*जय श्रीमन्नारायण*
*श्रीमते गुरुचरण कमलेभ्यो नमः*
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*गुरुपूर्णिमा विशेष*
*भाग ५*
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*किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥*
अर्थात :-
बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है । गुरु का सानिध्य गुरु की कृपा ही इस जीवन का परम ध्येय होना चाहिए प्रतिकूलता सृष्टि का विधान है प्रतिकूल तो मनुष्य अपनी संपूर्णता की तरफ बढ़ने का प्रयत्न ही ना करें ईश्वर उपासना के मार्ग पर नचले समस्या मुसीबत दुर्भाग्य रोग दरिद्रता कष्ट इत्यादि प्रतिकूलता के ही अंग प्रत्यंग हैं प्रतिकूलता बार-बार जीव को कुछ करने के लिए प्रेरित करती है कर्म फल प्राप्ति हेतु सुधार हेतु ज्ञान हेतु संप्रेषण हेतु और इससे भी बढ़कर गुरु सानिध्य ईश्वर सानिध्य के लिए प्रेरित करती है अच्छा मान लिया जाए कि हमारे जीवन में बहुत कष्ट है आपके जीवन में बहुत कष्ट है बड़ी प्रतिकूलताएँ हैं तो संसार में कोई ऐसा व्यक्ति सिर्फ एक व्यक्ति ढूंढ कर लाओ जो समस्याओं से ग्रसित न हो मैं उसे और आपको दोनों को सम्मानित करते हुए वंदन करूंगा अध्यात्म का प्रत्यय का अंग चाहे वह मंत्रों पास ना हो योग ध्यान सिद्धि तंत्र मंत्र दीक्षा इत्यादि इन सब का समग्रता के साथ समस्या समाधान हेतु उपयोग किया जाता है कहा जाता है आवश्यकता अविष्कार की जननी है यज्ञ अनुष्ठान सभी निश्चित ही जन कल्याण के अति श्रेष्ठ एवं उत्तम मार्ग भौतिक अद्भुत देविक दैहिक एवं आध्यात्मिक प्रतिकूल लताओं के लिए गुरु की शरण में जाने वाला ही गुरु द्वारा प्रदत्त मार्ग पर चलकर ईश्वर प्राप्ति एवं अपने अभीष्ट को सिद्ध करता है कभी-कभी प्रश्न आता है गुरु शरण व गुरु दीक्षा जल्दी न ली जाए इसका निश्चित समय है जब जरा अवस्था जाए यानी कि बुढ़ापा से घिर जाएं तब गुरु की शरण में जाएं यह थोड़ा हास्यास्पद लगता है सुनकर के क्या ईश्वर की शरण गुरु की शरण प्राप्त करने का भी समय है इसके लिए इंतजार नहीं शीघ्रता करनी चाहिए गुरु की कृपा उनका आशीर्वाद जितनी शीघ्र प्राप्त हो उतना ही अच्छा है माना कि हम वृद्धावस्था का इंतजार करते हैं तो इस बात की क्या गारंटी है की हम वृद्ध होने के बाद ही काल का ग्रास बनेंगे काल क्षण प्रतिक्षण हमारा इंतजार करता है और स्वास प्रति स्वास हम मृत्यु के नजदीक पहुंचते जाते जिस समय शुकदेव जी ने दीक्षा ग्रहण की उस समय उनकी अवस्था क्या थी भगवान रघुकुल कमल राघवेंद्र जब गुरु के सानिध्य में पहुंचे उस समय उनकी भी बाल्यावस्था ही थी जब अभी नहीं तो कभी नहीं भागवत जी में प्रसंग आता है जिस समय भगवान यादवेंद्र सरकार श्री कृष्ण जी ने माता कुंती सहित सभी पांडवों से इच्छा अनुसार वरदान मांगने को कहा तो जिस ने जो भी मांगा उसको सहर्ष मिला अंत में जब माता सुभद्रा का नंबर आया सभी पांडवों की निगाहें सुभद्रा एवं कृष्ण जी की तरफ से पता नहीं क्या मांगेगी कहीं कोई लौकिक वस्तु ना मांग ले भगवान गोविंद की प्रिय भगिनी है जो मांगेंगे निश्चित ही मिलेगा लेकिन माता सुभद्रा ने भगवान श्याम सुंदर की तरफ देखा और बोली कन्हैया जो भी मांगूंगी मिलेगा घनश्याम बोले तुम्हें मांगने में देरी होगी लेकिन मुझे देने में देरी नहीं होगी भद्रे मांगो तो सही माता सुभद्रा नहीं आंचल फैलाया आगे बढ़ी और बोली
*कृष्ण त्वदीय पद पंकज पंजरांते अद्यवैत में विशतु मानस राज हंसः*
हे कृष्ण चरणों में मेरा मन आज ही फस जाए और ऐसा फंसे कि जीवन में फिर कभी निकलने ही नहीं पाते क्योंकि मृत्यु का समय जब आता है गोपाल कंठ अवरुद्ध हो जाता है संसार याद आता है लेकिन अंतिम समय में तुम याद नहीं आते
*प्राण प्रयाण समये कफ वात पित्तैः , कंठावरोधन विधौ स्मरणम कुतस्ते*
अंत जिसका सँवर जाए उसका जीवन समर गया समझो हे गोविंद जिस समय हाथों से कुछ पकड़ा नहीं जाता मुख से बोला नहीं जाता पड़े पड़े केवल संसार को याद कर करके अंतिम समय का इंतजार करते रहना होता है उसी स्थिति में आपका स्मरण कैसे होगा इसलिए मुझे अभी से आपकी भक्ति और शरणागति चाहिए अर्जुन ने भगवान कृष्ण से शिष्यत्व मांगा माता सुभद्रा ने शरणागति मांग ली इसलिए बहुत समय वो दिन वह घड़ी सभी उत्तम है जिस समय पर भगवान की शरणागति ले ली जाए गुरु की शरण में पहुंचा जाए *तदेव लग्नं सुदिनम तदेव तारा बलम चंद्रबलम तदेव*
जब गुरु की कृपा प्राप्त हो जाए वही समय शुभ है वही आयु शुभ है इसलिए उम्र का इंतजार न करते हुए जितनी जल्दी हो सके गुरु का सानिध्य प्राप्त कर प्रभु की शरणागति प्राप्त की जाए
क्रमशः -----
*श्री महंत*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण श्री वैष्णव शरणागति आश्रम *लखीमपुर खीरी*
*(उत्तर प्रदेश)*
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