👉 👉🙏सुरक्षा 🙏👈👈
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अज्ञानता वश भूल स्वाभाविक ,
लापरवाही में भूल होती हैं ,
भूल लापरवाही और अज्ञानता ,
दुर्घटनाओं का दोषी होती हैं ।
जब दुस्चिंता का प्रकोप होता है ,
तब अज्ञानता का स्वराज होता है,
एक पर एक दुर्घटनाओं की ,
परस्पर प्रभाव होता है ।
भोजन कोई जब कर रहा हो ,
समुचित एकाग्र मन चाहिए ,
पथ गमन में दुस्चिंताए ,
लेंस मात्र होने ना चाहिएं ।
तौल तौल कर शब्द प्रस्तुति ,
मनोयोग से श्रवण चाहिए ,
सरल,सटीक और संक्षिप्त ,
माधुर्य वक्तव्य होने चाहिए ।
पर मनभावन सुंदर वस्त्र,
इच्छित सुपाच्य भोजन ,
ये दोनों हितकारी है ,
समय शरीर को है खोजन ।
ध्यानपूर्वक कर्म करें ,
और नुकसान रहित ,
स्वार्थ हेतु पर किसी को,
तनिक ना हो अहित ।
शब्द विष घोलता है ,
शब्द माधुर्य बन जाता है ,
शब्द उग्र कर देता और ,
शब्द मौनता लाता है ।
सजग होइए जीवन में अपने ,
किसी समय और किसी जगह,
सफल होने से वंचित रहते ,
हैं छोटी भूल की वजह ।
उद्विग्न ना हो प्रयास कर ,
प्रगाढ़ लगन संयोये हुए ,
हर हार से तु सबक सिख ,
मनोरथ की लालसा लिए हुए ।
गज को सुला देती चिट्ठियां ,
जग जानें पूर्ण विस्तार ,
तिनके कि अहम भूमिका देखो ,
डुबते के प्राण बचावनहार ।
बुद्धिमता से लठ बचा लें ,
विषधर को पराजय करके ,
उपरान्त भी कुछ कर लोगे ,
उक्त लठ को धारण करके ।
सुरक्षा हर किसी को चाहिए ,
इससे वंचित कोई नहीं ,
इसके बिना जीवन संकट में ,
स्मर्ण किसी को खोई नहीं ।
सुरक्षा सुख का कवच है ,
निर्भिक फिर भी ना होना ,
नियंत्रण में बुद्धि को रखना ,
लक्ष्य की ओर अग्रसर होना ।
नासमझ को आंखें समझा डालीं ,
अनसुलझी वर्षों की आंखें सुलझा डालीं,
आंखों के संकेतों से क्या नहीं हो सकता ,
दहन अन्तर्मन के आंखें बुझा डालीं ।
दहक उठती हैं अंगारे बनकर ,
पसर जाती सरोवर बनकर ,
बढ़ते कदम भी थम जाता है ,
उन आंखों के सम्मान बनकर ।
समस्त दर्द और आघातें ,
कर्मठ बनाया है तुझको ,
अविराम प्रयास तुम्हारी ,
युक्ति सुयोग देंगी तुझको ।
यहीं सफलता की कुंजी है ,
इच्छा लगन प्रयास पुंजी है ,
खोना नहीं किंचित कभी भी ,
आघातों में कई दर्द गुंजी है ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल २२.१०.२२.०