अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य स्त्री को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें समाज में सम्मान और सुरक्षा प्रदान करना है। यह आवश्यक दिन पहले एक निजी संस्था के द्वारा शुरू किया गया था धीरे-धीरे इसे पूरे विश्व में सम्मान मिलने लगा और 2008 से इसे राष्ट्रीय संघ के द्वारा 11 अक्टूबर का दिन चुना गया और अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस घोषित कर दिया गया।
समाजिक लोगों के बीच उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिये और समाज में लड़कियों की स्थिति को बढ़ावा देने के लिये इसे मनाया जाता है। ये बहुत जरुरी है कि विभिन्न प्रकार के समाजिक भेदभाव और शोषण को समाज से पूरी तरह से हटाया जाये जिसका हर रोज लड़कियाँ अपने जीवन में सामना करती हैं। समाज में लड़कियों के अधिकारों की जरुरत के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिये एक समान शिक्षा और मौलिक आजादी के बारे में विभिन्न राजनीतिक और समुदायिक नेता जनता में भाषण देते हैं।
लड़कियों के लिये ये बहुत जरुरी है कि वो सशक्त, सुरक्षित और बेहतर माहौल प्राप्त करें। उन्हें जीवन की हर सच्चाई और कानूनी अधिकारों से अवगत होना चाहिये। उन्हें इसकी जानकारी होनी चाहिये कि उनके पास अच्छी शिक्षा, पोषण, और स्वास्थ्य देख-भाल का अधिकार है। जीवन में अपने उचित अधिकार और सभी चुनौतियों का सामना करने के लिये उन्हें बहुत अच्छे से कानून सहित घरेलु हिंसा की धारा 2009, बाल-विवाह रोकथाम एक्ट 2009, दहेज रेकथाम एक्ट 2006 आदि से अवगत होना चाहिये।
हमारे देश में, महिला साक्षरता दर अभी भी 53.87% है और युवा लड़कियों का एक-तिहाई कुपोषित हैं। स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच और समाज में लैंगिक असमानता के कारण विभिन्न दूसरी बीमारियों और रक्त की कमी से प्रजननीय उम्र समूह की महिलाएँ पीड़ित हैं। विभिन्न प्रकार की योजनाओं के द्वारा बालिका शिशु की स्थिति को सुधारने के लिये महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के द्वारा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बहुत सारे कदम उठाये गये हैं।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने “धनलक्षमी” नाम से एक योजना की शुरुआत की है जिसके तहत बालिका शिशु के परिवार को नकद हस्तांतरण के द्वारा मूलभूत जरुरतों जैसे असंक्रमीकरण, जन्म पंजीकरण, स्कूल में नामांकन और कक्षा eight तक के रखरखाव को पूरा किया जाता है। शिक्षा का अधिकार कानून ने बालिका शिशु के लिये मुफ्त और जरुरी शिक्षा उपलब्ध कराया गया है।