एक अनूठा है ये नारी का
कोयला होना ही मुनासिब समझा
दीपावली पर हम सभी लेवें जन कल्याण की ही सौगंध तय करें वसुधा पर बिखेरेंगे हम
ना दोहराना जिंदगी
किसी अतिथि की तरह से आती हैं
मगर मन को तर
चुप रहना मेरी मर्जी है
सुंदरता नहीं दिखावा
जिंदगी में तकलीफें तो हमने भी बहुत झेली है, हम न रोए लेकिन आंखों ने खुद को भिगो ली हैं,
पुष्प की अभिलाषा है कि
उसे अपराधी, हिंसक, अन्यायी, भ्रष्ट
मेरे हाथ में नहीं तुमसे मिलन की लकीरें ,
बेपनाह सी मोहब्बत है तुमसे,
तुम बिन जीना ये ना होगा हमसे,
तुम