हर वर्ष 15 अगस्त पर हम,
आज़ादी का जश्न मनाते हैं;
पर ये आज़ादी कैसे पाई,
क्या इसका ध्यान रख पाते हैं।
बहुतेरे वीर शहीद हुए,
बहुतों ने वीरगति पाई;
कुछ ऐसे वीर दीवाने थे,
जिनसे अंग्रेज सरकार भी घबराई।
बटुकेश्वर दत्त,भगतसिंह ने,
जब असेम्बली में बम फेंका था;
*इंकलाब जिन्दाबाद* का नारा,
तब फ़िज़ा में गूँजा था।
बदले की ज्वाला सीने में लेकर,
ऊधमसिंह लंदन जाते हैं;
जनरल डायर को मार कर गोली,
अपना प्रण पूरा कर लाते हैं।
लाल लाजपतराय की मौत का बदला,
साण्डर्स को मारकर लेते हैं;
राजगुरु, सुखदेव,भगत सिंह,
हँसकर फाँसी वर लेते हैं।
फ़िरंगियों से आज़ाद थे बोले,
तुम हमको पकड़ न पाओगे;
आज़ाद रहा हूँ आज़ाद रहूँगा,
तुम हमको बाँध न पाओगे।
*तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा*,
बोस का नारा जब बुलंद हो जाता था;
हर सीने में जोश था भर जाता,
और हर भारतवासी गाता था।
इक गाँधी की ऑंधी में,
अंग्रेज न टिकने पाते हैं;
आखिर में भारत छोड़ कर,
वो अपने देश को जाते हैं।
याद करो उन परवानों को,
जो देश की खातिर शहीद हुए;
याद करो उन बलिदानों को,
जो देश की शान में कुरबान हुए।
आज तिरंगे की शान की रक्षा,
हम सबको मिलकर करना है;
विश्व विजय के संकल्प को अब,
हम सबको पूरा करना है।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)🇮🇳