराजमान हैं। काल के कितने भी अवयव है, उनके नियामक परम काल आप ही हैं और शरीर भेद से भिन्न-भिन्न प्रतीयमान अन्तरात्माओं के परम आत्मा भी आप ही हैं। प्रभो ! मुझे स्मरण है, आपने अपने नेत्रों में तनिक सा क्रोध का भाव लेकर तिरछी दृष्टि से समुद्र की ओर देखा था। उस समय समुद्र के अंदर रहने वाल बड़े-बड़े नाक (घड़ियाल) और मगरमच्छ क्षुब्ध हो गये थे और समुद्र ने आपको मार्ग दे दिया था। तब आपने उस पर सेतु बाँधकर सुन्दर यश की स्थापना की तथा लंका का विध्वंस किया। आपके बाणों से कट-कटकर राक्षसों के सिर पृथ्वी पर लोट रहे थे। (अवश्य ही आप मेरे वे ही राम जी श्रीकृष्ण के रूप में आये हैं।) परीक्षित ! जब ऋक्षराज जाम्बवान ने भगवान को पहचान लिया, तब कमलनयन श्रीकृष्ण ने अपने परम कल्याणकारी शीतल करकमल को उनके शरीर पर फेर दिया और फिर अहैतुकी कृपा से भरकर प्रेम गम्भीर वाणी से अपने भक्त जाम्बवान जी से कहा- ऋक्षराज ! हम मणि के लिए ही तुम्हारी इस गुफा में आये हैं। इस मणि के द्वारा मैं अपने पर लगे झूठे कलंक को मिटाना चाहता हूँ। भगवान के ऐसा कहने पर जाम्बवान बड़े आनन्द से उनकी पूजा करने के लिए अपनी कन्या कुमारी जाम्बवती को मणि के साथ उनके चरणों में समर्पित कर दिया।


भगवान श्रीकृष्ण जिन लोगों को गुफा के बाहर छोड़ गये थे, उन्होंने बारह दिन तक उनकी प्रतीक्षा की। परन्तु जब उन्होंने देखा कि अब तक वे गुफा से नहीं निकले, तब वे अत्यंत दुःखी होकर द्वारका लौट गये। वहाँ जब माता देवकी, रूक्मणि, वसुदेव जी तथा अन्य सम्बन्धियों और कुटुम्बियों को यह मालूम हुआ कि श्रीकृष्ण गुफा से नहीं निकले, तब उन्हें बड़ा शोक हुआ। सभी द्वारकावासी अत्यंत दुःखित होकर सत्राजित को भला बुरा कहने लगे और भगवान श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए महामाया दुगदिवी की शरण गये, उनकी उपासना करने लगे। उनकी उपासना से दुगदिवी प्रसन्न हुई और उन्होंने आशीर्वाद दिया। उसी समय उनके बीच में मणि और अपनी नववधू जाम्बवती के साथ सफलमनोरथ होकर श्रीकृष्ण होकर श्रीकृष्ण सबको प्रसन्न करते हुए प्रकट हो गये। सभी द्वारकावासी भगवान श्रीकृष्ण को पत्नी के साथ और गले में मणि धारण किये हुए देखकर परमानन्द में मग्न हो गये, मानो कोई मरकर लौट आया हो।

तदनन्तर भगवान ने सत्राजित को राजसभा में महाराज उग्रसेन के पास बुलवाया और जिस प्रकार मणि प्राप्त हुई थी, वह सब कथा सुनाकर उन्होंने वह मणि सत्राजित को सौंप दी। सत्राजित अत्यंत लज्जित हो गया। मणि तो उसने ले ली, परन्तु उसका मुँह नीचे की ओर लटक गया। अपने अपराध पर उसे बड़ा पश्चाताप हो रहा था, किसी प्रकार वह अपने घर पहुँचा। उसके मन की आँखों के सामने निरन्तर अपना अपराध नाचता रहता। बलवान के साथ विरोध करने के कारण वह भयभीत भी हो गया था। अब वह यही सोचता रहता कि 'मैं अपने अपराध का मार्जन कैसे करूँ ? मुझ पर भगवान श्रीकृष्ण कैसे प्रसन्न हों ? मैं ऐसा कौन सा काम करूँ, जिससे मेरा कल्याण हो और लोग मुझे कोसे नहीं। सचमुच मैं अदूरदर्शी, क्षुद्र हूँ। धन के लोभ से मैं बड़ी मूढ़ता का काम कर बैठा। अब मैं रमणियों में रत्न के समान अपनी कन्या सत्याभामा और वह स्यमंतक मणि दोनों ही श्रीकृष्ण को दे दूँ। यह उपाय बहुत अच्छा है। इसी से मेरे अपराध का मार्जन हो सकता है, और कोई उपाय नहीं है। सत्राजित ने अपनी विवेक बुद्धि से ऐसा निश्चय करके स्वयं ही इसके लिए उद्योग किया और अपनी कन्या तथा स्यमन्तक मणि दोनों ही ले जाकर श्रीकृष्ण को अर्पण कर दीं। सत्यभामा शील स्वभाव, सुन्दरता, उदारता आदि सदगुणों से सम्पन्न थी। बहुत से लोग चाहते थे कि सत्यभामा हमें मिले और उन लोगों ने उन्हें माँगा भी था। परन्तु अब भगवान श्रीकृष्ण ने विधिपूर्वक उनका पाणिग्रहण किया। परीक्षित !भगवान श्रीकृष्ण ने सत्राजित से कहा- 'हम स्यमन्तक मणि न लेंगे। आप सूर्य भगवान के भक्त हैं, इसलिए वह आपके ही पास रहे। हम तो केवल उसके फल के अर्थात उससे निकले हुए सोने के अधिकारी हैं। वही आप हमें दे दिया करें।


परीक्षित ! यद्यपि भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का पता था कि लाक्षागृह की आग से पाण्डवों का बाल भी बाँका न हुआ है, तथापि जब उन्होंने सुना कि कुन्ती और पाण्डव जल मरे, तब उस समय का कुल परम्परोचित व्यवहार करने के लिए वे बलराम जी के साथ हस्तिनापुर गये। वहाँ जाकर भीष्मपितामह, कृपाचार्य, विदुर, गान्धारी और द्रोणाचार्य से मिलकर उनके साथ समवेदना-सहानुभूति प्रकट की और उन लोगों से कहने लगे- 'हाय-हाय ! यह तो बड़े दुःख की बात हुई।'


भगवान श्रीकृष्ण के हस्तिनापुर चले जाने से द्वारका में अक्रूर और कृतवर्मा को अवसर मिल गया। उन लोगों ने शतधन्वा से आकर कहा – ‘तुम सत्राजित से मणि क्यों नहीं छीन लेते ? सत्राजित ने अपनी श्रेष्ठ कन्या का विवाह हमसे करने का वचन दिया था और अब उसने हमलोगों का तिरस्कार करके उसे श्रीकृष्ण के साथ ब्याह दिया है। अब सत्राजित भी अपने भाई प्रसेन की तरह क्यों न यमपुरी में जाय ?' शतधन्वा पापी था और अब तो उसकी मृत्यु भी उसके सिर पर नाच रही थी। अक्रूर और कृतवर्मा इस प्रकार बहकाने पर शतधन्वा उनकी बातों में आ गया और उस महादुष्ट ने लोभवश सोये हुए सत्राजित को मार डाला। इस समय स्त्रियाँ अनाथ के समान रोने चिल्लाने लगीं, परन्तु शतधन्वा ने उनकी ओर तनिक भी ध्यान न दिया, जैसे कसाई पशुओं की हत्या कर डालता है, वैसे ही वह सत्राजित को मारकर और मणि लेकर वहाँ से चम्पत हो गया।

सत्यभामा जी को यह देखकर कि मेरे पिता मार डाले गये हैं, बड़ा शोक हुआ और वे हाय पिता जी ! हाय पिता जी ! मैं मारी गयी – इस प्रकार पुकार पुकार कर विलाप करने लगीं। बीच बीच में बेहोश हो जातीं और होश में आने पर फिर विलाप करने लगतीं। इसके बाद उन्होंने अपने पिता के शव को तेल के कड़ाहे में रखवा दिया और आप हस्तिनापुर गयीं। उन्होंने बड़े दुःख से भगवान श्रीकृष्ण को अपने पिता की हत्या का वृत्तान्त सुनाया – यद्यपि इन बातों को भगवान श्रीकृष्ण पहले से ही जानते थे। परीक्षित ! सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी ने सब सुनकर मनुष्यों की सी लीला करते हुए अपनी आँखों में आँसू भर लिये और विलाप करने लगे कि 'अहो ! हम लोगों पर तो बहुत बड़ी विपत्ती आ पड़ी !' इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण सत्यभामाजी और बलरामजी के साथ हस्तिनापुर से द्वारका लौट आये और शतधन्वा मारने तथा उससे मणि छीनने का उद्योग करने लगे।


जब शतधन्वा को यह मालूम हुआ कि भगवान श्रीकृष्ण मुझे मारने का उद्योग कर रहे हैं, तब वह बहुत डर गया और अपने प्राण बचाने के लिए उसने कृतवर्मा से सहायता माँगी। तब कृतवर्मा ने कहा - 'भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं। मैं उनका सामना नहीं कर सकता। भला, ऐसा कौन है, जो उनके साथ वैर बाँधकर इस लोक और परलोक में सकुशल रह सके ? तुम जानते हो कि कंस उन्हीं से द्वेष करने के कारण राज्यलक्ष्मी को खो बैठा और अपने अनुयायियों के साथ मारा गया। जरासन्ध जैसे शूरवीर को भी उनके सामने सत्रह बार मैदान में हारकर बिना रथ के ही अपनी राजधानी लौट जाना पड़ा था।' जब कृतवर्मा ने उसे इस प्रकार टका सा जवाब दे दिया, तब शतधन्वा ने सहायता के लिए अक्रूर जी से प्रार्थना की। उन्होंने कहा - 'भाई ! ऐसा कौन है, जो सर्वशक्तिमान भगवान का बल पौरूष जानकर भी उनसे वैर विरोध ठाने। जो भगवान खेल-खेल में ही इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं तथा जो कब क्या करना चाहते है – इस बात को माया से मोहित ब्रह्मा आदि विश्व विधाता भी नहीं समझ पाते, जिन्होंने सात वर्ष की अवस्था में – जब वे निरे बालक थे, एक हाथ से ही गिरिराज गोवर्द्धन को उखाड़ लिया और जैसे नन्हें-नन्हें बच्चे बरसाती छत्ते को उखाड़ हाथ में रख लेते हैं, वैसे ही खेल-खेल में सात दिनों तक उसे उठाय रखा, मैं तो उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार करता हूँ। उनके कर्म अदभुत हैं। वे अनन्त अनादि, एकरस और आत्मस्वरूप हैं। मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ। जब इस प्रकार अक्रूर जी ने भी उसे कोरा जवाब दे दिया, तब शतधन्वा ने स्यमन्तक मणि उन्हीं के पास रख दी और आप चार सौ कोस लगातार चलने वाले घोड़े पर सवार होकर वहाँ से बड़ी फुर्ती से भागा।


परीक्षित! भगवान श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाई अपने उस रथ पर सवार हुए, जिस पर गरूड़चिन्ह से चिन्हित ध्वजा फहरा रही थी और बड़े वेगवाले घोड़े जुते हुए थे। अब उन्होंने अपने श्वसुर सत्राजित को मारने वाले शतधन्वा का पीछा किया। मिथिलापुरी के निकट एक उपवन में शतधन्वा का घोड़ा गिर पड़ा, अब वह उसे छोड़कर पैदल ही भागा। वह अत्यन्त भयभीत हो गया था। भगवान श्रीकृष्ण भी क्रोध करके उसके पीछे दौड़े। शतधन्वा पैदल ही भाग रहा था, इसलिए भगवान ने पैदल ही दौड़कर अपने तीक्ष्ण धार वाले चक्र से उसका सिर उतार लिया और उसके वस्त्रों में स्यमंतक मणि को ढूँढा। परन्तु जब मणि नहीं मिली तब भगवान श्रीकृष्ण ने बड़े भाई बलराम जी के पास आकर कहा - 'हमने शतधन्वा को व्यर्थ ही मारा। क्योंकि उसके पास स्यमंतक मणि तो है ही नहीं। बलराम जी ने कहा - 'इसमे सन्देह नहीं कि शतधन्वा ने स्यमंतक मणि को किसी न किसी के पास रख दिया है। अब तुम द्वारका जाओ और उसका पता लगाओ। मैं विदेहराज से मिलना चाहता हूँ, क्योंकि वे मेरे बहुत ही प्रिय मित्र हैं।'परीक्षित ! यह कहकर यदुवंश शिरोमणि बलराम जी मिथिला नगरी में चले गये। जब मिथिला नरेश ने देखा कि पूजनीय बलरामजी महाराज पधारे हैं, तब उनका हृदय आनन्द से भर गया। उन्होंने झटपट अपने आसन से उठकर अनेक सामग्रियों से उनकी पूजा की। इसके बाद भगवान बलराम जी कई वर्षों तक मिथिला पुरी में ही रहे। महात्मा जनक ने बड़े प्रेम और सम्मान से उन्हें रखा। इसके बाद समय पर धृतराष्ट के पुत्र दुर्योधन ने बलराम जी से गदायुद्ध की शिक्षा ग्रहण की। अपनी प्रिय सत्यभामा का प्रिय कार्य करके भगवानश्रीकृष्ण द्वारका लौट आये और उनको यह समाचार सुना दिया कि शतधन्वा को मार डाला गया, परन्तु स्यमंतकमणि उसके पास न मिली। इसके बाद उन्होंने भाई बन्धुओं के साथ अपने श्वसुर सत्राजित की वे सब और्ध्वदेहिक क्रियाएँ करवायीं, जिनसे मृतक प्राणी का परलोक सुधरता है।

अक्रूर और कृतवर्मा ने शतधन्वा को सत्राजित के वध के लिए उत्तेजित किया था। इसलिए जब उन्होंने सुना कि भगवान श्रीकृष्ण ने शतधन्वा को मार डाला है, तब वे अत्यंत भयभीत होकर द्वारका से भाग खड़े हुए।


परिक्षित! कुछ लोग ऐसा मानते है कि अक्रूर के द्वारका से चले जाने पर द्वारकावासियों को बहुत प्रकार के अनिष्टों और अरिष्टों का सामना करना पड़ा। परन्तु जो लोग ऐसा कहते हैं, वे पहले कही हुई बातों को भूल जाते हैं। भला, यह भी कभी सम्भव है कि जिन भगवान श्रीकृष्ण में समस्त ऋषि-मुनि निवास करते हैं, उनके निवासस्थान द्वारका में उनके रहते कोई उपद्रव खड़ा हो जाय। उस समय नगर के बड़े-बूढ़े लोगों ने कहा - 'एक बार काशी नरेश के राज्य में वर्षा नहीं हो रही थी, सूखा पड़ गया था। तब उन्होंने अपने राज्य में आये हुए अक्रूर के पिता श्वफल्क को अपनी पुत्री गान्दिनी ब्याह दी। तब उस प्रदेश में वर्षा हुई। अक्रूर भी श्वफल्क के ही पुत्र हैं और इनका प्रभाव भी वैसा ही है। इसलिए जहाँ-जहाँ अक्रूर रहते हैं, वहाँ-वहाँ खूब वर्षा होती है तथा किसी प्रकार का कष्ट और महामारी आदि उपद्रव नहीं होते।


परीक्षित! उन लोगों की बात सुनकर भगवान ने सोचा कि 'इस उपद्रव का यही कारण नहीं है' यह जानकर भी भगवान ने दूत भेजकर अक्रूर को ढुँढवाया और आने पर उनसे बातचीत की। भगवान ने उनका खूब स्वागत सत्कार किया और मीठी-मीठी प्रेम की बातें कहकर उनसे सम्भाषण किया। परीक्षित ! भगवान सबके चित्त का एक-एक संकल्प देखते रहते हैं। इसलिए उन्होंने मुस्कराते हुए अक्रूर से कहा - 'चाचा जी ! आप दान धर्म के पालक हैं। हमें यह बात पहले से ही मालूम है कि शतधन्वा आपके पास वह स्यमन्तक मणि छोड़ गया है, जो बड़ी ही प्रकाशमान और धन देने वाली है। आप जानते ही हैं कि सत्राजित के कोई पुत्र नहीं है। इसलिए उनकी लड़की के लड़के – उनके नाती ही उन्हें तिलाँजली और पिण्डदान करेंगे, उनका ऋण चुकायेंगे और जो कुछ बच रहेगा उसके उत्तराधिकारी होंगे। इस प्रकार शास्त्रीय दृष्टि से यद्यपि स्यमन्तक मणि हमारे पुत्रों को ही मिलनी चाहिए, तथापि वह मणि आपके ही पास रहे। क्योंकि आप बड़े व्रतनिष्ठ और पवित्रात्मा हैं तथा दूसरों के लिए उस मणि को रखना अत्यन्त कठिन भी है। परन्तु हमारे सामने एक बहुत बड़ी कठिनाई यह आ गयी है कि हमारे बड़े भाई बलराम जी मणि के सम्बन्ध में मेरी बात का पूरा विश्वास नहीं करते। इसलिए महाभाग्यवान अक्रूर जी ! आप वह मणि दिखाकर हमारे इष्टमित्र – बलराम जी, सत्यभामा और जाम्बती का सन्देह दूर कर दीजिए और उनके हृदय में शान्ति का संचार कीजिए। हमें पता है कि उसी मणि के प्रताप से आजकल आप लगातार ही ऐसे यज्ञ करते रहते हैं, जिसमें सोने की वेदियाँ बनती हैं। परीक्षित ! जब भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार सान्तवना देकर उन्हें समझाया-बुझाया, तब अक्रूर जी ने वस्त्र में लपेटी हुई सूर्य के समान प्रकाशमान वह मणि निकाली और भगवान श्रीकृष्ण को दे दी। भगवान श्रीकृष्ण ने वह स्यमंतक मणि अपने जाति-भाईयों को दिखाकर अपना कलंक दूर कर दिया और उसे अपने पास रखने में समर्थ होने पर भी पुनः अक्रूर जी को लौटा दिया।


स्कंद पुराण में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि भादव के शुक्ल पक्ष के चन्द्र दर्शन मैंने गोखुर के जल में किए, जिसके फलस्वरूप मुझ पर मणि की चोरी का झूठा कलंक लगा।


" *मया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चंद्रदर्शनं गोष्पदाम्बुनि वै राजन् कृतं दिवमपश्यता* "


देवर्षि नारदजी ने भी श्री कृष्ण को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चन्द्र दर्शन करने के फलस्वरूप व्यर्थ कलंक लगने की बात कही है-


" *त्वया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चन्द्रदर्शनम् । कृतं येनेह भगवन् वृथाशापमवाप्तवानम् ।। "*


इसके अतिरिक्त श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी इस तिथि को चन्द्रमा के दर्शन ना किए जाने के संकेत दिए हैं-


" *सो परनारि लिलार गोसाईं । तजउ चौथि कै चंद की नाईं ।। "*


सर्वशक्तिमान् सर्वव्यापक भगवान श्रीकृष्ण के पराक्रम से परिपूर्ण यह आख्यान समस्त पापों, अपराधों और कलंकों का मार्जन करने वाला तथा परम मंगलमय है। जो इसे पढ़ता, सुनता अथवा स्मरण करता है, वह हर प्रकार की अपकीर्ति और पापों से छूटकर शान्ति का अनुभव करता है।

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गुरूपूर्णिमा विशेष

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*श्रीमते रामानुजाय नमः**श्री यतिराजाय नमः*💐💐💐💐💐💐💐💐 *गुरुपूर्णिमा विशेष*--- *द्वितीय भाग*🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕 गुरुदेव की असीम कृपा उनकी दया प्रेम वात्सल्य उसी के फलस्वरूप हमें परम आराध्य श्री लक्ष्मीनारायण जी के चरणों का आश्रय मिलता है और परमात्मा से मिलाने का पावन कार्य सिर्फ और सिर्फ श्

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गुरुपूर्णिमा विशेष

3 जुलाई 2020
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*जय श्रीमन्नारायण* *श्रीमते रामानुजाय नमः*🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺 *गुरुपूर्णिमा विशेष* *चतुर्थ भाग*🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 प्रिय भागवत भक्तों जीवन एक मिट्टी का बना हुआ पुतला है इस पुतले को किस प्रकार से उत्तम रूप देकर समाज के हित में प्रशस्त करना सद्गुरु का कार्य है सद्गुरु की कृपा से वैष्णो मार

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*जय श्रीमन्नारायण* *श्रीमते गुरुचरण कमलेभ्यो नमः*💐🌺💐🌺💐🌺💐🌺 *गुरुपूर्णिमा विशेष* *भाग ५*🦚🌳🦚🌳🦚🌳🦚🌳 *किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥*अर्थात :-बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना

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शिखा बन्धन (चोटी) रखने का महत्त्व💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐शिखा का महत्त्व विदेशी जान गए हिन्दू भूल गए।हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत,छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी हैं। छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण, विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती हैं। शिखा का त्याग

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श्रीस्वामी जी की दिव्य यात्रा

31 जुलाई 2020
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।। श्रीमते रामानुजाय नमः।।श्रीरामानुजाचार्य जी की दिव्य देश यात्रा------------------------------------------------श्रीवैष्णव जन श्रीरामानुज स्वामी जी के पास जाकर कहते हैं – “स्वामी जी! आपने श्रीवैष्णव सम्प्रदाय को प्रतिष्ठित किया है और विरोधी सिद्धान्तों को हराया है। अब कृपया तीर्थ यात्रा पर चलिये औ

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श्रीमते रामानुजाय नमः

12 अगस्त 2020
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹*।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।**श्रीपराशर भट्टर् और श्रीवेदव्यास भट्टर् का जन्म*-------------------------------------------------------श्रीपराशर भट्टर् और श्रीवेदव्यास भट्टर् कूरत्तालवान् (कूरेश स्वामी) और माता आण्डाल के सुपुत्र हैं । श्रीपराशर भट्टर् और श्रीवेदव्यास भट्टर् (दोनों भाई)

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श्रीमते रामानुजाय नमः

12 अगस्त 2020
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।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।श्रीरामानुज स्वामी की मेलकोटे की यात्रा-------------------------------------------------श्रीरामानुज स्वामी जी के मार्गदर्शन में सभी वैष्णव श्रीरंगम् में आनन्द मंगल से रह रहे थे। तभी एक दुष्ट राजा , जो शैव सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखता था, विचार किया कि शिवजी की श्रेष्ठता को स्थ

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कृष्ण भक्त

20 अगस्त 2020
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🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻*बहुत ही प्रेरणाप्रद कथा**➖एक दरिद्र ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजर रहा था , बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया , किन्तु उस नगर मे किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अन्न नहीं दिया।* *➖आखिर दोपहर हो गयी , तो ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोस

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कलंक चतुर्थी

25 अगस्त 2020
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* *अज्ञानता वस किसी पर संदेह करना एक दिन मनुष्य को ऐसी स्थिति में पहुंचा देता है कि वह पश्चाताप की अग्नि में जलने लगता है और उसे प्रायश्चित का कोई उपाय नहीं दिखता बिना जाने बिना विचार किए किसी प्रकार का निर्णय करना कितना गलत होता है यह भगवान श्री कृष्ण जी ने अपनी लीला मात्र से

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गुरू

22 जुलाई 2021
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*जय श्रीमन्नारायण**स्त्रीयों को गुरू क्यूं नहीं बनाना चाहिये , और संतो को क्यूं स्त्रीयों से दूर रहना चाहिये ,, शास्त्र से*:-------- "" प्रश्न -- हमने गुरूसे कण्ठी तो लेली , पर उनमें श्रद्धा नहीं रही तो क्या कंठी उनको वापस कर दें ?"" उत्तर--कंठी वापस करने के लिए हम कभी समर्थन

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गुरु ही सर्वस्व है

29 जुलाई 2021
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*जय श्रीमन्नारायण*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 *भाग:-१* *गुरु ही सफलता का स्रोत*🥀🌲🥀🌲🥀🌲🥀 गुरु चाहते हैं कि शिष्य दिव्यता के इस मार्ग पर अग्रसर हो और तुम इस पद पर पहुंच जाओगे तो तुम्हें अपने आप एहसास होगा तुम्हें संतोष होगा कि तुम इस पद पर खड़े हो औरों को तो इस पद का ज्ञान भी नहीं है वह पत्र जहां

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गुरु ही सफलता का स्रोत

30 जुलाई 2021
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*गुरु ही सफलता का स्रोत*🌲🥀🌲🥀🌲🥀🌲🥀 *जय श्रीमन्नारायण* *भाग:-२*☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿इस दुनिया के लिए एक और शब्द है संसार संसार शब्द दो शब्दों के सहयोग से बना है सम सार इसका अर्थ है कि जो अवस्था मेरी प्रकृति के अनुरूप है वही संसार है इसलिए अगर मैं कामों को हूं तो सुंदर स्त्री को देखने में अ

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गुरु ही सफलता का स्रोत

31 जुलाई 2021
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*जय श्रीमन्नारायण*🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐 *गुरु ही सफलता का स्रोत**भाग:-----३*🌲🌿🌲🌿🌲🌿🌲🌿 *गतांक से आगे*---- *क्या गुरु का भी ऋण होता है*--------तो उत्तर आएगा हां शिष्य अपने गुरु का ऋण कभी उतार ही नहीं सकता अपने माता-पिता का ऋण उतार सकता है अपने स्वजनों का ऋण उतार सकता है क्योंकि उनसे उसके देश

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गुरु हि सफलता का स्रोत

1 अगस्त 2021
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*जय श्रीमन्नारायण*☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿*गुरु ही सफलता का स्रोत*🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼 *भाग:-४* *गतांक से आगे------* *अनुभवति हि मूर्ध्ना पादपस्तीव्रमुष्णं।**शमयति परितापमं छायया संश्रितानाम्।।*(अभिज्ञान शाकुंतलम:५/7)अर्थात:- वृक्ष अपने सिर से तो तीव्रउष्णता का अनुभव करता है पर अपने आश्रितों के ताप को छाया से

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बिल्वपत्र पूजन 108 मन्त्र

1 अगस्त 2021
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*महादेव की बिल्व पत्रों से पूजा*〰〰🌼〰🌼〰🌼〰〰त्रिदेवों में भगवान शिव को सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाला माना गया है। भगवान शिव को ‘भोलेनाथ’ और ‘औघड़’ माना गया है जिसका तात्पर्य यह है कि वो किसी को बहुत अधिक परेशान नहीं देख सकते और भक्त की थोड़ी सी भी परेशानी उनकी करुणा को जगा देती है।नीलकंठ रूपेण करुणामय

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गुरु हि सफलता का स्रोत

2 अगस्त 2021
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*श्री यतिराजाय नमः*🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺 *गुरु हि सफलता का स्रोत**भाग ५:-----**गतांक से आगे:----*गुरु के बारे में शास्त्र में कहा गया है--*गुरूर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः! गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः*अर्थात:- वास्तव में ही पूर्णता का दूसरा नाम गुरु है अष्ट महा सिद्धियां गुर

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नियमावली

3 अगस्त 2021
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🌺🍥🌺🍥🌺🍥🌺🍥🌺🍥🌺🍥 ‼️ *श्री राधे कृपा हि सर्वस्वम* ‼ *नियम एवं प्रतिज्ञा* ♦🍀♦🍀♦🍀♦🍀♦️🍀♦️🍀 *मित्रों यह समूह बनाने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि जिन्हें हम भूलते जा रहे हैं उन सनातन परम्पराओं को हम पुन: जीवित कर सकें। सभी भगवत्प्रेमियों को एक

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गुरु ही सफलता का स्रोत

4 अगस्त 2021
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*जय श्रीमन्नारायण*🌺🌷🌺🌷🌺🌷🌺🌷 *गुरु ही सफलता का स्रोत**भाग:-६*☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿*गतांक से आगे:------*संसार में दुख हैं हर दुख का कारण है और हर दुख का निवारण भी है गुरु की कृपा प्राप्त करने का सरल उपाय ही दीक्षा है और शिष्य का धर्म यही है की पुनः पुनः गुरु चरणों में उपस्थित होकर दीक्षा द

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गुरु ही सफलता का स्रोत

4 अगस्त 2021
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‼️ *श्रीमते रामनुजाय नमः* ‼️💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹 *🌹🌹गुरु ही सफलता का स्रोत 🌹🌹*🦚 *भाग ७*🦚*गतांक से आगे------**शिष्य कितना भी क्षमता वान क्यों ना हो जाए उस का साधन आत्मक स्तर कितना भी उच्च क्यों ना हो जाए चाहे उसमें ब्रह्मांड को दोबारा रचने की क्षमता ही क्यों ना आ जाए तब भी वह सद्गुरु के सामने शिशु

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गुरु ही सफलता का स्रोत भाग:-८

5 अगस्त 2021
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*‼️जय श्रीमन्नारायण‼️*🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞 *‼️गुरु ही सफलता का स्रोत ‼️**भाग ८:-------*🌺🌷🌺🌷🌺🌷🌺🌷*गतांक से आगे:----**ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहिं न दूसरि बात।**कौड़ी लागि लोभबस करहि बिप्र गुर घात।।'*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹*अर्थात:-*(स्त्री-पुरुष ब्रह्मज्ञान के सिवा दूसरी बात ही नहीं कहते और

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गुरु ही सफलता का स्रोत

6 अगस्त 2021
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*श्रीयतिराजाय नमः*🦜🦚🦜🦚🦜🦚🦜🦚*‼️गुरु ही सफलता का स्रोत‼️* *भाग:-९**गतांक से आगे:----------**ब्रम्हाण्ड रश्मिनिकरेश्वनु गुज्जछदमात।**यस्य स्तुतीं प्रकृतिरेव स्वयं करोति।**गायन्ति यां ऋषिजनाः सुजनाश्च तं वै।**तं वन्दे रामानुजस्य चरणारविन्दम।।*जिनकी स्तुति स्वयं प्रकृति भी करती है उस स्तुति का

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गुरु ही सफलता का स्रोत

7 अगस्त 2021
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*श्रीमते यतिराजाय नमः*🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿🌿☘️ *‼️ गुरु ही सफलता का स्रोत‼️**भाग १०:--**गतांक से आगे:-------*शिष्य का जीवन गुरु से जोड़कर ही पूर्ण बनता है जीवन की यात्रा तो संसार में जिसने भी जन्म लिया है वह करता ही है लेकिन कितने व्यक्ति इस जीवन में पूर्णता प्राप्त करते हैं यह ज्यादा महत्वपूर्ण है शास्त

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गुरु ही सफलता का स्रोत

8 अगस्त 2021
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*🦚 जय श्रीमन्नारायण🦚*🌼🌞🌼🌞🌼🌞🌼🌞 *‼️ गुरु ही सफलता का स्रोत ‼️**भाग ११*🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌲☘️🌿*गतांक से आगे:-------* *यस्मान् महेश्वरः साक्षात कृत्वा मानुष विग्रहं।**कृपया गुरुरूपेण मग्नाः प्रोद्धरति प्रजा:।।**अर्थात:--*स्वयं परमेश्वर मानव मूर्ति धारण करके कृपया पूर्वक गुरु रूप में माया में म

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गुरु ही सफलता का स्रोत

10 अगस्त 2021
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*श्रीमते रामानुजाय नमः*🌲🌿🌲🌿🌲🌿🌲🌿*‼️गुरु ही सफलता का स्रोत ‼️**भाग १२:--**गतांक से आगे:-------*जीवन पौरुष के साथ जीने के लिए प्राप्त हुआ है और वह पौरुष गुरुद्वारा प्रदत्त ज्ञान का पूर्ण रूप से पकड़ कर ही प्राप्त हो सकता है। सद्गुरु हर जीवन में साथ रहते हुए उस मार्ग पर ले जाते हैं जो पूर्णता का,

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आपकी जिज्ञासाएं? हमारे समाधान

12 अगस्त 2021
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*श्रीमते यतिराजाय नमः**‼️ आपकी जिज्ञासायें ?? हमारे समाधान‼️*🌷🌺🌷🌺🌷🌺🌷🌺🌷*भाग १:---**प्रश्न:- गुरु दीक्षा क्या जरूरी है ??गुरु दीक्षा के कितने रूप हैं ??जब सीखना ही है तो दीक्षा के बिना भी तो सीखा जा सकता है तो दीक्षा के द्वारा गुरु एवं शिष्य के बीच कौन सा संबंध स्थापित हो जाता है**उत्तर:- सा

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आपकी जिज्ञासाएं??हमारे समाधान।

13 अगस्त 2021
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*जय श्रीमन्नारायण*🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼*‼️आपकी जिज्ञासाएं??हमारे समाधान।‼️**🦚भाग :-2**गतांक से आगे:----*केवट का गुरु कोई साधारण मनुष्य नहीं अपितु स्वयं भगवान भोलेनाथ थे पूर्व जन्म में जब वह परिवार के भरण-पोषण के लिए शिकार करता था एक दिन भूख और प्यास से व्याकुल जंगल में भटकता रहा और शिकार नहीं मिला हाथों

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आपकी जिज्ञासाएँ?? हमारे समाधान।

15 अगस्त 2021
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*जय श्रीमन्नारायण*🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳*‼️आपकी जिज्ञासाएं?? हमारे समाधान‼️*💐💐💐💐💐💐💐💐*भाग ३ :-**गतांक से आगे:--------*शिष्य का गुरु के प्रति एक कर्तव्य है और इसी प्रकार गुरु का भी शिष्य के प्रति एक कर्तव्य है शिष्य का मतलब है अनुशासन और पूर्ण समर्पण इसी प्रकार गुरु का भी तात्पर्

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आपकी जिज्ञासाएँ??हमारे समाधान। भाग 4

18 अगस्त 2021
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*जय श्रीमन्नारायण*☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿*‼️आपकी जिज्ञासाएँ?? हमारे समाधान‼️**भाग ४:-*🌺🌷🌺🌷🌺🌷🌺🌷🌺*गतांक से आगे:---------**प्रश्न:- क्या गुरु ईष्ट हो सकता है?**उत्तर:-* इष्ट का तात्पर्य एक ऐसी सत्ता से है जो उसके जीवन में सर्वोच्च है और जिस में लीन हो जाना वह अपना गौरव समझता है यदि शिष्य की भावना है

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प्रणाम करने का तरीका

25 अगस्त 2021
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<p>★★★प्रणाम निषेध ★★★</p> <p>°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°</p> <p>१_दूरस्थं जलमध्यस्थं धावन्तं धनगर्व

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छठी इंद्री

26 अगस्त 2021
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<p>🚩🔱🕉️⚛📿🔥 *छठी इंद्री को जागृत करने के 5 तरीके !*⚛</p> <p>

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आपकी जिज्ञासाएँ? हमारे समाधान

20 सितम्बर 2021
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<p>*श्रीमते रामानुजाय नमः*</p> <p>🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿</p> <p>एक बार पुनः आप लोगों की सेवा में प्रेषित ह

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श्राद्ध कब और कैसे

21 सितम्बर 2021
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<p>पक्ष विशेष</p> <p>〰〰🌸〰〰</p> <p>एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन</p> <p>दद्याज्जलाज्जलीन।</p>

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आपकी जिज्ञासाएँ? हमारे समाधान

22 सितम्बर 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

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आपकी जिज्ञासाएँ?हमारे समाधान

24 सितम्बर 2021
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<p>*श्रीमते रामानुजाय नमः*</p> <p><br></p> <p>*‼️आपकी जिज्ञासाएँ?हमारे समाधान‼️*</p> <p><br></p> <p>

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आपकी जिज्ञासाएँ?हमारे समाधान

26 सितम्बर 2021
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<p>*श्रीयतिराजाय नमः*</p> <p><br></p> <p>☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️</p> <p><br></p> <p> *‼️आपकी जिज्ञास

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आपकी जिज्ञासाएँ?हमारे समाधान

1 अक्टूबर 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

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पितृ दोष

2 अक्टूबर 2021
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<p>*🕉हिन्दू संस्कार🕉*</p> <p><br></p> <p>पितृ दोष लक्षण,कारण एवं निवारण</p> <p>~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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भोजन करने का नियम

12 नवम्बर 2021
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<p>*खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ*</p> <p>🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹</p> <p>*आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों

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अयोध्या नाथ की लीला

26 नवम्बर 2021
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<p>*श्री अयोध्या जी के दशरथ महल की सत्य घटना*</p> <p><br></p> <p><br></p> <p>श्री अयोध्या जी में 'कन

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भक्त भगवान की प्रेम लीला

6 जनवरी 2022
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ठाकुर जी के प्रेमी भक्त 'श्री जयकृष्ण दास बाबा जी' के जीवन का एक सुंदर प्रसंग गोपाल की उल्टी रीति है। अगर कोई बुलाता है तब भी उसके पास नहीं जाते, और कभी कोई नहीं भी बुलाता तो उसके पास जरूर जाते हैं।

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श्रीवैष्णव तिलक महत्व

9 मार्च 2022
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*जय श्रीमन्नारायण* 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 *श्री वृंदावन धाम की जय* अगर कोई कंठीधारी कृष्णभक्त या वैष्णव जो उर्धव-पुन्ड्र वैष्णव तिलक लगाकर किसी के घर भोजन करता है, तो उस घर के 20 पीढ़ियों को मैं (

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हनुमानजी का कर्ज

16 मई 2022
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(((( हनुमान जी का कर्जा )))) . रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया।  . सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंग

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लहसुन प्याज क्यों नहीं खाना चाहिए

28 जून 2022
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प्रश्नकर्ता - लहसुन-प्याज खाना चाहिए अथवा नहीं ? श्री बागेश्वर धाम सरकार एवं श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराज ने इस सन्दर्भ में परस्पर विरोधी वक्तव्य दिये हैं, कृपया समाधान करें। निग्रहाचार्य श्रीभागवता

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सनातन संस्कृति पर भू माफियाओं का कब्जा

15 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[प्रथम भाग]* आज बहुत दिन बाद पुनः धारावाहिक

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सनातन संस्कृति पर बलात कब्जा

17 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ तृतीय भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण*

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सनातन संस्कृति पर बलात कब्जा

17 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ द्वितीय भाग]*    कल के लेख में  आपने पढ़ा

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सनातन संस्कृति पर भू माफिया ओं का कब्जा

18 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ चतुर्थ भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण

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सनातन संस्कृति पर बलात अतिक्रमण

19 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ चतुर्थ भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण

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सनातन संस्कृति पर बलात कब्जा

20 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ पंचम भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण*

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सनातन संस्कृति व धर्मस्थलों पर भूमाफियाओं का कब्जा

23 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ षष्ठम भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण*

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सनातन संस्कृति व धर्मस्थल और आश्रमों पर भू माफियाओं का बलात कब जा

23 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ षष्ठम भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण*

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*सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*

24 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ अष्टम भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण*

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सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*

25 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ नवम भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण*  

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सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण*

30 सितम्बर 2022
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*श्रीमते रामानुजाय नमः* 🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿    *!! विषय!!* *सनातन धर्म और धर्म स्थलों पर बलात अतिक्रमण* *( सनातन धर्म स्थलों पर भू माफियाओं का कब्ज़ा जा)* *[ दशम भाग]*             *जय श्रीमन्नारायण*  

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