मे महिन्याचा शेवटचा आठवडा होता दुपारची वेळ होती सुर्य आग ओकत होता उष्
सचिन 16 साल का लड़का था।। बहुत ही होशियार बहुत ही चालक था।।। अ
भाग-5 (जो हुआ, सो हुआ) सात-आठ दिन बीते पर चन्दन घर में ना किसी
भाग-4 ("वाह रे! विधाता") दुलहन को घर में लाया गया, आगे क
भाग-3 (वो दुलहन ) "हक से माँगों.....बाबू चन्दन" कॉपी के
भाग-2 (चन्दन बाबू और चोटी वाली लड़की) वहाँ से चले तो आए
ऐन पावसाळ्याचे दिवस होते. दुपारी बसस्थानकावर प्रवाश्यांची खूप गर्द
नीता हर दिन की तरह सब्जी लाने बाज़ार जा रही थी कि रास्ते में उसका पैर
तरुण पांच साल का था.. अपनी ननिहाल जा कर वो फूला नहीं समा रहा था. आख़िरकार अपने माता पिता की पहली संता
मन में हर कोने में उठा सैलाब मानो शांत ही नहीं होगा, मन मस्तिष्क आंखों के सामने बस वही मंजर घूम स
अखबारों में लिपट कर उसने सुर्खियां बटोरी... कहता है वो... इसकी तासीर गर्म होती है।।