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लघु कथा

hindi articles, stories and books related to Laghu katha


मे महिन्याचा शेवटचा आठवडा होता दुपारची वेळ होती सुर्य आग ओकत होता उष्

                      पानी का घर

  सचिन 16 साल का लड़का था।। बहुत ही होशियार बहुत ही चालक था।।। अ

कभी कभी लम्हो को छुपाने के लिए

भाग-5 (जो हुआ, सो हुआ)

सात-आठ दिन बीते पर चन्दन घर में ना किसी

भाग-4 ("वाह रे! विधाता")

दुलहन को घर में लाया गया, आगे क

भाग-3 (वो दुलहन )

"हक से माँगों.....बाबू चन्दन" कॉपी के

भाग-2 (चन्दन बाबू और चोटी वाली लड़की)

वहाँ से चले तो आए

बाबू चंदन 

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अनुक्रम

ऐन पावसाळ्याचे दिवस होते. दुपारी बसस्थानकावर प्रवाश्यांची खूप गर्द

नीता हर दिन की तरह सब्जी लाने बाज़ार जा रही थी कि रास्ते में उसका पैर

मई-जून की दुपहरी जला देने वाली होती है। ऐसा लग रहा था जैसे स

लोगो से कहो ए दोस्तो

दोस्ती एक ऐसा निस्वार्थ रिश्ता है। जिसमें एक दूसरे से कुछ भी लेन

तू विधवा है,तेरा मुंह भी देख ले ,तो सारा काम चौपट हो जाए ,दूर हट

तरुण पांच साल का था.. अपनी ननिहाल जा कर वो फूला नहीं समा रहा था. आख़िरकार अपने माता पिता की पहली संता

मन में हर कोने में उठा सैलाब मानो शांत ही नहीं होगा, मन मस्तिष्क आंखों के सामने बस वही मंजर घूम स

अखबारों में लिपट कर उसने सुर्खियां बटोरी...

कहता है वो...

इसकी तासीर गर्म होती है।।

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