हिन्दी में न कोई भेदभाव है
न कोई अक्षर है असमान
न बड़ा न कोई छोटा है होता
सारे अक्षर होते हैं एक समान।
आधे अक्षर का न मान है कम
देता लेखन में योगदान है सम
पूरे अक्षर का पूरक बनकर
भाषा सुन्दर बनती है हरदम।
न कोई अक्षर चुप है रहता
हर एक का अस्तित्व है होता
मात्रा,बिंदी,हलन्त, विसर्ग का
सबका अपना महत्व है होता।
कुछ अक्षर मिश्रित हैं होते
घर के बुजुर्ग से वो हैं दिखते
लेखन में वो कम ही आते
पर हम सबका हैं ज्ञान बढ़ाते।
अन्य भाषाओं से शब्द हैं आते
हिन्दी में घुल मिल हैं जाते
हर भाषा का इसे ख़याल
हिन्दी का है हृदय विशाल।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)🇮🇳