किसी अतिथि की तरह से आती हैं
मगर मन को तर
चुप रहना मेरी मर्जी है
सुंदरता नहीं दिखावा
जिंदगी में तकलीफें तो हमने भी बहुत झेली है, हम न रोए लेकिन आंखों ने खुद को भिगो ली हैं,
पुष्प की अभिलाषा है कि
उसे अपराधी, हिंसक, अन्यायी, भ्रष्ट
मेरे हाथ में नहीं तुमसे मिलन की लकीरें ,
बेपनाह सी मोहब्बत है तुमसे,
तुम बिन जीना ये ना होगा हमसे,
तुम
"जब आप टूट रहे होते हैं , तब आप जीवन के तहे खोल रहे होतें हैं और जब हम इन वेदनाओं से उबरने की कोश
उमड़ घुमड़कर जैसे कभी कभी नभ पे छा जाते हैं मेघ वैसे भावनाओं के ज्वार भी<
देसी चारपाई के दिन लदे
अब कोई नहीं पूछनवार
कभी तो यह बिछी रहती
थी
जब हो घनी अंधियारी रात
तो समझना रोशन सवेरा
आने वाला है पास
गीत : पापा , तुमनेमुझे कहाँ जा फंसाया पैसा, श
तेरे माथे की सुंदर सी बिंदिया।
तुझे बहुत गौरवशाली बना देतीहै।