*जय श्रीमन्नारायण*
*स्त्रीयों को गुरू क्यूं नहीं बनाना चाहिये , और संतो को क्यूं स्त्रीयों से दूर रहना चाहिये ,, शास्त्र से*:--------
"" प्रश्न --
हमने गुरूसे कण्ठी तो लेली , पर उनमें श्रद्धा नहीं रही तो क्या कंठी उनको वापस कर दें ?
"" उत्तर--
कंठी वापस करने के लिए हम कभी समर्थन नहीं करेंगे हम तो यही सम्मति रखते हैं कि रोजाना एक माला गुरु मंत्र की फेरना और बाकी समय जिसमें श्रद्धा हो उस मंत्र का जप करो और सत्संग स्वाध्याय करो । कोईभी मंत्र हो जिसमे तुम्हारी रुचि हो ।
प्रश्न--
पहले गुरु बना लिया, पर अब उनमें श्रद्धा नहीं रही तो उनका त्याग करने से पाप तो नहीं लगेगा ?
उत्तर --
जब आपके मनमे गुरूको छोड़ने की इच्छा हो गई उनमें श्रद्धा हट गई तो गुरु का त्याग हो ही गया । इसलिए उस गुरु की निंदा भी मत करो और उसके साथ संबंध भी मत रखो जिसमें रुपयों का लोभ हो , स्त्रियों में मोह हो कर्तव्य अकर्तव्य का ज्ञान न हो , खराब रास्ते पर चलता हो , ऐसे गुरु का त्याग करने में कोई पाप कोई दोष नहीं लगता शास्त्रों में ऐसे गुरु का त्याग करने की बात आई है __
( महाभारत , उद्योग० १७८/४८ )
" गुरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानतः ।
उत्पथप्रतिपन्नस्य परित्यागो विधीयते ।।
" यदि गुरू भी घमंड में आकर कर्तव्य अकर्तव्य का ज्ञान खो बैठे और कुमार्ग पर चलने लगे तो उसका भी त्याग कर देने का विधान है ।,
( सिद्ध सिद्धान्तसंग्रह , गुरूगीता )
" ज्ञानहीनो गुरूस्त्याज्यो मिथ्यावादी विकल्पकः ।
स्वविश्रान्तिं न जानाति परशान्तिं करोति किम् ।।
ज्ञानरहित , मिथ्यावादी और भ्रम पैदा करने वाले गुरु का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि जो खुद शांति नहीं प्राप्त कर सकता वह दूसरों को शांति कैसे देगा ।,,
( स्कन्धपुराण, मा० कौ० ६/ ७; )
" पतिता गुरवस्त्याज्या माता च न कथञ्चन ।
गर्भधारणपोषाभ्यां तेन माता गरीयसी ।।
' पतित गुरू भी त्याज्य है , पर माता किसी प्रकार भी त्याज्य नहीं है , गर्व काल में धारण पोषण करने के कारण माता का गौरव गुरुजनों से भी अधिक है ।,
"" प्रश्न __ क्या स्त्रियों को गुरु बनाना चाहिए , क्या स्त्रियां गुरु बना सकती हैं ?
" " उत्तर __
संत कहते हैं, कि स्त्रियों को कोई गुरु नहीं बनाना चाहिए अगर बनाया भी हो तो छोड़ देना चाहिए स्त्री का पति ही उसका गुरु है । शास्त्र में आया है__
( पद्मपुराण| स्वर्ग० ५१ । ५१ , ब्रह्मपुराण| ८० ।४७ )
"" गुरूरग्निर्द्विजातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरूः ।
पतिरेव गुरूः स्त्रीणां सर्वस्याऽभ्यागतो गुरूः।।
" अग्नि द्विजातियों का गुरु है , ब्राह्मण चारों वर्णों का गुरु है , एकमात्र पति ही स्त्रियों का गुरु है , और अतिथि सबका गुरु है ।__
( मनुस्मृति २/६७ )
"" वैवाहिको विधिः स्त्रीणां संस्कारो वैदिकः स्मृतः ।
पतिसेवा गुरौ वासो गृहार्थोऽग्निपरिक्रिया ।।
" स्त्रियों के लिए वैवाहिक विधि का पालन ही वैदिक- संस्कार यानी (यज्ञोपवीत) पति की सेवा ही गुरुकुल वास और गृह कार्य अग्निहोत्र कहा गया है । स्त्रियों को पति के सिवाय किसी भी पुरुष से किसी प्रकार का भी संबंध नहीं जोड़ना चाहिए स्त्रियों से प्रार्थना है , कि वह कभी किसी साधु के फेर में न पड़े आजकल बहुत ठगी दंभ पाखंड हो रहा है ।
स्वामी रामसुखदास जी कहा करते थे , कि मेरे पास बहुत सारे पत्र आया करते थे , और कुछ भुक्तभोगी स्त्रियां आकर अपनी बात , कहानी सुनाया करती थी , तो उन्हें देखते हुए वो ऐसा कहते थे , कि वर्तमान समय में स्त्री के लिए गुरु बनाना अर्थात किसी भी पुरुष से संबंध जोड़ना अनर्थ का मूल है ।
साधुको भी चाहिए कि वह किसी स्त्री को चेली न बनाये दीक्षा देते समय गुरु को शिष्य के ह्रदय आदि का स्पर्श करना पड़ता है , जबकि सन्यासी के लिए स्त्री को स्पर्श करना निषेध है , श्रीमद्भागवत में आया है कि
हाड -मासमय शरीर वाली स्त्रीका का तो कहना ही क्या है , लकड़ीकी बनी हुई स्त्रीका भी स्पर्श न करे और हाथ से स्पर्श करना तो दूर रहा , पैर से भी स्पर्श न करें __
""पदापि युवतीं भिक्षुर्न स्पृशेद् दारवीमपि ।
( श्रीमद्भागवत० ११/८/१३)
" शास्त्र में यहां तक कहा गया है__
( मनु० २/ २१५ )
"" मात्रा स्वस्त्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् ।
बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ।।
मनुष्यको चाहिए कि अपनी माता बहन अथवा पुत्री के साथ भी कभी एकांत में न रहें , क्योंकि इंद्रियां बड़ी प्रबल होती है , वह विद्वान मनुष्य को भी अपनी तरफ खींच लेती हैं ।।'
श्रीमद्भागवत में भी भगवान कपिल कहते हैं ,, तीसरे स्कंध के तीसरे अध्याय के 39 श्लोक में , कि जो पुरुष योग के परम पद पर अारुण होना चाहता हो अथवा जिसे मेरी सेवा के प्रभाव से आत्मा अनात्मा का विवेक हो गया हो , वह स्त्रियों का संग कभी न करें ; क्योंकि उन्हें ऐसे पुरुष के लिए नर्क का खुला द्वार बताया गया है ,,?
। । जय श्री राधे जय श्री कृष्ण । ।