कोई नहीं सम्पूर्ण है जग में,
सब में थोड़ा थोड़ा दोष है,
इन्हीं को बना के ताकत अपनी
बनाकर रखना जोश है।
वात्सल्य रस के अनुपम लेखक
कृष्ण भक्त वो महान थे
सूरदास थे दृष्टिबाधित
साहित्य के वरदान थे।
पाण्डु के निधन के बाद
आया संकट राज का था
धृतराष्ट्र भी थे जन्म से अन्धे,
सम्हाला हस्तिनापुर का ताज था।
बचपन से हैं दृष्टि बाधित
22 भाषओं के वो ज्ञाता हैं
लिख डाले 80 सनातन ग्रन्थ हैं
गुरु रामभद्राचार्य उच्चकोटि के संत हैं।
गर शरीर में हो कोई दोष
मत खोना तुम अपना होश
है तुम्हें कुछ करके बताना
इस जहांन को कुछ देकर जाना।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)